एक क्लिक यहां भी...

Tuesday, March 31, 2009

चुनावी चित्रकथा.....देखें मज़ा लें !

बहरहाल अब जब माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने संजू बाबा के चुनाव लड़ने पर रोक लगा ही दी है तो इस पर ज्यादा टीका टिप्पणी नहीं पर इतना ज़रूर कहूँगा किएक लखनवी होने के नाते खुश हूँ......तो आज इसी परिप्रेक्ष्य में देखें हमारी चुनावी चित्र कथा ('अमर' चित्र कथा विवादित हो जायेगा) का अगला अंक.....
मुन्ना सर्किट संवाद
मुन्ना भ्रमित हो जब सर्किट से पूछता है कि क्या वो चुनाव लड़ सकता है और सर्किट चुनाव लड़ने को क्यूँ कह रहा है

कोर्ट की वक्र दृष्टि प्रसंग
प्रचार तो फुल चल रहा है पर कोर्ट क्या करेगा पता नहीं....

कोर्ट का फ़ैसला अदालत ने बाबा को चुनाव लड़ने की इजाज़त नहीं दी, बापू भी खुश हैं !
दरअसल यह पोस्ट की प्रतिष्ठा की हानि के लिए नहीं है, बल्कि लोकतंत्र की प्रतिष्ठा की हानि के ख़िलाफ़ है। वाकई देश में न्यायपालिका अभी जिंदा है.....सत्यमेव जयते ! बापू वाकई आज खुश होंगे......






Monday, March 30, 2009

लाहौर आतंकी हमले का हिन्दी ब्लोग्स पर पहला विडियो ...

लाहौर में आज सुबह पुलिस अकादमी पर आतंकवादियों ने आत्मघाती कमला कर दिया, लाहौर के समीप भारत से लगी वाघा सीमा के निकट मनावन स्थित इस पुलिस प्रशिक्षण केन्द्र पर सुबह आतंकवादी हमले में कम से कम 20 लोगों की मौत हो गई जबकि 150 अन्य घायल हो गए।
यहाँ करीब ८५० प्रशिक्षु मौजूद हैं....आखिरी समाचार मिलने तक मतभेद जारी है, देखें हिन्दी ब्लॉग पर इस हमले का पहला विडियो ......

अज्ञेय एक कविता में कहते हैं
"मानव का रचा सूरज,
मानव को भाप बना कर सोख गया"
आज पाकिस्तान के हालत वैसे ही हैं.......भस्मासुर की कथा याद है ना !

Sunday, March 29, 2009

चुनावी चित्रकथा....देखें और मज़ा लें !

चुनावी चित्रकथा की श्रृंख्ला में आज हम अपना अगला चित्र लाये हैं, आज के चित्र में हैं समाजवाद के हमारे तीन हीरो जो जे पी आन्दोलन के बाद आज फिर एक साथ खड़े हैं पर आज वक़्त बदल गया है, तब ये जहाँ सम्पूर्ण क्रान्ति के लिए साथ खड़े थे आज विशुद्ध सम्पूर्ण राजनीति के लिए साथ हैं......हमारे तीन समाजवादी (?) हीरो रामबिलास पासवान (सरकार कोई हो ये मंत्रिमंडल में होते हैं), लालू प्रसाद यादव (चारा घोटाले के मुख्यअभियुक्त भारतीय रेलवे को सुधार रहे हैं) और मुलायम सिंह यादव (जाने ही दें!)......
चित्र की प्रेरणा फ़िल्म फिर हेरा फेरी के पोस्टर से ली गई है.....काफ़ी कुछ फ़िल्म का नाम भी इनकी हरकतों से मिलता जुलता है......देखें और मज़ा लें !
(यह चित्र वाल पेपर आकार का है इसे सेव कर डेस्कटॉप पर भी लगाया जा सकता है)

क्या आपने कल वोट किया ?

कल रात अपने देश में अर्थ आवर भले ही लोगों की निष्क्रियता और सरकार के रूचि ना लेने के चलते असर नहीं दिखा पाया पर दुनिया भर के देशों में इसका बड़े पैमाने पर आयोजन हुआ....बिजली बंद होने के बाद कई अद्भुत नजारे सामने आए......
मोमबत्तियों से लिखा गया ...वोट अर्थ.....चुने एक को...केवल लाभ या अपनी धरती....
हांगकांग का सेंट्रल कमर्शियल मार्केट जहां बत्तियां बुझा दी गईं
ऑस्ट्रेलिया का सिडनी हार्बर और ओपेरा हाउस
मलेशिया का पेट्रोनास टावर
चीन का यिनताई सेंटर जो आम तौर पर प्रकाशमान रहता
डेनमार्क जहां लोगों ने प्राकृतिक रुप से बिजली पैदा कर के कुछ शो किए
जागरूकता फैलाने का एक अंदाज़ यह भी
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना, अँधेरा धरा पर कहीं रह ना जाए
हम चलेंगे साथ साथ लेकर हाथों में हाथ.....
अपने देश में ना तो सरकार ने इस तरह के कुछ प्रयास किए ना ही लोगों ने जागरूकता दिखाई....यह बताता है कि हम धर्म और जाती के नाम पर सड़कों पर दिन भर राजनीति के मोहरे बन जाने को तो तैयार हैं पर असल मुद्दों को लेकर हम सुशुप्त हैं बल्कि निष्क्रिय हैं......हम फालतू बयान देने वाले, विद्वेष फैलाने वाले नेताओं के पीछे भीड़ बन कर चल सकते हैं पर १ घंटे के लिए अपने घर की बत्तियां बुझाने में हमें तमाम दिक्कतें हैं...................खैर उम्मीद करें कि अगली बार हम जागे रहेंगे....सरकार भी !(पर उम्मीद लोगों से ज्यादा है)

(तस्वीरें: साभार बी बी सी हिन्दी)

Saturday, March 28, 2009

आपका वोट आपकी ताक़त

आज पूरी दुनिया ग्लोबल वार्मिंग के खतरे के ख़िलाफ़ मुहिम की शुरुआत के तौर पर वैश्विक पृथ्वी घंटा (Global Earth Hour) मनाएगी.....इस आयोजन में दुनिया के सब लोग शामिल होंगे सिर्फ़ अपनी अँगुलियों के इस्तेमाल से ......आज रात 8:30 से 9:30 तक पूरी दुनिया के लोग अपने घर की बिजली बंद कर देंगे !
क्या आप अपनी प्यारी धरती के लिए चिंतित नहीं.....हैं ना तो शनिवार २८ मार्च २००९समय शाम के ८।३० बजे से रात के ९.३० बजेघर मे चलने वाली हर वो चीज़ जो इलेक्ट्रिसिटी से चलती हैं उसको बंद कर दे.......

दुनिया भर में

शनिवार २८ मार्च २००९ समय शाम के ८:३० बजे से रात के ९.३० बजे

प्यारी धरती को अपना वोट दें...इसने आपको शरण दी अब आप इसे बचाएं.......

आपका वोट आपकी ताक़त

गैरों पे करम,अपनों पे सितम

मुहब्बत अदावत वफ़ा बेरुखी, किराए के घर थे बदलते रहे ....बशीर बद्र के ये अशार इन दिनों मध्य प्रदेश की सियासत में नुमाया हो रहे हैं । सियासी माहौल जैसे जैसे गरमा रहा है इसकी आंच में रिश्ते भी तप रहे हैं ,कुछ दिनों पहले तक सब ठीक-ठाक था .. पूर्व मुख्या-मंत्री दिग्गी राजा कांग्रेस में और उनके छोटे भैया लक्ष्मन सिंह भाजपा के साथ होकर भी आपस में कम ही उलझते थे ...लेकिन जैसे जैसे चुनाव करीब आ रहे हैं निष्ठाएं बदल रही हैं ..दोनों अब एक दुसरे के आमने सामने आ गए हैं पिछले दिनों गुना में लक्ष्मन ने दिग्गी पर आरोप जादा था की वो सोनिया को कमज़ोर कर रहे हैं और अब दिग्गी भी छोटे भैया के खिलाफ बराबर जोर लगा रहे हैं ।

दरसल भाइयों के बीच इस गृह युद्ध की शुरुआत लक्ष्मन ने ही की थी जब उन्होंने गुना में ये कह कर सनसनी फैला दी थी की दिग्विजय न सिर्फ सोनिया को कमज़ोर करना चाहते हैं बल्कि मनमोहन तक को अक्षम प्रधान मंत्री मानते हैं और उनके अधीन काम करने में तौहीन समझते हैं . अब बड़े भैय्या दिग्विजय ने ख़त लिख कर छोटे भाई को सलाह दी है की वे कांग्रेस और मनमोहन की चिंता करना छोड़ दें .

लक्ष्मन सिंह राजगढ़ से भाजपा के उम्मीदवार हैं ....और उनके ताजा बयान से राजगढ़ और गुना में खलबली मची हुई है । दरअसल इसी राजगढ़ के लिए लक्ष्मन ने ये बयान देकर कभी खूब तालियाँ बटोरी थी यहाँ से दादा के खिलाफ नहीं उतरूंगा॥अब लक्ष्मन के बदले हुए सुर इस बात का संकेत देते हैं की लक्ष्मन भाजपा के शीर्ष नेत्रत्त्व को ये दिखाना चाहते हैं की उनके लिए भाई से ज्यादा महत्व पार्टी का है .....हलाँकि लक्ष्मन इससे पहले तिवारी कांग्रेस के समय अर्जुन सिंह के खिलाफ भी ज़हर उगल चुके हैं ... वहीँ दूसरी तरफ भाई के हमले से बौखलाए दिग्गी भी पलटवार करने में देर नहीं कर रहे .खैर इस जुबानी लड़ाई में जीत चाहें जिसकी हो , एक बात तो फिर साफ़ हो गयी है की सियासत में न कोई अपना है न पराया ।

पॉलिटिकल पाठशाला !

वरुण गांधी भाजपा के गांधी हैं और राजनीति के भाजपाई स्कूल में कट्टरपंथ की तालीम तो उनको दे ही दी गई है, अब अगला घंटा (कक्षा) है राजनीतिक नौटंकी सीखने की ....सो आज वह भी लग गई है पॉलिटिकल ड्रामे के असाइंमेंट के तौर पर आज वरुण गांधी पीलीभीत में गिरफ्तारी देने जा रहे हैं, दो दिन पहले एक तस्वीर बनाई थी आज उसे पब्लिश कर देते हैं.......
वैसे बताते चले कि धर्म की अफीम के चलते वरुण की नौटंकी में उनके साथ हजारों भाजपा कार्यकर्ता भी शामिल हो लिए हैं, वरुण ये कह रहे हैं कि उन्होंने कुछ ग़लत नहीं कहा.....फिर कह रहे हैं कि उनके ख़िलाफ़ साजिश हुई है, फिर कहते हैं कि वि जेल जाने को तैयार हैं.....क्या ये बयान विरोधाभासी नहीं ?
जवाब अपने अन्दर ढूँढिये.....हिंदुत्व का ये चिन्तक इतने दिन कहाँ था ?

Friday, March 27, 2009

लोक गाता नवसंवत्सर लोक गीत .....शुभकामना ....वालपेपर के साथ

आज चैत्र प्रतिपदा का दिन है, जिसे भारतीय नवसंवत्सर या परम्परागत नव वर्ष की शुरुआत भी माना जाता है। शक संवत जो भारत सरकार का राष्ट्रीय पंचांग भी है आज ही के दिन से शुरू होता है, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में ‘उगादि‘ और महाराष्ट्र में यह पर्व ‘ग़ुड़ी पड़वा‘ के रूप में मनाया जाता है। हिन्दू मान्यता कहती है कि इसी दिन ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना शुरू की थी, दरअसल चैत्र मास से प्रकृति में नए बदलाव आने लगते हैं, नए पत्ते और पल्लवन प्रारंभ हो जाता हैइसी कारण इसे नव संवत्सर कहा याता है। वैसे उगादि शब्द की व्युत्पत्ति भी युगादि से है जो युग और आदि से मिल कर बना है।
  • महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए ‘पंचांग ‘ की रचना की

  • कहते हैं कि मर्यादा पुरूषोत्‍तम श्रीराम का राज्‍याभिषेक इसी दिन हुआ।

  • हिन्दू धर्म में विकास और विध्वंस की देवी मॉं दुर्गा की उपासना की नवरात्र व्रत का प्रारम्‍भ इसी दिन से होता है।

  • उज्‍जयिनी सम्राट- विक्रामादित्‍य द्वारा विक्रमी संवत् प्रारम्‍भ किया गया।

  • महर्षि दयानंद द्वारा आर्य समाज की स्‍थापना इसी दिन की गई।

यह दिन पूरे देश में उल्लास का पर्व है तो आप सभी को हमारी ओर से नव संवत्सर की शुभकामनायें और भेंट में ये वाल पेपर.....एक कविता के साथ !




