एक क्लिक यहां भी...

Sunday, November 30, 2008

अतिथि लेख: हर शाख पर उल्लू बैठा है


हमने जो हाल ही में आतंकवाद पर चर्चा शुरू कर के CAVS के बाहर के लोगों को भी हमने इस चर्चा में आमंत्रित किया था उसी प्रयास के फलस्वरूप हमें पंडित दिनेश शर्मा का यह लेख प्राप्त हुआ है, इसे हम बिना किसी अंश को बदले या संपादित करे प्रकाशित कर रहे हैं। यह लेख देश के हर नागरिक के मन में बसी पीड़ा को व्यक्त करता है। पंडित जी अपना परिचय कुछ यूँ देते हैं, "मेरे मन में उमड घुमड कर आने वाले विचार ही मेरी पहचान है । धर्म,जाति या स्थान विशेष के कारण पहचाना जाना कुछ अलग सा लगता है । कौन हूं मै, इस प्रश्न का जवाब यह भी हो सकता है कि मै स्नातक 34 वर्षीय लुधियाना का स्थानीय निवासी हूं, ज्ञानार्जन की खोज में निरन्तर भटकते हुए ज्योतिष/हस्तरेखा शास्त्र रुपी विधा का आश्रय प्राप्त हुआ, साथ ही थोड़ा समय निकालकर हिन्दी चिठ्ठे को निखारने की कोशिश करता हूं"

फिलहाल पढ़ें की पंडित जी क्या कहते हैं,


हर शाख पर उल्लू बैठा है

अपन तो आज बहौत खुश हैं। आप भी खुश हो जाइए। हम सुरक्षित हैं, आप सुरक्षित हैं। अगले 3-4 महीनों के लिए हम सब को जीवनदान मिल गया है। क्योंकि आम तौर एक धमाके के बाद 3-4 महीने तो शांति रहती ही है। क्या हुआ जो 3-4 महीने बाद फिर हम करोड़ों लोगों में से 50, 100 या 200 के परिवारों पर कहर टूटेगा। बाकी तो बचे रहेंगे। दरअसल सरकार का गणित यही है। हमारे पास मरने के लिए बहुत लोग हैं। चिंता क्या है। नपुंसक सरकार की प्रजा होने का यह सही दंड है।

पूरी दुनिया में आतंकवादियों को इससे सुरक्षित ज़मीन कहां मिलेगी। सच मानिए, ये हमले अभी बंद नहीं होंगे और कभी बंद नहीं होंगे।

कयूं कि यहां आतंकवाद से निपटने की रणनीति भी अपने चुनावी समीकरण के हिसाब से तय की जाती है।

आप कल्पना कर सकते हैं110 करोड़ लोगों का भाग्यनियंता, देश का सबसे शक्तिशाली (कम से कम पद के मुताबिक,दम के मुताबिक नहीं) व्यक्ति कायरों की तरह ये कहता है कि आतंकवाद पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए एक स्थायी कोष बना देना चाहिए।

हर आतंकवादी हमले के बाद टेलीविजन चैनलों पर दिखने वाला गृहमंत्री का निरीह, बेचारा चेहरा फिर प्रकट हुआ। शिवराज पाटिल ने कहा कि उन्हे इस आतंकवादी हमले की जानकारीपहले से थी। धन्य हो महाराज! आपकी तो चरणवंदना होनी चाहिए।

लेकिन इन सब बातों का मतलब ये भी नहीं कि आतंकवाद की सभी घटनाओं के लिए केवल मनमोहन सिंह की सरकार ही दोषी है। मेरा तो मानना है कि सच्चा दोषी समाज है, हम खुद हैं। क्योंकि हम खुद ही इन हमलों और मौतों के प्रति इतनी असंवेदनशील हो गए हैं कि हमें ये ज़्यादा समय तक विचलित नहीं करतीं। सरकारें सच पूछिए तो जनता का ही अक्स होती हैं जो सत्ता के आइने में जनता का असली चेहरा दिखाती हैं। भारत की जनता ही इतनी स्वकेन्द्रित हो गई है कि सरकार कोई भी आए, ऐसी ही होगी। हम भारतीय इतिहास का वो सबसे शर्मनाक हादसा नहीं भूल सकते ,जब स्वयं को राष्ट्रवाद का प्रतिनिधि बताने वाली बी।जे।पी। सरकार का विदेश मंत्री तीन आतंकवादियों को लेकर कंधार गया था। इस निर्लज्ज तर्क के साथ कि सरकार का दायित्व अपहरण कर लिए गए एक हवाईजहाज में बैठे लोगों को बचाना था। तो क्या उसी सरकार के विदेश मंत्री, प्रधानमंत्री और स्वयं को लौहपुरुष कहलवाने के शौकीन माननीय (?)लाल कृष्ण आडवाणी उन हर हत्याओं की ज़िम्मेदारी लेंगे, जो उन तीन छोड़े गए आतंकवादियों के संगठनों द्वारा की जा रही है।

वाह री राष्ट्रवादी पार्टी, धिक्कार है।
अब क्या कहें, सरकार चाहे अटल बिहारी वाजपेयी की हो या मनमोहन सिंह की, आतंकवाद हमारी नियति है। ये तो केवल भूमिका बन रही है, हम पर और बड़ी विपत्तियां आने वाली हैं।क्यूं कि 2020 तक महाशक्ति बनने का सपना देख रहे इस देश की हुकूमत चंद कायर और सत्तालोलुप नपुंसक कर रहे हैं।

प. डी.के.शर्मा 'वत्स'


( पंडित जी लुधियाना के प्रसिद्द ज्योतिष विद्वान् हैं और ज्योतिष की सार्थकता नाम का ब्लॉग लिखते हैं। )

Saturday, November 29, 2008

शहीदों को नमन ( गुरुदेव टैगोर का अनूदित पद्यांश )


मृत्यु सागर के उस पार
अनंत यात्रा के हे पथिक!
हम तुम्हारा स्मरण करते हैं ....

तुमने जो मानवता की कमी
हमारे लिए छोड़ी है
उसकी जयध्वनि के बीच
हम तुम्हे नमन करते हैं!

(शहीद वे सभी हैं जो आतंकवादी हमलों में मारे गए!)

-गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर

आंसू स्याही हैं और कलम आँखें

आज जब कांपते हाथों और भारी मन से इन जियालों को श्रद्धांजलि देने जा रहा हूँ तो मौन से बेहतर शब्द और इससे बेहतर पंक्तियाँ नही सूझी, कवि प्रदीप के ये पंक्तियाँ पुरानी है पर इनसे ज्यादा सटीक शायद ना तो लिखा गया ना ही शायद लिखा जाएगा कभी.....

पर एक सवाल राजनीति करने वालो से .....कि इन्ही हेमंत करकरे को आपने झूठा और बेईमान कहा था न कुछ दिन पहले .....?

चुप ना रहिये .....जवाब तो आपको देना ही होगा !!

हेमंत करकरे


जब घायल हुआ हिमालय ख़तरे में पड़ी आजादी,


जब तक थी साँस लड़े वो फिर अपनी लाश बिछा दी


संगीन पे धर कर माथा सो गए अमर बलिदानी जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुरबानी


विजय सालसकर


अशोक काम्टे


थी खून से लथ-पथ काया फिर भी बंदूक उठा के


दस-दस को एक ने मारा फिर गिर गए होश गँवा के


जब अंत-समय आया तो कह गए के अब मरते हैं खुश रहना देश के प्यारों अब हम तो सफ़र करते हैं



संदीप उन्नीकृष्णन

गजेन्द्र सिंह

राजीव खांडेकर

नाना साहेब भोंसले

जयवंत पाटिल

योगेश पाटिल

अम्बादास रामचंद्र पवार

एम् आई सी चौधरी

शशांक शिंदे

प्रकाश मोरे

ऐ आर चितले

बबुसाहेब दुरगुडे


*************()**************

क्षोभ और शोक ......


खेद के साथ सूचित किया जा रहा है की मुंबई और मुल्क पर हुए आतंकवादी हमले के प्रति क्षोभ और शोक व्यक्त करने के लिए प्रतीकात्मक रूप से हमारा चुनावी विशेष " चुनावी दंगल " स्थगित किया जा रहा है.....अभी कुछ दिनों तक हम केवल आतंकवाद, मुंबई हमलों और इसके समाधान पर बात करेंगे .......

हम आप सब से साम्प्रदायिक सद्भाव बनाए रखने की अपील करते हुए अब चाहेंगे की सब अपनी चुप्पी तोडें और सडकों पर उतरने के लिए तैयार हो जाएँ......

