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Wednesday, January 27, 2010

पद्मश्री चटवाल का चरित्र चित्रण....


एक आदमी कुछ महीने पहले तक केंद्रीय जांच ब्यूरो का अभियुक्त था। लगभग 90 लाख डॉलर बैंक से ठगने के इल्जाम में उससे पूछताछ की जा रही थी और एक बार मुंबई में उसे गिरफ्तार कर के जमानत पर छोड़ा गया था। इस आदमी को पद्म भूषण दिये जाने की घोषणा की गयी है। इस आदमी का नाम है संत सिंह चटवाल। वह अमेरिकी नागरिक है और बांबे पैलेस के नाम से रेस्टारेंट और हैंप शायर के नाम से बहुत सारे होटल चलाने वाला अरबपति है। ऐसा पहली बार हुआ है।
चटवाल अपने आपको भारतीय नौसेना का भूतपूर्व पायलट बताता है, मगर इस बारे में नौसेना के रिकॉर्ड में कोई जानकारी नहीं है। चटवाल ने अपना जीवन परिचय दिया है, उसके अनुसार इथोपिया की राजधानी आदिस अवाबा में जा कर उसने भारतीय खाने के होटल खोले थे मगर 1975 में वहां राजतंत्र खत्म कर दिया गया और चटवाल की संपत्ति भी जब्त हो गयी। फिर भी वह इतना पैसा अपने साथ ले गया था कि कनाडा के मांट्रियल शहर में एक रेस्टोरेंट खोल दिया।
1979 में चटवाल न्यूयार्क चला गया और वहां बांबे पैलेस रेस्टोरेंट खोला जो अब दुनिया के कई देशों में मौजूद है और दिल्ली में भी उसका इसी नाम से रेस्टोरेंट चलता है। अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के करीब रह चुका चटवाल उनके चुनाव अभियान में मोटा चंदा दे चुका है। क्लिंटन के साथ कई बार भारत आया है और क्लिंटन न्यास का सचिव भी है। एक बार अपने आपको दीवालिया घोषित कर चुका है।
अमेरिका के बैंकों का कहना है कि चटवाल बैंकों के पैसे हजम करने के लिए अपने आपको बार-बार दीवालिया घोषित करता है। भारत के कई बैंकों के साथ भी वह यही हरकत कर चुका है और इसी सिलसिले में सीबीआई ने उस पर मुकदमा चलाया था। बाद में चटवाल के संपर्कों के कारण यह मुकदमा वापस ले लिया गया। भारतीय बैंकों का करोड़ों रुपये आज भी उस पर उधार है।
पद्म पुरस्कारों का नियम है कि पुरस्कार पाने वाले पर कोई आपराधिक मुकदमा नहीं चल रहा हो, उसने अपने जीवन परिचय में सही जानकारी दी हो, कभी दीवालिया या पागल न हुआ हो, दुनिया की किसी अदालत में दोषी न हो और आयकर का नियमित भुगतान कर रहा हो। इनमें से पागल होने के प्रावधान के अलावा सारे प्रतिबंध संत सिंह चटवाल लागू होते हैं। इतना ही नहीं संत सिंह चटवाल ने अपना कारोबार सुरक्षित रखने के लिए होटलों की एक शृंखला अपने बेटे विक्रम के नाम खोल दी है और विक्रम का नाम भी इतनी कम उम्र में उसके प्रेम प्रसंगों और नंगी तस्वीरों के लिए कुख्यात हो चुका है।
संत सिंह चटवाल जाहिर है कि बहुत प्रतिभाशाली है। तभी अमेरिका और भारत का कानून उन्हें कुछ नहीं बिगाड़ पाया। मगर चार्ल्स शोभराज भी कम प्रतिभाशाली नहीं हैं और वह भी पिता की ओर से भारतीय मूल के हैं। इससे क्या हुआ कि उनके खिलाफ भारत में बहुत सारे मुकदमे चल चुके हैं और एक बार वह जेल तोड़ कर फरार भी हो चुके हैं। चार्ल्स शोभराज की प्रतिभा से भारत की पहली महिला आईपीएस किरण बेदी भी काफी प्रभावित रही हैं और आज से पच्चीस साल पहले उन्होंने चार्ल्स शोभराज को अपने ज्ञान का वितरण करने के लिए बिजली से चलने वाला टाइपराइटर उपलब्ध करवाया था। अगर कंप्यूटर और इंटरनेट का जमाना रहा होता तो वह भी चार्ल्स को मिल जाता।
अब चटवाल को सम्मानित कर के भारत सरकार ने साबित कर दिया है कि उसे किसी के अतीत की कोई परवाह नहीं हैं और यह भी साबित हो गया है कि भारत में पद्म पुरस्कार किसी की योग्यताओं के आधार पर नहीं बल्कि संपर्क के आधार पर बांटे जाते हैं। मनमोहन सिंह ने कुछ दिन पहले कहा था कि छोटी मछलियों को पकड़ने से कुछ नहीं होगा, बड़ी मछली पकड़नी चाहिए। हमें नहीं मालूम था कि वे सम्मानित करने के लिए बड़ी मछलियां खोज रहे हैं।


आलोक तोमर
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, जनसत्ता की प्रभाष जोशी के नेतृत्व वाली कोर टीम का हिस्सा रहे हैं....सम्प्रति डेटलाइन इंडिया के सम्पादक और सीएनईबी समाचार में सलाहकार संपादक हैं। आलोक जी को आप
aloktomar@hotmail.com पर संदेश भेज सकते हैं।)

Tuesday, January 26, 2010

२६ जनवरी....

