अन्ना की आंधी का एक और नजारा दिल्ली के जंतर मंतर में देखने को मिल रहा है। मीडिया के लिए अन्ना एक ऐसा हथियार बने चुके हैं,जिसे वो महज टीआरपी के लिए ही अपनाना चाहती है।इस संदर्भ में अगर बात अन्ना के जन लोकपाल बिल की करें तो साफ है,इस बिल को सरकार भी लाना चाहती है,पर अपने बनाए नियमों के अनुसार वही अन्ना का कहना है कि स्थाई समिति ने कमज़ोर लोकपाल बिल संसद में भेजा है और ये देश के साथ धोखा है,स्टैडिंग कमेटी की रिपोर्ट में लोकपाल को संवैधानिक दर्जा दिए जाने की सिफ़ारिश की गई है,स्थाई समिति के अध्यक्ष अभिषेक मनु सिंघवी के मुताबिक लोकपाल को अभियोजन प्रक्रिया शुरू करने के लिए किसी भी तरह की पूर्व-अनुमति नही होनी चाहिए पर लोकपाल के चुनाव के लिए चयन समिति में प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायधीश, लोकसभा के अध्यक्ष और लोकसभा में नेता विपक्ष के अलावा एक चौथा व्यक्ति भी होगा, लेकिन सीबीआई की तहक़ीक़ात और लोकपाल की अभियोजन प्रक्रिया अलग-अलग होंगी, प्रधानमंत्री को लोकपाल में शामिल किए जाने पर ये सुझाव रखे गए हैं, लोकपाल के दायरे में लेकिन सुरक्षा के प्रावधानों के साथ, लोकपाल के दायरे में लेकिन अभियोजन प्रक्रिया पद छोड़ने के बाद ही या लोकपाल के दायरे से बाहर, लेकिन अन्ना का कहना है कि ये मसौदा बेहद कमज़ोर है और इससे भ्रष्टाचार घटने के बजाए बढ़ जाएगा.अन्ना के जन आंदोलन की गूंज भारत के साथ ही विदेशों में भी रही। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अन्ना हज़ारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को टाइम मैगज़ीन ने साल 2011 की दस सबसे बड़ी खबरों में शामिल किया है।इसके साथ ही मैगज़ीन ने लिखा है, "हज़ारे की भूख हड़ताल, और उनको मिले जन समर्थन ने लोगों को एक देशभक्ति का जज्बा दिया है जो कि भारत की आजादी के बाद ऐसा लगता था कि आज के युवाओं में वो जोश शायद ही रहा हो जिसके चलते भारत के कई बड़े शहरों में लोगों ने प्रदर्शन किए। इससे सरकार पर स्वतंत्र लोकपाल संस्था बनाने का दबाव बढ़ा जो प्रधानमंत्री तक की जांच कर सकता है और भ्रष्ट लोगों को सज़ा दिलवा सकता है."
साभार-बी.बी.सी.हिन्दी
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