tag:blogger.com,1999:blog-81725290272664905512024-03-13T08:23:00.857+05:30CAVS संचारबोल कि लब आज़ाद हैं तेरे....Unknownnoreply@blogger.comBlogger587125tag:blogger.com,1999:blog-8172529027266490551.post-36027139668929473982023-04-19T23:32:00.001+05:302023-04-19T23:32:32.386+05:30आमंत्रण <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-zJNWveYV3Hs/ZEAstZ9YKsI/AAAAAAAAJf4/yzPM6xwzwCYqpUq8GnvZpdAjvv3ha6u6wCNcBGAsYHQ/s1600/1681927345430523-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-zJNWveYV3Hs/ZEAstZ9YKsI/AAAAAAAAJf4/yzPM6xwzwCYqpUq8GnvZpdAjvv3ha6u6wCNcBGAsYHQ/s1600/1681927345430523-0.png" width="400">
</a>
</div>Barun Sakhajee Shrivastavhttp://www.blogger.com/profile/00022356965972552575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8172529027266490551.post-65871416354333601472022-12-06T18:34:00.001+05:302022-12-06T18:34:21.273+05:30Bhanuprtappur-2022 By-Poll Results। एग्जिट Poll।।Tribe tunrs, OBC Switch...<iframe width="480" height="270" src="https://youtube.com/embed/lF41Fpm_a64" frameborder="0"></iframe>Barun Sakhajee Shrivastavhttp://www.blogger.com/profile/00022356965972552575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8172529027266490551.post-59499598075373628452022-07-27T17:12:00.000+05:302022-07-27T17:12:04.750+05:30Exclusive Interview with Madhya Pradesh CM Shivraj Singh Chauhan | Barun...<iframe style="background-image:url(https://i.ytimg.com/vi/5dpLFiaQCcE/hqdefault.jpg)" width="480" height="270" src="https://youtube.com/embed/5dpLFiaQCcE" frameborder="0"></iframe>Barun Sakhajee Shrivastavhttp://www.blogger.com/profile/00022356965972552575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8172529027266490551.post-90776887110508548672022-05-07T13:28:00.000+05:302022-05-07T13:28:16.627+05:30BJP-Congress में जबरदस्त Digital War | बीजेपी-कांग्रेस दोनों के हुए One ...<iframe style="background-image:url(https://i.ytimg.com/vi/05S2gxN5ERU/hqdefault.jpg)" width="480" height="270" src="https://youtube.com/embed/05S2gxN5ERU" frameborder="0"></iframe>Barun Sakhajee Shrivastavhttp://www.blogger.com/profile/00022356965972552575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8172529027266490551.post-56914248483969784052019-02-16T00:50:00.001+05:302019-02-16T00:50:21.495+05:30Modi तुम pulwama पर War करो, हम पीछे से टांग खींचेंगे, ये India नहीं छोड...<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="270" src="https://www.youtube.com/embed/6VRDXuAvuTI" width="480"></iframe>Barun Sakhajee Shrivastavhttp://www.blogger.com/profile/00022356965972552575noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8172529027266490551.post-25732916312306946642019-01-17T00:26:00.001+05:302019-01-17T00:26:53.835+05:30भूपेश सरकार का एक महीना, 10 फैसले, क्या नायक बनने की राह पर हैं बघेल<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="270" src="https://www.youtube.com/embed/fSkGU9S8FGw" width="480"></iframe>Barun Sakhajee Shrivastavhttp://www.blogger.com/profile/00022356965972552575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8172529027266490551.post-8285158116564772232019-01-08T01:00:00.001+05:302019-01-08T01:00:37.856+05:30गरीब सवर्णों को आरक्षण मतलब सबके लिए बहुत कुछ, मोदी का मास्टर स्ट्रोक...<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="270" src="https://www.youtube.com/embed/eu3nozWl38o" width="480"></iframe>Barun Sakhajee Shrivastavhttp://www.blogger.com/profile/00022356965972552575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8172529027266490551.post-59346057120032631372018-11-23T21:00:00.001+05:302018-11-23T21:00:15.999+05:3029 पर भाजपा कांग्रेस 49 गठबंधन 8 जीजीपी 1 पर 3 निर्दलीयों ने मारा जोर<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="270" src="https://www.youtube.com/embed/JRztfTN4Uus" width="480"></iframe>Barun Sakhajee Shrivastavhttp://www.blogger.com/profile/00022356965972552575noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8172529027266490551.post-85150595570549811082018-11-19T17:46:00.001+05:302018-11-19T17:46:29.899+05:30कांग्रेस भी मानती है सिंहदेव बन सकते हैं डॉ. रमन के सही विकल्प<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="270" src="https://www.youtube.com/embed/8mt3p-MYrT8" width="480"></iframe>Barun Sakhajee Shrivastavhttp://www.blogger.com/profile/00022356965972552575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8172529027266490551.post-80773523962047148602018-11-03T18:38:00.001+05:302018-11-03T18:38:09.167+05:30जम्मू की धारा-370 से तकलीफ नहीं लेकिन 35-A से टूट जाएगा देश<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="270" src="https://www.youtube.com/embed/8ok3U4I2fKQ" width="480"></iframe>Barun Sakhajee Shrivastavhttp://www.blogger.com/profile/00022356965972552575noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8172529027266490551.post-27957826143625166092018-11-03T01:43:00.001+05:302018-11-03T01:43:59.627+05:30वामपंथी प्रभाकर चौबे का दुर्लभ साक्षात्कार कहते थे मनुष्य विरोधी कार्य क...<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="270" src="https://www.youtube.com/embed/D689gTVVtxE" width="480"></iframe>Barun Sakhajee Shrivastavhttp://www.blogger.com/profile/00022356965972552575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8172529027266490551.post-50708516270830341742018-11-01T22:38:00.001+05:302018-11-01T22:38:24.048+05:30राहुल गांधी की कांग्रेस में रेणु जोगी को जगह नहीं सोनिया को लिखा रुला दे...