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Tuesday, September 15, 2009

दो कविताएं....सच्चे वीरों के लिए...आज के वक्त की....

कल हिंदी दिवस था....और हमने एक सुनियोजित निर्णय के तहत कोई लेख या रचना प्रकाशित नहीं की....हिंदी पखवाड़ा भी मनाने का इरादा छोड़ दिया....यह सब एक सांकेतिक विरोध के तहत था....दरअसल हिंदी दिवस की उपादेयता समझ में नहीं आ रही थी....और जब तक ये समझ नहीं आती तब तक बेहतर है कि हिंदी के लिए कोई दिवस न मनाया जाए.....रोज़मर्रा में ही शामिल रहने दिया जाए.....और फिर आज वरिष्ठ पत्रकार आलोक तोमर जी ने अपनी दो कविताएं सौंपी तो लगा कि इनको ब्लॉग पर स्थान मिलना चाहिए....तो ये दो कविताएं प्रकाशित कर रहे हैं....ये कविताए उन सभी विश्व नागरिकों को समर्पित हैं जो अपने काम को बिना डरे कर रहे हैं....और दबावों से लड़ रहे हैं...दुनिया में जैसे भी जहां पर भी हैं......और आज के इन सचों का सामना कर रहे हैं....

कविता 1(सुनो)
तुम मुखर हो
तुम प्रखर हो
तुम निडर हो
तो सुनो चेतावनी
राज चालाक गूंगों का है
एक राजाज्ञा मिलेगी
तुम मुखर हो कर
तुम प्रखर हो कर
तुम निडर हो कर
भूखे ही मरोगे
झूठ के और नपुंसक दर्प के
जब कभी टेंडर खुलेंगे
राजपथ को गली में बदलने के
सभी ठेके इनको मिलेंगे
और तुम सीमा पार से
देखोगे स्वयंभू घोषित प्रखर
आत्म घोषीत मुखर
दयनीयता की हद तक निडर

कविता 2 (संदेश)
ये सन्देश है
उन नीच दासों के लिए
जिन्हें अपने हित, अपनी साधना,
अपने सत्य पर कुछ ज़्यादा ही भरोसा है...
जो समझते हैं बदल कर स्रष्टि को
खींच लायेंगे आकाशगंगा को धरा पर
बांध लेंगे नक्षत्र सारे
अपने घरों की पोटली में
उन नीच दासों को हुक्म है गूंगे राज का
वे हद में रहें
पाप झेलें, ताप झेलें
सब तरह संताप झेलें
पर किसी से ना कहें
कुछ कहोगे तो सहोगे
आत्म निर्वासन में रहोगे दास हो,
विश्वास कर लो दास हो
तुम नहीं अपनी सांस तक का
एक क्शंभ्गुर तनिक विश्वास हो
सच कहें तो आदमी तुम हो नहीं,
आदमी होने का महज़ आभास हो.
ना तुम सोचो न तुम समझो
हैं तुम्हारे लिए सोचने वाले बहुत
वे समझते हैं, हित तुम्हारा
और जो वे समझते हैं
वो ही हुक्म है, हित है तुम्हारा
फिर ना कहना कि हमने समय पर
तुमको ना पुकारा
तुम अपनी दासता में ही अमर हो
तुम राजमहलों में सिसकता मूक स्वर हो
तुम स्वयं के स्वामी नहीं हो
तुम समय के दास हो
याद रखो-- तुम दास हो
दास लोगों से भरा ये देश है
और दासों को यही सन्देश है....

2 comments:

  1. दोनों ही रचनाऐं सशक्त!!

    बधाई.

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  2. की दोनो अच्‍छी रचनाएं हैं .. हिन्‍दी दिवस का विरोध करने के क्रम में भी हिन्‍दी से संबंधित बातों पर चितन मनन करने का मौका मिला होगा .. किसी दिवस को याद करने या न करने दोनो में ही संबंधित विषय की भलाई छुपी होती है !!

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