२६ जनवरी यानी कि गणतंत्र दिवस फिर आ गया है ....... गणतंत्र दिवस यानी कि इस दिन हम गणतंत्र बने थे मतलब अपना संविधान लागू हुआ था और सो मानते हैं कि यह असली आजादी थी । पर आज संविधान क्या है हम भूलते जा रहे हैं ..... सो समय है सोचने का कि आगे का क्या प्लान है इस मुल्क का, इसके नेताओ का, और अवाम का..... तब तक प्रस्तुत है ताज़ा हवा की ओर से काका हाथरसी की कविता २६ जनवरी जो कई साल पहले लिखी गयी पर आज बिल्कुल प्रासंगिक है ..... गणतंत्र दिवस की बधाई !

२६ जनवरी

कड़की है भड़की है
मंहगाई भुखमरी
चुप रहो आज है
छब्बीस जनवरी

कल वाली रेलगाडी
सभी आज आई हैं
स्वागत में यात्रियों ने
तालियाँ बजाई हैं
हटे नही गए नहीं
डरे नही झिड़की से
दरवाज़ा बंद
काका कूद गए खिड़की से
खुश हो रेलमंत्री जी
सुन कर खुशखबरी
चुप रहो आज है .......

राशन के वासन लिए
लाइन में खडे रहो
शान मान छोड़ कर
आन पर अडे रहो
नल में नहीं जल है
तो शोर क्यो मचाते हो
ड्राई क्लीन कर डालो
व्यर्थ क्यो नहाते हो
मिस्टर मिनिस्टर की
करते क्यो बराबरी
चुप रहो आज है ...................

छोड़ दो खिलौने सब
त्याग दो सब खेल को
लाइन में लगो बच्चो
मिटटी के तेल को
कागज़ खा जाएंगी
कापिया सब आपकी
तो कैसे छपेंगी
पर्चियां चुनाव की
पढ़ने में क्या रखा है
चराओ भेड़ बकरी
चुप रहो .......................................................
आज है २६ जनवरी

- काका हाथरसी

Saturday, January 9, 2010

कौन होगा मध्य प्रदेश भाजपा का नया "गडकरी"