<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="270" src="https://www.youtube.com/embed/59fEpFl5SlA" width="480"></iframe>Barun Sakhajee Shrivastavhttp://www.blogger.com/profile/00022356965972552575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8172529027266490551.post-35704340540674507932018-10-27T01:40:00.001+05:302018-10-27T01:40:08.731+05:30भाजपा ने ऐसे दिया छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को वॉकओवर समझिए क्रिकेट की भाषा...<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="270" src="https://www.youtube.com/embed/XjBq4uc-a5E" width="480"></iframe>Barun Sakhajee Shrivastavhttp://www.blogger.com/profile/00022356965972552575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8172529027266490551.post-51214840710888570832018-10-22T21:22:00.001+05:302018-10-22T21:22:02.238+05:30सुभाष चंद्र बोस के बहाने कांग्रेस को और खोखला करने की मोदी की प्लानिंग<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="270" src="https://www.youtube.com/embed/qqdi3969g4o" width="480"></iframe>Barun Sakhajee Shrivastavhttp://www.blogger.com/profile/00022356965972552575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8172529027266490551.post-36467268472713431802018-10-17T16:33:00.001+05:302018-10-17T16:33:11.562+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://4.bp.blogspot.com/-n_WV6fxmyGU/W8cWoEKmkRI/AAAAAAAABCE/oDLjQgSbyHok26eYLKAP-69loA1yrfhKACLcBGAs/s1600/44156205_2014948828565409_1795126180303601664_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="900" data-original-width="720" height="320" src="https://4.bp.blogspot.com/-n_WV6fxmyGU/W8cWoEKmkRI/AAAAAAAABCE/oDLjQgSbyHok26eYLKAP-69loA1yrfhKACLcBGAs/s320/44156205_2014948828565409_1795126180303601664_n.jpg" width="256" /></a></div>
ये हैं सेकुलजरिम का घिनौना चेहरा । जिनका जिहाद जघन्यता के बिना अधूरा है </div>
विजय गुप्ताhttp://www.blogger.com/profile/07129628444160574229noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8172529027266490551.post-23470115671447254982016-06-25T21:33:00.001+05:302016-06-25T21:33:34.615+05:30आम आदमी सरकारी चंगुल में......: तृप्ति देसाई परेशान न हो, सीहोर आकर देखो यहां मंदिर में महिला पुजारी तक हैं<a href="http://sakhajee.blogspot.in/2016/06/blog-post_25.html">आम आदमी सरकारी चंगुल में......: तृप्ति देसाई परेशान न हो, सीहोर आकर देखो यहां मंदिर में महिला पुजारी तक हैं</a>Barun Sakhajee Shrivastavhttp://www.blogger.com/profile/00022356965972552575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8172529027266490551.post-18698795198701542462015-05-15T16:18:00.001+05:302015-05-15T16:18:40.659+05:30क्यों नहीं चाहिए स्मार्ट अफसर<p dir="ltr">हमें स्मार्ट सिटी चाहिए, स्मार्ट सरकार, स्मार्ट कार्ड, स्मार्ट फोन, स्मार्ट पत्नी, स्मार्ट क्लास और स्मार्ट टीवी समेत और भी न जाने क्या-क्या स्मार्ट चाहिए। मगर अफसर वही चाहिए। सफारी सूट या तपती धूप में भी गलेबंद टाई, सूट में कैद कांख में फाइल दबाए कोई मुनीम सा। ऐसा क्यों?<br>
छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस अफसर और जगदलपुर के जिला कलक्टर अमित कटारिया से राज्य सरकार ने सिविल सर्विस के सिविल कोड की किसी अ, ब, स, द धारा के उपबंध ढिमका के तहत फलां के उल्लंघन का दोषी मानते हुए जवाब तलब किया है। अफसर की चूक सिर्फ इतनी है कि उसने प्रधानमंत्री से मिलते वक्त ब्रांडेड चश्मा और रंगीन चटक शर्ट पहन रखी थी। बेचारे कमअकल अफसर ने भारत की आम आदमी की पहचान बांह से फटी शर्ट नहीं पहनी, अस्पतालों में मिलने वाला मोतियाबिंद ऑपरेशन वाला चश्मा नहीं लगाया था। मोदी के दो घंटे के कार्यक्रम में दो शर्ट भी बदल ली थी। इसलिए अफसर बहुत दोषी है।<br>
न जाने क्यों ये देश नंगों पर ही भरोसा करता है। बाबा, वैराग्य के चोले को ही क्यों मान्यता देता है। हाथी पर बैठकर भीख मांगने वाले को क्यों संत कहता है और पैदल चलकर तल्ख धूप में सब्जी बेचने वाले को ठग्गू क्यों मानता है।<br>
इक्कसवीं सदी में प्रधानमंत्री के सूट पर बवाल, अफसर के ब्रांडेड चश्मे पर सवाल गले में फंस जाते हैं। क्या इस देश को गंगा किनारे के पंडा चलाएं, जो पहनें तो भरोसे का प्रतीक भगवा, मगर ठगी में चंबल के डाकुओं के बाप हों। क्यों किसी अफसर को हम भिनका सा ही देखना चाहते हैं। क्या छत्तीसगढ़ में ही ऐसे अफसर नहीं हैं, जो अरबों की संपत्ति के मालिक हैं, जिनके पैसे स्विस बैंक में जमा हैं। दुबई में इंटरनेशनल कंपनी में भागीदारी है। कइयों मंत्रियों की अकूत संपदा देश-विदेश में है। नसबंदी कांड के दोषी मंत्री अमर अग्रवाल के दामादों की दवा कंपनियों के ही कितने ठेके राज्य के स्वास्थ्य विभाग में हैं। लेकिन वे सामान्य खादी का कुर्ता पहनते हैं, इसलिए हमें ऐतराज नहीं। वे सामान्य पोशाक में आते हैं तो हमें दिक्कत नहीं है। बस कोई स्टाइल में नजर न आए। मजे की बात तो ये है कि समकक्ष और वरिष्ठ अफसर तो वेतन वृद्धि तक रोकने की बात कह रहे हैं। अमित कटारिया कोई दूध के धुले नहीं हैं। मगर इस मामले में आम आदमी उनके साथ है। ऐसे तो युवा अफसर लाॅबी डिमॅरलाइज हो जाएगी। जरा मुक्त रखिए इन्हें बकवासों से। कितने ऊर्जावान हैं छत्तीसगढ़ के युवा अफसर ओमप्रकाश चौधरी, अमित कटारिया, सारांश मित्तर, रजत कुमार, किरण कौशल, सिद्धार्थ कोमल परदेशी। इन्हें यूं डिमॅरलाज न कीजिए।<br>