जिस जंग का अंदेशा था उसका अब एलान हो चुका है ! आप हमें अपने लेख और प्रतिक्रियाएं मेल कर सकते हैं

हमारा पता है,

Friday, November 28, 2008

जाना एक फ़कीर का

अंबरीश कुमार (http://virodh.blogspot.com)

भारतीय राजनीति में पिछड़े तबके को राजनैतिक ताकत दिलाने और समाज में उनकी नई पहचान बनाने वाले विश्वनाथ प्रताप सिंह नहीं रहे। अंतिम समय तक वे सामाजिक बदलाव के संघर्ष से जुड़े रहे। गुरूवार दोपहर करीब ढाई बजे उनका निधन हुआ जबकि बुधवार की रात जन मोर्चा के नेताओं से उनकी राजनैतिक चर्चा भी हुई। जन मोर्चा वीपी के नेतृत्व में जल्द ही उत्तरांचल में सम्मेलन करने ज रहा था तो १५ दिसम्बर को संसद घेरने का कार्यक्रम तय था। वीपी सिंह अंतिम समय तक सेज के नाम पर किसानों की जमीन औने-पौने दाम में लिए जने के खिलाफ आंदोलनरत थे। ७७ वर्ष की उम्र में १६ साल वे डायलिसिस पर रहकर लगातार आंदोलन और संघर्ष से जुड़े रहे। अगस्त,१९९0 में प्रधानमंत्री के रूप में जब उन्होंने मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू की तो पूरे उत्तर भारत में राजनैतिक भूचाल आ गया था। मंडल के बाद ही हिन्दी भाषी प्रदेशों की जो राजनीति बदली, उसने पिछड़े तबके के नेताओं को नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया। बिहार, उत्तर प्रदेश से लेकर राजस्थान तक अगड़ी जतियों की जगह पिछड़ी जतियों ने लेना शुरू किया। बिहार और उत्तर प्रदेश की राजनीति तो ऐसी बदली कि डेढ़ दशक बाद भी कोई सवर्ण मुख्यमंत्री नहीं बन पाया। उत्तर भारत की राजनीति बदलने वाले वीपी सिंह अगड़ी जतियों और उच्च-मध्यम वर्ग के खलनायक भी बन गए। यह भी रोचक है कि लालू यादव से लेकर मुलायम सिंह यादव तक को सत्ता के शीर्ष पर पहुंचाने का राजनैतिक एजंडा तय करने वाले वीपी सिंह एक बार जो केन्द्र की सत्ता से हटे तो फिर दोबारा सत्ता में नहीं आए। मंडल के बाद ही मंदिर का मुद्दा उठा जिसने भगवा ब्रिगेड को केन्द्र की सत्ता तक पहुंचा दिया। लोगों को शायद याद नहीं है कि लाल कृष्ण आडवाणी का रथ बिहार में जब लालू यादव ने रोक कर गिरफ्तार किया था तो देश के प्रधानमंत्री वीपी सिंह थे। इसी के चलते लालू यादव आज भी अल्पसंख्यकों के बीच अच्छा खासा जनाधार रखते हैं। २५ जून, १९३१ को जन्म लेने वाले वीपी सिंह इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी मंत्रिमंडल तक में शामिल रहे। कांग्रेस से उनका टकराव बोफोर्स को लेकर हुआ था जिसने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया। आज भी बोफोर्स का दाग कांग्रेस के माथे पर से हट नहीं पाया है। कुछ दिन पहले ही वीपी सिंह की कविता की एक लाइन प्रकाशित हुई थी-रोज आइने से पूछता हूं, आज जाना तो नहीं है। पता नहीं आज उन्होंने यह सवाल किया था या नहीं पर वे आज चले गए। राजनीति के बाद उनका ज्यादातर समय कविता और पेंटिंग में गुजरता था। अगड़ी जतियों के वे भले ही खलनायक हों लेकिन पिछड़ी जतियों, दलितों, वंचितों और अल्पसंख्यकों के वे हमेशा नायक ही रहे। मुलायम सिंह के शासन में उन्होंने दादरी के किसानों का सवाल उठाया तो वह प्रदेश व्यापी आंदोलन में तब्दील हो गया। इससे पहले बोफोर्स का सवाल उठाकर जब वे उत्तर प्रदेश के गांव-गांव में घूमें तो नारा लगता था-राज नहीं फकीर है, देश की तकदीर है। वीपी सिंह लगातार आंदोलनरत रहे और समाज पर उनकी छाप अमिट रहेगी। चाहे मंडल का आंदोलन हो या फिर मंदिर आंदोलन के नाम पर सांप्रदायिक ताकतों का विरोध करना या फिर किसानों के सवाल पर देश के अलग-अलग हिस्सों में अलख जगाना, इन सब में वीपी सिंह का महत्वपूर्ण योगदान रहा। लोकनायक जय प्रकाश नारायण के बाद वीपी सिंह दूसरे नेता रहे जिन्होंने कांग्रेस के वर्चस्व को तोड़ा। यही वजह है कि बाद में उनके समर्थकों ने उन्हें जन नायक का खिताब दिया। पर उनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का था। जिसके बाद उन्हें मंडल मसीहा कहा जने लगा। यह बात अलग है कि मंडल के नाम पर राजनीति करने वाले नेताओं ने उन्हें हाशिए पर ही रखा। यही वजह है कि उत्तर भारत की राजनीति को बदलने वाले वीपी सिंह कई वर्षो से किसी भी सदन के सदस्य नहीं रहे। आज भी उनके परिवार का कोई सदस्य विधानसभा या संसद में नहीं है। उनके पुत्र अजेय सिंह पिछले कुछ समय से किसानों के सवाल को लेकर सामने आ चुके हैं पर किसी राजनैतिक दल से उनका कोई संबंध नहीं रहा है। वीपी सिंह से करीब १५ दिन पहले फोन पर बात हुई तो उन्होंने किसानों के सवाल को लेकर आंदोलन की योजना की बारे में बताया था। यह भी कहा था कि वे जल्द ही विदर्भ के किसानों के सवाल को लेकर न सिर्फ वहां जएंगे बल्कि वहां धरना भी देंगे। इससे पहले दादरी के मुद्दे को लेकर उन्होंने उत्तर प्रदेश में व्यापक आंदोलन छेड़ा। डेरा डालो-घेरा डालो आंदोलन के जरिए उन्होंने देवरिया से दादरी तक किसानों को लामबंद किया था। इसके अलावा बुंदेलखंड में जब किसानों की खुदकुशी का सिलसिला शुरू हुआ तो वीपी सिंह कई क्षेत्रों में गए। बाद में जन मोर्चा और किसान मंच ने वामदलों के साथ बुंदेलखंड में आंदोलन भी छेड़ा। एक दौर में उनके आंदोलन के साथ राष्ट्रीय लोकदल, भाकपा, माकपा, भाकपा माले, इंडियन जस्टिस पार्टी और कई छोटे-छोटे दल जुड़ गए थे। मुलायम सिंह के खिलाफ राजनैतिक माहौल बनाने में वीपी सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका रही। यह बात अलग है कि छोटे-छोटे दलों के नेताओं की बड़ी महत्वाकांक्षाओं को वे संभाल नहीं पाए। और इसका फायदा विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को मिला। कुछ महीने से उनकी तबियत काफी खराब चल रही थी पर पिछले २0-२५ दिन से वे स्वस्थ थे। सारी तैयारी उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, पंजब और महाराष्ट्र में किसान आंदोलन को लेकर चल रही थी। महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के ११ जिलों में वीपी सिंह का किसान मंच पिछले एक साल से सक्रिय है। अब दिसम्बर से महाराष्ट्र के किसानों को लेकर नए सिरे से आंदोलन की तैयारी थी। हालांकि आंदोलन का नेतृत्व अजेय सिंह ने संभाल लिया था पर वीपी सिंह की उपस्थिति से ही राजनैतिक माहौल बनता। वीपी सिंह के अचानक गुजर जने से देश के किसानों के आंदोलन को गहरा ङाटका लगा है। वीपी सिंह १९६९ से ७१ तक विधायक रहे। १९७१ में वे पांचवी लोकसभा के लिए चुने गए। १९८0 में वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और १९८२ तक इस पद पर रहे। १९८३ से १९८८ तक वे राज्यसभा के सदस्य रहे। १९८४ से १९८७ तक राजीव गांधी मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री रहे। बाद में वे १९८७ में रक्षा मंत्री बने।जनसत्ता से

क्या आतंकी हमले हमारी नियति बन गए हैं ?

२६ नवम्बर की रात मुंबई में आतंक का जो नंगा नाच शुरू हुआ , वो अभी तक जारी है । इस बार का हमला तो आतंकियों ने युद्ध की तरह किया है । १३० से ज्यादा लोगों ने इस हमले में अपनी जान से हाथ धोए है जिनमे १६ पुलिस वाले हैं । मलेगओं ब्लास्ट की जांच कर रहे ats chief हेमंत करकरे भी इस हमले में शहीद हुए हैं । सवाल ये उठता है की कराची से एमवी अल्फा जहाज गुजरात आता है और आतंकी ३ दिन तक चलने वाला विस्फोटक लेकर गेट वे ऑफ़ इंडिया तक चले आते हैं और उन्हें रोका नही जाता।

कल लखनऊ महोत्सव के मंच से एक अप्पील की गई थी जिसे मैं एक बार फिर आप लोग से दोहरा देता हूँ ...

"हिन्दोस्तान में आतंकी बार बार ऐसी घटनाओं को अंजाम देने में इसलिए कामयाब हो जाते हैं क्यूंकि जो इंसानियत के दुश्मन हैं वो तो मुत्तहिद (एकजुट) हैं और जो इंसानियत के रखवाले हैं वो बिखरे हुए हैं .........वक्त आ गया है की हम एक होकर इसका मुकाबला करें ...."

दुष्यंत की पंक्तियों के साथ अपनी बात आप पर छोड़ता हूँ....

