न यह दिवाली है, न होली और न है यह ईद का जश्न। जनाब इसे क्रिकेट कहते हैं। वल्र्ड कप जीत के बाद रायपुर की सडक़ों पर उमड़ा जन सैलाब कोई रैली, क्रांति में नहीं बल्कि दुनिया के सबसे बड़े खेल के महा खिताब को मनाने उतरा। चालीस हजार लोगों की शालीनता की जितनी तारीफ की जाए कम है।
की जीत और 28 सालों से तरसती आंखों को मिले सुकून को इस भावनाओं के ज्वारभाटे से समझा जा सकता है। सबसे बड़ी बात अपनी गाडिय़ों से निकले इस मानव गुच्छे में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या भी कम नहीं रही। इस मामले में रायपुर की जितनी तारीफ की जाए कम है। किसी और शहर के मुकाबले यहां उत्सवों को मनाने और उन पर झूमने का माहौल अपेक्षाकृत ज्यादा रहता है और इनमें महिलाओं की भागीदारी कहीं ज्यादा तारीफ के काबिल है। किसी भी भीड़ के जश्न का कोई कानून नहीं होता, बल्कि वह एक निश्चित समय के बाद जश्न से हटकर खुराफात पर उतरती है। लेकिन रायपुर में हुए इस जलसे के महा खुशनुमा अंदाज में न तो कहीं शरारत दीख पड़ती है और न ही असुरक्षा जैसी कोई बात। इतनी बड़ी खुशी को मनाने क्या पुरुष और क्या महिलाएं, सब एक संग सेलिब्रेशन के मूड में नजर आए। भीड़ को चीरती महिलाएं बेफिक्र इस जुलूस में शामिल रहीं। इसके लिए रायपुर के लोग बधाई के पात्र हैं।
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