ये पंछी नहीं
लोकगायक आए हैं
कुछ प्राकृत
कुछ अप्रभंश गीत लाए हैं

चिड़ियों की जिह्वा पर
बिरहड़ा
तोतों के कण्ठ में
भंगड़ा
कौव्वों के टप्पे
ये आदिवासी तानों में
कानन पर छाए हैं

यह चकवी की धुन
किन्नरी के सुर-सी
रामचिरैया रे
बोलों में चौपाई उभरी
ये आल्हा और ऊदल के उत्सर्ग
मैना ने भारी-मन गाए हैं

सुन कोयला का ढोलरू
नवसंवत्सर लाया
पपीहे ने बारहों-मास
सावनघन गाया
ये मोनाल के सोहाग राग
शतवर्धावन लाए हैं

ये चकोर-चकोरी की
लोक-ऋचाएं
ये मयूर-मयूरी की
मेघ-अर्चनाएं
ये सारसों के अरिल्ल
सृष्टि की बांसुरी बन भाए हैं

ये इतने–सारे राग रंग
गीत कण्ठ ये ढेर-ढेर
मन्त्र-गीत
प्रीत-छन्द
ये सब इन लोकगायक कवियों के जाए हैं


ओमप्रकाश सारस्वत

Thursday, March 26, 2009

हर तरफ धुआं है

धूमिल की कई कवितायें कई दिनों से ताज़ा हवा पर पढ़वा रहा हूँ, मेरे प्रिया कवि हैं .....केव्स संचार पर हम जल्द ही चुनावी श्रृंखला शुरू करने वाले हैं...सो भूमिका बाँधने और माहौल बनाने के लिए पढ़ें धूमिल की एक कविता,

हर तरफ धुआं है

हर तरफ धुआं है
हर तरफ कुहासा है
जो दांतों और दलदलों का दलाल है
वही देशभक्त है

अंधकार में सुरक्षित होने का नाम है
-तटस्थता।
यहां कायरता के चेहरे पर
सबसे ज्यादा रक्त है।

जिसके पास थाली है
हर भूखा आदमी
उसके लिए,
सबसे भद्दीगाली है

हर तरफ कुआं है
हर तरफ खाईं है
यहां, सिर्फ, वह आदमी,
देश के करीब है
जो या तो मूर्ख है
या फिर गरीब है

Wednesday, March 25, 2009

चुनाव लोकतंत्र का अस्त्र....ब्लॉग एक मंच

प्रिय लेखक व पाठक साथियों,
आप सब ने अब तक इस ब्लॉग केव्स संचार को सफलता के कुछ पड़ाव तय करने में जिस तरह का योगदान और प्रोत्साहन दिया उसके लिए हम आपके ह्रदय से आभारी हैं।
साथियों जैसा की आप सब जानते हैं की देश के भाग्य के निर्धारक आम चुनाव बस आने ही वाले हैं। चुनाव लोकतंत्र का वह अस्त्र हैं जो जनता के हाथ में है, अब आप उसका सटीक उपयोग करेंगे तो वह आपके भाग्य को सूर्य सा चमका देगा और नहीं तो हमेशा के लिए अन्धकार भी पैदा कर सकता है .....एक पत्रकार या भावी पत्रकार होने के नाते हमारा यह दायित्व है कि हम गणतंत्र के आम आदमी की आवाज़ हाकिमों तक और हाकिमों की सच्चाई आम आदमी को दिखायें.....
हम चाहते हैं हमारा ब्लॉग एक मंच बने जहां से सच सामने दिखे ! सच वो कैसा भी हो, किसी का भी हो कभी भी सामने आये....चुनाव में आम आदमी एक बार फिर मूर्ख ना बनाया जाए.....विचारों पर खुली बहस हो और आपकी ज़बरदस्त लेखनी की धार और ताक़त दुनिया भी देखे !दोस्तों इसलिए केव्स संचार पर कलम से देश को जगाने का एक छोटा सा प्रयास करना चाहते हैं, वस्तुतः प्रयास की सफलता उसके किये जाने में है ना कि उसकी प्रसिद्धि में इसलिए मेरा आप सबसे अनुरोध है कि इस श्रृंखला जिसका नाम भी आप ही हमें सुझायेंगे का हिस्सा बने और सदैव की भांति हमें अपने लेख और रचनाएँ भेजें ....
केव्स संचार पर यह अब तक की शायद सबसे बड़ी श्रृंखला होगी अतः इसका नाम भी आप ही निर्धारित करेंगे, हम चाहेंगे कि इस लोकतंत्र की शुरुआत आप ही से हो इसलिए इस श्रृंखला के लिए हमें नाम सुझाएँ cavssanchar@gmail.com पर या टिप्पणी के रूप में.....आप हमें इस मौके के लिए ले आउट, सामग्री, विषयों, मुद्दों पर एवं अन्य सुझाव भी इसी ई मेल पते पर भेज सकते हैं पर ध्यान रहे कि इसके लिए समय बहुत कम बचा है।
आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए जीवन अमृत है.....ईधन है
आपका
केव्स परिवार

Tuesday, March 24, 2009

सुलझी सौम्या की ह्त्या की गुत्थी ?

टीवी जर्नलिस्ट सौम्या की हत्या की गुत्थी दिल्ली पुलिस ने पांच महीने बाद सुलझाने का दावा किया है। बताया जा रहा है कि इस कत्ल के पीछे एक गाड़ियां चुराने वाले गैंग का हाथ है। गैंग का सरगना दिल्ली के खानपुर इलाके का निवासी रवि कपूर है। रवि के बारे में बताया जाता है कि वह शाह खर्च है। वह पैसे के लिए साथियों के साथ गाड़ियां चुराने से लेकर हत्या-लूट की घटनाएं करता था। इस गैंग के बारे में कुछ दिनों पूर्व काल सेंटर कर्मी जिगिषा की हत्या की जांच के दौरान पता चला।
दिल्ली पुलिस ने बताया कि दोनों की हत्या में इस्तेमाल सेन्ट्रो कार और हथियार बरामद कर लिया गया है। गिरफ्तार चारों आरोपियों ने जुर्म स्वीकार लिया है। इनके नाम हैं- रवि, बॉबी, अमित और अजय हैं। पुलिस के अनुसार रवि कपूर ने ही सौम्‍या को गोली मारी थी। इनके पास से खाकी वर्दी, लाल बत्ती, वायरलेस सेट, कुछ चैनलों के स्‍टीकर मिले हैं। पुलिस के मुताबिक हत्या का मकसद निजी रंजिश नहीं, बल्कि लूटपाट था। सितंबर में सौम्या की हत्या करने वाले ही जिगिशा के हत्यारे निकले। पुलिस ने कहा कि जिगिशा हत्याकांड की जांच करते वक्त उन्हें सौम्या की हत्या के सुराग हासिल हुए।
जिगिशा नोएडा के बीपीओ में ऑपरेशंस मैनेजर थी। जिगिशा का अपहरण उनके घर के सामने से नहीं, बल्कि वसंत विहार की सीपीडल्यूडी कॉलोनी के गेट के बाहर किया गया था। बीपीओ की कैब ने उन्हें इस गेट के बाहर उतारा था। इंतजार कर रही गाड़ी में तीन अपराधी थे। जैसे ही जिगिशा गेट की ओर बढ़ीं, उन्हें गाड़ी में खींच लिया गया। कैब ड्राइवर शाहिद ने पुलिस के सामने कबूल कर लिया कि उसने जिगिशा को उनके घर के सामने नहीं, बल्कि कॉलोनी गेट के बाहर ड्रॉप किया था। बदमाशों ने जिगिशा को अगवा करने के बाद पहले महिपालपुर ले गए। वहां उन्होंने जिगिशा से एचडीएफसी बैंक के डेबिट कार्ड का पासवर्ड लेकर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के एटीएम से रुपये निकाले। यहां सीसीटीवी में अपराधी की तस्वीर आ गई। इसके बाद साकेत में एटीएम से रुपये निकाले गए। वहां भी सीसीटीवी के जरिए अपराधियों की तस्वीर पुलिस को मिल गई। इसके बाद सूरजकुंड रोड पर जिगिशा का गला घोंटकर झाड़ियों में फेंक दिया गया। जिगिशा की लाश दो दिन बाद बरामद हुई।
दिल्ली पुलिस के अनुसार सौम्या और जिगिशा दोनों की हत्या के पीछे लूट का मकसद था। अंग्रेजी टीवी चैनल हेडलाइंस टुडे की पत्रकार सौम्या विश्वनाथन की पिछले साल 30 सितंबर को हत्या कर दी गई थी। सौम्या उस वक्त देर रात ऑफिस से घर लौट रही थीं। लेकिन वह घर न पहुंच सकीं और सुबह सड़क पर उनकी गाड़ी में शव पाया गया था। इस बीच, सौम्या के परिजनों ने पुलिस जांच के प्रति संतोष व्यक्त किया है। सौम्या के पिता एमके विश्वनाथन ने बताया कि वे जांच से संतुष्ट हैं। पुलिस ने अच्छा काम किया है। उनकी जांच सही दिशा में थी। विश्वनाथन ने कहा कि पिछले छह महीनों से पुलिस उन्हें जांच की प्रगति के संबंध में सूचित करती रही है और उन्हें इसमें पूरा विश्वास था।

हाय-हाय बोर्ड...बाय-बाय देश


क्रिकेट बेहद लोकप्रिय खेल होने के साथ ही एक बड़ा व्यवसाय भी है...अच्छी बात है कि विश्व की क्रिकेट पर कमांड रखने वाली संस्था आईसीसी में सबसे ज़्यादा दबदवा भी भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड का है.........यह सुखद बात है, लेकिन कहीं ज़्यादा पेनफुल है कि ये भारतीय संस्था तथाकथित भारतीय है...आईपीएल को चुनाव से ज़्यादा खास और अपरिहार्य बनाने से लेकर इसे बाहर ले जाने तक सारे मामले में इस संस्था के भारतीय होने पर शक होता है...... करोड़ों के व्यवसाय के लिए ये किसी भी हद तक गिर सकती है....यही मैचेज चुनाव जो लोकतंत्र के सबसे खास पल होते हैं, उसके बाद भी हो सकते थे...मगर क्या खिलाड़ियों को मतदान नहीं करना चाहिए आम आदमी को वोटिंग के लिए सचिन से लेकर चवन्नी छाप खिलाड़ी भी कहने लगेगा लेकिन जब खुद की बात आएगी तो आईपीएल के रोमांचक मैच ही दिखेंगे.....यह इस देश की विडंबना ही कहिए कि यहां के परिश्रमी लोगों में इतनी नकारियत आ गई कि वे हर छोटी बड़ी चीज के लिए सरकारों पर ही निर्भर हो गये हैं खुद पर उन्हे बिल्कुल यक़ीन नहीं रहा.......क्या ये सरकार का ही मामला था ?..देश की छवि बचाना हम आप का नहीं......बाहर मैच होने का मतलव भारत पाकस्तन दोनों ही का ना केवल खेल के नज़रिए से बल्कि हर नज़रिए से असुरक्षित होना सिद्ध करता है............क्या ये संदेश दुनिया में सरकार की गलती से जा रहा है ?....क्या आईपीएल के मैच सफलता पूर्वक होना ही सरकार की सिक्युरिटी सक्सेस है?....... ये छवि दुनिया के बीच ना जाए इसके लिए बीसीसीआई को भी सोचना चाहिए था, और खास कर मीडिया को भी कभी-कभी सच बोलने का साहस जुटाना चाहिए ना कि कुत्ते की तरह आईपीएल की हड्डी याने एड के लिए जीव लपलपानी चाहिए......अगर देश की छवि को धक्का लगा तो इसके लिए सबसा बड़ा दोषी ये बोर्ड होगा...दूसरे नंबर पर मीडिया जो इसके लिए उल्टे सरकार को दोषी ठहराने में जुटा है....तीसरे नंबर पर हम जो सच को भी नहीं समझ पा रहें हैं...चौथे नंबर पर दोषी है सरकार वो भी इस लिए नहीं कि मैच भारत से बाहर चले जाने दिए बल्कि इसके लिए कि बोर्ड की धमकी और दुष्साहस के बाद भी सरकार चुप है........अरे बैन लगा दो ऐंसे बोर्ड पर....ताकि समझ सके देश सबसे ऊपर है, ललित मोदी या बोर्ड नहीं....

