बिहार विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है.चुनावी जमीन तैयार है और भाजपा,जदयू,लोजपा,राजद सहित अन्य पार्टियां जीत के लिए दिन रात एक कर रही है.यह चुनाव नीतीश और लालू दोनो के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है.अगर नीतीश चुनाव जीतते हैं तो उनके सुशासन पर जनता की मुहर लगेगी और लालु चुनाव जीतते हैं तो राज्य के साथ साथ कांग्रेस नीत केंद्र सरकार में ही उनकी पार्टी की भूमिका बढ़ेगी.हालांकि कांग्रेस क्षेत्रीय पार्टियों को अपने साथ नफा नुकसान देखकर ही रखती है.2005 के विधानसभा के दो चुनावी नतीजे इस प्रकार है
विधानसभा चुनाव(2005) विधानसभा चुनाव (2010)
पार्टियां सीट पार्टियां सीट
बीजेपी 37 बीजेपी 55
जनता दल यू 55 जनता दल यू 88
राजद 75 राजद 54
एलजीपी 29 एलजीपी 10
कांग्रेस 10 कांग्रेस 9
अन्य 37 अन्य 27
इस बात से सभी इतेफाक रखते है कि बिहार में पिछले 5 साल की स्थिति में काफी परिवर्तन आया हैं
और सड़क,स्वास्थय,शिक्षा और बिजली के क्षेत्र में काफी काम किया गया है.बीजेपी जदयू के नेतृत्व में चलने वाली इस सरकार में 15 साल के बाद पहली बार लोगों ने राहत की सांस ली.लेकिन सवाल ये है कि क्या इसके आधार पर नीतीश की वापसी संभव हैं.बिहार में जातिवाद एक बड़ा कारक हैं और वोटिगं इसी आधार पर होता हैं.चुनावी मुकाबला भाजपा-जदयू और लोजपा राजद में है.कांग्रेस की स्थिति में कुछ खास अंतर नही आया क्योंकि लालू राबड़ी के 15 साल की सरकार के पाप की भागीदार कांग्रेस भी बराबर रूप से हैं.राहुल या कांग्रेस चाहे जितनी भी सफाई दे लेकिन जनता जानती हैं कि लालू और राजद को कांग्रेस ने खूब पाला और सीचा हैं.कहलगांव से विधायक और विधानसभा अध्यक्ष सदानंद
सिंह पांच साल तक बने रहे और वे कांग्रेस के ही नेता है.सवाल ये भी पैदा होता हैं कि अगर दुर्भाग्य से बिहार में त्रिशंकु सदन की स्थिति बनती हैं तो क्या कांग्रेस लालू का साथ नही देगी..क्योंकि तथाकथित धर्मनिरपेक्षता की जो बात है.कांग्रेस ने बिहार में 40 साल और लालू राबड़ी की स रकार को 15 साल तक समर्थन किया....अब राहुल की कांग्रेस और राहुल से सवाल...
1 आजादी के 60 साल बाद भी बिहार में क्यों नही खुल पायी आईआईएम की ब्रांच
2 9 करोड़ की आबादी वाले बिहार में क्यों नही खुल पाया केंद्रीय विश्वविधालय
3 इतनी आबादी होने के बाद भी बिहार में एम्स की कोई ब्रांच क्यो नही
4 बिहार में नही तो लॉ युनिवर्सिटी और ना ही निफ्ट की कोई ब्रांच..
जब दिसंबर 2008 में बिहारी छात्रों को पीटा जा रहा तो तब कांग्रेस क्या कर रही थी.क्यों नही राज ठाकरे को जेल में बंद किया गया.सीधी सी बात हैं कांग्रेस इस बात को जानती थी कि जितना राज ठाकरे मजबूत होंगे शिवसेना उतना ही कमजोर होगी..मुंबई में 6 लोकसभा सीटों पर राज ठाकरे की पार्टी एमएनएस को 7 लाख से ज्यादा मत मिले जो कि शिवसेना का वोट बैंक था..उसी तरह मुंबई की 39 विधानसभा सीट में एमएनएस को 8 सीटे मिली ..जाहिर हैं अपनी सत्ता और सल्तनत को बचाने के लिए वो राज ठाकरे की नीतियों को पालती पोषती रही है और मेरी तरह हरेक आदमी कांग्रेस की इन नीतियों से वाकिफ है.अब राहुल को बिहार की याद आ रही हैं और इसी विचार को लेकर वो मुंबई भी गये.जब राज्य का सीएम ही किसी व्यक्ति की सुरक्षा के लिए रात दिन एक करे उसका कौन क्या बिगाड़ सकता हैं..बिहार राजनीति के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण स्टेट हैं राहुल गांधी को पीएम बनने का रास्ता साफ करने के लिए राज्य की 40 सीटों का काफी योगदान होगा..इस लिहाज से राहुल के साथ साथ कांग्रेस भी पूरा जोर लगा रही हैं खैर इसमें कोई बुराई भी नही..अब देखना होगा कि बिहार की जनता नीतिश के साथ रहती है या फिर कोई और विकल्प तलासती है..