पक गयीं हैं आदतें , बातों से सर होगी नही
कोई हंगामा करो , ऐसे गुज़र होंगी नही

Thursday, November 27, 2008

आओ बैठे बात करें कुछ हल निकालें

और लो ये रहा एक और अनदेखी का नतीजा कब तक रहेंगे हम चुप कब तक कहेंगे मुस्लिम हिंदू आतंक अब तो हद हो जानी चाहिए इस पर जानते हैं हम बहस के अलावा कुछ नहीं कर सकते लेकिन इस ब्लॉग मंच के माध्यम को इस बहस के लिए स्वस्थ और बेहतर मनाया जा सकता है क्योंकि यहाँ केव्स के सबसे ज्यादा सक्रिय लोग हैं। मगर मेरे दोस्तों बहस स्वस्थ ही करना अपने विचार मैं राष्ट्र और सिर्फ राष्ट्र रहना चाहिए संक्रीर्ण जात,पात,वर्ग,भेद से परे चर्चा हो ऐंसी आशा के साथ मैं।

Tuesday, November 25, 2008

कुंवर नारायण को ज्ञानपीठ

वर्ष २००५ और २००६ के भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कारों की घोषणा कर दी गई है। 2005 के लिए हिंदी के प्रख्यात कवि कुंवर नारायण को यह पुरस्कार दिया जाएगा। वर्ष 2006 के पुरस्कार के लिए कोंकणी के रवीन्द्र केलकर और संस्कृत के विद्वान सत्यव्रत शास्त्री को संयुक्त रूप से चुना गया है। शनिवार को यह जानकारी एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करके मीडिया को दी गई। इससे पहले अभी जल्दी ही कश्मीरी कवि रहमान राही को भी ज्ञानपीठ देने की घोषणा की गई।
कोंकणी और संस्कृत के लिए पहली बार ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया है। पुरस्कार पाने वाले तीनों ही रचनाकार साहित्य अकादमी सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं। हिन्दी में दिए गए ज्ञानपीठ के लिए यही कहा जा सकता है कि कुंवर नारायण को पुरस्कृत कर के ज्ञानपीठ ने अपना ही यश बढाया है।
संस्कृत और कोंकणी भाषा में ज्ञानपीठ पहली बार दिया गया है। कोंकणी भाषा मंडल की स्थापना में रवीन्द्र केलकर की महत्वपूर्ण भूमिका रही है और वे वर्तमान में कोंकणी के सबसे प्रसिद्द और कद्दावर साहित्यकार संस्कृत के विद्वान प्रो. सत्यव्रत शास्त्री ने एक-एक हजार श्लोक वाले तीन महत्वपूर्ण रचनाएं लिखी हैं।
फिलहाल प्रस्तुत हैं कुंवर नारायण की एक कविता जो उनके वैचारिक मंथन को स्पष्ट करती हैं,


बात सीधी थी पर

बात सीधी थी पर एक बार
भाषा के चक्कर में
ज़रा टेढ़ी फँस गई ।
उसे पाने की कोशिश में
भाषा को उलटा पलटा
तोड़ा मरोड़ा
घुमाया फिराया
कि बात या तो बने
या फिर भाषा से बाहर आये-
लेकिन इससे भाषा के साथ साथ
बात और भी पेचीदा होती चली गई ।
सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना
मैं पेंच को खोलने के बजाय
उसे बेतरह कसता चला जा रहा था
क्यों कि इस करतब पर मुझे
साफ़ सुनायी दे रही थी
तमाशाबीनों की शाबाशी और वाह वाह ।
आख़िरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था –
ज़ोर ज़बरदस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी ।

हार कर मैंने उसे कील की तरह
उसी जगह ठोंक दिया ।
ऊपर से ठीकठाक

पर अन्दर से
न तो उसमें कसाव था
न ताक़त ।

बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह
मुझसे खेल रही थी,
मुझे पसीना पोंछती देख कर पूछा –
“क्या तुमने भाषा को
सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा ?”

Saturday, November 22, 2008

बेचारे नेताजी....

मौसम चुनावी है.. माहौल गरम है.. मुद्दे कई हैं.. कुछ नए कुछ पुराने हैं.. कभी जनता की सुध न लेने वाले नेताजी अब जनता के ही चश्मे से मुद्दों को देखने, समझने और हथियाने में जुटे हैं.. हमेशा जिन वोटरों को देखकर मुंह मोड़ लेते थे.. अब उनकी तरफ ही बेचारगी भरी नजर से देखते रहते हैं नेताजी ..
बेचारे नेताजी उन लोगों के सुख- दुख में भागीदार बनने की कोशिश कर रहे हैं.. जिनके लिए कल तक समय भी नहीं था.. सचमुच अपने जीवन के सबसे कठिन दौर से गुजर रहे हैं नेताजी.. अब इसे आप उनके लिए कठिन दौर नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे.. जो कल तक सितारा होटलों और सुविधायुक्त गेस्ट हाउस में ही बैठा करते थे.. आज जहां तहां दरी बिछाकर बैठने के लिए मजबूर हैं..कल तक जिन सरकारी योजनाओं और सुविधाओं पर अपने स्वार्थ की खातिर नेतागिरी का अड़ंगा लगाते थे.. अब उन मसलों पर जनता की अदालत में अपनी मजबूरियां गिनाते हैं.. बेचारे नेताजी पापी वोट की खातिर अपनी ही कारगुजारी को अब विपक्ष का अड़ंगा बताते हैं..
कहां नेताजी पांच साल तक सुकून से सोते थे.. अब नींद में भी जनता के सामने रोते हैं.. दिमाग का हाल कम Ram के कम्प्यूटर की तरह हो गया है.. गाहे बगाहे ज्यादा वर्क लोड के कारण हैंग हो जा रहा है.. कल तक हर काम के बदले मोटा कमीशन मांगा करते थे.. आज हर काम के बदले खुलकर कमीशन देने के लिए तैयार बैठे हैं नेताजी.. बेचारे नेताजी कहां पांच साल तक लोगों के बीच तन कर खड़े रहते थे.. आज उन्हीं के बीच फैल जाने की सोचते रहते हैं..
कल तक कानून का भी दायरा नहीं मानते थे नेताजी.. आज तरह- तरह के दायरों में खुद बंध गए हैं नेताजी.. बेचारे नेताजी कभी आचार संहिता के दायरे में खुद को फंसा पाते हैं तो कभी मैप पर अपनी विधान सभा के दायरे को देखकर सिर खुजलाते हैं.. क्या करें हाल बेहाल है बेचारे नेताजी..
कभी अपनी निधि से जैसे तैसे पैसा जुटाते थे नेताजी.. आज संचित निधि से दिल खोल कर पैसा लुटाते हैं बेचारे नेताजी.. कल तक दबंगई से ठेका हथियाते थे नेताजी.. आज हाथ जोड़-जोड़ कर भीड़ जुटाने के लिए भी ठेका देते हैं बेचारे नेताजी..
नेताजी के तकलीफों की फेहरिश्त बड़ी लम्बी है.. और तो और रोजाना मर्ज की संख्या भी बढ़ी जा रही है.. फिर भी अपने दिल को दिलासा देकर जिए जा रहे हैं नेताजी.. व्यस्त समय में भी अपने मन को समझाते रहते हैं नेताजी.. कि चिंता मत करो प्यारे जल्द ही वो नई सुबह आएगी जब हम इलेक्शन जीत जाएंगे.. इलेक्शन जीतते ही सारी कठिनाईयों से छुटकारा पा जाएंगे.. तब ये आचार संहिता बताने वाले हमारी संहिता गाएंगे.. फिर इलेक्शन का पैसा ब्याज सहित निकालेंगे.. अपना तो छोड़ो दूसरों के ठेके भी दबंगई से हथिया लेंगे.. आज जो वादे किए हैं वो अगले इलेक्शन के लिए लॉकर में दबा देंगे.. जनता तो बड़ी भोली है.. चुनाव आने पर एक बार फिर बहानों सहित वादा सुना देंगे..
जो भी कहें आप बड़े न्यारे हैं नेताजी.. लाख ऐब है फिर भी जनता की आंखों के तारे हैं.. अब मुझे समझ में नहीं आ रहा कि आप पर तरस खाऊं या आम जनता पर.. जो पांच साल तक आपको गरियाती है फिर भी चुनाव में वोट डालकर आप ही को जिताती है.. वाकई आप की नस्ल बड़ी उन्नत है.. तभी तो आप नेता हैं और हम आम जनता..
माफ करिएगा नेताजी जो हमने आपकी काबिलियत पर सवाल उठाया.. वैसे भी हमसे आप पर क्या फर्क पड़ता है जब कचहरी और कानून भी आपके हौसले को नहीं डिगा पाया..
सचमुच आप कलियुग के भगवान हैं बेचारे नेताजी!!!!

Posted by- Ajeet.....