Monday, March 23, 2009

या तो हम भूल गए हैं या याद रखना नहीं चाहते....

या तो हम भूल गए हैं या याद रखना नहीं चाहते.... एक ऐसा प्रतीक जिसे वामपंथी से लेकर दक्षिणपंथी तक सभी समान रूप से प्रयोग करते आए हैं। एक ऐसा नाम जिसके तरीके से बुजुर्ग भले ही सहमत ना हों पर सम्मान करते रहे और जवान तो खैर उसके दीवाने हैं ही ....बात कर रहा हूँ भगत सिंह की। भगत सिंह जो एक हीरो हैं, आज़ादी के पहले और आज भी लगातार कुचले जा रहे भारतीय जनमानस के ! दरअसल हम जब भी भगत को याद करते हैं तो बस उन्ही को याद करते हैं, शायद इसलिए कि वे अपने पूरे समूह के नीति और योजना निर्माता के तौर पर काम करते थे पर उनके साथ दो और वीरों को फांसी दी गई थी राजगुरु और सुखदेव को, दोनों ही वीर थे अदम्य साहस के धनी।
राजगुरु का पूरा नाम शिवराम हरि राजगुरु था और उनका जन्म पुणे के निकट खेडा नाम के ग्राम में हुआ। राजगुरु सांडर्स हत्याकांड में भगत के साथ शामिल थे और उन्हें बेहतरीन निशानेबाज़ माना जाता था। दूसरा वीर था सुखदेव जिनका जन्म पंजाब में लुधियाना में हुआ था और उन्होंने नौजवानों में क्रांतिकारी साहित्य का प्रसार करने में बड़ी भूमिका निभाई, सुखदेव भगत सिंह के ख़ास दोस्तों में से थे और गांधी जी को लिखे खुले पत्र के कारण बहुत चर्चा में आए।
भगत सिंह आज भी एक हीरो हैं और इसके पीछे के कारण समझना बहुत मुश्किल नहीं है। एक आम भारतीय नागरिक रोज़ देखता है कि मुल्क गाँधी के देखे गए स्वप्न के भारत से दिन पर दिन दूर और दूर जा रहा है, आम आदमी से गाँधी के सिद्धांतों का पालन करने की अपेक्षा की जाती है जिनके ख़िलाफ़ तो वह वैसे भी नहीं जा सकता है क्यूंकि वह उसकी सामर्थ्य में ही नहीं है....पहले विदेशियों और अब देशियों के हाथों लुटता पिटता आम आदमी भगत सिंह में व्यवस्था के प्रति विद्रोह और आक्रोश देखता है और याद करता है कि भगत सिंह ने कहा था कि गोरे साहब चले जायेंगे तो भूरे साहब राज करेंगे और हो भी यही रहा है।
दरअसल यह स्थिति सरकार या शासकों के भी समझने की चीज़ है कि भगत सिंह आज भी हीरो क्यों हैं जबकि पिछले ६० वर्षों में हमेशा प्रयास यह हुआ कि कांग्रेसी नेताओं को भगत सिंह पर वरीयता दी जाए और एक नायकत्व प्रदान किया जाए फिर भी वे आज नायक बने हुए हैं। आपने देश के कम ही शहरों में भगत, राजगुरु और सुखदेव की मूर्तियाँ देखी होंगी....उनके नाम पर कितने अस्पताल या स्कूल हैं....या उन पर कोई डाक टिकट ही जारी हुआ। विपरीत विचारधारा का सम्मान ना करने की परिपाटी देश में होने की बावजूद भगत सिंह, उनके साथी और उनके विचार आज भी प्रतिष्ठा पूर्ण स्थान लिए हुए हैं तो कारण कहीं ना कहीं आज़ादी मिलने में सफलता मिलने के बाद भी आम आदमी की स्थिति ना बदलना एक बड़ा कारण है।
सरकार या मीडिया भगत सिंह को याद नहीं करती है या करना नहीं चाहती है, उनका नायकत्व नहीं छीन सकती है। आज उनके शहादत दिवस पर भले ही उनको याद नहीं किया गया, भले ही आम आदमी नहीं जानता कि आज ही के दिन वे शहीद हुए थे, उनकी एक नायक की छवि इतने भर से ही धूमिल नहीं होती। पूछ के देखिये सड़क चलते लोगों से शहीद शब्द के साथ लगने वाला नाम और वे झट से भगत सिंह का नाम ले लेंगे। इसका कारण भारत के आम आदमियों के जीवन संघर्ष के मूल में छिपा है क्यूंकि जब तक सर्वहारा, सब कुछ जीत नहीं लेता उसके नायक भगत सिंह रहेंगे ना कि कोई और।

भगत सिंह को आज के समय याद करती अशोक कुमार पाण्डेय की एक कविता,

जिन खेतों में तुमने बोई थी बंदूकें
उनमे उगी हैं नीली पड़ चुकी लाशें

जिन कारखानों में उगता था
तुम्हारी उम्मीद का लाल सूरज
वहां दिन को रोशनी रात के अंधेरों से मिलती है

ज़िन्दगी से ऐसी थी तुम्हारी मोहब्बत
कि कांपी तक नही जबान
सू ऐ दार पर इंक़लाब जिंदाबाद कहते
अभी एक सदी भी नही गुज़री और
ज़िन्दगी हो गयी है इतनी बेमानी
कि पूरी एक पीढी जी रही है ज़हर के सहारे

तुमने देखना चाहा था जिन हाथों में सुर्ख परचम
कुछ करने की नपुंसक सी तुष्टि में
रोज़ भरे जा रहे हैं अख़बारों के पन्ने
तुम जिन्हें दे गए थे एक मुडे हुए पन्ने वाले किताब
सजाकर रख दी है उन्होंने
घर की सबसे खुफिया आलमारी मैं

तुम्हारी तस्वीर ज़रूर निकल आयी है
इस साल जुलूसों में रंग-बिरंगे झंडों के साथ
सब बैचेन हैं तुम्हारी सवाल करती आंखों पर
अपने अपने चश्मे सजाने को तुम्हारी घूरती आँखें
डरती हैं उन्हें और तुम्हारी बातें
गुज़रे ज़माने की लगती हैं

अवतार बनने की होड़ में
तुम्हारी तकरीरों में मनचाहे रंग
रंग-बिरंगे त्यौहारों के इस देश में
तुम्हारा जन्म भी एक उत्सव है

मै किस भीड़ में हो जाऊँ शामिल तु
म्हे कैसे याद करुँ भगत सिंह
जबकि जानता हूँ की तुम्हे याद करना
अपनी आत्मा को केंचुलों से निकल लाना है

कौन सा ख्वाब दूँ मै अपनी बेटी की आंखों में
कौन सी मिट्टी लाकर रख दूँ
उसके सिरहाने
जलियांवाला बाग़ फैलते-फैलते ...
हिन्दुस्तान बन गया है

Sunday, March 22, 2009

भगत सिंह वाल पेपर .....

साथियों कल यानी कि २३ मार्च को शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहादत की बरसी है.....इसी दिन इन तीनों महानायकों को फांसी दी गई थी और आज भी इस बलिदान की ना तो कोई उपमेयता है और ना ही इसे कोई विस्मृत कर पाया है तो आइये याद करें इन महानायकों को। इस अवसर पर हमेशा कि भाँती हम आपके लिए एक वालपेपर लाये हैं जिससे कम से कम आज के दिन ये तीनों आपकी डेस्कटॉप पर रहे......इन्केलाब जिंदाबाद ...

इस वाल पेपर को आप इस पर क्लिक कर के डाउनलोड कर सकते हैं....

अलविदा जेड !

बिल्कुल अभी अभी यह दुखद समाचार आया है कि ब्रिटिश सेलिब्रिटी और अदाकारा जेड गुडी नहीं रहीं। जेड को सर्वाइकल कैंसर था और अभी कुछ मिनट पहले ही वो हमारे बीच नहीं रहीं......शिल्पा शेट्टी पर नस्ल भेदी टिपण्णी को लेकर चर्चा में आई जेड के व्यक्तिगत जीवन में हसक्षेप करने का किसी को कोई हक नहीं पर इस छोटी सी उम्र में जितना कुछ जेड ने हासिल किया वह उपलब्धि ही कही जायेगी। जेड ने विवाह किया और उनके दो बच्चे भी हैं.....वो कलाकार हैं और मशहूर भी और सबसे बड़ी बात वो एक लाइलाज बीमारी से लड़ रही थी....
मुझे मालूम नहीं कि इस पर और बहुत शब्द कैसे लिखें जाए पर जिस तरह जेड ने मौत को गले लगाया उस साहस को हम सबका सलाम ......बस उनके लिए आनंद फ़िल्म से गुलज़ार की लिखी हुई एक नज़्म जो कुछ इसी तरह की परिस्थितियों में चित्रित थी .........
मौत तू एक कविता है,
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको
डूबती नब्ज़ों में जब दर्द को नींद आने लगे
ज़र्द सा चेहरा लिये जब चांद उफक तक पहुचे
दिन अभी पानी में हो, रात किनारे के करीब
ना अंधेरा ना उजाला हो, ना अभी रात ना दिन
जिस्म जब ख़त्म हो और रूह को जब साँस आऐ
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको
जेड तुम्हारे साहस और जिजीविषा को सलाम....तुम्हारी प्रेरणा को नमन .....तुम्हे श्रद्धांजलि ....

मेरा हाथ थामे रहना ....भले साँस मेरी जाए

जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा
मैं अपनी माँ का आखिरी ज़ेवर बना रहा

उमर घट गई डगर कट गई, जीवन की ढलने लगी सांझ।

कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो
बहुत बड़ा है सफ़र थोड़ी दूर साथ चलो

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें

अलविदा जेड

ज़िन्दगी लम्बी नहीं ....बड़ी होनी चाहिए !

Saturday, March 21, 2009

३३ साल और २ महीने लगभग .....

