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Wednesday, December 1, 2010

क्योंकि वो लोग बड़े उंगलीबाज होते हैं।


खुलासों और खुल्लमखुल्ला का दौर है, भैया ने कहा था, जो करो वो करो और उसका समर्थन इसलिए मत करो क्योंकि आपने किया है, बल्कि इसलिए करो ्कयोंकि आपके मन ने कहा वो सही है। विकीलीक्स के खुलासे और बिग बॉस में पॉमेला के कपड़े सबकुछ ऊपर दोनों लाइनों से ही उपजा है। भैया ने यह भी कहा था, बेटा शहर के लोग तेजी से बढ़ रहे हैं, थोड़ा अपने आसपास के लोगों की उंगलियां भा थामने की कोशिश करना। क्योंकि वो लोग बड़े उंगलीबाज होते हैं। विकीलीक्स ने खुलासा किया, अरे या यूं कहिए कुछ कही हुई बात को कहा, कुछ सुनी हुई घटनाओं को कंप्यूटर के माथे पर चिपकाया है। लेकिन मुझे इस बात की बड़ी खुशी हुई कि अबतक छुपकर लादेन, जैश ए मुहम्मद, ही अफगानी यानी पाकिस्तानी पहाडिय़ों से दुनिया को ललकारते थे, चंबल के बीहड़ों में छुपकर डाकू अमीरों को धमकाते थे, सत्यम के जंगलों से लंबी, घनी, काली मूंछों वाले दुनियाभर के लोगों को चंदन लगाते थे, सचमुच के शेर को नोंच कर उसकी खाल संसार में बेंचते थे। छत्तीसगढ़, प.बंगाल के हरियर को सिस्टम बदलने की तपोभूमि बनाते थे। सबके सब निगेटिव एफट्र्स लगा रहे है और निगेटिव नतीजे चाहते हैं। मगर पहली बार कोई ऐसा भी है, जो छुपकर कहीं से अपना सबसे बड़ा पॉजिटिव नेटवर्क चला रहा है। वो है विकीलीक्स। भैया ने कहा था ईमानदारी के लिए किए गए हरेक एफट्र्स स्वर्ग की ओर जाते हैं। हां लेकिन उन्होंने यह भी कहा था, कि भीख देने के लिए की गई चोरी ठीक नहीं है, क्योंकि भीख देना किसी संविधान की अनुसूची छठवीं के आर्टिकिल 345 क के च के अनुसार जरूरी है कहीं नहीं लिखा। संविधान और कानून की लंब-लंबी बतियां और इस तरह की पेचीदगियां भला किसी को समझ में आ सकती हैं। और फिर अगर जो समझ में आ गया और आपको पता चल गया तो आपको कोई अपराधी ही साबित नहीं कर पाएगा। भैया विकीलीक्स ने अच्छे काम के लिए ऐसा किया है, तो क्या अच्छा है। पहली बार कोई ऐसा नेटवर्क कम से कम मेरी जानकारी में तो पहली ही बार आया है, जो वाकई अच्छा काम कर रहा है। इसके मालिक को मानना पड़ेगा, उसे रॉबिन हुड कहें या फिर तथाकथित बुद्धिजीवियों की नजरों में नक्सली जो भी कहिए कह दीजिए। लेकिन प्लीज विकीलीक्स से कहिए अपनी सूचनाएं कमर्शियली बाउंड न ही करे। यहां एक बात का जिक्र करना बेहद जरूरी है, कि अखबार, टीवी, इंटरनेट इन्हें तब तक नहीं चलाया जा सकता जबतक कि विज्ञापन का भूसा न भरा जाए। तब यह सभी माध्यम कहां ईमानदार रह जाएंगे। आप सब तो समझदार हैं, मैं तो अपने आपको अपडेट करने के लिए ऐसा कह रहा था। अजी क्यों न कहें विचारों की अभिव्यक्ति का जो मामला है। जनाब कुछ दिनों से मीडिया के चालचलन पर कई किस्से कहानियां और बात बतंगियां बाजार में प्रचलन में हैं, उनमें कभी महंगाई की तरह हाई राइजिंग स्पीड आ जाती है, तो कभी शेयरों के सूचकांक बनकर नीचे लुढकते जाती हंैं। लेकिन विकीलीक्स ने नई राह दिखाई है। हां कम से कम उनके लिए तो है ही जो सियासत के जरिए हिताहित की बात तो करते हैं, लेकिन रोटी के चारों ओर ऐसे घूमते हैं, जैसे कोई चखरी हो। हां याद आया वो चखरी जो बच्चों को दीवाली के वक्त और बुजुर्गों को बच्चों के मैरिड होने के बाद याद आती है। वो चखरी जो बिटिया के बाप को बिटिया के पीले रंग से हाथ रंगने के वक्त याद आती है। वही चखरी जो गांधी जी ने घुमाई की सूत कत गया और उस सूत में सबके सब बंध गए, वही चखरी जिसे तिरंगे ने बीच में लगाकर चौबीसों घंटे जागते रहने की दलील दी है। वही चखरी तो है यहंा जो कभी मेले ठेले में घूमती थी और अम्मा पापा के दिए पैसों में अपने ऊपर बैठने नहीं देती थी, कहती थी इसमें बैठने के लिए तीन बार मेले का इंतजार करना होगा। चलोअच्छा हुआ कोई तो कहीं से अच्छे काम कर रहा है, विकीलीक्स को सलाम करते हैं, उसके साथ आम आदमी तो रहेगा, लेकिन पूरा सिस्टम समूह नहीं चलेगा। अमेरिका है, भैया ने कहा था अमीरों के चोचले होते हैं, वे कभी भी अपनी कुछ भी करतूत की दलील नहीं देते बल्कि उसे समाज में स्टेटस सिंबल के तौर पर परोस देते हैं, और हम और हमारा समाज अंधभक्त होकर स्वीकारता जाता है। भैया ने इस बार फिर कहा चलो कोई तो है जो भूमिगत किसी अच्छे कारण से हुआ है। हां लेकिन इस बार भैया ने यह सीधे सामने बैठकर नहीं कहा बल्कि मोबाइल पर समस करके कहा है, यानी अखबार, फिल्म, न्यूज चैनल्स, वेब जर्नलिज्म, नारदिज्म, मंथराइज्म, हुनमानिज्म आदि के बाद अब आ रहा है, ऐसा मीडिया जो पत्रकारों को जर्नलिस्ट, संपादक आदि के पारंपरिक तमगों और खोलों से बाहर निकालकर सीधा सच्चा भूमिगत भू-सुधारक वेबिस्ट बना देगा। जय हो विकीलीक्स।।।।।।।।
सादर आमंत्रित हैं, भैया चाहें तो अंग्रेजी में या हिंदी में मेल (पुरुष) कर सकते हैं। समस के लिए भी नंबर दे रहा हूं, आगे तो आपकी ही मर्जी चलेगी न, क्योंकि गोविंदा अंकल ने कहा है मैं चाहे ये करूं मैं चाहे वो करूं मेरी मर्जी। जी सर्जी।।।।.
वरुण के सखाजी, ०९००९९८६१७९.sakhajee@gmail.com

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