Friday, November 21, 2008

चुनाव रिपोर्ट

आज की रपट

महेश मेवाड़ा
छत्तीसगढ़ में दूसरे व अंतिम चरण में करीब 70 प्रतिशत मतदान हुआ...... राज्य के 51 विधानसभा क्षेत्रों के 12073 मतदान केंद्रों पर सुबह 8 बजे से मतदान होना शुरू हो गया था...... हर मतदान केंद्रों पर लंबी लंबी कतारे सुबह से ही देखने को मिल रही थी और यह सिलसिला शाम तक जारी रहा......कुछ मतदान केंद्रों पर तो मतदाताओं के उत्साह को देखते हुए मतदान का समय भी बढाया गया..... और इस तरह छिटपुट घटनाओं के बाद पूरे प्रदेश में शांतिपूर्ण मतदान संपन्न हो गया.... पहले चरण में भी 70 प्रतिशत मतदान हुआ था इस तरह पूरे प्रदेश का मतदान प्रतिशत करीब 70 प्रतिशत का आंकड़ा पार कर गया...
महेश मेवाडा
जी 24घंटे 36गढ़,( लेखक ज़ी छत्तीसगढ़ चैनल में इलेक्शन डेस्क पर कार्यरत हैं )

चुनावी ग़ज़ल

एक चुनावी ग़ज़ल लिख मारी है ( अमा चुनावी मौसम है तो वही सूझेगा ना ) बर्दाश्त इनायत होगी !

चुनावी ग़ज़ल

हुए थे लापता कुछ साल पहले, अब हैं लौट आए
वो नेता हैं, कि हाँ फितरत यही है।

हम उनकी राह तक-तक कर बुढाए
हम जनता हैं, कि बस किस्मत यही है।

वो बोले थे, ना हम सा कोई प्यारा
वो भूले, उनकी तो आदत यही है।

बंटी हैं बोतलें, कम्बल बंटे हैं
वो बोले आपकी कीमत यही है।

वो मुस्काते हैं, हम हैं लुटते जाते
कि बस हर बार की आफत यही है।

जो पूछा, अब तलक थे गुम कहाँ तो
वो बोले, बस हुज़ूर फुर्सत यही है।

चाउर वाले बाबा वर्सेस लबरा राजा...

मित्रो देश भर मे चुनावी माहौल छाया हुआ है...
देश की शीर्ष पार्टियां तन-मन-धन से इस महासंग्राम मे लगी हुई है...एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोपो का दौर चल रहा है...
वहीं छत्तीसगढ़ जैसे भोलेभाले प्रदेश की राजनितिक फिज़ा भी दूषित हो गयी है...यहां की अनपढ़,गरीब और वनांचल मे रहने वाली जनता इस प्रदूषण को भलीभाती समझ रही है और 68 फीसदी मतदान करते हुए इस प्रदूषण को काफी हद तक खत्म करने के लिए अपना योगदान दे भी दिया है...
बहरहाल अब 8 दिसंबर को ही स्थिती स्पष्ट हो पाएगी...
प्रदेश की भोलीभाली गरीब जनता ने अभी तक दो ही सरकारो और दो ही मुख्यमंत्रियो का कार्यकाल देखा हुआ है...
हालाकि दोनो ही पार्टियो ने अभी तक मुख्यमंत्रियो की दौड़ मे काई दूसरा विकल्प पेश नही किया है...
अब जनता के समक्ष दो ही उम्मीदवार थे एक भाजपा के डाक्टर रमन सिंह(जिसे प्रदेश की जनता चाउर वाले बाबा के नाम से जानती है और अति गरीब जनता इन्हे अन्नदाता मतलब भगवान मानती है)...
और दूसरे कांग्रेस के अजीत जोगी(जिन्हे लोग तेजतर्रार प्रशासनिक अनुभव रखने वाले व्यक्ती के रूप मे पहचानती है)...
छत्तीसगढ़िया मे लबरा राजा का अर्थ है बकबक,बड़बोला,और झूठा वादा करने वाला व्यक्ति...
दुर्भाग्यवश अजीत जोगी को यहां की अवाम इसी नाम से जानती है...कारण केवल ये कि कांग्रेस कार्यकाल मे इनके प्रशासनिक अनुभव के चलते कोई विकास कार्य नही हुए...
जबकी एक सरल-साधारण से डाक्टर ने प्रदेश के हर घर मे जगह बनाई और जगह जगह विकास की गंगा बहाई...
यदि दोनो सरकारो की तुलना की जाए तो भाजपा ने 5 साल मे जिस गति से विकास कार्य किया है उतना कार्य करने मे कांग्रेस को 10 वर्ष लगते...(3 रू किलो चावल,24 घंटे बिजली,3.5फीसदी कृषि लोन,कितने ही रोजगार,सलवा जूडुम----
बात घोषणपत्र की हो तो कांग्रेस ने भाजपा के अन्त्योदय की नकल करते हुए 2 रू किलो चावल 1 रू नमक देने की घोषणा की थी...
वहीं भाजपा ने इसका जवाब देने के लिए 1 रू किलो चावल और नमक मुफ्त देने की घोषणा की है...
पोलिंग बूथो पर मतदाताओ को केवल 2 नम्बर का बटन और चाउर वाले बाबा ही याद थे...
यहां मै किसी पार्टी विशेष का प्रचार नही कर रहा हूं...यह आम जनता की बात सुन कर ही लिख पा रहा हूं...
यहां मुख्य रूप से फाईट दो ही लोगो मे है(रमन और जोगी मे...
पर फिर भी राज्य मे किसकी सरकार बनेगी कहना मुश्किल है...
जहां तक मुझे लगता है 90 विधानसभा सीटो मे से भाजपा 50-51,कांग्रेस 35-36,निर्दलीय एवं अन्य पार्टियां 6-7 सीटो पर विजयश्री पा सकती है...


नवीन सिंह...

Thursday, November 20, 2008

साहित्य और पत्रकारिता के सेतुपुरुष थे पराड़कर जी -

‘ विरोध (http://virodh.blogspot.com/)


पं बाबूराव विष्णु पराड़कर हिंदी साहित्य और पत्रकारिता के सेतुपुरुष थे. पत्रकारिता की मौजूदा परिस्थिति में आज उनकी ओर से स्थापित मूल्य और ज्यादा प्रासंगिक हैं. उन्होंने हिंदी साहित्य को दो सौ से ज्यादा शब्द दिए थे. उन्होंने आजादी के आंदोलन में पत्रकारिता का इस्तेमाल तलवार की तरह किया था. पत्रकारिता में चुनौतियां उस जमाने में भी कम नहीं थी. इस समय जरूरत है पराड़कर की तरह उनसे निपटने की दिशा में एक ठोस पहल की.’ देश की हिंदी पट्टी से यहां जुटे तमाम आलोचकों, साहितियकारों, पत्रकारों और विद्वानों ने पराड़कर जी को कुछ इन्हीं शब्दों में याद किया. मौका था भोपाल स्थित माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता और संचार विश्वविद्यालय की ओर से पराड़कर की 125वीं जयंती के मौके पर यहां आयोजित एक संगोष्ठी का. संगोष्ठी का विषय था-‘पराड़कर युग और आज की पत्रकारिता.’
कबीरचौरा स्थित नागरी नाटक मंडली के सभागार में इस संगोष्ठी के लिए पांच सौ से ज्यादा लोगों की भीड़ देखना अपने आप में एक सुखद अनुभव था. अमूमन ऐसे आयोजनों में भीड़ या तो जुटती नहीं है या फिर मुख्य वक्ताओं को सुनने के बाद ही निकल जाती है. लेकिन पहले सत्र में समय लंबा खिंचने के बावजूद लोग न सिर्फ जमे रहे, बल्कि ध्यान से सबको सुना भी. संगोष्टी के दौरान पराड़कर जी की पुत्रवधू अर्चना पराड़कर को सम्मानित किया गया. इस मौके पर भोपाल के ही....की ओर से उदंड मार्तंड से लेकर पराड़कर जी के संपादन में निकलने वाली ‘आज’, ‘संसार’, ‘कमला’ और ‘रणभेरी’ की दुर्लभ प्रतियों की प्रदर्शनी आयोजित की गई थी. इसे देखना पत्रकारिता के एक कालखंड से गुजरने की तरह था.
माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता और संचार विश्वविद्यालय के कुलपति अच्युतानंद मिश्र ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि ‘पराड़कर जी हिंदी साहित्य और पत्रकारिता के सेतु पुरुष थे. उन्होंने हिंदी साहित्य को दो सौ से ज्यादा शब्द दिए.’ मिश्र का कहना था कि आजादी के बाद साहित्य और पत्रकारिता के बीच दूरी बढ़ी. नतीजा यह रहा कि हिंदी को उसका उचित स्थान और पहचान दिलाने की जो लड़ाई इन दोनों को मिल कर लड़नी थी वह कमजोर हो गई. उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय की ओर से देश के ऐसे तमाम मूर्धन्य संपादकों की जन्म या कर्मभूमि ने ऐसे आयोजन किए जाएँगे, जिनका आजादी की लड़ाई में अहम योगदान रहा है.
संगोष्ठी के प्रधान वक्ता वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी ने कहा कि ‘पराड़कर युग और आज की पत्रकारिता के बीच कोई सेतु बनाने का प्रयास बुरी तरह विफल होगा. पत्रकारिता का जो अर्थ उस समय था, वह आज के इस दुर्भाग्यपूर्ण माहौल में कहीं फलता-फूलता नजर नहीं आता. लेकिन पराड़कर के जरिए आज की पत्रकारिता को समझने की एक कुंजी तो मिल ही सकती है.’ उनका सवाल था कि मराठी होते हुए भी पराड़कर को हिंदी इलाके ने अपना मान कर प्रतिष्ठित किया था, लेकिन क्या आज के माहौल में यह संभव है? उन्होंने कहा कि ‘पराड़कर ने आजादी के लिए पत्रकारिता को तलवार की तरह इस्तेमाल किया था. लेकिन अब उसी आजाद देश में मुंबई और असम में हिंदीभाषियों को बाहरी कह कर मारा और भगाया जा रहा है. तमाम अखबार और चैनल राज ठाकरे को खलनायक बताते हुए उसका महिमामंडन करने में जुटे हैं.’
जाने-माने आलोचक नामवर सिंह ने पहले तो इस बात पर आक्रोश जताया कि काशी के लोग अपनी भुलक्कड़ी की आदत के चलते पराड़कर को भी भूल गए हैं. उन्होंने कहा कि ‘आज की पत्रकारिता कठिन दौर से गुजर रही है. इसकी विश्वसनीयता तेजी से कम हुई है. लेकिन पराड़कर युग से तुलना कर इसे कोसने की बजाय इसकी दशा में सुधार के लिए साहित्य और पत्रकारिता से जुड़े लोगों को गंभीरता से विचार करना होगा.’
संगोष्ठी में असहमति के स्वर भी उभरे. कई पत्रकारों ने सवाल उठाया कि अब बाजार के दबाव में प्रबंधन इस बात का फैसला करता है कि कौन सी खबर छपेगी और कौन सी नहीं. ऐसे में पत्रकार कर ही क्या सकता है? अच्युतानंद मिश्र ने इन सवालों का जवाब देते हुए कहा कि ‘स्वरूप भले बदला हो, चुनौतियां हर युग में रही हैं. ऐसे में पराड़कर की तरह ही इन चुनौतियों से निपटने के लिए एक ठोस पहल की जरूरत है.’
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे डा. कृष्ण बिहारी मिश्र ने कहा कि पहले पत्रकारिता उदेश्य प्रधान थी लेकिन अब अर्थ प्रधान हो गई है. उन्होंने भी मौजूदा हालात में सुधार के लिए साहितय और पत्रकारिता के बीच सहयोग की जरूरत पर जोर दिया. संगोष्ठी का संचालन किया वाराणसी स्थित मदन मोहन मालवीय हिंदी पत्रकारिता संस्थान के निदेशक प्रोफेसर राममोहन पाठक ने. धन्यवाद ज्ञापन सप्रे संग्रहालय के निदेशक विजयदत्त श्रीधर ने किया. संगोष्ठी के दौरान ही पराड़कर के सहयोगी रहे पारस नाथ सिंह को भी सम्मानित किया गया. तमाम वक्ता इस बात से सहमत थे कि एक दिन की किसी संगोष्ठी में इतने गंभीर विषय पर विस्तार से चर्चा संभव नहीं है. लेकिन उन्होंने उम्मीद भी जताई कि इस पहल के दूरगामी नतीजे होंगे.