२८ जनवरी १९७६ से २१ मार्च २००९ तक ३३ साल और २ महीने लगभग हो गए हैं.....और निश्चित तौर पर ये इंतज़ार लंबा था, पर आज खल नहीं रहा है क्यूंकि लंबा ही सही ख़त्म हुआ और शानदार तरीके से ख़त्म हुआ। भारतीय टीम ने जीत के लगातार सिलसिले को जारी रखते हुए न्यूज़ीलैंड को १० विकेट से हरा दिया और ऑकलैंड १९७६ और हैमिल्टन २००९ के बीच का केवल एक फासला जो वक़्त का था ख़त्म कर दिया। दरअसल दोनों मैच को अगर तुलना कर के देखें तो काफ़ी मजेदार बातें निकलती हैं।
१९७६ ऑकलैंड में भारतीय टीम के कप्तान तो बिशन सिंह बेदी थे पर पहले मैच में कप्तानी की थी सुनील गावस्कर ने, यह मैच भारत ने ८ विकेट से जीता था और अगर ध्यान से देखें तो काफ़ी हद तक इस मैच की स्थितियां भी हैमिल्टन २००९ से मिलती जुलती थी।
इस टेस्ट में न्यूज़ीलैंड ने पहली पारी में २६६ रन बनाए थे तो हाल के मैच में उसने २७९ बनाए,
भारत ने उस मैच में अपनी पहली पारी में ४१४ रन बनाए थे जिसमे सुनील गावस्कर और सुरिंदर अमरनाथ के शतक शामिल थे तो इस मैच में भारत ने ५२० रन बनाए जिसमे सचिन तेंदुलकर के शानदार १६० रन और गौतम गंभीर ने ७२ रन बनाए।
दूसरी पारी में १९७६ के मैच में न्यूज़ीलैंड ने २१५ रन बनाए तो इस मैच में न्यूज़ीलैंड ने दूसरी पारी में भी २७९ ही रन बनाए ......
इस तरह १९७६ में भारत को ६८ रन का लक्ष्य मिला और आज सिर्फ़ ३९ रन का.....
उस मैच में ई ऐ एस प्रसन्ना ने दूसरी पारी में विकेट लेकर न्यूज़ीलैंड को ढहा दिया तो इस मैच में यही काम हरभजन सिंह ने किया विकेट लेकर और यह भी संयोग कि दोनों ही ऑफ़ स्पिनर हैं।
उस मैच में सातवें क्रम पर उतर कर मोहिंदर अमरनाथ ने ६७ रन बनाए थे तो इस मैच में नवें स्थान पर उतर कर ज़हीर खान ने ५१ रन बनाए।
बहुत कम लोग यह जानते हैं कि तीन बड़े भारतीय क्रिकेटरों ने ऑकलैंड टेस्ट १९७६ में अपना टेस्ट डेब्यू यानि कि अपना पदार्पण किया था और ये थे सुरिंदर अमरनाथ, सैयद किरमानी और दिलीप वेंगसरकर
खैर आंकड़े बहुत हुए अब समय है जश्न का तो भारतीय टीम के साथ ही जश्न मनाएं.....बधाई हो


Friday, March 20, 2009

मैं एंकर बनना चाहता हूँ ......क्यों नहीं ?

मीडिया के हमारे एक वरिष्ठ साथी हैं जितेन्द्र भट्ट (मुझे लगता है कि मीडिया में छः वर्ष का अनुभव वरिष्ठता लायक अनुभव है....बाकी मानक अपने अपने हैं), नैनीताल के रहने वाले भट्ट जी ने २००२-२००३ में आई आई एम् सी से पत्रकारिता की शिक्षा ली और उसके बाद से दिल्ली में कार्यरत हैं और वर्तमान में एक बड़े राष्ट्रीय समाचार चैनल में हैं.....उनका एक लेख जो उनके ब्लॉग http://www.apana-pahar.blogspot.com/ पर प्रकाशित हुआ था उसे आज अतिथि लेख के तौर पर केव्स संचार प्रकाशित कर के गौरवान्वित है।
(लेख आज की मीडिया के ट्रेंड्स की कलाई खोलता है)

क्या मैं एंकर नहीं बन सकता ...?

ये बहुत निजी मामला है। लोग कह सकते हैं, मैं फ्रस्ट्रेट हो गया हूं। पर फिर लगता है, कहे बिना भी तो मन नहीं मानेगा। लोग ये भी कह सकते हैं, मैं जिस थाली में खा रहा हूं, उसी में छेद करने की जुर्रत कर रहा हूं।पर सारी बातें एक तरफ... और सच्चाई एक तरफ। सच तो कहना ही चाहिए। बहुत पहले मीडिया के एक बड़ा चेहरा है, एंकर हैं, बड़ा नाम है उनका..... इन्हीं साहब की लिखी एक किताब पढ़ी थी। उन्होने लिखा था, ' मीडिया में हम सुबह से लेकर शाम तक के टाइम स्लॉट में खूबसूरत लड़कियों से एंकर करवाना पसंद करते हैं।' ..... फिर खुद ही उन्होने साफ किया, 'ये टीआरपी का पंगा है। दिन के वक्त लोग खूबसूरत चेहरों को देखना अधिक पसंद करते हैं।' ज़ाहिर है, इससे टीआरपी का चक्का तेज़ी से घूमता है।
सच कहता हूं.... मुझे उनके तर्क पर गुस्सा आया था। उन्होने अपनी इस किताब में टेलीविजन न्यूज़ के बारे में बताते हुए लिखा----- 'टीवी न्यूज़.... साहब ये एंकर और रिपोर्टर होते हैं। एकंर और रिपोर्टर मिलकर टीवी न्यूज़ का निर्माण करते हैं।' मन किया उनसे सवाल पूछूं.... श्रीमान जी ये डेस्क (प्रोड्यूसर) वाले क्या करते हैं। इनका टेलीविज़न न्यूज़ में कोई योगदान होता है क्या ?
खैर... मैं मामले से क्यों भटकूं ? सारा मामला तो एंकरिंग का है। सच बताऊं तो मैं भी एंकर बनना चाहता हूं। पर कोई तो हो, जो कहे... भई, तुम एंकरिंग क्यों नहीं करते ? कोई तो पारखी नज़र हो जो कहे.... चलो आज से तुम शुरू करो। छह साल हो गए मुझको... काम करते हुए। सारे लोग यही कहते हैं, कि मैं अच्छा काम करता हूं। पर कोई ये नहीं कहता, कि चलो एंकरिंग करो।
पर इन पारखी लोगों की नज़रे खूबसूरत चेहरों को बहुत जल्दी पहचान लेती हैं। जो लोग मीडिया को करीब से जानते हैं, वो सहमत होंगे कि मीडिया में पदों पर बैठे लोगों को खूबसूरत चेहरे पहचानने में ज़रा भी दिक्कत नहीं होती। ये लोग जिसे चाहें उसे एंकर बना दें। एंकर बनने और बनाने के पीछे क्या चलता है। इसकी मुझे कोई जानकारी नहीं है। पर वक्त बेवक्त मैंने कई कहानियां सुनी है। सारी सच ही होंगी ऐसा मैं नहीं कह सकता।
मैं जानता हूं, ऐसे हसीन चेहरों को, जिन्हें ये मालूम नहीं कि मुलायम सिंह यादव कौन हैं ? और गठबंधन किसे कहते हैं ? पर साहब .... पारखी लोगों को इससे क्या फर्क पड़ने वाला। उनके लिए जैसे एंकर होने की पहली प्राथमिकता एक खूबसूरत चेहरा और दूसरा हंसकर बात करने की कला है।
अब फिर से उन बड़े एकंर... बड़े नाम से एक सवाल।.... जो ये कहते हैं कि टीवी न्यूज़ एंकर और रिपोर्टर है।..... तो साहब आपको बता दूं कि मुलायम सिंह कौन हैं ? ये सवाल पूछने वाले ज्ञानवान एंकरों को हम डेस्क वाले नादान ही बताते है.... कौन है, मुलायम सिंह ?
आपके साथ हुआ हो या नहीं, मेरे साथ तो हुआ है। ऐसे भी ज्ञानवान एंकरों को जानता हूं, जो लाठी चार्ज वाली घटना पर रिपोर्टर से सवाल पूछ रही थी...... ' तो .... बताइए..... कैसा माहौल है ?.... अच्छा ये बताइए अब अगला लाठी चार्ज कब होगा ? ' ........................अब अगला लाठी चार्ज कब होगा !!!!!!!!!!!!! पर ये भी खूबसूरत थी, ज़ाहिर है बॉस ने कहा होगा, चलो सीख जाएगी.... काम करते-करते। सही कहा था बॉस ने। ये एकंर आज देश के एक बड़े चैनल पर चमक रही है।
पर मैं ऐसे लोगों को भी कुढते हुए देखता हूं। जो टीवी के पर्दे पर चमक रहे थे। लेकिन आजकल उन पर धूल जम गयी है। भई... क्यों जमी है, उन पर धूल.... ये सवाल कोई पारखी नहीं पूछता ? अब ऐसे लोगों के दर्द के सामने मेरा दर्द तो कुछ भी नहीं है ना।..... मैं तो बनना चाहता हूं, पर वो बेचारे बने हुए थे...... लेकिन उनकी बेकद्री कर दी गयी।
पर फिर भी कहता हूं। ................. बहुत मन करता है..... मैं भी एंकर बनूं

जितेन्द्र भट्ट से संपर्क करने के लिए आप उन्हें अपनी प्रतिक्रिया jitendrakrbhatt@gmail.com पर भी भेज सकते हैं, आपकी प्रतिक्रियाएं उन तक पहुँचा दी जायेंगी .....वैसे कमेन्ट बक्सा तो है ही

Wednesday, March 18, 2009

जाने-अनजाने

बड़ी खूबसूरत है ज़िन्दगी
रंगों और अहसासों से
सराबोर है ये ज़िन्दगी
आँखों से न जाने कितने
सपने दिखाती है
कभी खुशियों की
सौगात थमाती
तो कभी
ग़मों का सैलाब उभारती
नज़रो से ख़्वाब दिखाती
तो कभी शीशे की तरह
चटका भी देती है
कभी अपनेपन का पनाह देती
तो कभी बेगानों की
तरह अकेला छोड़ जाती है
पूरी कायनात में इसी का राज़ है
न जाने कौन-कौन से खेल खेलती है
इसके थपेडो की किस्म भी बड़ी अजीब है
कोई माँ के लिए तडपता है
तो कोई दिल प्रेमी/प्रेमिका
को पुकारता है
तो कभी ख़्वाब ग़मगीं
कर जाते हैं
कभी बहन के ब्याह की चिंता होती है
तो कभी माँ के आसूं याद आ जाते है
तो कभी पिता के छाँव को
याद करके जी भर आता है
ऐसी ही है ज़िन्दगी
जैसे सागर की लहर और किनारा
जैसे चाँद और उसकी चाँदनी
जैसे फूल और खुशबू
वैसे ही इन्सान और ज़िन्दगी

नेहा गुप्ता

Tuesday, March 17, 2009

टूटा पहिया

पढ़ें धर्मवीर भारती की एक कविता और सोचें कि दरअसल हमारा व्यर्थ होना भी कहीं एक काम की बात तो नहीं....
टूटा पहिया

मैं
रथ का टूटा हुआ पहिया हूँ
लेकिन मुझे फेंको मत !

क्या जाने कब
इस दुरूह चक्रव्यूह में
अक्षौहिणी सेनाओं को चुनौती देता हुआ
कोई दुस्साहसी अभिमन्यु आकर घिर जाय !

अपने पक्ष को असत्य जानते हुए भी
बड़े-बड़े महारथी
अकेली निहत्थी आवाज़ को
अपने ब्रह्मास्त्रों से कुचल देना चाहें

तब मैं
रथ का टूटा हुआ पहिया
उसके हाथों में
ब्रह्मास्त्रों से लोहा ले सकता हूँ !

मैं रथ का टूटा पहिया हूँ
लेकिन मुझे फेंको मत
इतिहासों की सामूहिक गति
सहसा झूठी पड़ जाने पर
क्या जाने
सच्चाई टूटे हुए पहियों का आश्रय ले !

(समय बस आ ही रहा है कि हम सब टूटे पहिये काम आने ही वाले हैं)
धर्मवीर भारती

Monday, March 16, 2009

देख के मज़ा ज़रूर आएगा ....बाबा की राइफल और बापू की लाठी !