मध्य प्रदेश भाजपा में इन दिनों नए भाजपा के गडकरी के लिए मंथन चल रहा है...... हालाँकि वर्तमान प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर को पंचायत चुनाव निपटने तक अभयदान दे दिया गया है परन्तु राज्य में नए "गडकरी" की खोज के लिए जोर आजमाईश शुरू हो चुकी है......
सूत्रों की माने तो नए अध्यक्ष के चयन में शीर्ष नेतृत्व "शिव" की राय पर अपनी मुहर लगा सकता है..... पार्टी के हबीबगंज मुख्यालय से आ रही खबरों के अनुसार पार्टी की मौजूदा हालत पर मंथन किया जा चूका है... गौरतलब है अभी कुछ समय पहले विदिशा से सांसद और लोक सभा में विपक्ष कि नेता सुषमा स्वराज का भोपाल में आगमन हुआ था... वह कृष्णा गौर की महापौर की कुर्सी जीतने के बाद भोपाल पधारी थी.....तभी से नए नेता के चयन को लेकर पार्टी में चर्चा चल रही है... इसी दरमियान उनके सामने नए "गडकरी" कि खोज के मिशन पर खासी चर्चा भी हुई है... अगर इन खबरों पर यकीन करे तो इस बात को भी नजरअंदाज नही किया जा सकता है कि नए "गडकरी " के चयन में उनकी राय की इस बार अनदेखी की जायेगी...
बताया जाता है दिल्ली में नए नेता कि खोजबीन जारी है॥ इस समय कई नाम हवा में तैर रहे है जिनका दावा नरेन्द्र सिंह तोमर की जगह पर पुख्ता है.... इस सूची में सबसे आगे जिनका नाम चल रहा है वह है भाजपा के राष्ट्रीय सचिव प्रभात झा का... पर बताया जाता है वह शिवराज की पहली पसंद नही है॥ हाँ, इतना जरुर है उनकी संघ के अन्दर मजबूत पकड़ है...संघ के सर कार्यवाह सुरेश सोनी का उन पर खासा वरदहस्त भी रहा है ...पिछले कुछ समय से मध्य प्रदेश में उनकी सक्रियता भी बनी हुई है जो यह बताती है वह मध्य प्रदेश की "पिच" पर बैटिंग करने को बड़े उतावले है.... ब्राहमण होना उनके लिए फायदे का सौदा बन सकता है...
अनूप मिश्र के समर्थक भी अब प्रभात झा को अध्यक्ष की दोड से बाहर करने की कोशिसो में लग गये है॥ बताया जाता है वह अपना दावा दिल्ली में मजबूती से रख रहे है॥ साथ में उन्हें अपने समर्थको का समर्थन मिलने के साथ ही खुद शिव राज का भी बराबर समर्थन हासिल है.... खुद शिव राज चाहते है वह ऐसे व्यक्ति को अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाना चाहते है जिसकी ट्यूनिंग तोमर जैसी मैच करे... ऐसे हालातो में अनूप मिश्रा का दावा मजबूत नजर आ रहा है ... बताया जाता है उनके नाम पर सुषमा भी मुहर लगा देंगी...
कप्तान सिंह सोलंकी का नाम भी प्रदेश भाजपा के नए गडकरी के रूप में सामने आ रहा है॥ अगर ऊपर के किसी नाम पर सहमती नही बन पाती है तो "शिव " अपनी पसंद के "सोलंकी " का दाव खेल सकते है...सोलंकी की मराठा लोबी से खासी निकटता रही है॥ अभी भाजपा में मराठा लोबी का "सेंसेक्स" चरम पर है... गडकरी जैसे कई लोगो की इस समय पार्टी में खूब चल रही है ..ऐसे हालातो में सोलंकी की अध्यक्ष की डगर आसान लग रही है॥
अगर सोलंकी पर सहमती नही बन पाती है तो शिव अपनी पसंद के "लक्ष्मी कान्त शर्मा" का नाम आगे कर सकते है...वैसे हाल के मंत्रिमंडल विस्तार में लक्ष्मी कान्त को वजनदार मंत्रालय शिव के द्वारा आवंटित किये गए...जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है शिव के दरबार में उनकी क्या पकड़ है...?बताया जाता है इस समय लक्ष्मी कान्त कि गिनती शिव के सबसे विश्वास पात्रो में की जाती है....संगठन के महत्वपूर्ण कामो में शिव लक्ष्मी कान्त की राय लिया करते है॥ ऐसे में उनका दावा भी कमजोर नही है.... विदिशा से होना उनके लिए माईनस पॉइंट साबित हो सकता है....
इन सबसे इतर इंदौर से सांसद सुमित्रा महाजन का नाम भी भावी अध्यक्ष के लिए सामने आ रहा है ..."शिव राज" मामा बनकर महिला सशक्तिकरण के नारे जोर शोर से लगाते रहते है ...पर महत्वपूर्ण पद पर महिलाओं को उचित सम्मान नही दिया गया है...सुमित्रा को आगे कर शिवराज एक तीर से कई निशाने साध सकते है॥ उनके नाम का चयन होने से यह सन्देश जाएगा कि महत्वपूर्ण पद पर भाजपा में महिलाओं को उचित सम्मान मिलता है.... वैसे अभी सुषमा स्वराज के नेता प्रतिपक्ष पद पर होने से सुमित्रा के नाम पर गौर किया जा सकता है.... शिव राज के द्वारा हाल में किये गए मंत्रिमंडल विस्तार में अर्चना चिटनिस से कई मलाईदार मंत्रालय ले लिए गए जिससे यह सन्देश गया है कि राज्य कि भाजपा सरकार महिलाओं कि सच्ची हितेषी नही है... इंदौर में कैलाश विजय वर्गीज और सुमित्रा के बीच का ३६ का आंकड़ा जगजाहिर है... इस बार शिव राज ने अपने मंत्रिमंडल विस्तार में सुमित्रा के चहेते हार्डिया को अपने मंत्रिमंडल में जगह डी है... राजनीतिक विश्लेषको का मानना है इससे कैलाश विजय वर्गीज का कद कम हो गया है... यह घटना बताती है कि आज पार्टी में सुमित्रा कि राय कि अनदेखी नही की जा सकती है... इससे सुमित्रा की अध्यक्ष पद कि संभावनाओं को भी बल मिल रहा है ....
अध्यक्ष पद के लिए कोशिसे जारी है....मध्य प्रदेश भाजपा को भी नए अध्यक्ष पद का बेसब्री से इन्तजार है .....नए अध्यक्ष के सामने सत्ता और संगठन को साथ लेकर चलने की चुनौती है....अब देखना है इस पद पर किसकी ताजपोशी हो पाती है.....? वैसे सूत्रों से मिले रही खबरे बता रही है के नए अध्यक्ष का नाम अभी से तय किया जा रहा है ... इंदौर में पार्टी की १७ फरवरी को हो रही रास्ट्रीय कार्यकारणी कि बैठक के समापन के मौके पर नए अध्यक्ष की घोषणा की जायेगी....इंदौर में बैठक होने के कारण सुमित्रा का दावा भी कमजोर नजर नही आ रहा है...अब देखते है इन नामो में से किसका चयन किया जाता है या फिर कोई नया " डार्क होर्स " बेक डोर से इंट्री मारेगा .......... तो कीजिये कुछ इन्तजार फिल्म अभी बाकी है दोस्त.........

Friday, January 8, 2010

सोम ठाकुर, नीरज और किशन सरोज कहां हैं?


