गया और नया साल
हो कल की जैसे बात,या कि नींद भरी रात,
किसी अपने की बारात,
बिना लड़े कोई मात।
शायद ऐसे गया, गया साल।।
आये नींद सुनकर गीत,
किसी बेदर्दी की प्रीत,
या कि चुटकी का संगीत,
वर्तमान सा अतीत।
शायद ऐसा ही था वो गया साल।।
चाहे जैसा भी था वो गया साल,
इस बात का किसे है मलाल,
वक़्त आया बनके फिर से द्वारपाल,
आओ सोचें कैसा होगा नया साल?
ज़रा करके देखें खुद से ये सवाल।।
जैसे शादी का हो पत्र,
मिले वर्षों बाद मित्र,
या पुराना कोई इत्र,
कोई ख़बर हो विचित्र।
शायद ऐसा लगे वो नया साल।।
जैसे ग़ज़ल इक हसीन,
कोई सफ़र बेहतरीन,
जैसे दर्द हो महीन,
जैसे साफ हो ज़मीन।
शायद ऐसा लगे वो नया साल।
जैसे घुँघेरू वाली पायल,
या हो जाये कोई क़ायल,
जैसे शेरनी हो घायल,
या कि 'मम्मी जी' का आँचल।
शायद ऐसा लगे वो नया साल।।
जैसे कामगार का पसीना,
बिन श्रृंगार के हसीना,
कोई चुटकुला कमीना,
या फिर मार्च का महीना।
शायद ऐसा लगे वो नया साल।।
जैसे साफ-स्वच्छ दर्पण,
या धुला हुआ बर्तन,
पतिव्रता का समर्पण,
या व्यक्तित्व का आकर्षण।
शायद ऐसा हो वो नया साल।
ये सब थे मान्यवर, मेरे ही उद्गार।
कैसा हो नव वर्ष ये, आप ही करें विचार।।
आप ही करें विचार हमें बस इतना कहना।
नया साल मंगलमय हो, प्रतिदिन और रैना।।
बहुत सुन्दर रचना है..
ReplyDeleteकभी समय मिले तो हमारे ब्लॉग//shiva12877.blogspot.com पर भी अपनी एक नज़र डालें .