कल अभिनेता से अभी अभी नेता बने मुन्ना भाई उर्फ़ संजू बाबा उर्फ़ संजय दत्त ने लखनऊ में बड़ा रंग जमाया। बाबूजी कल होली मिलन समारोह के अतिथि बने और गजब गजब बातें कहीं.....बोले कि समाजवादी पार्टी (नाम के समाजवादी होने पर ना जाएँ, नाम आनंद होने से खुश होने का कोई ताल्लुक नहीं) में इंसानियत की वजह से आया हूँ क्यूंकि पिता सुनील दत्त ने हमेशा इंसानियत का पाठ पढाया (और कांग्रेस से चुनाव लड़े, आपको वो इंसानियत सपा में दिखी, बहना को कांग्रेस में)....अच्छा एक बात और समझ में आई कि केवल सपा ही इंसानों की पार्टी है बाकी तो चिडियाघर !
इसी बीच भीड़ में किसी ने पूछा, "क्यूँ इंसानियत के लिए क्या ऐ के ४७ खरीदनी पड़ती है?" तो एक पक्के वाले सपाई ने पहले घूर कर देखा पर फिर चुनाव का मौका देख कर प्यार से गर्दन पकड़ के समझाया "देखो वो ऐ के ४७ खरीदी नहीं गई थी, वो तो उपहार में मिली थी। सरकार को तो बस जितना टैक्स बनता था लेकर बात ख़त्म करनी थी पर बड़े आदमी को सब बदनाम करना चाहते हैं।" इस पर भी नए वोटर की संतुष्टि जब नहीं हुई तो थोड़ा सा और विनम्रता से गर्दन दबा कर बोला," अबे महर्षि वाल्मीकि भी तो पहले डाकू थे.....देखो कैसी रामायण लिख डाली...मुन्नाभाई जीत कर आए तो रामायण क्या महाभारत....!"
खैर इनकी बातें छोड़ चलें हम सत्ता के मैदानों में, तो मंच से धाराप्रवाह, ओजपूर्ण, भावुक कर देने वाला भाषण जारी था ....."लाल जी टंडन अटल जी की खडाऊ लेकर चुनाव में आए हैं तो हम भी गांधी जी की लाठी लेकर खड़े हैं !" किसी ठेठ लखनउआ ने चुटकी ले ली कि४७ क्या हुई ?" तो बाबा कोप्चे में उसे लेजाकर बोले "वो चुनाव के बाद दिखेगी बेटा!" अच्छा इसके बाद बोले कि लखनऊ में बसपा का शोर्ट सर्किट करने आए हैं तो किसी ने बोल दिया कि बहन जी का सर्किट तो वैसे ही शोर्ट रहता है कहीं इन्होने अर्थिंग दे दी तो कंकाल ना दिख जाए.....खैर संजू बाबा धोखे में बोल तो गए पर ये भूल गए कि उनको तो चुनाव बाद यू पी आना नहीं हैं .....पर मुलायम की अमर कथा का क्या होगा।
अच्छा इसके बाद बोलना शुरू किया तो पूरे फिल्मी रंग में आ गए और बोले कि "बहन जी ने पूरे प्रदेश में अपनी ख़ुद की मूर्तियाँ लगवा दी हैं, वे बुतपरस्त हैं....अरे उखाड़ फेंको इन बुतों को, इन मूर्तियों की कोई जरूरत नहीं है, बहन जी को रखना है तो अपने दिल में रखो.....(अरे रेरे रे रे साला डाइलोग ग़लत जगह बैठ गया......पर कोई बात नही अमर सिंह कौन सा बोलते पर सोचते हैं !) पर मुद्दे की बात ये है कि क्या लखनऊ या देश की जनता एक बार ये साबित करना चाहती है कि अब वो किसी सितारे के नाम पर बेवकूफ नहीं बनेगी....क्या केवल अपने काले कारनामों पर परदा डालने के लिए राजनीति अब और नहीं होने देगी ?
ये सवाल बड़ा है पर मैं ख़ुद इस के जवाब के इंतज़ार में हूँ....मैं ख़ुद लखनऊआ हूँ और देखना चाहता हूँ कि लखनऊ जो मेरी जान से बढ़कर है क्या अपने ज़मीर और दिमाग को साबित कर पायेगा, मेरी लड़ाई किसी व्यक्ति के ख़िलाफ़ नहीं पर जनता के पैसे और विश्वास से अपने पापों को धोने के ख़िलाफ़ है.....खैर मूड को हल्का फुल्का करते हैं, और पह ऐ खिदमत है मेरी एक और कलाकारी जो खाली वक़्त में किया करता हूँ उम्मीद है आपको पसंद आएगी......इसे क्लिक से खोल के डाउनलोड भी किया जा सकता है....



Sunday, March 15, 2009

किचन से करोड़ों तक .....५० वर्ष !

हाल ही में महिला दिवस और होली एक साथ बीते हैं, महिला दिवस पर आम महिला की मुक्ति के गीत गाये गए ....मैंने भी गाये और फिर जब होली पर घर गया तो माँ के साथ बैठकर पापड भी बनाए पर दरअसल पापड और महिला मुक्ति के बीच का अंतर्संबंध आज एक न्यूज़ एजेन्सी की फीड देखकर ज्ञात हुआ। वस्तुतः हुआ यह कि आज श्री महिला गृह उद्योग या यूँ कहें कि लिज्जत पापड की स्वर्ण जयंती है यानी कि इस लघु उद्योग (जो अब वृहत रूप ले चुका है) को शुरू हुए ५० साल पूरे हो गए। अब उससे से भी बड़ा विषय है कि पापड और महिला मुक्ति का क्या सम्बन्ध है तो बताता चलूँ कि इस उद्योग की स्थापना मुंबई की ७ झुग्गी में रहने वाली महिलाओं ने आत्मनिर्भर होने की कोशिश में की थी, जो आज हर वर्ष करीब ५०० करोड़ रुपये का व्यवसाय करती है।
आज से पचास साल पहले मुंबई के मध्य वर्ग की ७ अनपढ़ स्त्रियों ने एक इमारत की छत पर ८० रुपये के क़र्ज़ से पापड़ बेलना शुरू किया और आज तमाम महिलाएं जो ज़िन्दगी की जद्दोजहद के पापड बेल कर निराश थी इन्ही पापडो के सहारे जीवन यापन कर रही हैं। जैसा कि जस्वन्तीबेन पोपट जो इस समूह की अकेली जीवित सदस्य हैं कहती हैं, " घर के पुरूष काम पर चले जाते थे और बच्चे स्कूल। घर के काम पूरे कर लेने के बाद हम दिन भर खाली रहते थे , धनी औरतों की तरह शोपिंग या किटी पार्टी नहीं कर सकते थे। तब हमें पापड बनाने का विचार आया।"
इन सात औरतों ने मिलकर अपनी इमारत की छत पर उधार लिए गए अस्सी रुपये से पहली बार यह सपना पैदा हुआ और आज यह इस विरत रूप में है कि ये पापड ही नहीं मसाले और डिटर्जेंट जैसे तमाम उत्पाद बनाता है। श्री महिला गृह उद्योग का व्यापार ७० देशों में है और ४४,०० महिलाएं इससे रोज़गार पा रही हैं। यह बधाई का अवसर है कि इन महिलाओं को, इस उद्यम को और इसके लिए तय किए गए रास्ते और संघर्ष को सलाम किया जाए पर मुद्दा दरअसल यहीं ख़त्म नहीं हो जाता।
क्या जिस तरह देश में हम महिला दिवस जैसे प्रतीक रूपों को मनाते और महिमा मंडन करते हैं वो सार्थक है जब तक हम केवल शहरों में ही कैद रहे, क्या हम वाकई उन महिलाओं को इस महिला मुक्ति के आडम्बर में शामिल करते हैं जो सच में हाशिये पर पड़ी हैं ? सवाल यह है कि कब तक महिला उत्थान की बातें केवल छद्म सोश्लाइट्स के मुंह से झरती रहेंगी, वे लोग जो झुग्गियों के पास से गुज़रते पर नाक पर रूमाल चढा लेते हैं, जिनके घरों में महिला नौकरानियों पर ज़ुल्म ही नहीं ढाते बल्कि छोटी छोटी बच्चियों से बाल श्रम कराते हैं, एक दिन एक जलसा कर के देश की महिलाओं की मुक्ति की घोषणा कर देते हैं। क्या यही है तरीका महिला मुक्ति का ......आज का दिन कई सवाल छोड़ जाता है और शायद एक रास्ता भी सुझाता है कि महिलाओं की आज़ादी के वैकल्पिक रास्ते खोजने होंगे ....लिज्जत और श्री महिला गृह उद्योग एक रास्ता हो सकता है....प्रेरणा भी !

Saturday, March 14, 2009

कभी मन्दिर, कभी मस्जिद, कभी मैखाने

"पिछले चुनाव में हमारी बिक्री ६० फीसदी बढ़ गई थी, हर चुनाव में ऐसा ही होता फ़िर चाहे वे ग्राम पंचायत के हो या लोकसभा के" ये आंकड़े गिनाता है उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले का एक ग्रामीण शराब निर्माता। दरअसल ये साफ़ करता है देश में लोकतंत्र के प्रतीक माने जाने वाले चुनावों की हकीकत को जो आज तक वोट पाने के नए नए हथकंडे अपनाती है फिर चाहे मतदाता को नशे की आदत ही क्यूँ ना डालनी पड़े। शहर के नवाधुनिक इस तथ्य से भले ही अनावगत हों पर गांव का वोटर यह जानता है कि प्रत्याशी देश में दूध की नदियाँ भले ही बहाने में विफल रहे हों पर चुनाव आते ही शराब की नदियाँ ज़रूर बहा देंगे और फिर आम वोटर नालियों में पड़ा मिलेगा(जो उसकी तकदीर में लिखा है)।
ये कहानी है उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ, जिला सीतापुर और आस पास के अंचल की, जिसे सामने लाये हैं एजेंसी ऐ आई एन एस के पत्रकार रजत राय। आज ऐ आई एन एस की फीड खंगालते समय ये ख़बर हाथ लगी तो इसे आपके साथ बाँट रहा हूँ क्यूंकि जानता हूँ कि ना तो अखबार और ना ही टीवी चैनलों के पास इस फालतू सी ख़बर को प्रकाशित/प्रर्दशित करने का वक़्त होगा। मुद्दा असल में ये है कि चुनाव की घोषणा के साथ ही लखनऊ, सीतापुर और उससे जुड़े ग्रामीण अंचलों में कच्ची और देशी शराब के निर्माताओं की अचानक चांदी हो गई है। अब मुझे नहीं लगता कि आप यह नहीं समझ सकते कि चुनाव और शराब की बिक्री में क्या सम्बन्ध है। अब इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि यह चुनाव आयोग के दिशा निर्देशों का उलंघन है या नहीं, राजनैतिक दलों के लिए तो यह सब ज़रूरी है।
भाई अब चुनाव है तो वोटर जनता को रिझाने के लिए उसकी सेवा तो करनी पड़ेगी, तो उसे खुश करने का सबसे सस्ता और त्वरित उपाय है सस्ती देशी शराब, जैसा कि कांग्रेस से जुड़े एक पूर्व ग्राम प्रधान कहते हैं,"जैसे ही चुनाव घोषित होते हैं हम रात को गांव की ग्रामीण बैठकों में शराब बंटवानी शुरु कर देते हैं। पोलिंग के दो तीन दिन पहले से हम गाँव में घर घर जाते हैं और देशी शराब बटवाना शुरू करते हैं और इससे कम से कम १५ से २० फीसदी वोट ज्यादा मिलते हैं।"
इससे भी ज्यादा मज़ेदार बात देखें कि एक सभासद क्या कहता है," शहरी इलाकों में हम छोटे छोटे समूहों में लोगों की महफिलें जमाते हैं और वहाँ कई बार विदेशी शराब परोसते हैं"। ख़बर आगे कहती है कि सीतापुर जिले के दुन्दपुर गाँव में करीब ५० अवैध शराब की भट्टियां हैं और लखनऊ के आस पास के करीब ५० गाँव की अर्थव्यवस्था इसी व्यवसाय पर टिकी हुई है। लखनऊ की सीमाओं से लगे मलीहाबाद, गोसाईगंज, चिनहट और बख्शी का तालाब इलाकों में भी इस तरह के अवैध कुटीर उद्योग जड़ें जमाये हैं। सबसे ज्यादा रोचक है इस अवैध शराब को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने का तरीका, जिसमें इसे फुटबॉल और वौलीबौल के ब्लैडरों में भर कर पहुंचाया जाता है।
आश्चर्य की बात है कि भयमुक्त समाज की सरंचना में लगी पुलिस इससे अनजान है या फिर राजनीतिक संरक्षण के चलते मूक दर्शक बनी हुई है। दरअसल इससे भी बड़ी कमी हमारी अशिक्षा और जागरूकता का अभाव है जिस कारण हम अभी भी शराब जैसे प्रलोभन में फंस कर अपना वोट बदल डालते हैं। खैर जो कुछ भी इतना तय है कि पुलिस सरकार के कहे से चलती है और शायद भयमुक्त सरकार चाहती है कि जनता खूब नशा करे जिससे वो हर तरह के भय भूल जाए......लोकतंत्र की हत्या का भय भी !
रात को खूब मय पी, सुबह को तौबा की
रिंद के रिंद रहे, हाथ से जन्नत ना गई
और नेताओं को अगर चुनाव आयोग का भय हो जाए तो फिर चुनाव जीतना भी उनके लिए मुश्किल हो जायेगा पर इतना है नशा सर चढ़ के बोलता है फिर चाहे वो शराब का हो या फिर सत्ता का.......
कभी मन्दिर, कभी मस्जिद, कभी मैखाने जाते हैं
सियासी लोग तो बस आग को भड़काने जाते हैं