Wednesday, November 19, 2008

जय बोल.......


चुनावी दंगल की जब परिकल्पना आई तो दिमाग में यह भी था कि इसी बहाने अपने राजनीतिज्ञों पर कुछ बेहतरीन व्यंग्य भी लिखने और पढने का मौका मिलेगा। कल एक व्यंग्य लिखना शुरू किया( जो कुछ दिनों में आपके सामने होगा) तो अचानक काका हाथरसी याद आ गए। दरअसल राजनीति और भ्रष्टाचार पर सबसे मारक व्यंग्य करने वाले लोगों में काका का नाम शुमार है। काका हाथरसी की कवितायें व्यवस्था की छोटी से छोटी खामी को भी अपनी पैनी नज़र से पकड़ती है और ऐसी धार से कागज़ पर उकेरती है कि आम आदमी पढ़े और उसके अन्दर व्यवस्था से विद्रोह पैदा हो.....काका हाथरसी वस्तुतः इसी प्रकार के कवि थे और इतने बड़े कवि थे कि आज भी कई लोग उनकी नक़ल कर के जीवन यापन कर रहे हैं। इसीलिए लगा कि चुनावी दंगल में अगर काका की पंक्तियों का छौंक लग जाए तो दंगल का रोमांच और बढ़ जायेगा, सो प्रस्तुत है, ऐसी पंक्तियाँ जो आज के नेताओं और आज की परिस्थितियों पर बिल्कुल अनुकूल हैं,


जय बोल बेईमान की



मन, मैला, तन ऊजरा, भाषण लच्छेदार,


ऊपर सत्याचार है, भीतर भ्रष्टाचार।


झूटों के घर पंडित बाँचें, कथा सत्य भगवान की,


जय बोलो बेईमान की !



प्रजातंत्र के पेड़ पर, कौआ करें किलोल,


टेप-रिकार्डर में भरे, चमगादड़ के बोल।


नित्य नई योजना बन रहीं, जन-जन के कल्याण की,


जय बोल बेईमान की !



महँगाई ने कर दिए, राशन-कारड फेल


पंख लगाकर उड़ गए, चीनी-मिट्टी तेल।


‘क्यू’ में धक्का मार किवाड़ें बंद हुई दूकान की,


जय बोल बेईमान की



चैक केश कर बैंक से, लाया ठेकेदार,


आज बनाया पुल नया, कल पड़ गई दरार।


बाँकी झाँकी कर लो काकी, फाइव ईयर प्लान की,


जय बोलो बईमान की !



बेकारी औ’ भुखमरी, महँगाई घनघोर,


घिसे-पिटे ये शब्द हैं, बंद कीजिए शोर।


अभी जरूरत है जनता के त्याग और बलिदान की,


जय बोलो बईमान की !



मिल-मालिक से मिल गए नेता नमकहलाल,


मंत्र पढ़ दिया कान में, खत्म हुई हड़ताल।


पत्र-पुष्प से पाकिट भर दी, श्रमिकों के शैतान की,


जय बोलो बईमान की !



न्याय और अन्याय का, नोट करो डिफरेंस,


जिसकी लाठी बलवती, हाँक ले गया भैंस।


निर्बल धक्के खाएँ, तूती बोल रही बलवान की,


जय बोलो बईमान की !



नेता जी की कार से, कुचल गया मजदूर,


बीच सड़कर पर मर गया, हुई गरीबी दूर।


गाड़ी को ले गए भगाकर, जय हो कृपानिधान की,


जय बोलो बईमान की !



अंत में एक हथगोला और संभालें जो एक दूसरी कविता से है ......


नेता अखरोट से बोले किसमिस लाल
हुज़ूर हल कीजिये मेरा एक सवाल
मेरा एक सवाल, समझ में बात न भरती
मुर्ग़ी अंडे के ऊपर क्यों बैठा करती
नेता ने कहा, प्रबंध शीघ्र ही करवा देंगे
मुर्ग़ी के कमरे में एक कुर्सी डलवा देंगे



तो अंत में बस यही कि


चुनाव अनंत, चुनाव कथा अनंता


कहही, सुनहि बहुविधि सब संता

Tuesday, November 18, 2008

चुनाव रिपोर्ट

चुनाव रिपोर्ट नाम के इस स्तम्भ में हम अपने उन साथियों की विशेष टिप्पणियाँ और रपट प्रकाशित करेंगे जो उन क्षेत्रो में काम कर रहे हैं......

आज की रपट

महेश मेवाड़ा

छत्तीसगढ़ में दो चरणों में चुनाव में होना है...... और में आपको बता दूं की पहले चरण में 39 सीटों के लिए मतदान 14 नंवबर को संपन्न हो गया है...... जिसमें अधिकतर नक्सली बेल्ट सीटें थी........ यहां मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच रहा है...... वहीं दूसरे चरण की बची 51 सीटों के लिए 20 नंवबर को मतदान होना है........ और इन सीटों पर भी मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस की बीच ही है...... परन्तु तीसरी ताकत का दंभ भर रही बसपा को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता...... वह भी पिछली बार 2 सीटों पर फतह हासिल करने में कामयाब रही थी....... दूसरे चरण के मतदान के लिए अब दो दिन ही शेष है...... और मंगलवार की शाम से ही राजनीतिक पार्टियों का प्रचार थम जाएगा............


