Award for Worst Actor 'Male' - शाहरुख खान (माय नेम इज़ खान)
Award for Worst Actor 'Female' - सोनम कपूर (आयशा)
Award for Worst Supporting Actor 'Male' - अर्जुन रामपाल (हाउसफुल और वी आर फैमिली)
Award for Worst Supporting Actor 'Female' - कंगना राणाउत (काइट्स, नो प्रॉब्लम और वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई)
Award for Worst Film 2010 - माई नेम इज़ ख़ान
Award for Worst Director 2010 - संजय लीला भंसाली (गुज़ारिश)
Award for Worst Debutante 'Male' - आदित्य नारायण (शापित)
Award for Worst Debutante 'Female' - पाखी त्यागी (झूठा ही सही)
Award for Most 'Original' Story - एक्शन रीप्ले (जो 'बैक टू फ्यूचर' से चुराई गई)
'Bawra ho Gaya hai Ke' Award - बेन किंग्सले (तीन पत्ती)
Most Atrocious Lyrics 2010 - अब्बास टायरवाला (क्राई क्राई कितना क्राई...झूठा ही सही)
Most irritating Song of the Year 2010 - पी लूं....(वन्स अपॉन अ टाइम इन मुम्बई)
"When did this come out?" Award 2010 - एक सेकेंड...जो ज़िंदगी बना दे (फिल्म)
Worst Animated Film Award 2010 - बारू द वंडर किड
Lajja Award for Worst Treatment of Serious Issue - डुन्नो वाय..न जाने क्यों..
Chimpoo Kapoor Award for No Talent relatives of Celebrities - उदय चोपड़ा
3 Idiots Child Birth Award for Most Ridiculous Sequence in a Film - प्रिंस (पूरी फिल्म)
The BLACK Award for Emotional Blackmail - गुज़ारिश
Jajantaram Mamantaram Award for Worst Named Film - लफंगे परिंदे
Special Award for the Worst Triology Ever - गोलमाल 3
Ajooba Award for Sheer Awesomeness - दबंग
Sonu nigam Award for Career Suicide - सुखविंदर सिंह (कुछ करिए)
Special Award for Worst Casting Ever - जैकी श्रॉफ (मालिए एक में साईं बाबा)
The "Bas keejiye, Bahut Ho Gaya.." Award - रामगोपाल वर्मा
ज़ाहिर है इन पुरस्कारों को पढ़ कर आपके चेहरे पर हंसी ज़रूर आएगी...पर कहीं न कहीं ये पुरस्कार कुछ गंभार मसले भी उठाते हैं...जैसे कि क्यों आखिर वाहियात फिल्में बड़े बजट की होती हैं...और अच्छी फिल्मों को निर्माता ही नहीं मिलता....क्या हिट हो जाने वाली बेहूदा फिल्में हमारे पूरे समाज के मानसिक स्तर की परिचायक हैं...कैसे फिल्म जैसे कला माध्यम में भी वंशवाद का बोलबाला है...कैसे आखिर इतने साल बाद बी हम सिनेमा को जनजागरुकता का माध्यम नहीं बना पाए हैं...सबसे वृहत मास मीडिया होने के बाद भी हम या तो अतिरेक हिंसा से भरे हैं...बेवकूफाना करतबों से अटे हुए हैं...या फिर पेड़ों के इर्द गिर्द नाच रहे हैं...बोल्ड होने का मतलब कथा वस्तु के स्तर पर बोल्ड होने की जगह केवल शरीर की नग्नता दिखाना है...वो भी जो सुंदर नहीं भयावह लगती है...बिना सर पैर की फिल्में बनाने वालों के लिए ज़ाहिर है गोल्डन केला कम से कम उन्हें आईना दिखाने का काम तो कर रहा है...ज़ाहिर है शाहरुख खान भले ही माई नेम इज़ खान के लिए तमाम पुरस्कार जीत गए हों...हम सब जानते हैं कि उड़ान इन सब से बेहतर फिल्म थी....
खैर अवॉर्ड देखें और मुस्कुराएं....ज़िंदगी में मुस्कुराने के मौके कम आते हैं....
मयंक सक्सेना
No comments:
Post a Comment