Friday, March 13, 2009

इक आँगन की मिट्टी है

केव्स मन्चार पर हम हमेशा आस पास और सामाजिक विडंबनाओं की बात करते हैं, सरोकार जो जुड़े हैं हमसे और बातें जो हम पर असर डालती हैं। आज जिस तरह के झगडे हमारे बीच और जिस तरह के मतभेद हैं उन पर एक सरदार अंजुम की ग़ज़ल पढ़ी जो मुझे तो बेहद पसंद आई, उम्मीद है आपको भी पसंद आएगी।

इक आँगन की मिट्टी है

तेरा मेरा झगड़ा क्या जब इक आँगन की मिट्टी है
अपने बदन को देख ले छूकर मेरे बदन की मिट्टी है

भूखी प्यासी भटक रही है दिल में कहीं उम्मीद् लिये
हम और तुम जिस में खाते थे उस बर्तन की मिट्टी है

ग़ैरों ने कुछ् ख़्वाब दिखाकर नींद चुरा ली आँखों से
लोरी दे दे हार गई जो घर आँगन की मिट्टी है

सोच समझकर तुम ने जिस के सभी घरोन्दे तोड़ दिये
अपने साथ जो खेल रहा था उस बचपन की मिट्टी है

चल नफ़रत को छोड़ के 'अंजुम' दिल के रिश्ते जोड़ के 'अंजुम'
इस मिट्टी का क़र्ज़ उतारें अपने वतन की मिट्टी है

सरदार अंजुम

Thursday, March 12, 2009

ब्लॉग की इज्ज़त का सवाल है.....भी आर आल्सो टेक्नीकल !

हिमांशु ने हाल ही की एक बीती हुई पोस्ट में होली पर पंडित छन्नूलाल मिश्र की एक विशेष प्रकार की होली को याद किया था जिसमे एक विशेष प्रकार की होली का वर्णन है ....ऐसी होली जो अद्भुत है जिसमे गोपियों और कृष्ण की होली नहीं है बल्कि दिगंबर शिव अपने गणों के साथ श्मशान में होली खेल रहे हैं इस होली की पंक्तिया यानी की लिरिक्स तो हिमांशु ने पढ़वा दी थी पर इसका ट्रैक सुनवाने में असमर्थता ज़ाहिर की थी। कल मैंने जब शाम को देखा तो पाया की दो शीर्ष ब्लौगर युनुस भाई और शैलेश जी इसे ब्लॉग पर डाल चुके हैं, अमां अपना तो खून जल गया....यार अपने ब्लॉग की तो फुस हो गई की भइया तमाम लोग वही गीत सुनवा रहे हैं और हम कह रहे हैं कि असमर्थ हैं।
भइया तो अपन तो रेल गाड़ी में दिल्ली तक आते आते हाई डिप्रेशन में कि लो भइया हुई गई फजीहत और अब लोग कहेंगे कि साले बड़े टेक गुरु बनते हो निकल गई सारी हेकडी तो तुरत फुरत में ढूंढ डाला गीत और कहा कि एक दिन बादै सही सुन्वाइहें ज़रूर ससुर ई गाना तो लो मियाँ बीडा संभालो लो और देखो स्वाद

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होली की मुबारकबाद.....
और हाँ अब कोई कहेओ ना कि ससुर नॉन टेक्नीकल हैं......अमा ब्लॉग की इज्ज़त का सवाल है !
(शैलेश जी और युनुस जी का आभार .....कल इस गीत को सुन लेने की इच्छा उन्होंने पूरी की ....प्रकृति उनकी हर इच्छा पूरी करे)

होली बहुत बहुत मुबारक हो मियाँ

होली तो होली और और जोरदार तरीके से हो ली ..... मैंतो होली मनाने चला गया था अपने घर सो कल कुछ लिख नहीं पाया पर मेरी अनुपस्थिति में मेरे साथी केव्स संचार पर संचार को बखूबी संभालते रहे....आज ही लौटा हूँ तो कुछ नया ज़रूर पेश करूँगा पर पहले हमारे पाठक और मित्र अनुपम अग्रवाल जी ने केव्स संचार और आप सबके लिए होली की शुभकामनाएं भेजी हैं वे स्वीकार करें.....

होली से होली तक हो
होली का त्योहार

जीवन-सरिता मेँ तरँग हो
और बहे रसधार,
रंगोँ के त्योहार मेँ हो
सभी रंगोँ की बौछार,
वाणी से अभिव्यक्ति ना सम्भव
ऐसे हैँ उदगार ,
अंजलि भर-भर खुशियाँ
लाये आपको होली का त्योहार,
यही दुआ है भगवन से
अनुपम की हर बार ॥

अनुपम/अंजलि अग्रवाल

अगली पोस्ट में अपनी लखनऊ की होली की रिपोर्ट .....इंतज़ार करें !

Wednesday, March 11, 2009

खेले मसाने में होली दिगंबर...

बनारस के घाट पर एक बार छन्नूलाल मिश्र की आवाज़ में शमशान में शिव की होली का वर्णन सुना था। रिकॉर्डिंग तो अपलोड नहीं कर सकता लेकिन उस रचना के बोल अभी तक स्मृति में बने हुए हैं .....तो मिश्र जी आवाज़ की न सही शब्दों की ठंडाई तो आपको पिला ही सकता हूँ ....

होली है !

खेलैं मसाने में होरी दिगंबर खेले मसाने में होरी ।

भूत पिसाच बटोरी, दिगंबर खेले मसाने में होरी ।।

लखि सुंदर फागुनी छटा के, मन से रंग-गुलाल हटा के

चिता-भस्‍म भर झोरी, दिगंबर खेले मसाने में होरी ।।

गोपन-गोपी श्‍याम न राधा, ना कोई रोक ना कौनऊ बाधा

ना साजन ना गोरी, दिगंबर खेले मसाने में होरी ।।

नाचत गावत डमरूधारी, छोड़ै सर्प-गरल पिचकारी

पीतैं प्रेत-धकोरी दिगंबर खेले मसाने में होरी ।।

भूतनाथ की मंगल-होरी, देखि सिहाएं बिरिज कै गोरी

धन-धन नाथ अघोरी दिगंबर खेलैं मसाने में होरी ।।

होली पर नजीर अकबराबादी की एक नज़्म

होली भारत में सिर्फ़ एक त्यौहार भर नही है , ये होली के ज़रिये फासले मिटाए जाते हैं , दीवारें गिराई जाती हैं । पूरे साल भर तो हम कुछ और hi बने रहते हैं केवल होली के धमाल में ही हम हम हो पाते हैं .... साम्प्रदायिक लोगों को भी होली मिलन का संदेश देती है .....लखनऊ में वाजिद अली शाह तो गुज़रे ज़माने में होली खेलते थे लेकिन चौक वाला जुलुस अभी भी निकलता है......और नजीर की नज़्म भी अभी बाकी है .... केव्स संचार की तरफ़ से होली और याद रहे कल ईदे मिलादुन्नबी (मुहम्मद साहब के जन्म का दिन ) भी थी.....मुबारकबाद !!!

जब खेली होली नंद ललन हँस हँस नंदगाँव बसैयन में

।नर नारी को आनन्द हुए ख़ुशवक्ती छोरी छैयन में।।

कुछ भीड़ हुई उन गलियों में कुछ लोग ठठ्ठ अटैयन में ।

खुशहाली झमकी चार तरफ कुछ घर-घर कुछ चौप्ययन में।।

डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में।

गुलशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में।

जब ठहरी लपधप होरी की और चलने लगी पिचकारी भी।

कुछ सुर्खी रंग गुलालों की, कुछ केसर की जरकारी भी।।

होरी खेलें हँस हँस मनमोहन और उनसे राधा प्यारी भी।

यह भीगी सर से पाँव तलक और भीगे किशन मुरारी भी।।

डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में।

गुलशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में।।

Tuesday, March 10, 2009

मनाओ सिर्फ तिलक होली...!!

रंगों का त्यौहार होली का इंतज़ार हर किसी को होता है....लेकिन आज के दौर की व्यस्तताएं और दौड़ती- भागती ज़िंदगी ने कहीं ना कहीं इसका उत्साह ज़रूर कम कर दिया है...आज ये महज़ दो दिन की सरकारी छुट्टी बन गई है...ना होली पे भांग का नशा होता है..ना फाग के गीत...और आज के बदले हालातों ने इंसान को मजबूर भी इस कदर कर दिया है कि वो पहले जैसी मस्ती होली पर नहीं ला सकता....होली के रंगों में यदि पानी ना मिलाया जाए...तो रंगों का कुछ असर नहीं रह जाता...लेकिन आज के औद्योगिक युग में हम रंगों में पानी पहले की तरह नहीं घोल सकते...क्योंकि हमारे औद्योगिक विकास में भौगोलिक पतन समाया हुआ है...आज हमारे कुओं..बावड़ीयों, नदी-तालाबों में उतना पानी नहीं...कि हम पहले जैसें पानी को बहा सकें...इंसान ने पहाड़ो को चीरकर..धरती के कलेजे को फाड़कर और जंगलों को आग लगाकर..प्रकृति का इस कदर बलात्कार किया है....कि आज हमें उस धरती के आंचल से पानी को तरसना पड़ रहा है...बृह्मंड के सबसे खूबसूरत ग्रह का श्रंगार ही जिस जल से था, उस श्रंगार को उजाड़ने में हमने कोई कसर नहीं छोड़ी....हालात आज हमारे सामने हैं...होली की ख़ुशियां हम मनाएं, खूब मेवा-मिष्ठान खाएँ और ..खिलाएं लेकिन रंगों में अनावश्यक पानी को ना बहाएं यही निवेदन है....इसलिए सिर्फ तिलक होली मनाएं.........

होली की ढेरों शुभकामनाएँ.......!!!!!!!!!!!!!

Monday, March 9, 2009

होली पर भेंट में वालपेपर....उड़त गुलाल लाल भये ब्लॉगर !