-सखाजी</p>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="http://lh3.googleusercontent.com/-gpBs_-CjHLc/VVXO96QGGCI/AAAAAAAABvE/UxbXmFN2-wE/s1600/IMG-20150515-WA0055.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="http://lh3.googleusercontent.com/-gpBs_-CjHLc/VVXO96QGGCI/AAAAAAAABvE/UxbXmFN2-wE/s200/IMG-20150515-WA0055.jpg"> </a> </div>Barun Sakhajee Shrivastavhttp://www.blogger.com/profile/00022356965972552575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8172529027266490551.post-17236987636099066452015-05-13T13:50:00.001+05:302015-05-13T13:50:43.225+05:30Review- Parlok Me Satellite<p dir="ltr">व्यंग्य उपन्यास ''परलोक में सैटेलाइट'' हास्य व्यंग्य का जीवंत नायक है। इसके जरिए लेखक ने समाज के हर वर्ग को संबोधित किया है। गहन विज्ञान और मनोविज्ञान का इस्तेमाल नजर आता है। कथानक की शुरुआत ही बुंदेलखंड के एक ऐसे पात्र से होती है, जो अपनी कुर्सी बचाने और उसे जस्टीफाई करने के लिए अपने मातहतों को तौलता रहता है। व्यंग्य सरकारी दफ्तरान में ''साहबवाद'' को भी एड्रेस करता है। सबसे मौजू और महत्वपूर्ण व्यंग्य के भीतर छुपा वह विचार है, जिसमें लेखक दुनियाभर की स्पेस एजेंसियों के अलग-अलग मिशनों पर कटाक्ष करता है। वह यहां सार्वभौमवाद जैसे अतिगंभीर टाॅपिक पर भी पाठक से वार्तालाप सा करता हुआ हास्य अंदाज में चर्चा करता है।<br>
भूखे देश में अरबों रुपये विफल सैटेलाइट पर खर्चने के बाद स्पेस एजेंसी के डायरेक्टर की राजनैतिक खुरफातों का व्यंग्य में जीवंत चित्रण है। गंभीर से गंभीर बात बेहद सरल और हास्य के जरिए ऐसे कर दी गई  है, जैसे पाठक से आमने-सामने तादातम्य बिठाकर बात की जा रही हो।<br>
सैटेलाइट का परलोक से दृश्य भेजना। पृथ्वी के मानव समाज की प्रतिक्रियात्मकता अद्भुत है। कई बातें ऐसी हैं, जिनकी बहुत ढंग से व्याख्या की जा सकती है। कई नये शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। मुद्दों पर विस्तृत राय है।<br>
व्यंग्य दो कारणों से जरूर पढ़े। पहला तो एक संपूर्ण व्यंग्य, जहां कहीं भी आपको गंभीर होने की जरूरत नहीं और एक बार भी बचकाना या हल्कापन नहीं लगेगा। दूसरा कारण इसकी शैली है। पाठक को कहीं भी उलझना नहीं पड़ता। एक पैरा सवाल खड़ा करता तो दूसरा ही पैरा जवाब दे देता है।<br>
व्यंग्य की दो खामियां भी हैं। पहली तो यह अश्लील गालियों से गुरेज नहीं करता दूसरी इसमें किसी तरह की व्यावसायिकता की परवाह नहीं की गई। इससे प्रकाशक खोजने में दिक्कत हुई। वहीं  इतनी स्पष्टवादिता बरती गई है, कि कोई भी सरकारी पुस्तकालय इस विस्फोटक को अपने यहां रखने से भी गुरेज कर रहा है।</p>
Barun Sakhajee Shrivastavhttp://www.blogger.com/profile/00022356965972552575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8172529027266490551.post-20234165099544917312015-05-12T02:33:00.001+05:302015-05-12T02:33:57.074+05:30व्यंग्य उपन्यास ''परलोक में सैटेलाइट'' अब notnul.com के साथ pothi.com पर भी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
व्यंग्य उपन्यास ''परलोक में सैटेलाइट'' अब notnul.com के साथ pothi.com पर भी।<br />
http://pothi.com/pothi/preview?pFile=51294#preview-top</div>
Barun Sakhajee Shrivastavhttp://www.blogger.com/profile/00022356965972552575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8172529027266490551.post-86583195238442141972012-10-17T12:43:00.002+05:302012-10-17T12:43:37.475+05:30कब निखरेगा ये बछड़ाकिसान अपने बछड़े को बैल बनाने से पहले दो युक्तियां करता है। पहली तो मैं बता नहीं सकता दूसरी निखारने की। इसके लिए वह नाथ डालकर बछड़े को बलात बैलगाड़ी में लगाकर खेतों में घुमाता है। पूरा गांव उस गाड़ी के पीछे मजे करता घूमता है। खासकर बच्चे। और जब बछड़ा नहीं निखरता तो दूसरी युक्ति के रूप में उसके गले पर बेवजह एक लकड़ी डाल दी जाती है, ताकि उसकी आदत है। तब भी नहीं निखरता तो बछड़े को खेत में गहरे हल गड़ाकर निखारा जाता है। और फिर भी नहीं निखरा तो किसान उसे गर्रा कहकर बेचने की कवायद में जुट जाता है। और कई बार वह कसाइयों के हात्थे भी चढ़ जाता है। मोरल ऑफ द स्टोरी श्रमवीर, कर्मवीर बनो वरना कसाई के चाक पर गर्दन रखो। संसार कहता है कर्म करो या मरो।<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://1.bp.blogspot.com/-CKBr_WH_qtU/UH5Y1-UtYGI/AAAAAAAAAfU/jilOB5BPzqU/s1600/rahul.jpg" imageanchor="1" style="clear:left; float:left;margin-right:1em; margin-bottom:1em"><img border="0" height="190" width="265" src="http://1.bp.blogspot.com/-CKBr_WH_qtU/UH5Y1-UtYGI/AAAAAAAAAfU/jilOB5BPzqU/s320/rahul.jpg" /></a></div>
ऐसा ही राहुल बाबा के साथ सोनिया कर रही हैं। उन्हें 25 साल के बाद तो निखारने के लिए मना पाईं। फिर लोकसभा के आम चुनाव 2009 में नाथ डाली गई। पहला काम जो किसान करता है वह तो शादी के इतने लेट होने से अपने आप हो गया। (एक विधि से किसान बछड़े का मर्दानापन कम करता है)। फिर उन्हें रिएक्टिवेट करके बैलगाड़ी में नुहाया (लगाया) गया। यानी महासचिव बनाया गया। फिर भी नहीं निखरे तो यूपी में प्रपंच करवाया गया। फिर भी नहीं निखर रहे तो अब सोनिया उन्हें केबिनेट में लाने की तैयारी में हैं। पीएम सीधे न सही तो बेटा केबिनेट में अंकल लोगों से कुछ सीखकर बिजनेस में हाथ बटा।
मगर राहलु बाबू हैं कि चिगते (हिलते) ही नहीं है। अब किसान करे तो क्या। कसाई को बेचेगा तो भगवान मार डालेंगे, नहीं तो जिंदगीभर खिलाएगा तो बोझ पड़ेगा।
और फिर बछड़ा बड़ा होकर दो लाइन में किसी एक में जाता है, पहली तो किसान के साथ बैल बन कर सालों सेवाओं के बाद ससम्मान सेवनिवृत्ति की तरफ जाती है। कुछ-कुछ आदमी के नौकरी करने जैसा। और दूसरी लाइन सांड बनने की होती है, यह रिस्की है किंतु मजेदार है। इसमें भी एक लाभ है अगर सांड के रूप में आपकी पोस्टिंग गांव में हुई तब तो लोग पूज भी सकते हैं और पेट भी पाल लेंगे, लेकिन अगर शहर में हुई तो समस्या होगा, यहां तो सब्जियों के ठेलों पर लट्ठ ही मिलते हैं। और गाहेबगाहे मौका मिलते ही सकाई भी लपक सकते हैं। अब राहुल बाबा को सोनिया सियासी सेवानिवृत्ति तो देंगी नहीं। केबिनेट में और लाकर देखती हैं, अगर वे सुबह जल्दी उठकर मंत्रालय (मनी फैक्ट्री) जाने लगे तो ठीक वरना फिर किसान को खेती के लिए अपनी दूसरी बछिया पर निर्भर रहना पड़ेगा, वह खेतों में जा नहीं सकेगी तो फिर कौन बचा.....वा.......ड्रा !