हम जो साक्षर हैं, साहित्य का आदर करने का अभिनय करते हैं। हम में से कुछ हंस, कथादेश और इंटरनेट पर आने वाली पत्रिका पहल और साखी भी पढ़ते हैं। लेकिन साहित्य और साहित्यकारों के प्रति हमारा अनुराग, हमारा आदर और हमारी सहानुभूति सिर्फ दिखावटी हैं।
सबूत चाहिए? जिन काका हाथरसी को पूरी पूरी रात मंच पर सुनते थे, उनके निधन पर एक आंसू भी नहीं बहाया गया। वैसे काका खुद कहते थे कि मैंने जीते जी सबको हंसाया हैं और मेरी मौत पर भी कोई न रोए तो अच्छा होगा। कम लोग जानते हैं कि काका यानी प्रभुदयाल गर्ग संगीत के बाकायदा सिद्व विद्वान थे और उनके संगीत कार्यालय से प्रकाशित किताबें संगीत की पढ़ाई में बाकायदा इस्तेमाल की जाती है।
हम यहां उन कवियों की बात नहीं कर रहे जो गद्य को पद्य कह कर लिखते हैं। लालित्य उनकी रचनाओं में भी होता है मगर वे सिर्फ गद्य लिखते तो हिंदी गद्य का बाकायदा उद्वार हो जाता। एक नाम अशोक वाजपेयी का ले रहा हूं जिनके गद्य पर मुग्ध हुआ जा सकता है मगर कविता एक भी याद नहीं रहती। ऐसे ही और भी रचनाकार है। मगर कवि छंद के बगैर कैसे जीवित रह सकता है। अब कोई मुझे यह समझाने की कोशिश न करे कि गद्य का भी अपना एक छंद होता है और वह भी कविता की तरह आनंद देता है। मेरी विनम्र राय में समाज से, राजनीति से और जीवन से जो छंद गायब हुआ है उसी का भुगतान हम हिंसा और सांप्रदायिकता के तौर पर कर रहे हैं। आखिर राम चरित मानस और विनय पत्रिका के हजारों संस्करण सिर्फ धर्म की वजह से नहीं बिक गए। वेद, उपनिषद और पुराण्ा भी धर्म से जुड़े हैं और गीता सार की तमाम व्याख्याए हो चुकी है मगर वे लोकप्रियता की प्रतियोगिता में कहीं नहीं आते। हरिवंश राय बच्चन शायद पहले कवि थे जिन्होंने कवि सम्मेलनों में जाने का मेहनताना और किराया लेना शुरू किया था। फिर तो कवि सम्मेलनों में बाकायदा कविता का एक माफिया काम करने लगा जो ठेके पर कवि सम्मेलन करवाता था और पूरा पैकेज देता था जिसमें हंसाने के लिए सुरेंद्र शर्मा नामक जोकर होते थे और कुछ गीतकार और कुछ वीर रस की कविताएं लिखने वाले पात्र होते थे। यह माफियागीरी अब भी जारी है। मगर जहां तक छंद की बात है, उसे कोई मात नहीं दे पाया। अमेरिका और यूरोप के देशों में भी कवि सम्मेलन होते हैं और उनमें शायर और कवि दोनों जाते हैं। हमारे विदिशा में जन्में और आज तक चैनल में काम कर रहे आलोक श्रीवास्तव की शायरी का भरी जवानी में बाकायदा सिक्का जमा हुआ है। निदा फाजली है, बशीर बद्र हैं, राहत इंदौरी हैं, सोम ठाकुर हैं, किशन सरोज हैं, नीरज हैं जो हिंदी साहित्य की किंवदंतियों में शामिल हो गए हैं। किशन सरोज बरेली में रहते हैं और कवि सम्मेलनो की ठेकेदारी में शामिल नहीं है। वरना गीत ऐसे लिखते हैं कि बड़ो बड़ो के होश उड़ा दें। बहुत रुमानी रुपक और बहुत मीठी आवाज। सोम ठाकुर आगरा में रहते हैं और उनकी कविता मेरे भारत की माटी है, चंदन और अबीर- वंदे मातरम से कुछ ही कम लोकप्रिय होगी। इसके अलावा वे ब्रज भाषा के छंद भी लिखते हैं, सुदर्शन हैं और किसी भी कवि सम्मेलन की सफलता की गारंटी है। नीरज का नाम ही काफी है। जैसे बच्चन मधुशाला को ले कर मशहूर हुए थे, नीरज की रुबाइयां अपने आप में चमत्कारिक महत्व रखती है। इसके अलावा फिल्मों में साहित्य को स्थापित करने वालों में नरेंद्र शर्मा और शैलेंद्र के बाद या बराबर ही नीरज का नाम आता है। नीरज अकेले कवि हैं जिन्होंने संगीतकारों की धुनों पर नहीं लिखा। आम तौर पर उनकी अपनी कविता की जो ध्वनि होती थी वही संगीतकार फिल्मों में उतारते थे। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि किसी हिंदी फिल्म में अतुकांत कविता गीत के तौर पर इस्तेमाल होगी और हिट हो जाएगी? नीरज ने यह कारनामा भी कर दिखाया। मेरा नाम जोकर का प्रसिद्व गीत ए भाई जरा देख के चलो, में कहीं कोई तुक नहीं हैं और यह भारतीय फिल्म इतिहास का एक सबसे लोकप्रिय गीत है। आराधना फिल्म नीरज के गीतों से ही हिट हुई थी। मगर आज नीरज कहां हैं? अलीगढ़ के अपने घर में खामोशी से बुढ़ापा काट रहे हैं और इन दिनों ज्योतिष का अध्ययन करने का भूत भी उन पर सवार हो गया है। पिछले दिनों मिले तो उन्होंने अंक ज्योतिष और हस्तरेखा के जरिए इतनी सारी भविष्यवाणियां कर डाली कि अपने अस्तित्व पर ही संदेह होने लगा। मगर नीरज को भारत का इतिहास ज्योतिषी के तौर पर नहीं कवि के तौर पर याद रखेगा। साहित्य अकादमी और दूसरी सरकारी संस्थाओं ने साहित्यकारों पर फिल्म बनाने का जो काम शुरू किया है वह स्वागत करने लायक है मगर इन फिल्मों को देखा जाता है तब पता लगता है कि फलां व्यक्ति कवि साहित्यकार या आलोचक था या है। किसी को नीरज, किशन सरोज और सोम ठाकुर पर फिल्म बनाने की बात समझ में नहीं आती। दुर्भाग्य हमारे समय और समाज का है। पहले तो जोकरों और कविता के जॉनी लीवरों ने कवि सम्मेलन नाम की संस्था की, ऐसी की तैसी कर दी और इसके बाद जो गंभीर गीतकार बचे थे वे ठेकेदारी में शामिल नहीं हुए तो उन्हें भी हाशिए पर डाल दिया गया। कवि सम्मेलनों के ठेकेदार बडे बड़े चक्रधारी हैं जो विश्वविद्यालयों में पढ़ाते भी हैं और जानते हैं कि कविता क्या होती है। लेकिन पढ़ाने से ठेकेदारी नहीं चलती। ठेकेदारी जिन लोगों से चलती हैं उनमें कुछ सुंदरियां हैं जो या तो खुद लिखती हैं या दूसरों का लिखा बहुत सुर में गा कर सुनाती हैं। इनकी कविताएं आम तौर पर दो नहीं अनेक अर्थों वाली होती हैं और मुंबई की बार बालाओं की तरह मंच पर इनकी भी उपस्थिति होती है। वीर रस की कविता लिखने में से ज्यादातर लापता हो गए हैं। एक उदय प्रताप सिंह हैं जो सांसद रह चुके हैं और उनसे भी बहुत समय से कविता नहीं सुनी। इसलिए जब तक साहित्य और समाज में छंद वापस नहीं आएगा और उस छंद की गंध को मान्यता नहीं मिलेगी तब तक कवि खुद लिखेंगे, अफसर होंगे तो खुद खरीदवाएंगे और खुद वांचेंगे।
आलोक तोमर
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और डेटलाइन इंडिया के सम्पादक हैं।

