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Saturday, January 22, 2011

वह झूठ बोल रही है


आदमी एक साथ न जाने कितनी जिंदगियां जी रहा होता है। पिछले दिनों मेरे साथ एक जिंदगी में कुछ ऐसा ही हुआ, जब दुनिया के तमाम संसाधनों को ही अपनी सफलता समझने वाली इस जिंदगी को एक छोटे से प्यादेनुमा व्यक्ति ने चुनौती दे डाली। दरअसल मामला है उस दौर का जब मैं बहुत संघर्ष के दौर से गुजर रहा था, वक्त ऐसा था कि करियर कुछ शेप लेता इससे पहले ही हादसे हो जाते। इससे निराश हो कर वह जिंदगी का इनचार्ज सीधा बड़ी जिंदगी के पास गया। बड़ी जिंदगी अक्सर यही कहती है बेटा कार्य पूरे मनोयोग से नहीं किया गया एक बार फिर कोशिश करो। छोटी जिंदगी के इनचार्ज महोदय वापस अपने काम में जुट जाते। उन्हें बड़ी जिंदगी की कही बात कुछ ऐसी लगती जैसे जो कुछ हो रहा है, वह परम सत्य और न्याय के तराजू और छन्नियों से होकर निकल रहा है। जिंदगी कुछ कह ही नहीं पाती। एक दिन उसे ऐहसास हुआ कि बेटा इस तरह से काम चलेगा नहीं, जरा सोचो तुम्हारो पास कुछ ऐसा तो है नहीं कि बड़ी जिंदगी हमेशा सही ही बोलेगी। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि वह झूठ बोल रही है। इस उहापोह में जिंदगियां कई बार आपस में ही उलझ जाती। लडक़र, घबराकर बड़ी ंिजदगी एक अपात बैठक इन जिंदगियों के साथ करती। लेकिन वह भी नाकामयाब।
आज कुछ मेरे साथ ऐसा ही हो रहा है, कि कई जिंदगियां आपस में उलझ सी गई हैं, और इतना लड़ रही हैं, न पूछो।।।।।।।।
क्या हुआ वो जो नहीं हुए हमारे इश्कपरस्त
मगर मियां मेहताब तो चार दिन ही चमकता है,
कह रहे हैं वो बार-बार इस कदर,
अगर जीना है तो जी इसी तरह,
सखाजी

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