महेश मेवाडा mahesh.journalist@gmail.com
जी 24घंटे 36गढ़,
( लेखक ज़ी छत्तीसगढ़ चैनल में इलेक्शन डेस्क पर कार्यरत हैं )


Monday, November 17, 2008

गनतंत्र पर जनतंत्र रहा हावी

(चुनावी दंगल में छत्तीसगढ़ चुनावों पर पेश है श्रृंखला की पहली कड़ी, जिसे भेजा है छत्तीसगढ़ से हमारे पत्रकार साथी नितिन शर्मा ने)

"तरह तरह के सर्वे हुए हैं किसी में भाजपा को आगे बताया गया है तो किसी में कांग्रेस को परंतु मुझे लगता है अधिकांश सर्वे बहुत कम सच्चाई लिए होते हैं।"


छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों के लिए प्रथम चरण का मतदान बस्तर इलाके में हिंसक वारदातों के बीच संपन्न हुआ। मतदान शांति पूर्वक संपन्न हो इसके लिए चुनाव आयोग ने बस्तर इलाके में जहां नक्सलियों का आतंक है लगभग 30 हजार सुरक्षाबलों की तैनाती की थी। लेकिन फिर भी नक्सली छुटपुट हिंसाओं को अंजाम देने में सफल रहे लेकिन लोकतंत्र के इस महायज्ञ में मतदाताओं ने बढ़चढ़कर आहूति दी। गनतंत्र पर जनतंत्र हावी रहा।
यहां एक बात यह दुख की रही कि मतदान कर्मियों को पोलिंग बूथ से वापस ला रहे हैलिकॉप्टर पर नक्सलियों ने अत्याधुनिक हथियारों से फायरिंग कर दी जिसमें फ्लाईट इंजीनियर अपना कर्तव्य पालन करते हुए शहीद हो गए वे कानपुर निवासी थे। केव्स के सभी ब्लागवीरों की तरफ से उनको श्रद्धांजली।
39 विधानसभा सीटों पर मतदान के बाद अब सबकी नजर अगले चरण पर टिकीं हुई हैं जो कि 20 तारीख को होगा जिसमें कुल 51 सीटों पर चुनाव होना है। तरह तरह के सर्वे हुए हैं किसी में भाजपा को आगे बताया गया है तो किसी में कांग्रेस को परंतु मुझे लगता है अधिकांश सर्वे बहुत कम सच्चाई लिए होते हैं। देखा जाए तो छत्तीसगढ का भोलाभाला मतदाता वोट से पहले तक कोई रूझान झलकने नहीं देता।
जनता से तमाम लुभावने वादे किए जा रहे हैं जहां कांग्रेस ने 2 रू किलो चावल देने का वादा किया वहीं भाजपा ने 1 रू किलो चावल देने का वादा कर दिया जो अभी 3 रू किलो चावल दे रही है। वादे तो चुनावों में काफी होते हैं पर निभाए बहुत कम जाते हैं वादों के बजाए यदि संकल्प लिया जाए तो शायद बात बने।
वैसे देखा जाए तो प्रथम चरण के बाद ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस की आपसी गुटबाजी और लचर प्रचार के चलते ( सोनिया का दौरा तीन बार रद्द हुआ) रमन सिंह की साफ स्वच्छ छवि भाजपा को फायदा पहुंचा सकती है इसके साथ रमन सरकार ने विकास के कार्य भी काफी किए हैं हालांकि छत्तीसगढ के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए अभी काफी कुछ किया जाना है।
परंतु अभी असली लड़ाई अभी बाकी है दूसरे दौर के मतदान में। क्योंकि इस दौर मे 51 सीटों के लिए चुनाव होना है, इसमें जो भी बाजी मार लेगा बाजीगर वही बन जाएगा..कांग्रेस को सरकार में आने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ेगी और गुटबाजी से निपटना पड़ेगा(क्योंकि यहां पर कांग्रेस के तीन प्रदेशाध्यक्ष है).. वहीं भाजपा के लिए उसके बागी मुसीबत बने हुए हैं साथ ही मायावती भी भाजपा के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए कमर कसे हुए हैं।

नितिन शर्मा
sharma_nitin2006@rediffmail.com
( लेखक जी 24 घंटा छत्तीसगढ़ में पत्रकार हैं और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के दृश्य श्रव्य अध्ययन केन्द्र के पूर्व छात्र हैं )

Friday, November 14, 2008

जब चुनावी माहौल बन ही गया है तो....

पूरे देश में चुनावी गुलाल उड़ा हुआ है ..... होना भी चाहिए क्यूंकि ६ राज्यों में चुनाव हैं और फिर अगले साल अप्रैल तक आम चुनाव भी हो ही जायेंगे। ऐसे में हमारे ज़्यादातर साथियों की ख्वाहिश यही थी की केव्स संचार पर कुछ दिन तक हम भी चुनावी होली खेल लें। तो भाई लोगों ( बहनें भी अपने को शामिल मानें ) तय रहा कि केव्स वाले भी चुनावी होली में सराबोर होंगे और खुशखबरी है अपने राजनीतिक पत्रकार भाइयों के लिए ( वैसे बहनें राजनीति से दूर ही रहती हैं पर ख़ुद को शामिल मानें ) कि अब आप केव्स संचार के मैदान में कूद पड़ें क्यूंकि सोमवार दिनांक १७-११-२००७ से केव्स पर चुनावी दंगल शुरू होने जा रहा है। बड़ी बात यह है कि इसमें हमें अपने कई साथियों का सहयोग मिलेगा जो मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली, राजस्थान और तो और कश्मीर चुनाव पर फील्ड में भी पत्रकारिता कर रहे हैं.....तो ख़ास तौर पर हमारे इन गठीले पहलवानों के दंगल का मज़ा लेने के लिए तैयार हो जायें !
फिलहाल आप सभी को चाचा नेहरू के जन्मदिवस और बाल दिवस की शुभकामनाएं ..... काश दुनिया में सब बच्चे बन जाते ..... फिर झगडा तो होता पर दुश्मनी नही होती !
आमीन

Wednesday, November 12, 2008

चुनाव प्रचार थमा

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान के लिए प्रचार का शोर आज शाम मद्धम होते होते शांत हो गया। दक्षिण छत्तीसगढ़ के संवेदनशील बस्तर इलाक़े सहित कुल 10 ज़िलों की 39 सीटों पर 14 नवंबर को मतदान होना है। पहले चरण की इन सीटों के लिए 383 उम्मीदवार चुनाव लडेंगे।
मुख्यमंत्री रमन सिंह, नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा, विधानसभा अध्यक्ष प्रेमप्रकाश पांडे, विपक्ष के उपनेता भूपेश बघेल और मोतीलाल वोरा के बेटे अरुण वोरा के चुनावी भाग्य का फैसला इसी चरण में होगा।

बस्तर जो किनाक्साली हिंसा से प्रभावित इलाका है वहाँ शहरों में तो चुनाव की चहल पहल है पर अंदरूनी इलाकों का माहौल भय से भरा है क्यूंकि माओवादियों ने चुनाव के बहिष्कार की अपील की है। इस कारण बस्तर मैं चुनाव आयोग ने विशेष इन्तेजाम किए हैं। चुनाव आयोग ने बस्तर में मतदान का समय परिवर्तन करते हुए इसे सुबह आठ बजे से दोपहर बाद तीन बजे तक ही सीमित कर दिया है जिससे कि सूर्यास्त से पहले ही मतपेटियों को सुरक्षित वहाँ से निकाला जा सके।

Monday, November 10, 2008

विश्व विजेता हर बार भारत में पराजित हुए हैं...

अभी दफ्तर में एसैन्मेंट डेस्क पर ख़बर आई की भारत ने ऑस्ट्रेलिया को चित कर दिया और सीरीज़ पर २-० से कब्ज़ा कर लिया ..... तुंरत दिमाग में चन्द्रगुप्त मौर्या और सिकंदर महान की लड़ाई की कहानी घूम गई ! याद आया की अरे ये तो इतिहास रहा है की विश्व विजेता दुनिया में इतराते हैं और भारत में आ कर धाराशायी हो जाते है। फिलहाल कुंबले और धोनी के इस संयुक्त उपक्रम ने ऑस्ट्रेलिया का दुबारा मान मर्दन किया है, इससे पहले भारतीय टीम ने ऑस्ट्रेलिया में ही उसकी टीम को धूल चटाई थी।
फिलहाल पहले हाल मैच का तो मैथ्यू हेडन और साइमन कैटिच ने बेहद आक्रामक अंदाज़ में पाँचवें दिन की शुरुआत की पर ईशांत शर्मा ने शानदार तेज़ गेंदबाज़ी का नमूना पेश करते हुए कैटिच और माइकल क्लार्क को पैवेलियन भेज दिया। उधर अमित मिश्रा ने कप्तान पोंटिंग की गिल्लियां बिखेर दी जब उनको महज आठ के व्यक्तिगत स्कोर पर रन आउट कर दिया। पर इसके बाद हेडन और माइक हसी ने धुंआधार बल्लेबाजी चालू कर दी और भारतीय टीम संकट में दिखी पर धोनी की चतुराई के क्या कहने कि उन्होंने अमित मिश्रा को गेंदबाज़ी की कमान सौंपी और उन्होंने हसी को 19 के निजी स्कोर पर स्लिप में कैच करा दिया उधर भज्जी ने हैडेन को ७७ पर पगबाधा मारा और उसके बाद जो हुआ वो इतिहास है......ऑस्ट्रेलिया २०९ पर ही ढेर हो गई और भारत ने आखिरी टेस्ट १७३ रनों से जीत लिया।

हरभजन सिंह ने मारक गेंदें फेंकते हुए ४ विकेट लिए, अमित मिश्रा भी ज्यादा पीछे नही रहे उन्होंने ३ विकेट लिए तो इशांत शर्मा को २ विकेट मिले। ट्रोफी कुंबले ने उठाई।

फिलहाल विदाई के लिए गांगुली और कुंबले के लिए इससे बेहतर मौका नही था कि २९ साल बाद टीम ने २-० से टेस्ट श्रृंखला जीती है......तो भारतीय टीम के शूरवीरों को बधाई !