वरुण के सखाजीBarun Sakhajee Shrivastavhttp://www.blogger.com/profile/00022356965972552575noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8172529027266490551.post-67982998442332656722012-09-22T13:18:00.001+05:302012-09-22T13:18:31.235+05:30बड़ा अजीब पीएम है देश का<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://4.bp.blogspot.com/-bZXXBOpqUUI/UF1r6Q4v8kI/AAAAAAAAAds/Kyp45D6635M/s1600/dd.jpg" imageanchor="1" style="clear:left; float:left;margin-right:1em; margin-bottom:1em"><img border="0" height="172" width="113" src="http://4.bp.blogspot.com/-bZXXBOpqUUI/UF1r6Q4v8kI/AAAAAAAAAds/Kyp45D6635M/s320/dd.jpg" /></a></div>
प्रधानमंत्री सच कह रहे हैं, किंतु तरीका ठीक नहीं। वे बिल्कुल भी एक जिम्मेदार व्यक्ति की तरह नहीं बोले। न ही एक देश के जिम्मेदार प्रधानमंत्री की तरह ही बोले। वे एक प्रशासक और गैर जनता से कंसर्न ब्यूरोक्रैट की तरह बोले। पैसे पेड़ पर नहीं लगते? 1991 याद है न? महंगी कारों के लिए पैसा है डीजल के लिन नहीं? और सबसे खराब शब्द सिलेंडर जिसे सब्सिडी की जरूरत है वह 6 में काम चला लेता है और गरीबों के लिए कैरोसीन है?
अब जरा पीएम साहेब यहां भी नजर डालिए। देश में गरीबों को कैरोसीन मिलता कितना मशक्कत के बाद है और मिलता कितना है यह भी तो सुनिश्चि कीजिए। सिलेंडर जो यूज करते हैं वह 6 में काम चला लेते हैं, तो जनाब क्या यह मान लें कि गरीब कम खाते हैं या फिर मध्यम वर्ग कभी अपनी लाचारी और बेबसी से बाहर ही न आ पाए। सिलेंडर पर अगर आप कर ही रहे हैं कैपिंग तो इसके ऊपर के सिलेंडर एजेंसियों के चंगुल से मुक्त कर दीजिए।
पीएम साहब1991 याद दिलाकर देशपर जो अहसान आप जता रहे हैं, वह सिर्फ आपका अकेले का कारनामा नहीं था। और ओपन टू ऑल इकॉनॉमी की ओर तो भारत इंदिरा गांधी के जमाने से बढ़ रहा था। 1991 से पहले जैसे जिंदगी थी ही नहीं? जनाब जरा संभलकर बोला कीजिए।
पैसे पेड़ पर नहीं उगते यह एक ऐसी बात है जो किसी को भी खराब लग सकती है। ममता को रिडिक्यूल कीजिए, जनता को नहीं। यूपीए आप बचा लेंगे मगर साख नहीं बचा पाएंगे।
और पैसे तो पेड़ पर नहीं लगते कुछ ऐसा जुमला है जो गरीब या भिखारियों को उस वक्त दिया जाता है जब वे ज्यादा परेशान करते हैं, क्या जनता से पीएम महोदय परेशान हो गए हैं।
जब भी किसी विधा का शीर्ष उस विधा का गैर जानकार व्यक्ति बनता है तो उस विधा को एक सदी के बराबर नुकसान होता है। मसलन नॉन आईपीएस को डीजीपी, नॉन जर्नलिस्ट को एडिटर, नॉन एक्टर को फिल्म का मुख्य किरदार बना दिया जाए। वह उद्योग सफर करता है जिसमें ऐसी शीर्ष होते हैं। और हुआ भी यही जब पीएम डॉ. मनमोहन सिंह बनाए गए?
- सखाजी
Barun Sakhajee Shrivastavhttp://www.blogger.com/profile/00022356965972552575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8172529027266490551.post-31679761309530427992012-09-18T23:16:00.003+05:302012-09-18T23:16:12.671+05:30ओ.....ओ....जाने जाना, ढूंढे तुझे दीवाना<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://4.bp.blogspot.com/-vD9-NMaNuY0/UFiyl1-2BII/AAAAAAAAAdY/_uGHSA0AqZY/s1600/ss.jpeg" imageanchor="1" style="clear:left; float:left;margin-right:1em; margin-bottom:1em"><img border="0" height="119" width="218" src="http://4.bp.blogspot.com/-vD9-NMaNuY0/UFiyl1-2BII/AAAAAAAAAdY/_uGHSA0AqZY/s320/ss.jpeg" /></a></div>
देश में अचानक एक बड़ा राजनैतिक तूफान आ गया। ममता ने यूपीए से नाता तोडऩे की घोषणा कर दी। कांग्रेस के माथे पर ज्यादा सलवटें नहीं आईं। जैसे वे यह खबर सुनने के लिए तैयार से थे। बीजेपी को सांप सूंघ गया। अभी तक कोई न बयान न राय?
सपा, बसपा के अपने राग और अपने द्वेष हैं। मुलायम पर कोई भरोसा करने तैयार नहीं, वे दिल से चुनाव चाहते हैं, तो माया अभी इंतजार के मूड में हैं।
दिल मुलायम, चाल खराब: मुलायम पर कोई भरोसा करने तैयार नहीं। मुलायम भी ऐसे हैं कि जानते हैं, कल को कोई भी नतीजे आए, वे बिना कांग्रेस के पीएम नहीं बन पाएंगे। बीजेपी तो उन्हें हाथ भी नहीं रखने देगी। तब वे कांग्रेस से सीधा भी मुकाबिल नहीं होना चाहते। जबकि चुनाव के लिए आतुर हैं, दरअसल समाजवादियों का कोई भरोसा नहीं कब कहां गुंडई कर दें और अखिलेश बाबू परेशान में पड़ जाएं और चुनाव तो दूर की कोड़ हो जाए। ऐसे में उनके पास अब एक अवसर आया है कि कुछ टालमटोल करें और सरकार गिरा दें। अब देखना यह है कि वे इस काबिल शतरंजी चाल को कैसे चलते हैं?
