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Friday, November 28, 2008

क्या आतंकी हमले हमारी नियति बन गए हैं ?

२६ नवम्बर की रात मुंबई में आतंक का जो नंगा नाच शुरू हुआ , वो अभी तक जारी है । इस बार का हमला तो आतंकियों ने युद्ध की तरह किया है । १३० से ज्यादा लोगों ने इस हमले में अपनी जान से हाथ धोए है जिनमे १६ पुलिस वाले हैं । मलेगओं ब्लास्ट की जांच कर रहे ats chief हेमंत करकरे भी इस हमले में शहीद हुए हैं । सवाल ये उठता है की कराची से एमवी अल्फा जहाज गुजरात आता है और आतंकी ३ दिन तक चलने वाला विस्फोटक लेकर गेट वे ऑफ़ इंडिया तक चले आते हैं और उन्हें रोका नही जाता।

कल लखनऊ महोत्सव के मंच से एक अप्पील की गई थी जिसे मैं एक बार फिर आप लोग से दोहरा देता हूँ ...

"हिन्दोस्तान में आतंकी बार बार ऐसी घटनाओं को अंजाम देने में इसलिए कामयाब हो जाते हैं क्यूंकि जो इंसानियत के दुश्मन हैं वो तो मुत्तहिद (एकजुट) हैं और जो इंसानियत के रखवाले हैं वो बिखरे हुए हैं .........वक्त आ गया है की हम एक होकर इसका मुकाबला करें ...."

दुष्यंत की पंक्तियों के साथ अपनी बात आप पर छोड़ता हूँ....

पक गयीं हैं आदतें , बातों से सर होगी नही
कोई हंगामा करो , ऐसे गुज़र होंगी नही

1 comment:

  1. " शोक व्यक्त करने के रस्म अदायगी करने को जी नहीं चाहता. गुस्सा व्यक्त करने का अधिकार खोया सा लगता है जबआप अपने सपोर्ट सिस्टम को अक्षम पाते हैं. शायद इसीलिये घुटन !!!! नामक चीज बनाई गई होगी जिसमें कितनेही बुजुर्ग अपना जीवन सामान्यतः गुजारते हैं........बच्चों के सपोर्ट सिस्टम को अक्षम पा कर. फिर हम उस दौर सेअब गुजरें तो क्या फरक पड़ता है..शायद भविष्य के लिए रियाज ही कहलायेगा।"

    समीर जी की इस टिपण्णी में मेरा सुर भी शामिल!!!!!!!
    प्राइमरी का मास्टर

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