Saturday, November 8, 2008

दूसरी आज़ादी का सपना, मार्टिन लूथर और ओबामा ......

दूसरी आज़ादी का सपना, मार्टिन लूथर और ओबामा ...... उस दिन सुबह जब सो कर उठा तो भाई ने पहली ख़बर दी की ओबामा आगे चल रहे हैं, सुबह की शुरुआत अच्छी हुई और दिन तब अच्छा हुआ जब पता चला की अंततः कई महीनो की कसरत ख़त्म हुई और ओबामा जीत गए...... दरअसल खुशी का कारण ना तो चुनाव का ख़त्म होना था, ना ही अर्थव्यवस्था के प्रति चिंता और ना ही प्रवासी भारतीयों की फ़िक्र ही थी ......
खुशी के कारण कोई पचास साल पुराने थे, जब शायद मैं पैदा भी नही हुआ था। एक नाम याद आया.......... मार्टिन लूथर किंग का नाम , मैं नहीं जानता की मेरी पीढी के कितने लोग लूथर का नाम जानते होंगे पर मैं यकीनन जानता हूँ और बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ .......
याद आया शक्तिशाली संयुक्त राज्य अमेरिका ( जिसने जापान पर अणुबम गिरा कर महाशक्ति होने का प्रमाण दिया ) का वह चेहरा जिसमे गोरे और काले का भेद था ..... दुनिया के सबसे तरक्की याफ्ता मुल्क में बसों में गोरो और कालों के लिए अलग अलग सीटें थी......मार्टिन लूथर ने ३८१ दिनों का सत्याग्रह किया और बिना हिंसा के यह शर्मनाक नियम ख़त्म हुआ ! धार्मिक नेताओं की मदद से इस आन्दोलन को पूरे अमेरका में फैलाया और समान नागरिक क़ानून पाने में सफलता प्राप्त की। १९६३ में टाइम पत्रिका ने उन्हें वर्ष का पुरूष चुना और उनके कार्यों को वास्तविक सम्मान देते हुए १९६४ में उनको विश्व शान्ति के लिए नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया।
अब बात किंग की विचार धारा की ...... उनके ओबामा से सम्बन्ध की ..........दरअसल ओबामा और मार्टिन लूथर किंग को एक सपना आपस में जोड़ता है, एक सपना जो देखा गया एक बेहतर दुनिया के लिए, एक बराबरी की ज़िन्दगी के लिए, एक सुनहरे भविष्य के लिए, दुनिया को बदलने के लिए, श्रृंखलाओं को तोड़ने के लिए और एक दूसरी आज़ादी के लिए !
दूसरी आज़ादी जिसकी बात की मार्टिन लूथर ने और जिसके प्रथम वाहक बने ओबामा। मार्टिन लूथर कहते थे उस आज़ादी की बात जो खाल के आधार पर इंसान की पहचान नही करती है .....वे अश्वेतों के लिए कहते थे, 'हम वह नहीं हैं, जो हमें होना चाहिए और हम वह नहीं हैं, जो होने वाले हैं, लेकिन खुदा का शुक्र है कि हम वह भी नहीं हैं, जो हम थे।' ज़ाहिर है आज वे वो नही है जो कल थे ...... वे बदले हैं !
किंग का स्वप्न था की कभी कोई अश्वेत अमेरका का राष्ट्रपति बने और आज़ादी के २१९ साल बाद वो सपना सच हुआ है ........निश्चित तौर पर यह एक नई क्रांति है, और यह दुनिया भर में फैलेगी, वहां ही नहीं यहाँ भी ओबामा जीतेंगे, अपनी राह ख़ुद बना लेंगे .....( मायावती भी प्रधानमन्त्री बन सकती हैं सनद रहे !)
मार्टिन लूथर की १९६८ में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी और उसके ठीक ४० साल बाद किंग फिर जी उठे हैं ...... उनके विचार जी उठे हैं ...... और शायद दुनिया में दूसरी आज़ादी की उम्मीदें भी जी उठी हैं......
आज़ादी जिंदाबाद