माया मंडराई: माया से दूर रहना ही ठीक लगता है। क्योंकि यह लोग बड़े महंगे होते हैं। न जाने कितने तो पैसे लेंगे और कितने मामले वापस करवाएंगे। ऊपर से तुर्रा यह होगा कि यूपी को परेशान करो, ताकि अखिलेश माया के चिर शत्रु परेशा हो जाएं। अब सोनिया की यह होशियारी है कि चुनाव में जाएं या फिर इन दुष्टों को लें।
ममता न पसीजेगी: ममता नाम की ममता हैं। वे नहीं पसीजेंगी। चूंकि वे पंचायत में कांग्रेस से हटकर लडऩा चाहती थी। वे यह खूब जानती हैं कि कांग्रेस के बिना बंगाल में बने रहना कठिन है। वह यह भी जानती हैं, कि इस बार भले ही वे वाम की खामियों से जीत गईं, लेकिन कांग्रेस अगर साथ में रही तो वे अगली लड़ाई इसी से लड़ेंगी। इसलिए पहले तो इन्हें राज्य से बेदखल किया जाए।
शरद, करुणा: शरद पवार ईमानदार हैं। वे चाहते हैं हमेशा रहेंगे कांग्रेस के साथ। चूंकि महाराष्ट्र के समीकरण कहते हैं, कांग्रेस के साथ वे नहीं जीतेंगे। शिवसेना के साथ जाएं। तो मन ही मन वे भी चाहते हैं कि विधानसभा और लोकसभा एक साथ ही हो जाएं, तो उन्हें कुछ लाभ मिलना होगा तो जल्द मिल जाएगा। हां देर सवेर यह जरूर सोचते हैं कि उनकी छवि के अनुरूप कांग्रेस बीजेपी के सत्ता से दूर रखने के लिए समर्थन देकर पीएम बनवा सकती है। मगर शिवसेना के साथ गए तो क्या करेंगे? यह वे सोचेंगे यही उनकी काबिलियत भी है।
क्या अब आएगा नो कॉन्फिडेंस: बीजेपी इस पूरे मामले में अभी कुछ नहीं बोलेगी। वह शुक्रवार के बाद जब औपचारिक रूप से यह तय हो जाएगा तभी वह कॉन्फिडेंस वोट के लिए कहेगी। मगर सीधे नहीं, बल्कि ममता को अपने हाथ में लेकर। बीजेपी अपनी पुरानी सहयोगी बीएसपी को भी साथ में ले सकती है। बीएसपी एक ही कीमत पर जाएगा, कि अग कांग्रेस उसे उपेक्षित कर दे। चलिए अब देखते हैं भाजपा क्या करती है?
हाल फिलहाल देश की राजनीति में यह बड़ी उथल-पुथल है। कांग्रेस अगर इस वक्त चुनाव में गई तो कम से कम 5 केंद्रीय मंत्री और 6-7 सांसद समेत 40 से ज्यादा विधायक इनके दूसरी पार्टियों से चुनाव लड़ेंगे। इतना ही नहीं बीजेपी बिल्कुल भी तैयार नहीं है फिर भी गाहेबगाहे उसके हत्थे सत्ता चढ़ सकती है। हालांकि कांग्रेस यह जानती है कि थर्ड, फोर्थ जो भी फ्रंट बने बीजेपी को बाहर रखने के लिए किसी को भी पीएम बनाने में सहयोग देगी।
अंत में लेफ्ट राइट: लेफ्ट इस समय राजनीति के मूड में नहीं, वे ममता से चिढ़ते हैं। मगर ग्राउंड वास्तव में उनके भी विचारों के उलट जा सकता है। इसलिए वे कांग्रेसी समानांतर दूरी बनाए रखते हुए अपनी तीसरी दुनिया की ताकत जुटाएंगे, ताकि भूले भटके ही सही कहीं वाम का पीएम बन गया तो?
वरुण के सखाजी
Barun Sakhajee Shrivastavhttp://www.blogger.com/profile/00022356965972552575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8172529027266490551.post-3915588343319050322012-09-17T22:55:00.003+05:302012-09-17T22:55:27.011+05:30रिझाती है अल्पिन तुम्हारी मासूमियत<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://4.bp.blogspot.com/-1XZFPvylJt8/UFdcbOHWEvI/AAAAAAAAAdA/pyAi82RGTaU/s1600/sss.jpeg" imageanchor="1" style="clear:left; float:left;margin-right:1em; margin-bottom:1em"><img border="0" height="189" width="266" src="http://4.bp.blogspot.com/-1XZFPvylJt8/UFdcbOHWEvI/AAAAAAAAAdA/pyAi82RGTaU/s320/sss.jpeg" /></a></div>
बचपन में जब अल्पिन को देखता तो लगता था यह कमाल की चीज है। यूं तो अल्पिन में बहुत कुछ ऐसा होता भी नहीं कि कोई कमाल उसमें लगे। पर न जाने क्यों यह मुझे आकर्षित करती थी। इसके दो सिरों को गोलाकार सा ऐंठकर बना वृत जैसे कोई फूले कपोल सी युवती हो जान पड़ता। तो वहीं कंटोप में ढंकी इसका नुकीला सिरा आज्ञाकारिता के गुण को लक्षित करता। कैसे वह एक इशारे पर कंटोप में ठंक जाता। जरा सा दबाओ तो बाहर फिर वैसे ही अंदर। कालांतर में सोच बढ़ी, समझ बढ़ी तो अल्पिन जो कभी मेरे जीवन की बड़ी इंजीनियरी थी, वह इंजीनियरी की सबसे निचले ओहदे की कमाल साबित हुई। आज भी जब मुझे घर पर कहीं अल्पिन दिखती है तो खुशी होती है। लगता है अपनी बिछड़ी माशूका को देख रहा हूं। स्कूल गया तो वहां पर एक अलग तरह की पिन देखी, जिसे भी लोग कई बार अल्पिन कहते थे। मुझे इस बात से बड़ी कोफ्त थी कि लोग छोटी सी इस पिन को अल्पिन कहकर अल्पिन जैसी महान इंजीनियरिंग टूल को अपमानित करते हैं। कितनी खूबसूरती से वह अपने टिप (नोक) को छोटे से कवर में ढांप लेती है। जब काम नहीं होता तो वहां आराम करती है। यह इसलिए भी वहां चली जाती है कि बिना काम के मेरी नोक खराब हो जाएगी। चूंकि खुली रहेगी तो कोई न कोई उसे छेड़ेगा जरूर। अल्पिन की यह सोच मुझे बहुत प्रेरित करती थी।