दिल्ली की सड़कों पर जंग



दिल्ली में ठंड से लोग बेहाल हैं ... परसों रात मैं दिल्ली की सड़कों पर घूम रहा था ... वहां वो चेहरे नज़र आए जो बंद कमरे में ब्लोवर और रज़ाइयों के बीच आम तौर पर हमारे ज़हन में नहीं आते.. सरिता विहार फ्लाईओवर के नीचे खुले में सैकड़ो ज़िंदगियां ठंड में... अपनी जिंदगी गुज़ार रही है माफ कीजिए काट रही हैं.....ये लोग अपने गांव से चले आए हैं रोज़ी रोटी की तलाश में ... लेकिन इनके पास कंबल और गर्म कपड़े नहीं हैं... एक फूल सिंह नाम के शख्स ने मुझे बताया कि अफसोस इलेक्शन पहले ही हो गए...इस वक्त होते तो नेताजी कंबल ज़रूर बांट कर जाते पिछले इलेक्शन में जो कंबल बटे थे वो वक्त के साथ तार-तार हो गए....थोड़ा आगे बढ़ा तो सामने झुग्गिया थी...एक झुग्गी में रामबालक का परिवार रहता है...कहां कहां से वो बेचारा ठंड रोके….. हर सुराख से ठंडी हवा नश्तर बनकर चुभ रही है...रामबालक की पत्नी ने मुझे बताया कि पिछले साल की सर्दी उसके दो साल के मासूम बच्चे को लील गई....अब अपनी नवजात बेटी को अपने सीने से लगाकर वो उसको बचाना चाहती है...निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर रिक्शेवाले लकड़िया बीनकर आग जलाकर बैठे हैं इंसान और जानवरों का भेद यहां मिट गया हैं आवारा कुत्ते भी इनके पास बैठकर सर्दी भगा रहे हैं.......एक रिक्शे वाले ने बताया कि उनका एक साथी राजू ऐसे ही आग जलाकर उसके पास सो गया रात में आग बुझ गई और फिर उसने सवेरा नहीं देखा ठंड राजू को खा गई....इन लोगों की पूरी रात कटती है अलाव के सहारे क्योंकि अगर ये आग बुझ गई तो कहीं ज़िंदगी का चिराग़ ही ना बुझ जाए....सरकार से मदद के बारे में पूछने पर इन लोगों की आंखों में युद्ध से लौटने की यातना नजर आई और उनकी आंखे शायद यही कह रही थीं.....सरकारी उम्मीदों तुम्हारा शुक्रिया तुम्ही ने जीना सिखाया...गरीबी तुमने ठंड से लड़ना सिखाया..... आवारा कुत्तों जब दुनिया दूसरे छोर पर थी तब इस छोर पर तुम मेरे साथ थे...मेरी ही तरह ठंड में कंपकपाते हुए सुबह होने का इंतेज़ार करते हुए.....ये जंग है दिल्ली की सड़कों पर गरीब इंसानों और ठंड के बीच..............