Saturday, November 1, 2008

वेब पत्रकार संघर्ष समिति का स्वागत

दिल्ली में बनाई गई वेब पत्रकार संघर्ष समिति का देश भर के पत्रकार संगठनों ने स्वागत किया है। अखबारों में जनसत्ता, द इंडियन एक्सप्रेस, दैनिक जगरण, दैनिक भास्कर, अमर उजला, नवभारत, नई दुनिया, फाइनेन्शियल एक्सप्रेस, हिन्दुस्तान, दी पायनियर, मेल टूडे, प्रभात खबर, डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट व बिजनेस स्टेन्डर्ड जसे तमाम अखबारों के पत्रकारों ने वेब पत्रकार संघर्ष समिति के गठन का स्वागत किया। हिन्दुस्तान के दिल्ली और लखनऊ के आधा दजर्न से ज्यादा पत्रकारों ने इस मुहिम का स्वागत करते हुए अपना नाम न देने की मजबूरी भी बता दी।
आईएफडब्ल्यूजे, इंडियन एक्सप्रेस इम्प्लाईज वर्कर्स यूनियन, जनर्लिस्ट फार डेमोक्रेसी, चंडीगढ़ प्रेस क्लब और रायपुर प्रेस क्लब ने इस पहल का समर्थन किया है और सुशील कुमार सिंह के खिलाफ फर्जी आपराधिक मामले में फंसाने की कड़ी आलोचना की है। इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किग जनर्लिस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष के विक्रम राव ने कहा-अभी तक प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रानिक मीडिया के मुद्दों को लेकर चर्चा होती रही है। पर पहली बार वेब पत्रकारों ने पहल करते हुए जो संगठन बनाया है, वह आने वाले समय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। हम इस संगठन के गठन का स्वागत करते हैं। जनसत्ता के वरिष्ठ पत्रकार और इंडियन एक्सप्रेस इम्प्लाईज वर्कस यूनियन के उपाध्यक्ष अरविन्द उप्रेती ने कहा-हम सुशील कुमार सिंह के साथ हैं। वे हमारे एक्सप्रेस के संघर्ष के दिनों के पुराने साथी हैं। एक्सप्रेस यूनियन की तरफ से मैं उनके खिलाफ होने वाली पुलिसिया कार्रवाई की निंदा करता हूं।
इस बीच हिन्दुस्तान में काम कर चुके वरिष्ठ पत्रकार और डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट के संपादक प्रभात रंजन दीन ने कहा-सुशील कुमार सिंह के साथ जो हुआ, वह शर्मनाक है। इस मुद्दे पर साथियों की जो भी राय बनेगी, हम वह सब करने को तैयार हैं।जनर्लिस्ट फार डेमोक्रेसी के संयोजक पंकज श्रीवास्तव ने कहा-वेब पत्रकारों की एकजुटता नई पहल है। आने वाला समय वेब पत्रकारिता का है। ऐसे में पत्रकारों के सामने नई चुनौतियां भी आएंगी जिनका मुकाबला इस प्रकार के संगठनों से किया ज सकेगा। इस बीच रायपुर प्रेस क्लब के अध्यक्ष अनिल पुसदकर ने सुशील सिंह के मामले में पुलिस उत्पीड़न की कार्रवाई की तीखी निंदा करते हुए उनके खिलाफ सारे मामले वापस लेने की मांग की है। इस बारे में रायपुर प्रेस क्लब में बैठक भी बुलाई ज रही है। पुसदकर ने दिल्ली में वेब पत्रकारों का संगठन बनाए जने का स्वागत करते हुए इसकी छत्तीसगढ़ इकाई शुरू करने का एलान किया।
जनादेश वेबसाइट की संपादक सविता वर्मा ने सुशील कुमार सिंह के प्रकरण को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए वेब पत्रकारों की पहल का स्वागत किया है। इससे आने वाले समय में वेब पत्रकारों को फर्जी मामले में फंसाने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाया ज सकेगा। पश्चिम बंगाल की पत्रकार रीता तिवारी ने दिल्ली में वेब पत्रकारों की संघर्ष समिति बनाए जने का स्वागत करते हुए कहा कि इसकी इकाईयां अन्य राज्यों में भी बनाई जनी चाहिए ताकि राज्यों के वेब पत्रकारों का उत्पीड़न न हो सके।प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया के सदस्य और वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार ने कहा-वेब पत्रकारों के सामने जो भी चुनौतियां भी आएंगी उनका मुकाबला किया जाएगा।लखनऊ श्रमजीवी पत्रकार संघ के अध्यक्ष सिद्धार्थ कलहंस ने कहा-वेब पत्रकारिता का नया दौर शुरू हुआ है। ऐसे में पत्रकारों की यह पहल महत्वपूर्ण है। चंडीगढ़ प्रेस क्लब के उपाध्यक्ष चरनजीत आहूज ने वेब पत्रकारों की पहल का स्वागत करते हुए इसे हर संभव समर्थन देने का एलान किया है।
दूसरी तरफ पीपुल्स यूनियन फॉर ह्यूमन राइट्स के शाहनवाज आलम ने सुशील सिंह के खिलाफ फर्जी मामला दर्ज करने की कड़ी निंदा करते हुए इस मामले को मानवाधिकार आयोग ले जने की बात कही है। पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज के राष्ट्रीय महासचिव चितरंजन सिंह ने कंधमाल से फोन पर कहा-हम दिल्ली लौटते ही इस मुद्दे पर पहल करेंगे।इससे पहले एचटी मीडिया में शीर्ष पदों पर बैठे कुछ मठाधीशों के इशारे पर वेब पत्रकार सुशील कुमार सिंह को फर्जी मुकदमें में फंसाने और पुलिस द्वारा परेशान किए जाने के खिलाफ वेब मीडिया से जुड़े लोगों ने दिल्ली में एक आपात बैठक की। इस बैठक में हिंदी के कई वेब संपादक-संचालक, वेब पत्रकार, ब्लाग माडरेटर और सोशल-पोलिटिकिल एक्टीविस्ट मौजूद थे। अध्यक्षता मशहूर पत्रकार और डेटलाइन इंडिया के संपादक आलोक तोमर ने की। संचालन विस्फोट डाट काम के संपादक संजय तिवारी ने किया। बैठक के अंत में सर्वसम्मति से तीन सूत्रीय प्रस्ताव पारित किया गया। पहले प्रस्ताव में एचटी मीडिया के कुछ लोगों और पुलिस की मिलीभगत से वरिष्ठ पत्रकार सुशील को इरादतन परेशान करने के खिलाफ आंदोलन के लिए वेब पत्रकार संघर्ष समिति का गठन किया गया।इस समिति का संयोजक मशहूर पत्रकार आलोक तोमर को बनाया गया। समिति के सदस्यों में बिच्छू डाट काम के संपादक अवधेश बजाज, प्रभासाक्षी डाट काम के समूह संपादक बालेंदु दाधीच, गुजरात ग्लोबल डाट काम के संपादक योगेश शर्मा, तीसरा स्वाधीनता आंदोलन के राष्ट्रीय संगठक गोपाल राय, विस्फोट डाट काम के संपादक संजय तिवारी, लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार, मीडिया खबर डाट काम के संपादक पुष्कर पुष्प, भड़ास4मीडिया डाट काम के संपादक यशवंत सिंह शामिल हैं।
यह समिति एचटी मीडिया और पुलिस के सांठगांठ से सुशील कुमार सिंह को परेशान किए जाने के खिलाफ संघर्ष करेगी। समिति ने संघर्ष के लिए हर तरह का विकल्प खुला रखा है।दूसरे प्रस्ताव में कहा गया है कि वेब पत्रकार सुशील कुमार सिंह को परेशान करने के खिलाफ संघर्ष समिति का प्रतिनिधिमंडल अपनी बात ज्ञापन के जरिए एचटी मीडिया समूह चेयरपर्सन शोभना भरतिया तक पहुंचाएगा। शोभना भरतिया के यहां से अगर न्याय नहीं मिलता है तो दूसरे चरण में प्रतिनिधिमंडल गृहमंत्री शिवराज पाटिल और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती से मिलकर पूरे प्रकरण से अवगत कराते हुए वरिष्ठ पत्रकार को फंसाने की साजिश का भंडाफोड़ करेगा। तीसरे प्रस्ताव में कहा गया है कि सभी पत्रकार संगठनों से इस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए संपर्क किया जाएगा और एचटी मीडिया में शीर्ष पदों पर बैठे कुछ मठाधीशों के खिलाफ सीधी कार्यवाही की जाएगी।बैठक में प्रभासाक्षी डाट काम के समूह संपादक बालेन्दु दाधीच का मानना था कि मीडिया संस्थानों में डेडलाइन के दबाव में संपादकीय गलतियां होना एक आम बात है। उन्हें प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाए जाने की जरूरत नहीं है। बीबीसी, सीएनएन और ब्लूमबर्ग जैसे संस्थानों में भी हाल ही में बड़ी गलतियां हुई हैं। यदि किसी ब्लॉग या वेबसाइट पर उन्हें उजागर किया जाता है तो उसे स्पोर्ट्समैन स्पिरिट के साथ लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि संबंधित वेब मीडिया संस्थान के पास अपनी खबर को प्रकाशित करने का पुख्ता आधार है और समाचार के प्रकाशन के पीछे कोई दुराग्रह नहीं है तो इसमें पुलिस के हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है। उन्होंने संबंधित प्रकाशन संस्थान से इस मामले को तूल न देने और अभिव्यक्ति के अधिकार का सम्मान करने की अपील की।
भड़ास4मीडिया डाट काम के संपादक यशवंत सिंह ने कहा कि अब समय आ गया है जब वेब माध्यमों से जुड़े लोग अपना एक संगठन बनाएं। तभी इस तरह के अलोकतांत्रिक हमलों का मुकाबला किया जा सकता है। यह किसी सुशील कुमार का मामला नहीं बल्कि यह मीडिया की आजादी पर मीडिया मठाधीशों द्वारा हमला करने का मामला है। ये हमले भविष्य में और बढ़ेंगे। एकजुटता और संघर्ष की इसका कारगर इलाज है।विस्फोट डाट काम के संपादक संजय तिवारी ने कहा- ''पहली बार वेब मीडिया प्रिंट और इलेक्ट्रानिक दोनों मीडिया माध्यमों पर आलोचक की भूमिका में काम कर रहा है। इसके दूरगामी और सार्थक परिणाम निकलेंगे। इस आलोचना को स्वीकार करने की बजाय वेब माध्यमों पर इस तरह से हमला बोलना मीडिया समूहों की कुत्सित मानसिकता को उजागर करता है। उनका यह दावा भी झूठ हो जाता है कि वे अपनी आलोचना सुनने के लिए तैयार हैं।
लखनऊ से फोन पर वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार ने कहा कि उत्तर प्रदेश में कई पत्रकार पुलिस के निशाने पर आ चुके हैं। लखीमपुर में पत्रकार समीउद्दीन नीलू के खिलाफ तत्कालीन एसपी ने न सिर्फ फर्जी मामला दर्ज कराया बल्कि वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत उसे गिरफ्तार भी करवा दिया। इस मुद्दे को लेकर मानवाधिकार आयोग ने उत्तर प्रदेश पुलिस को आड़े हाथों लिया था। इसके अलावा मुजफ्फरनगर में वरिष्ठ पत्रकार मेहरूद्दीन खान भी साजिश के चलते जेल भेज दिए गए थे। यह मामला जब संसद में उठा तो शासन-प्रशासन की नींद खुली। वेबसाइट के गपशप जैसे कालम को लेकर अब सुशील कुमार सिंह के खिलाफ शिकायत दर्ज कराना दुर्भाग्यपूर्ण है। यह बात अलग है कि पूरे मामले में किसी का भी कहीं जिक्र नहीं किया गया है।
बिच्छू डाट के संपादक अवधेश बजाज ने भोपाल से और गुजरात ग्लोबल डाट काम के संपादक योगेश शर्मा ने अहमदाबाद से फोन पर मीटिंग में लिए गए फैसलों पर सहमति जताई। इन दोनों वरिष्ठ पत्रकारों ने सुशील कुमार सिंह को फंसाने की साजिश की निंदा की और इस साजिश को रचने वालों को बेनकाब करने की मांग की।बैठक के अंत में मशहूर पत्रकार और डेटलाइन इंडिया के संपादक आलोक तोमर ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि सुशील कुमार सिंह को परेशान करके वेब माध्यमों से जुड़े पत्रकारों को आतंकित करने की साजिश सफल नहीं होने दी जाएगी। इस लड़ाई को अंत तक लड़ा जाएगा। जो लोग साजिशें कर रहे हैं, उनके चेहरे पर पड़े नकाब को हटाने का काम और तेज किया जाएगा क्योंकि उन्हें ये लगता है कि वे पुलिस और सत्ता के सहारे सच कहने वाले पत्रकारों को धमका लेंगे तो उनकी बड़ी भूल है। हर दौर में सच कहने वाले परेशान किए जाते रहे हैं और आज दुर्भाग्य से सच कहने वालों का गला मीडिया से जुड़े लोग ही दबोच रहे हैं। ये वो लोग हैं जो मीडिया में रहते हुए बजाय पत्रकारीय नैतिकता को मानने के, पत्रकारिता के नाम पर कई तरह के धंधे कर रहे हैं। ऐसे धंधेबाजों को अपनी हकीकत का खुलासा होने का डर सता रहा है। पर उन्हें यह नहीं पता कि वे कलम को रोकने की जितनी भी कोशिशें करेंगे, कलम में स्याही उतनी ही ज्यादा बढ़ती जाएगी। सुशील कुमार प्रकरण के बहाने वेब माध्यमों के पत्रकारों में एकजुटता के लिए आई चेतना को सकारात्मक बताते हुए आलोक तोमर ने इस मुहिम को आगे बढ़ाने पर जोर दिया।बैठक में हिंदी ब्लागों के कई संचालक और मीडिया में कार्यरत पत्रकार साथी मौजूद थे।
केव्स संचार इस पूरी मुहिम में इस समिति और सुशील जी के साथ है और एच टी मीडिया लिमिटेड की खुले शब्दों में इस कृत्य के लिए भर्त्सना करता है.....हर मामला शान्ति और सौहार्द से हल हो सकता है .....

गूगल बाबा का वरदान - हिन्दी टंकण औजार

ब्लॉग एक खोज ....