आपको याद होगा की हिन्दी दिवस के अवसर पर हम आपके डेस्कटॉप को सजाने के लिए शुभकामना के तौर पर वाल पेपर लेकर आए थे, तो हमने सोचा की होली के मौके पर आपको कवितायें और आलेख तो हम पढ़वा ही रहे हैं पर क्यूँ ना शुभकामना संदेशों के साथ कोई तोहफा भी दे डाला जाए तो एक छोटी सी भेंट जो इस मौके पर आपके डेस्कटॉप पर सजकर आपको हमारे स्नेह के गुलाल से लाल करेगी और प्रेम के रंग में भिगो देगी........ये वाल पेपर...
इस तस्वीर पर क्लिक कर के आप वाल पेपर को सेव कर सकते हैं,


इस वाल पेपर के डाउनलोड के लिए इस लिंक पर जाए और इमेज सेव कर लें....

http://4.bp.blogspot.com/_p4fwR-VKt70/SbURmhAmxHI/AAAAAAAABdg/T-tHSa4Y0vA/s1600-h/holi+wallpaper+copy.jpg

फागुन के तराने

फागुन, प्रकृति का यौवन, हिन्दू कैलेंडर का आखिरी महिना है. जो अपने आप में भावो और बड़े ढेर सारे रंगों को समेटे हुए है. जिसका अहसास भर ही लोगो को झुमने पर मजबूर कर देता है. दिलो से दिलो का मिलन, वो नज़र-ए-इनायत, अठखेलियाँ, आँखों में ख़ुशी का नूर, लबो का गुनगुनाना, पैरो की थिरकन, अपनेपन का अहसास, यही है फागुन, जो गुणों से साराबोर है. फागुन-एक दिचास्प पौराणिक कथा की याद दिलाता है. सत्य की असत्य पर विजय. जब युग हिरन्यकश्यप के तांडव से बेचैन हो उठा, उसने अपने पुत्र प्रह्लाद को, अपनी बहन होलिका की गोद में जलने के लिए डाल दिया, तब प्रह्लाद तो आत्मबल के कारन बच गया, लेकिन्होलिका अपने अहम् के कारन जल मरी. तभी भगवान नरसिंह प्रगट होते है अरे अपने नख से हिरन्यकश्यप का वध कर देते है. तभी से होली मनाने लगे. इसको मानने के पीछे तार्किक कारन बड़ा मजेदार है- ठण्ड अपने संध्या की ओर होती है और गर्मी अपने उदय की ओर. ऐसे बदलाव के मौसम में बड़े लोग बीमार पड़ जाते है. किसी को वायरल तो किसी को जुकाम. इसलिए तो धुप में खड़े हो, सफेद कपडे पहन गुलाल से धमाल मचाते है. क्यूकी गुलाल- नीम, कुमकुम, हल्दी और बिल्व को मिलकर बने जाती है. इनके छुवन से रोग तो भागते ही है साथ में ख़ुशी भी मिलाती है. पुरे भारत में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है. मथुरा के बरसाने की होली सबको लुभाती है. अब पंजाब के आनंदपुर साहिब और बंगाल के शान्तिनिकेतन की डोलजात्रा का भी जवाब नहीं है. भोजपुरी ने इसे फगवा नाम दिया तो आँध्रप्रदेश में इसे कामदहन भी कहा जाता है. ये त्यौहार उंच-नीच का भेद मिटने और भाईचारा का सन्देश सुनाता है. इसमे सफेद कपडे पहनने का अपना ही महत्व है, जब गुलाल छिटककर लोगो के कपडो पर आ सजती है, तो रंगों की रौनक देखते बनती है. मन मदमस्त हो उठता है. सारे गिले-शिकवे भूलकर जी खुश हो उठने को कहता है. इस दिन जीभ और पेट भी गाने गाते है, क्यूंकि भांग, गुजिया, गुलाबजामुन, दहीबडे तमाम पकवान बनाये जाते है. लोग खुन्नस को भूलकर दिल खोलकर मिलते है. तभी तो कहते है बुरा न मानो होली है. होली के ठीक पॉँच दिन बाद जब चाँद पूरे शबाब पर होता है तब रंगपंचमी मनाकर इसको विदाई देते है. हमेशा की तरह अगले फागुन का बेसब्री से इंतज़ार करते है.

नेहा गुप्ता

Sunday, March 8, 2009

अम्मा .......(महिला दिवस श्रृंखला)

महिला दिवस पर अगली कड़ी में हैं मेरे घनिष्ठ मित्र मयंक प्रताप सिंह के ब्लॉग से साभार ली गई कविता.....यह कविता अचानक एक दिन मैंने पढ़ी और शायद अब तक ऐसी कविता नहीं पढ़ी.....नारी के माँ के सबसे महान रूप को समर्पित कविता कहीं ना कहीं मर्म को ज़रूर छुएगी,
वो बूढ़ी सी अम्मा

वो बूढ़ी सी अम्मा
गोरी से पीली
पीली से काली
हो गई हैं अम्मा
इक दिन मैंने देखा
सचमुच बूढ़ी हो गई है अम्मा।

कुछ बादल बेटे ने लूटे
कुछ हरियाली बेटी ने
एक नदी थी
कहां खो गई
रेती हो गई हैं अम्मा

देख लिया है सोना चांदी
जब से उसके बक्से में
तब से बेटों की नजरों
अच्छी हो गई हैं अम्मा।

कल तक अम्मा अम्मा कहते
फिरते थे जिसके पीछे
आज उन्हीं बच्चों के आगे
बच्ची हो गई है अम्मा।

घर के हर इक फर्द की आँखों में
दौलत का चश्मा हैं
सबको दिखता वक्त कीमती
सस्ती हो गई अम्मा।

बोझ समझते थे सब
भारी लगती थी लेकिन जब से
अपने सर का साया समझा
हल्की हो गई अम्मा।
(ये कविता आप मयंक के ब्लॉग आजफिर पर भी पढ़ सकते हैं। मयंक आई बी एन सेवेन में कार्यरत हैं।)

वेश्या ..... (महिला दिवस विशेष)

महिला दिवस की अगली प्रस्तुति के रूप में सीतामढी(बिहार) की कवियत्री ऋतु पल्लवी की एक रचना वेश्या....रचना बेहतरीन तरीके से पुरूष प्रधान समाज की सामन्तवादी मनोदशा की पोल खोलती है।
वेश्या

मैं पवित्रता की कसौटी पर पवित्रतम हूँ
क्योंकि मैं तुम्हारे समाज को
अपवित्र होने से बचाती हूँ।

सारे बनैले-खूंखार भावों को भरती हूँ
कोमलतम भावनाओं को पुख्ता करती हूँ।
मानव के भीतर की उस गाँठ को खोलती हूँ
जो इस सामाजिक तंत्र को उलझा देता
जो घर को, घर नहीं
द्रौपदी के चीरहरण का सभालय बना देता।

मैं अपने अस्तित्व को तुम्हारे कल्याण के लिए खोती हूँ
स्वयं टूटकर भी, समाज को टूटने से बचाती हूँ
और तुम मेरे लिए नित्य नयी
दीवार खड़ी करते हो।
'बियर बार' और ' क्लब' जैसे शब्दों के प्रश्न
संसद मैं बरी करते हो।

अगर सचमुच तुम्हे मेरे काम पर शर्म आती है
तो रोको उस दीवार पार करते व्यक्ति को
जो तुम्हारा ही अभिन्न साथी है।

मैं तो यहाँ स्वाभिमान के साथ
तलवार की नोंक पर रहकर भी,
तन बेचकर, मन की पवित्रता को बचा लेती हूँ

पर क्या कहोगे अपने उस मित्र को
जो माँ-बहन, पत्नी, पड़ोसियों से नज़रें बचाकर
सारे तंत्र की मर्यादा को ताक पर रखकर
रोज़ यहाँ मन बेचने चला आता है।
ऋतु पल्लवी

स्त्रियाँ....

महिला दिवस की इस विशेष प्रस्तुति में हम आपको आज दिन भर महिला विमर्श पर आधारित ही सामग्री पढ़वायेंगे, इसी कड़ी में एक कविता जो मुझे अच्छी लगी। मुजफ्फरपुर, बिहार में जन्मी कवियित्री अनामिका की काव्य रचना स्त्रियाँ। राष्ट्रभाषा परिषद् पुरस्कार, भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार, गिरिजाकुमार माथुर पुरस्कार, ऋतुराज सम्मान और साहित्यकार सम्मान से सम्मानित अनामिका हिन्दी साहित्य का एक चर्चित नाम हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में एम् ऐ और फिर पी एच डी कर के अनामिका वर्तमान में दिल्ली में ही सत्यवती कॉलेज में अध्यापन कर रही हैं।

स्त्रियाँ

पढ़ा गया हमको
जैसे पढ़ा जाता है काग़ज
बच्चों की फटी कॉपियों का
‘चनाजोरगरम’ के लिफ़ाफ़े के बनने से पहले!
देखा गया हमको
जैसे कि कुफ्त हो उनींदे
देखी जाती है कलाई घड़ी
अलस्सुबह अलार्म बजने के बाद !

सुना गया हमको
यों ही उड़ते मन से
जैसे सुने जाते हैं फ़िल्मी गाने
सस्ते कैसेटों पर
ठसाठस्स ठुंसी हुई बस में !

भोगा गया हमको
बहुत दूर के रिश्तेदारों के दुख की तरह
एक दिन हमने कहा–हम भी इंसान हैं
हमें क़ायदे से पढ़ो एक-एक अक्षर
जैसे पढ़ा होगाबी ए के बाद
नौकरी का पहला विज्ञापन।

देखो तो ऐसे
जैसे कि ठिठुरते हुए देखी जाती है
बहुत दूर जलती हुई आग।

सुनो, हमें अनहद की तरह
और समझो जैसे समझी जाती है
नई-नई सीखी हुई भाषा।

इतना सुनना था कि अधर में लटकती हुई
एक अदृश्य टहनी से
टिड्डियाँ उड़ीं और रंगीन अफ़वाहें
चींखती हुई चीं-चीं
‘दुश्चरित्र महिलाएं, दुश्चरित्र महिलाएं–
किन्हीं सरपरस्तों के दम पर फूली फैलीं
अगरधत्त जंगल लताएं!

खाती-पीती, सुख से ऊबी
और बेकार बेचैन, अवारा महिलाओं का ही
शग़ल हैं ये कहानियाँ और कविताएँ।
फिर, ये उन्होंने थोड़े ही लिखीं हैं।’
(कनखियाँ इशारे, फिर कनखी)
बाक़ी कहानी बस कनखी है।

हे परमपिताओं,परमपुरुषों–
बख्शो, बख्शो, अब हमें बख्शो!

अनामिका

Saturday, March 7, 2009

स्त्री मतलब क्या?