रुम्मान उल्ला खान
(रुम्मान पिछले पांच साल से अपराध पत्रकार के तौर पर सक्रिय हैं और सम्प्रति सीएनईबी समाचार चैनल में कार्यरत हैं।)


Monday, January 4, 2010

ऑल इज़ वेल.........भैया

3इडियट्स का विरोध करने वाले ख़ुद इडियट ही नज़र आरहे हैं। विरोधियों का विरोध देख कर सर्प्राइज़ होता है कि भारतीय सियासत में नेताओं के पास मुद्दे नहीं बचे जो वे इस तरह से फालतू की बातों पर अपना वक्त ज़ाया कर रहे हैं साथ ही लोगों के बीच रहने के सस्ते माध्यम को चुन रहे हैं। अफसोस उस वक्त होता है जब ऐंसा करने वाले वो लोग हैं जो एक नई सोच देने वाले राहुल गांधी की पार्टी के सदस्य हैं। और वो भूल गये कि राहुल खुद इस तरह की शिक्षा प्रणाली से ज़्यादा खुश नहीं जिसमें छात्र तो बनते है लेकिन एक पूरे आदमी नहीं बन पाते। साफ सुथरी राजनीति के समर्थक राहुल को इन लोगों को रोकना चाहिए जो चीप पब्लिसिटी के लिए बेमतलव में इस फिल्म का विरोध कर रहें हैं। 3इडियट्स एक अच्छी फिल्म है इसमें आमिर की परिपक्वता और कथानक पूरी तरह से व्यवस्था पर चोट है। विरोध करने वाले भूल गये कि उन्ही के एक मंत्री लगातार शिक्षा व्यवस्था में बदलाव की बात कह रहे हैं। जी हां याद करें कपिल की ग्रेडिंग प्रणाली जो इस फिल्म से कहीं अलग नहीं है।
भैया विरोध के लिए विरोध मत करो चेतन दद्दा भी ना जाने क्यों इतने परेशान हो रहे हैं। अपनी हंसमुख छवि के बारे में भी तो सोचिए। दरअसल इस फिल्म ने एक बार फिर शो कर दिया कि आमिर एक सधे मंझे और ख़ूब अच्छे कलाकार ही नहीं बल्कि सभ्य औऱ जिम्मेदार इंसान भी हैं। इसके उलट सियासी लोगों के पास कुछ नहीं विरोध धरना प्रदर्शन और भूख हड़ताल है जिसका उन्हे इस्तेमाल करना है। इसी के साथ चेतन भैया को अंदाजा नहीं था फिल्म इतना सक्सेस होगी तभी अब बवंडर खड़ा कर रहे हैं। लेकिन इसी के साथ ये भी सच है कि दर्शकों को इस बात से कोई सरोकार नहीं किस की कहानी है उन्हे सिर्फ फिल्म में कलाकारी भरपूर मनोरंजन और उम्दा आमिरी एक्टिंग से मतलव है साथ इस बात की खुशी भी है कि सिस्टम पर कोई तो है जो सोचता समझता औऱ बदलने की कोशिश करता है। ऐंसा नहीं है कि देश की सिर्फ शिक्षा प्रणाली ही दोषी है बल्कि दोष तो इतने है कि पूरा देश ही बदल जाए सिस्टम तो क्या। आप तो फिल्म देखों और जो राय हो बनाओं चीखने दो सबको। सीटी बजा के बोल......