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Monday, October 25, 2010
Saturday, October 16, 2010
गर्दन नापने की नई चाहत
भारत एक लोकतांत्रिक देश हैं और पत्रकारिता इसका चौथा स्कंभ हैं.मीडिया सदैव हमेशा से भारत का प्रहरी रहा हैं और इसकी निष्पक्षता के आगे बड़े बड़े हुक्मरान ,नौकरशाह अपनी नाजायज काम करने से डरते हैं.लेकिन शायद इमाम बुखारी को इस बात की जानकारी नही हैं या फिर ये देश के कानून को अपनी पैर की जूती समझते हैं. और इसलिए इन्हें पत्रकारिता की गर्मी को इन्हें समझाना पड़ेगा.14 अक्टूबर को लखनऊ के गोमती होटल में स्थानीय पत्रकार मोहम्मद वाहिद चिश्ती के साथ जो सलूक किया इसके लिए बुखारी को चिश्ती से माफी और मीडिया के सामने स्पष्टीकरण देना चाहिए.आप किसी भी चीज से सहमत या असहमत हो सकते हैं और विरोध करना संवैधानिक दायित्व लेकिन बुखारी की गर्दन नापने की चाहत ये समझ से बाहर की चीज हैं.सच्चाई बेहद ही कड़वी होती हैं और जिस सच्चाई को चिश्ती ने बुखारी और दुनिया के सामने रखा हैं उसके लिए बुखारी के साहस और जज्बे को सलाम.चिश्ती ने 1528 के उस खसरे का जिक्र किया जिसमें अयोध्या की जमीन राजा दशरथ के नाम पर दर्ज होने की बात कही गई इसलिए उसके स्वामी राजा राम चंद्र होते हैं.यह बात 30 सितंबर 2010 के फैसले में भी हैं और जफरयाब जिलानी को भी मालूम हैं.जब ऐसे साक्ष्य मौजूद हैं तो आप ये जमीन सहिष्णुता का प्रर्दशन करते हुए हिंदुओं को क्यों नही सौप देते हैं.इतनी सुनते ही बुखारी की सोच और खाल दुनिया के सामने आ गई.बुखारी पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए और मीडिया को इस शख्स पर इतना दबाव बनाना चाहिए कि वे चिश्ती से माफी मांग लें.वैसे बुखारी की यह सोच नई हैं इससे पहले 2006 में भी उन्होनें पत्रकार को औकात बताने की बात कही थी.माननीय बुखारी जी जनता एक पंडित की तरह हैं जो किसी की शादी करती हैं तो श्राद्ध भी.जिस पत्रकार को सबक सिखाने की बात करते हैं वह कभी हो नही सकता.30 सितंबर का फैसला एतिहासिक और प्रामाणिक भी हैं और यह तय हैं कि अब मंदिर का निर्माण उसी जगह पर होगा जिसे हिंदू सदियों से अपना बता रहे हैं.आम मुसलमान भी चाहता हैं कि अब मंदिर का निर्माण हो ही जाए.बुखारी जी अगर मुसलमान पिछड़ा हैं और अमेरिका और यूरोंप में इन्हें संदेह की दृष्टि से देखा जाता हैं तो इसके लिए जिम्मेदार आप जैसे लोग ही हैं .चिश्ती ने एक आम भारतीय के सोच को सामने रखा हैं और आप उदारता दिखाए यह आपसे अपेक्षा हैं.ए आर रहमान और अब्दुल कलाम जैसे लोग आपकी बिरादरी से ही संबंध रखते हैं फिर आप ऐसे हरकत कर अपनी थु थु कराने पर क्यों लगे हैं...गर्दन नापने का शौक वैसे बड़े बड़े तानाशाहों का रहा हैं और उसका हश्र आपके सामने हैं..मारने वाला से बड़ा बचाने वाला होता हैं आपने चिश्ती के साथ साथ पत्रकारिता पर भी हमला किया हैं बेहतर होगा कि सीमा में रहकर अपनी बात रखे...नही तो दांव उल्टा भी पड़ सकता हैं.गर्दन नापने की इस चाहत को दफ्न कर दे..
चिश्ती जी आपके जज्बें को पत्रकारिता जगत का हजारों सलाम....
चिश्ती जी आपके जज्बें को पत्रकारिता जगत का हजारों सलाम....
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