उस वक्त तो इस अल्पिन को लेकर सिर्फ एक मोहब्बत थी, वो भी बेशर्त। न कुछ और न कुछ और। पर जब सोचने की ताकत बढ़ी तो इस मोहब्बत के कारण समझ में आए। दरअसल यह अल्पिन अपनी नोक पर कंटोप इसलिए पहन लेती थी, ताकि भोथरी होने से बची रही तो वक्त पर काम आ सके। ठीक एक बुद्मिान और समझदार व्यक्ति की तरह। ऐसा व्यक्ति अपनी दिमागी शार्पनेस को बेवजह नहीं जाया करते। वे खुद के ही बनाए एक कंटोप में सारी समझदारी और शक्ति के संभालकर रखते हैं। लेकिन इस अल्पिन से इतर, इसी की हमशक्ल एक और पिन होती है। इस पिन का इस्तेमाल अक्सर कागजों को नत्थी करने में किया जाता है। लेकिन प्यारी अल्पिन तो नारी श्रृंगार के दौरान यूज की जाती है। वह कागजों की नहीं, सौंदर्य की चेरी है। हमशक्ल वाली पिन ने इस अल्पिन को तेजी से खत्म करने की कोशिश की। मगर अपने नुकीले स्वभाव को न छिपा पाने और नुकसान पहुंचाने को लेकर बिना नैतिकता की सोच वाली होने के कारण इसे समाज में वह स्थान नहीं मिल पाया। जबकि अल्पिन, पिन, सुई, कांटा समाज की सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाली पिन ही है। मगर अल्पिन तो जैसे आम लोगों में बैठी खूबसूरत विशिष्ट चीज है, सुई जैसे समाज की कारिंदा सोच की प्रतिनिधि है। तो वहीं कांटे नैतिकता से परे बेझिझक, गंवार टाइप के दुर्जन लोग हैं।
अल्पिन ने महज अपनी मोहब्बत ही नहीं दी, मुझे तो कई आयामों पर सोचने की शक्ति भी दी है। विद्वानों की तरह मूर्खों में ऊर्जा न खपाना कोई विमूढ़ता नहीं। और इन बेवकूफों के बीच प्रतिष्ठा न पा सकने का कोई अफसोस भी नहीं। एक दिन जब अल्पिन ने बाजार के फेरे में आकर अपना रूप बदला तो मैं भौंचक रह गया। वह अब आकर्षक शेप में थी। अपनी असलियत को कहीं अंदर ढंके हुए बाहर तितलीनुमा कवच के साथ आई।
इस रूप को देखकर तो मुझे और भी इसकी ओर आकर्षित होना चाहिए था। मगर हुआ उल्टा। मुझे इसका यह रूप बिल्कुल भी नहीं भाया। चूंकि मैं तो इसके असली रूप से ही मोहब्बत करता हूं, कैसे इसे अनुमोदन दे दूं। और जब प्यार निस्वार्थ भाव से होता है, तो फिर उसमें कोई भी तब्दीलगी इसे भौंडा बना देती है। प्यार की इस परिभाषा को सर्वमान्य तो नहीं कहा जा सकता, हां मगर एन एप्रोप्रिएट एंड अल्मोस्ट एडमायर्ड एक्सेप्टीबल काइंड ऑफ लाव जरूर कहा जा सकता है।
और मोहब्बत का यह प्रकार ऐसा होता है कि लाख बदलावों के बाद भी अपनी माशूका में खोट नहीं देखता। अल्पिन की इस भंगिमा को देखकर भले ही पलभर के लिए क्रोध घुमड़ा हो, मगर यह वसुंधरा सा उड़ भी गया। सबकुछ जानकर भी यह यकीं नहीं हुआ, कि मेरी प्यारी अल्पिन ने जान बूझकर अपनी मासूमियत को इस नकल से ढांप लिया होगा। बार-बार जेहन में यही लगता रहता है कि अल्पिन को जरूर सुई, कांटा, पिन, स्टेप्लर की नन्ही दुफनियांओं ने मिलकर साजिश की होगी। अल्पिन की मासूमियत और उनकी उपयोगिता दोनों को बरक्स रखा जाए तो भी अल्पिन बीस ही निकलती। इसी ईष्र्या ने शायद अल्पिन को बलात ऐसा रूप दे दिया गया हो। यह अल्पिन के लिए मेरा जेहनी पागलपन से सना प्यार है, या फिर उसपर भरोसा। यह तो नहीं पता, पर यह जरूर समझ आता है कि आपकी मोहब्बत कई बुराइयों को भी अच्छाइयों में बदल सकती है, फिर वह चाहे अल्पिन से हो या हाड़ मांस के हम और आपसे।
वरुण के सखाजीBarun Sakhajee Shrivastavhttp://www.blogger.com/profile/00022356965972552575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8172529027266490551.post-82621024745432995322012-09-06T13:26:00.002+05:302012-09-06T13:26:44.525+05:30कौन है यह वाशिंगटन पोस्ट और क्यों मच रहा है हल्ला<b>यह नहीं कि वाशिंगटन पोस्ट या टाइम गलत हैं या सही हैं। बस सवाल सिर्फ इतना है कि वे जो कुछ भी कह रहे हैं वह उनकी खबर क्यों है? व्यावसायिक परिदृश्य में देखें तो मीडिया के नाम पर विदेशी मीडिया की मनमानी कतई लोक की आवाज नहीं है। यह नितांत विदेशी कूटनीति का हिस्सा है। इसलिए दुनिया के मंच पर जब देश के संदर्भ में कोई बात की जाए, तो सावधानी रखना जरूरी हो जाता है।<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://3.bp.blogspot.com/-gADGkIOKghM/UEhWsUBTBcI/AAAAAAAAAck/ct4SMHEZG9M/s1600/pm.jpg" imageanchor="1" style="clear:left; float:left;margin-right:1em; margin-bottom:1em"><img border="0" height="180" width="240" src="http://3.bp.blogspot.com/-gADGkIOKghM/UEhWsUBTBcI/AAAAAAAAAck/ct4SMHEZG9M/s320/pm.jpg" /></a></div>
</b>
कायदा ए कायनात में भी इंसान को अपनी आवाज पेश करने की इजाजत हक के बतौर बख्सी गई है। यह अच्छी बात भी है। आदिकाल से इंसानी बिरादरी को अनुशासित और गवर्न करने के लिए बनाई गईं व्यवस्थाएं सबसे ज्यादा डरती भी इसी से हैं। आवाजों को अपने-अपने कालखंडों में मुख्य बादशाही ताकतों ने कुचलने की कोशिश की है। कभी कुचली भी गई हंै, तो कभी सालों कैदखानों में बंद भी कर दी गईं हैं। किंतु फिर अचानक अगर कैद करने वाली बादशाही ताकत को किसीने उखाड़ा भी, तो वह यही कैदखानों में बंद आवाजें थीं। लोकतंत्र में इसका अपना राज और काज है। काज इसलिए कि यह अपनी स्वछंदता और स्वतंत्रता के बीच के फर्क से परे प्रचलन में रहती है। और असल में गलती इस आवाजभर की भी नहीं है, दरअसल आवाज को नियंत्रित करने वाले भी इसे गवर्न के नाम पर दबोच देना चाहते हैं, तो आवाजें बुलंद करने वाले आजादी के नाम पर अतिरेक कर डालते हैं। ऐसे में न तो आवाज की ककर्शता ही खत्म हो पाती है और न ही इसकी ईमानदारी ही बच पाती है। कहने का कुल जमा मायना इतना है कि माध्यमों की सक्रियता के चलते होने वाली उथल-पुथल और अर्थ स्वार्थ पर चिंता की जानी चाहिए। साथ ही यह भी ख्याल रखा जाना चाहिए कि वह आखिरकार कहीं कैद न होकर रह जाए। मौजूदा सिनेरियो में आवाज को बकौल टीवी, प्रिंट और वेब मीडिया देखा जाना चाहिए।
