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Monday, December 1, 2008

गौर फरमाएं

मर रहे पिट रहे रो रहे हैं,
रोज विस्फोट अब हो रहे हैं।
टांग में टांग देखों फसांए,
गधे ये चैन से सो रहे हैं।

- सुभाष भदौरिया

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