Sunday, January 3, 2010

अवतार और नक्सलवाद

हाल ही में मैंने अपने भोपाल के भारत टाकीज में जाकर अवतार फिल्म देखी थी। और इसी मुद्दे पर संदीप पाण्डेय जी को पढने का मौका मुझे मिला। उसकी कहानी सिर्फ इतनी सी है की एक कबीले के कुछ लोग जो अपनी सभ्यता और संस्कृति को बचाकर रखना चाहते थे वो नहीं चाहते थे की कोई उनकी सभ्यता में सेंध लगाकर उनके जंगल में घुसे। क्योंकि सहर वालों के पास में खोने के लिए बहुत कुछ था। उनके पास में बड़े बड़े कारखाने थे। उनके पास ज्यादा ससक्त फ़ौज भी थी जो आग उगलकर उन्हें मार दिया करती थी । उनकी मांग तो सिर्फ अपने जंगल थे जो बरसों से उनके पुरखों की विरासत को अपने में समेटे हुए थे। उनकी अपनी देवी थी। उनके अपने पैड थे अपने त्यौहार थे। उनके पास एक ऐसी चीज भी थी। जो सहर वालों के पास में नहीं थी। उनके जंगलों में एक बहु मूल्य धातु के पहाड़ थे। जो सहर वालों को उन पर हमला करके उन्हें मारकर उनसे छीन लेने के लिए मजबूर कर देती है। लेकिन अंत में कुछ लोग धरती के लोगों से विद्रोह करके उन्हें उस जमीन को छोड़ने पर मजबूर कर देते हैं।
अब सवाल हम अपने ऊपर ले लेते हैं। हमारे इस समाज में अगर लड़की हमारे प्रति वफादार है तो वो पवित्र है। अगर वो बगावत कर दे तो वो वेश्या है और हमारी चरित्र हीनता के लिए शब्द बनाने अभी बाकि हैं। जो लोग हमारे अत्याचारों के प्रति मौन हैं। उनके लिए हमारे पास कोई बधाई देने वाले अल्फाज़ नहीं hain लेकिन जो इस हालातों से बगावत कर बैठें वो नक्सली। आतंरिक सुरक्षा को सबसे बड़ा खतरा। असल में माओवाद से प्रभावित रेड कोरिडोर का भी सच यही है की जितने तादाद में पुलिस के जवान वहां हैं उनकी एक प्रतिशत संख्या में भी नक्सली वहां पर नहीं है । अब अगर छत्तीसगढ़ झारखण्ड और उड़ीसा की कुल पुलिस तादाद अगर २ से ढाई लाख हो तो कुल नक्सली दो ढाई हजार ससे ज्यादा नहीं है। इन इलाके के लोगों जिनकी तादाद तीन से चार करोड़ की है के लिए सरकार के पास कोई योजना या फिर परियोजना नही है सरकार से इनके पास न ही नरेगा पहुंचा है और न ही इंदिरा विकास योजना । जो चीजें वहां आजादी होने का अहसास करवाती हैं वो हैं पुलिस और उसका डंडा और बन्दूक। इनसे कौन लड़ सकता है। जहाँ जीवन जंगल है और जंगल जीवन हो । वहां अगर कोई इन प्राकृतिक संसाधनों पर नजर डाले तो शायद ये सवाल आतंरिक सुरक्षा का है। इसी लिए हमारी सरकार नंदीग्राम में दो महीने तक मुख्यामंत्री का न घुस पाना तो स्वीकार कर लेती है लेकिन ये बर्दाश्ता नहीं कर पाती की लालगढ़ में कोई उसके पार्टी कार्यालय को बंद करवा दे।
झारखण्ड में डाल्टेनगंज तक जाने के दो रास्ते हैं एक चtra होकर और दूसरा पांकी होकर । पांकी होकर जाने पर हर सरकारी ईमारत बारूद से दफ़न मिलती है । आगे पलामू में जहाँ koyalkaro नदी बहती है वहां पर सरकार की योजना के नाम से लोगों के होश फाख्ता हो जाते हैं क्योंकि उनकी हर अंग जंगल से जुदा नहीं है और किसी भी सरकारी योजना का अर्थ उनके अंग पर हमले के अलावा कुछ भी नहीं है। sarkaar नदी पर पुल बनाकर चाहती है की पलामू को पर्यटन केंद्र के तौर पर विकसित कर दिया जाये। यहाँ पर दुनिया का सबसे बेहतरीन अभ्रक और बाकसाईट की खदानें हैं जिन्हें सरकार यहीं के यहीं साफ़ करके दुनिया भर के बाजारों पर धाक जमाना चाहती है इस काम के लिए सरकार ८० किलोमीटर के इस इलाके में ८ कारखाने डालना चाहती है। जो आज तक इस इलाके में सरकार के एक भी स्कूल या अस्पताल या न बनवा पाने के बाद भी बनेंगे। तब सरकार इस इलाके के गरीबों के बारे में भी कुछ सोच सकेगी जिनसे वो जंगल में बांस काटने का टैक्स ३०० रुपये तक ले लेती है।
अगर अब भी बात हम आतंरिक खतरे की करें तो सरकार कश्मीर के बाद सबसे ज्यादा खर्च माओवादियों से निपटने के लिए कर रही है जो एक दिन का माओवाद से प्रभावित तीन राज्यों के ४५ जिलों के खर्च से ज्यादा है और अनुमानित पिचले दसंबर तक ५००० करोड़ से भी ज्यादा का था । अगर यही धन सरकार इन गरीबों पर खर्च करती तो इन माओवादियों को तो यही लोग मारकर जंगल से भगा देते और सरकार जितना धन इस ओपरेशन पर खर्च कर रही है वो अनुमानित 20000से २५००० करोड़ तक तो होगा ही। wahin ये grameen लोगों से इस khadaan को बहुत ही aaram से सरकार को soonp देते लेकिन सरकार की ativadi neetiyan शायद use jhukne की ijajat नहीं देती हैं। और शायद यही इन गरीबों के satta से takrane की वजह भी है



ashu pragya mishra
makhan lal patrakarita vishvavidyalaya, bhopal

Saturday, January 2, 2010

नव वर्ष ...


नव वर्ष की इस श्रृंखला में आज हम आपको पढ़वाएंगे आधुनिक हिंदी के ख्यात कवि और लेखक जगदीश व्योम की एक रचना। जगदीश जी हिंदी के बड़े विद्वान हैं, उनके कई कविता संग्रह और उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं और सम्प्रति वे दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग में अधिकारी हैं। प्रस्तुत है उनकी कविता नववर्ष.....


नव वर्ष


आमों पर खूब बौर आए
भँवरों की टोली बौराए
बगिया की अमराई में फिर
कोकिल पंचम स्वर में गाए।
फिर उठें गंध के गुब्बारे
फिर महके अपना चन्दन वन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन!


गौरैया बिना डरे आए
घर में घोंसला बना जाए
छत की मुँडेर पर बैठ काग
कह काँव-काँव फिर उड़ जाए
मन में मिसिरी घुलती जाए
सबके आँगन हों सुखद सगुन।
नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन!

बच्चों से छिने नहीं बचपन
वृद्धों का ऊबे कभी न मन
हो साथ जोश के होश सदा
मर्यादित बनी रहे फैशन
जिस्मों की यूँ न नुयाइश हो
बदरंग हो जाए घर आँगन।
नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन!