हर देशकाल में यह तो माना गया कि आवाज महत्वपूर्ण है। और यह भी जान लिया गया कि यह सर्वशक्तिमान से कुछ ही कम है। किंतु कहीं कोई मुक्कमल योजना नहीं बनाई जाती कि इसका इस्तेमाल कैसे करें। हर उभरते हुए लोक राष्ट्र में आवाजें भी समानांतर उभरती हैं। सरकारी व्यवस्थाएं भी सक्रिय होती हैं। किंतु दोनों ही एक खिंचाव के साथ आगे बढ़ती हैं। आवाजें उठती और बैठती रहती हैं। परंतु व्यवस्थाओं का एक ही मान रहता है कि वह इन जोर-जोर से सुनाई दे रहीं लोक ध्वनियों को सुनकर मान्यता नहीं देंगे। और यही दोनों की जिद अंतिम रूप में अतिरेक में बदल जाती है। आवाजें अपनी राह लाभ, हानि के विश्लेषण से परे होकर नापती रहती हैं, तो व्यवस्थाएं लोक सेवक का लड्डू हाथ में लिए निर्धुंध कानों में रूई ठूंसे हुई जो बन पड़ता है अच्छा बुरा काम किए जाती हैं।
आवाजों का शोर और आवाजों की उपेक्षा दोनों ही इस काल में अपने चरम पर हैं। समूची दुनिया से नितनई सनसनीखेज बातें होती रहती हैं। एक माध्यम ने तो लीबिया के गद्दाफी को ही उखाड़ फेंका, तो असांज ने मुखौटे पहने हुए लोगों के गंदे चेहरे सबके सामने रखे। आवाजें अपना काम कर रही हैं। लेकिन यह इसलिए और ज्यादा कर रही हैं, कि इनकी ताकत को बादशाही शक्तियां या तो पहचानती नहीं है या फिर पहचानकर मान्यता देने के मूड में नहीं हैं। भारत में भी स्टिंग ऑपरेशन के जरिए सियासी दलों के नेता बेनकाब होते रहे हैं और कालांतर में हाफ शर्ट पहनकर नीति, रीति और व्यवस्था को कब्जाए बैठे नौकरशाह भी चाल, चरित्र में बेढंगेपन के साथ सबके सामने आए। यह कारनामा किया इन्हीं आवाजों ने।
राजतंत्र में आवाजों को नहीं आने दिया जाता था। और अगर किसी तरह से कहीं से आ भी गई तो कुचलने की ऐसी वीभत्स प्रक्रिया अपनाई जाती थी, कि लोगों की रूह कांप जाए। मगर जब दुनिया को लोकतंत्र की नेमत मिली तो व्यवस्थाओं के सामने खूबसूरत विकल्प था। एक ऐसा तंत्र ऐसी व्यवस्था, जिसे लोक ही चलाएगा, लोक ही बनाएगा और लोक के लिए ही यह बनी रहेगी। किंतु लोकतंत्र, जिसे भारी खून खराबे के जरिए बरास्ता यूरोप इंसानों ने पाया उसके मूल में आखिर यही आवाज व्यवस्था की नाक में दम करने फिर हाजिर थी। और इस बार यह आवाज कुछ ऐसी है कि इसे छाना नहीं जा सकता। बादशाही ताकतों को इसे अपने कानों में बिना किसी फिल्ट्रेशन के ही सुनना पड़ेगा। कर्कशता, गालियां, मनमानापन, बेझिझकी, बेसबूतियापन और सच्चाई, शांति, समझदारी से मिश्रित रहेगी।
वाशिंगटन पोस्ट ने हमारे पीएम के बारे में जो भी लिखा, टाइम ने जो भी संज्ञा दी थी। यह सब कुछ इसी आवाज से निकलने वाली कर्कश ध्वनियां हैं। इन्हें रोका नहीं जा सकता है, किंतु उपेक्षित किया जा सकता है। संसार में सबसे बड़ी ताकत या तो दमन है या उपेक्षा। दमन जब नहीं किया जा सकता तो उपेक्षा कर देनी चाहिए। यह नहीं कि वाशिंगटन पोस्ट या टाइम गलत हैं या सही हैं। बस सवाल सिर्फ इतना है कि वे जो कुछ भी कह रहे हैं वह उनकी खबर क्यों है? व्यावसायिक परिदृश्य में देखें तो मीडिया के नाम पर विदेशी मीडिया की मनमानी कतई लोक की आवाज नहीं है। यह नितांत विदेशी कूटनीति का हिस्सा है। इसलिए दुनिया के मंच पर जब देश के संदर्भ में कोई बात की जाए, तो सावधानी रखना जरूरी हो जाता है। वक्त आ गया है कि इन आवाजों को बादशाही ताकतें मान्यता दें। वक्त आ गया है कि आवाजों को नीति, रीति और योजनाओं में शामिल किया जाए। मुमकिन है फिर वाशिंगटन पोस्ट का कमेंट किसी देश के पीएम के लिए पूरी जिम्मेदारी के साथ आएगा और उसपर प्रतिक्रिया भी राष्ट्रीय सीमाओं की गरिमा के अनुकूल होगी। यह नहीं कि अपने शत्रु पड़ोसी की बुराई दूसरे मुहल्ले वाले करें तो हम भी दुंधभियां बजा-बजाकर करने लग जाएं।
वरुण के सखाजी
चीफ रिपोर्टर, दैनिक भास्कर, रायपुरBarun Sakhajee Shrivastavhttp://www.blogger.com/profile/00022356965972552575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8172529027266490551.post-88812955540697208632012-09-04T12:45:00.000+05:302012-09-04T12:45:43.871+05:30सबका मनपसंद फॉर्मूला समस्याओं का हल इसी पल<b>अन्याय के खिलाफ हर जेहन में आवाज होती है। उस दिमाग में तक जो खुद कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में अन्याय का सहभागी पात्र होता है। यह मानवीय स्वभाव है। लंबे अरसे तक जब सत्य और असत्य के सवालों को अनसुना किया जाता है, तो वह उठना बंद नहीं करते किंतु अपनी केपिसिटी खो देते हैं। दिमाग के संसारी और भारी कोलाहल के बीच वह सुनाई नहीं देते। लेकिन जिनके दिमागों में यह प्रश्न रह-रहकर उठते रहते हैं, उन्हें चाहिए तत्काल रेमेडी।<i><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://3.bp.blogspot.com/-tdxyIrYm6Us/UEWps6fYWJI/AAAAAAAAAcM/i4FzfaS25Cw/s1600/act.jpg" imageanchor="1" style="clear:left; float:left;margin-right:1em; margin-bottom:1em"><img border="0" height="139" width="200" src="http://3.bp.blogspot.com/-tdxyIrYm6Us/UEWps6fYWJI/AAAAAAAAAcM/i4FzfaS25Cw/s200/act.jpg" /></a></div>