क्या कहू की स्त्री क्या है? चीज है, वस्तु है या इन्सान। जिसमे जान बसती है, जिसके पास एक दिमाग भी है, लेकिन उसको बंद कर दिया गया। या यो कहे कि उस पर हुक्म सिर्फ मर्दों का चलता है, तो ग़लत न होगा स्थिति इतनी बदतर है कि क्या कहे? कूपमंडूक बन चुकी है, ख़ुद के आस्तित्व के बारे में नही जानती। कौन हैं वो? क्यूँ है? इस आधुनिकता ने भी खूब भुनाया है स्त्रियों को। लड़कियों से ही ये देखने और सुनाने को मिल जाएगा कि वो बदल गई है किसी से कम नही है, लड़को के बराबरी पर आ गई है। इसमे कितनी सच्चाई है, देखकर बड़ा दुःख होता है। क्या आज भी लड़किया अपने हक को जानती है या लड़को ने उन्हें बराबरी का दर्जा दे दिया है। कितना बड़ा ये भुलावा है। इस भुलावे में ही स्त्रियों को छला जा रहा है। छल उसकी कोमल देह और मन का है। आज भी पुरूष जाति स्त्री को सिर्फ कामापूर्ति की वस्तु समझता है। मजे लेने की चीज है। ऐसा लगता है की विचार, मानसिकता,और गंदे होते जा रहे है। ये ऐवे ही नही कहा जा रहा है। आज ये नवजवान युवक-युवतियों की हरकतों में देखा जा सकता है । बात बड़े छोटे स्तर से शुरू किया जाए- हाथ मिलाने से। जब लड़के, लड़कियों से हाथ मिलते है, तो क्या उसमे सम्मान या बराबरी का भावः होता है? उस वक्त उनकी क्या इच्छा होती है, कहने की जरुरत नही है। फिर धीरे-धीरे जान-पहचान। इस जान-पहचान को लोग दोस्ती का नाम देने लगते है। इस शब्द को भी गन्दा कर दिया है। और ये जान-पहचान भी इच्छापूर्ति का मध्यम कब बन जाती है पता ही नही चलता। हलाकि लड़किया भी "सब चलता है " के के भवर में फसी है। palhi bar तो उन्हें पता ही नही चलता कि क्या हो रहा है? इस आधुनिक होने के चक्कर में धरा-पकड़ी सब jayaj है। इस तरह के रिश्ते का भी भूमंडलीकरण हो चुका है। ये फंद उन्हें पंगु बना देता है। उन्हें अब निर्बल और असहाय भी कह सकते है। माँ-पापा के सपने तो तेल लेने चले जाते है । इससे स्त्रियों को उनकी औकात बता दी जाती है। इस स्थिति के लिए तो शब्द ही नही मिलते। कैसे कहे कि ये भी इन्सान है। अगर इस फंद से कोई बची, जिसमे जल्दी सफलता पाने की भूख है, वो भी शाट-कट के चक्कर में ख़ुद को गवा बैठती है। इस होडाहोडी और बराबरी के मायाजाल में फंसकर लड़किया अपने पाव पर कुल्हाडी मर रही है। पुरूष इस भोलेपन या कहे पागलपन का फायदा उठता रहता है। घरेलू स्त्रियों की बात ही छोडिये, उन्हें बंधुवा मजदूरिनी से ज़्यादा नही समझा जाता। इस पर राष्ट्रीय महिला आयोग ने अपनी रिपोर्ट भी पेश की है। जिसमे कहा गया है की हर एक घंटे में महिलाओ को तडपा -तडपाकर मारा जा रहा है। और हर २९ वे मिनट पर एक बलात्कार का नगा नाच खेला जा रहा है। बलात्कार मतलब ही स्त्री को बलपूर्वक नोचना है। कितना घिनौना है? इस तांडव के वक्त पुरूष वहशी दरिंदा बन जाता है और स्त्री बस छटपटाती, चीखती, चिलाती रहती है। कुछ नही कर सकती। बस ख़ुद को लुटता हुआ देख सकती है। इस कुछ न कर पाने के पीछे सबसे बड़ा फैक्टर ये है की लड़की को जन्म से ही सीखा दिया जाता है की वो"लड़की है" मतलब हर काम नही कर सकती, आजाद प्राणी नही है, शुरू से ही समाज की सच्चाई से अनजान रहती है। इसके बरक्स लड़के उनको हर सुविधा, आज़ादी है, समाज उन्ही का है, जो मन आए वो करें। खुदा ने भी जब इन्सान के दो स्वरुप बनाये होगे तो ये न सोचा होगा कि एक के सर दुनिया का ताज होगा तो दूसरी उसका ही गुलाम बनेगी।

नेहा गुप्ता

भ्रूण परीक्षण

साथियों कल अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है, इस अवसर पर आज आके लिए प्रस्तुत है छत्तीसगढ़ के प्रसिद्द वरिष्ठ कवि नासिर अहमद सिकंदर की एक कविता भ्रूण परीक्षण .....
भ्रूण परीक्षण
मेरे सामने की बर्थ पर था
उनका परिवार
माँ
और दो बच्चियाँ

बड़ी बच्ची का चेहरा
हुबहू माँ की तरह गोल
चांद सरीखा

छोटी का
बड़ी बहन से मिलता-जुलता
लेकिन दिखने में उससे भी सुन्दर

बड़ी प्यारी हैं बच्चियाँ
मैंने
उनकी माँ से कहा

इस वाक्य पर बिना ध्यान दिए
वह खोई रही मुग्ध
अपने भ्रूण पर
जो निश्चित
लड़का था।
नासिर अहमद सिकंदर

Friday, March 6, 2009

क्या करे जनता बेचारी....


लोकसभा चुनाव पर आपके विज्ञापन एवं जनसंपर्क विभाग के साथी अधिनाथ ने कुछ विचार लिख भेजे हैं, पढ़ें
१५ वीं लोकसभा के गठन की रणभेरी बज चुकी है ।सारे राष्ट्रीय ,क्षेत्रीय,स्थानीय राजनीतिक दल अपने-अपने बुद्धि ,कौशल ,विचार धारा की परीक्षा देनेहेतु जनता के बीच आने वाले हैं। कोई दल पंथ निरपेक्षता के नाम पर वोट मांगेगा तो किसी को अचानक राष्ट्र की चिंता सताने लगेगी।कोई अल्पसंख्यको की उपेक्षा पर प्रकाश डालेगा तो कुछ को कुछ खास जातियों की समस्या ही चुनावी मुद्दा लगेगी।इन सब के बीच जनता को भी कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लेने चाहिए जिससे जनसत्ता कायम करने की ओर बढ़ा जा सके।
जनता को पूर्ण बुद्धि का प्रयोग करते हुए राष्ट्रहित को व्यक्तिगत व दलगत हितों से ऊपर रखते हुए चुनाव करना होगा।संचार तंत्र के विकास ने एक एक छोटी छोटी जानकारी सुदूर देहात के लोगो तक पहुंचाई है,ऐसे में एक भी मुद्दा लोगो के समझ से बाहर नही होनी चाहिए.चुनाव में निर्णय लेते समय किसी भी प्रत्याशी का पूर्ण रिकॉर्ड एक बार जरूर देखना चाहिए.चुनाव आयोग ने पांच चरणों में चुनाव की घोषणा करने के साथ साथ यह भी निर्देश जारी किया है की अब प्रत्याशी को एक नही दो दो हलफनामे देने होंगे.एक संपत्ति से सम्बंधित दूसरा अपराध से सम्बंधित ,मैं समझता हूँ ये दो हलफनामे अगर जनता तक खुल के जायें तो निर्णय प्रक्रिया और आसानी हो जायेगी।
हाल ही में एक निजी टी.वी .चैनल के सर्वे में यह बताया गया है की कोई भी दल पूर्ण बहुमत लेकर नही आरहा,इतना ही नही दोनों प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस और भाजपा के सीटों को भी अगर मिला दी जाए तो दो तिहाई बहुमत नही पूरा होगा। ऐसी स्थिति में यदि सरकार बनती है तो एकबार पुनः देश पाच वर्षों तक ब्लैक मेल होगा ,क्योंकि समर्थन लेने-देने के मामले में बहुत सारी शर्तें छिपी रहती है.पिछली सरकार में या अबतक की जितनी भी सरकारें समर्थन ले-दे कर बनी है उसमे देश कई महत्वपूर्ण मुद्दे पर ठगा गया।
इस बारके चुनाव में दो तरह की तैयारी हो रही है,मुख्य दोनों दल हाथ पांव मारकर दो तिहाई के आंकड़े को देख रहे है ताकि सरकार बनने में तीसरा मोर्चा बाधा खड़ी न करे जबकि अन्य राष्ट्रीय व् क्षेत्रिय दल अधिक से अधिक सीटें लाने की फिराक में हैं , ताकि उनके दल को सरकार में प्रमुखता दी जाये। सरकार चाहे जिस दल या मोर्चे की हो।ऐसे में देश को मध्यावधि चुनाव से बचाने के लिए व् छोटे छोटे दलों के ब्लैक मेलिंग से बचाने के लिए एक ठोस निर्णय अपनी सोंच से लेने की आवश्यकता। जहाँ तक रही विचार धारा की बात तो अब किसी भी पार्टी में विचार धारा के स्तर पर फर्क करना मूर्खता है। भाजपा जिन मुद्दा पर सत्ता में कायम रहती है विपक्ष में रहने पर वही मुद्दा उसके विरोध का शिकार बनता है, ठीक वही हाल कांग्रेस का है सत्ता में रहते हुए जो मुद्दे उसके लिए अहम् हैं विपक्ष में रहने पर वह उन मुद्दों का विरोध करती है। हाल की कई घटना इसके उदहारण हैं सेज हो चाहे पब मामला हो चाहे सेतु समुद्रम हो चाहे अमेरिका के प्रति झुकाव का मामला हो।तो फिर क्यों न किसी एक दल या मोर्चा जो चुनाव पूर्व गठबंधन हो उसीको दो तिहाई बहुमत देकर भेजा जाए। इससे न सिर्फ़ लोकतंत्र सुदृढ़ होगा बल्कि देश प्रगति के पथ पर भी बढेगा.

Wednesday, March 4, 2009

हमला बेसवॉल मैच में होना था।।।।।।

श्रीलंका की टीम पर आतंकी हमला उर्फ पाकिस्तानी हमला सचमुच मन को आहत करने वाला है इससे एक बात तय होती है कि आतंकी कैसे भी दुनिया की आर्थिक व्यवस्था की कमर तोड़ना चाहता है...खेल के नये फार्मेट आईपीएल ने इसे एक दुधारू गाय साबित किया है वहीं क्रिकेट की लेकप्रियता भी एक कारण है इन हमलों का....इस घटना ने भले ही लोगों को रुलाया शोक व्यक्त करने का मौक़ा दिया है मगर मुझे तो सिर्फ अफसोस है कि क्रिकेट खेल काश अमरिका में खेला जाता तो कितना अच्छा होता और ये टीम श्रीलंका की ना होकर अमरिका की होती तब तो भारत की बल्ले बल्ले हो जाती है यहां के नकारा गीदड़ नेताओं की तो जैसे निकल पड़ती मैं गीदड़ इसलिए कह रहा हूँ क्योकि गीदड़ों की तरह ये मुम्बई हमले का बदला अमरिका ले ऐंसी आस लिए बैठे हैं....जैसे शेर शिक़ार करता है गीदड़ उसकी जूठन के लिए मुं ताकते रहते हैं ठीक ऐसे ही हमारे कर्णधार कर रहे हैं...मुझे हमले की खुशी भी है कि पाक का सच दुनिया की बंद आंखों में ज़बरन घुस रहा है। आप कब तक करोगे आंखे बंद कितनी मींचोगे आंखें सच ने ठान लिया आपकी बेइमान आंखों की किरकिरी बन कर रहेगा...

Tuesday, March 3, 2009

क्रिकेट पर हमला .....तस्वीरों में.....

कुछ तसवीरें जो बताएंगी कि किस तरह आज एक हमला हुआ है .....ना केवल क्रिकेटरों पर बल्कि क्रिकेट और खेल की भावना पर भी जो किसी भी आतंक से हार मानने को इनकार करती है......एक टीम जो यह सोच कर एक दूसरे मुल्क में क्रिकेट खेलने गई थी कि दोनों देश आतंकवाद की विभीषिका से जूझ रहे हैं, चलो हम ही एक उदाहरण पेश करें कि नहीं आतंक के आगे सद्भाव हमेशा सर उठाये खडा रहेगा.....वो शिकार हुई आतंक की वहशत की ..............आज एक मैच में भारत भले ही जीत गया हो पर एक दूसरे मैच में क्रिकेट हार गया......इंसानियत हार गई.....देखें तस्वीरों में यह हमला ...सिलसिलेवार

आतंक का रोड मैप
हमलावर दहशतगर्द
क्रिकेट पर बिखरे खून के छींटे
एक जिंदा बम को निष्क्रिय करता सुरक्षाकर्मी
बरामद हुए हथियार ...
एक शहीद पुलिस कर्मी
अन्य शहीद
चारों ओर बिखरा खून
हमले के गवाह
पहला हमला हुआ सुरक्षा कर्मियों पर
इसी बस को बनाया गया था निशाना
सेना के हेलीकॉप्टर से वापिस हुई श्रीलंकाई टीम
आखिरी में क्या कहा जाए.....................
आँखों में जल रहा है क्यूँ बुझता नहीं धुआँ
उठता तो है घटा सा बरसता नहीं धुआँ

चूल्हा नहीं जलाये या बस्ती ही जल गई
कुछ रोज़ हो गये हैं अब उठता नहीं धुआँ

गूगल बाबा का वरदान - हिन्दी टंकण औजार

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