घाटी में फिर से फूल खिलें
फिर स्र्के शिकारे तैर चलें
बह उठे प्रेम की मन्दाकिनि
हिम-शिखर हिमालय से पिघलें।
सोनी मचले, महिबाल चले
राँझे की हीर करे नर्तन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन !

विज्ञान ज्ञान के छुए शिखर
पर चले शांति के ही पथ पर
हिन्दी भाषा के पंख लगा
कम्प्यूटर जी पहुँचें घर-घर।
वह देश रहे खुशहाल `व्योम'
धरती पर जहाँ प्रवासी जन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन!

नया साल और नक्सलवाद

नया साल २०१० आ चुका है। इस नए साल में हमारी सरकार और खुफिया एजेंसी रा नक्सलवाद को देश का सबसे बड़ा आतंरिक खतरा बता चुके हैं। मनमोहन ओपरेसन ग्रीन हंट को फिर से शुरू करने की वकालत कर रहे हैं। और चिदंबरम भी इस पर अपनी चिंता व्यक्त कर चुके हैं की देश नक्सलियों को अपने विकास की राह का रोड़ा मानता है। एक समय था जब नक्सली अपनी मांगों को पूरा करने के लिए राजीव गाँधी के अपहरण तक की बात करते थे। और फिर देश ने भी देखा था की किस तरह से उन्होंने एक पुलिस वाले की छाती पर प्रिजनर ऑफ़ वार लिखकर भेजा था। आखिर जंग कहाँ है ? और क्यों है ? जिस इलाके में सरकार एक स्कूल नहीं दे सकी, एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं बना सकी। आज सरकार उस इलाके में ढाई लाख हथियार बंद सिपाही भेज रही है। जो अपने ही देश के लोगों पर और ऐसे लोगों पर जिनके हाथों में पुलिस की .३०३ रायफल से भी रद्दी गुणवत्ता के हथियार हैं और जो सिर्फ अपने रोटी और जंगल की मांगों को लेकर खड़े हैं। सरकार की उन पर इतनी मेहरबानी क्यों की जिस झारखण्ड के खूंटी में सरकार एक हस्पताल न दे सकी वहां पर दवा का कारखाना दे दिया। बस्तर में पीने को पानी नहीं है लेकिन मिनरल वाटर का कारखाना है। राहुल गाँधी कभी कभी इस दर्द को समझ जाते हैं लेकिन सिर्फ राजनीतिक हित की वजह से शरद पवार की तरह महंगाई को राज्य का मुद्दा बताकर चुप्पी साध जाते हैं। क्यों मनमोहन और चिदुम्बरम नहीं समझ पते हैं । जिस दिन राहुल पी एम होंगे और कोई सख्त सतह और पोली जमीन की हकीकत जब राहुल को बताएगा तब राहुल भी मनमोहन की तरह हकीकत से कतरायेंगे। और ये सवाल बार बार खड़ा होगा की क्यों जिन सत्तर करोड़ लोगों को मनमोहन अस्पताल और स्कूल तक नहीं दे सके,क्यों जिन लोगों के हक की लड़ाई आज सिर्फ पचास रुपये रोज के मेहनताने को लेकर है। उन लोगों को उन्हें जंगल से बेघर करके सहर बुलाकर उपभोक्ता बना देना ये शायद मनमोहन का अर्थशास्त्र होगा। मनमोहन आम आदमी के प्रतिनिधि होकर भी उस आदमी की चीखें नहीं सुन सके जो उनके काफिले की सुरक्षा में दम तोड़ रहा था।

मनमोहन सिंह तो सिर्फ प्रतीक हैं, दिक्कत है हमारे सिस्टम की, हमारी व्यवस्था की जो तेंदू पत्ता मजदूरन का आन्दोलन सिर्फ इसलिए करवाता हैं, उनकी दिहाड़ी प्रति हजार पत्ता ३५ पैसे से बढाकर २ रुपये करवा दे। सरकार उन्हें पीने का पानी उपलब्ध न करवा सके। ये अलग का मुद्दा है सरकार इस पर बात नहीं करेगी लेकिन सरकार बात कर सकती है। जंगल के मूल निवासियों से बांस काटने पर ३०० रुपये का टैक्स लेने पर। जो उनकी झोपड़ी की लागत ७०० रुपये कर देता है । शायद यही हमारी नियति है और इस देश के गरीबों का मुकद्दर भी।









आशु प्रज्ञ मिश्र
माखन लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल

जंग कलम की.......: जागो ग्राहक जागो .......

जंग कलम की.......: जागो ग्राहक जागो .......tamasha jo aapki aankho se abhi tak chupa raha aur aap safar me chay kee chuskiya lete rahe isse bhi badi dhokadhadi hai parde ke peeche zaroor dekhiye ye kuch drishya.......

जंग कलम की.......: जागो ग्राहक जागो .......

जंग कलम की.......: जागो ग्राहक जागो .......

Friday, January 1, 2010

नव वर्ष की शुभकामनाएं ...

वर्ष नव,
हर्ष नव,
जीवन उत्कर्ष नव।

नव उमंग,
नव तरंग,
जीवन का नव प्रसंग।

नवल चाह,
नवल राह,
जीवन का नव प्रवाह।

गीत नवल,
प्रीत नवल,
जीवन की रीत नवल,

जीवन की नीतनवल,
जीवन की जीत नवल

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