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फिल्मों की सफलता उसकी आय है तो सौ करोड़ क्लब की फिल्मे सदी की बैंचमार्क फिल्में हैं। और इनका फिल्मी फॉर्मूला एक ही है हीरो कालजयी हो। सुपरमैन हो। शक्तिमान हो और किसी भी हाल में हारे नहीं। इसीलिए शायद लोगों को ज्यादा सीधापन भी भाता नहीं। अन्याय के खिलाफ हर जेहन में आवाज होती है। उस दिमाग में तक जो खुद कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में अन्याय का सहभागी पात्र होता है। यह मानवीय स्वभाव है। लंबे अरसे तक जब सत्य और असत्य के सवालों को अनसुना किया जाता है, तो वह उठना बंद नहीं करते किंतु अपनी केपिसिटी खो देते हैं। दिमाग के संसारी और भारी कोलाहल के बीच वह सुनाई नहीं देते। लेकिन जिनके दिमागों में यह प्रश्न रह-रहकर उठते रहते हैं, उन्हें चाहिए तत्काल रेमेडी। रेमेडी यानी तुरंत निवारण। इस निवारण के लिए वे छटपटाते नहीं, क्योंकि परिवार, घर, समाज, धन और अन्य मोटे रस्सों से बंधा महसूस करते हुए खुद प्रयत्न नहीं कर पाते। ऐसे में उनकी छटपटाहट एक उद्वेग में तब्दील हो जाती है। इसके लिए वह कोई ऐसी इमेज खोजते हैं, जहां पर उनके मन की इस बात का प्रतिनिधित्व होता हो।
सौ करोड़ क्लब की फिल्मों का मनोविज्ञान इसी बात के इर्दगिर्द घूमता है। बिलेम भले ही सलमान पर लगता हो, किंतु फिल्मी कौशल से यह आमिर खान भी बरास्ता गजनी करते हैं। शाहरुख भी तकनीक के जरिए कुछ ऐसा जौहर दिखाने की भरशक कोशिश कर चुके हैं। अक्षय कुमार को भी राउडी में देखा जा सकता है।
यूं तो हीरो की छवि देवकाल से ही अपराजेय मानी जाती रही है। मगर फिल्म के इस नए संस्करण और कलेवर ने इसे और पुख्ता कर दिया है। दक्षिण में यह और भी अतिरेक के साथ किया जाता है। माना जाता है, कि वहां पर दैनिक जीवन में बस, रेल, पगार, कार्यस्थल, सडक़, बिजली, सरकार और अन्य जरियों से आने वाली छोटी-छोटी नाइंसाफी की पुडिय़ाएं लोगों को नशे में रखती हैं। दिमाग में बनने वाली फिल्मों के जरिए तो वे कई बार दोषी को दुर्दातं मौत दे चुके होते हैं, किंतु वास्तव में यह मुमकिन नहीं होता। पर जब वह चांदी के परदे पर उछल-कूद करके हल्के फुल्के तौर तरीकों से ही दुश्मन को धूल चटाते देखते हैं, तो कुछ हद तक नाइंसाफी की नशे की पुडिय़ा से बाहर निकल पाते हैं। इसी मनोविज्ञान को सौ करोड़ क्लब की फिल्में खूब भुनाती हैं। कई बार हम भी इस बहस के खासे हिस्सा बन जाते हैं, कि इन फिल्मों में अभिनय और कहानी की उपेक्षा होती है। किंतु फिल्में अपने आपमें इतनी जिम्मेदार रहेंगी तो शायद पैसा ही न कमा पाएंगी।
एक्शन प्रियता मनुष्य की सहज बुद्धि है। बचपन में हम लोग भी खेतों या नर्मदा के रेतीले मैदानों में रविवार को दूरदर्शन की फिल्मों के एक्शन सींस किया करते थे। इनमें किसी को मारने वाले सींस के साथ या अली डिस्क्यां संवाद बहुत ही आम था। दोस्तों के बीच एक पटकथा रखी जाती थी। वह पटकथा उतनी ही गंभीर होती थी, जितनी कि आज के दौर में बनने वाली सौ करोड़ क्लब फिल्मों की। यानी जोर किसी का पटकथा पर नहीं, सिर्फ मारधाड़ और कोलाहल पर। सब अपनी भूमिकाएं छीनने से लगते थे। लेकिन इस पूरी मशक्कत में कोई भी अमरीश पुरी नहीं बनता था। इसे हम इंसान की सहज सकारात्मकता के रूप में ले सकते हैं। मारधाड सब करना चाहते थे। देश दुनिया से अन्याय को सब अल्विदा कहना चाहते थे, सब शांत और समृद्ध नौकरी पेशा समाज चाहते थे। मगर एक्शन के जरिए। यानी यह मानव स्वभाव है कि वह बदलाव के लिए सबसे आसान विकल्प के रूप में शारीरिक क्षमताओं से किसी को धराशायी करना ही चुनता है।
एक्शन मानव स्वभाव का हिस्सा है, किंतु यह हिंसा कतई नहीं। सकारात्मक बदलावों के लिए इस्तेमाल की जानी वाली शारीरिक कोशिशें हिंसा नहीं हो सकतीं। यह अंतस में बर्फ बना हुआ गुस्सा है, जिसे जलवायु परिवर्तन का इंतजार था। अब वह पिघलने को है। और इसी मनोशा पर आधारित होती है इन फिल्मों की कहानी। ऐसा कोई इंसान नहीं है जिसे इस तरह की फास्ट रेमेडी पसंद न आती है। सबको समस्याओं का हल, उसी पल का फॉर्मूला प्रभावित करता है, परंतु प्रैक्टिकली ऐसा होता नहीं है, इसलिए कुछ लोग या तो ऐसी फिल्में छोडक़र चले आते हैं, या जाते ही नहीं। मगर अधिकतर लोग कम से कम कल्पना में ही सही नाइंसाफी से निपटने का एक शीघ्रतम दिवा स्वप्न जरूर देखना चाहते हैं।
इसका मतलब तो यह होना चाहिए, कि चॉकलेटी हीरो वाली सॉफ्ट कहानियों पर आधारित कॉलेज के प्रेम की फिल्में बननी ही नहीं चाहिए। तो इसका जवाब मेरे पास नहीं है, किंतु एक्शन फिल्मों में आम आदमी अपने गुस्से को तलाशता है। यही हुआ था, जब देश में अन्ना हजारे भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मजबूत लोकपाल को लेकर खाना त्यागकर बैठ गए थे। लोगों में एक हीरो दिखा। मगर उनका हीरो सरकारी तरीकों और सियासी कुचक्रों का सामना नहीं कर पाया। टिमटिमाती लौ के साथ अरविंद कुछ हद तक सलमान खान का एक्शन कर जरूर रहे हैं, किंतु यह भी उस क्रांतिकारी बदलाव की अलख नहीं जगाता, जो कि आम लोग देखना चाहते हैं। वरुण के सखाजी
चीफ रिपोर्टर, दैनिक भास्कर, रायपुरBarun Sakhajee Shrivastavhttp://www.blogger.com/profile/00022356965972552575noreply@blogger.com0