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Sunday, January 30, 2011

पहले तो हम अपनी पीठ थपथपाएं

यह बताने से पहले कि क्या कर रहे है, पहले तो हम अपनी पीठ थपथपालें। अब कुछ लिखता हूं।
प्रज्ञा दी, प्रखरता दी और दिया सम्मान, वाकई भैया रायपुर है महान। मैं इस शहर का आभारी हूं, जिसने मुझे वो सबकुछ दिया है, जो यह सबको देता है। मैं इसका और ज्यादा आभारी हो जाऊंगा अगर यह मुझे वो और दे देगा जो मुझे इससे अब चाहिए। जी हां अखबार की नौकरीनुमा रचनात्मकता में कहीं हम अपनी क्रियाशीलता तो बढ़ी पाते हैं, लेकिन रचनाशीलता को सिकुड़ा और पारंपरिक खांचों में फंसे जज्बात। इसी बात को ध्यान में रखकर हम कुछ लोगों ने गांधी पर एक अलग ढंग की फिल्म बनाने का फैसला किया है। यह काम कुछ-कुछ उसी तरह से है जैसे एक उद्योगपति के घर पर काम करने वाला माली उसकी हर अच्छी बुरी बात जानता है, लेकिन उस बात का इस्तेमाल नहीं। लेकिन अगर एकाध माली ऐसा कुछ जानने लग जाए तो उसे अतिरिक्त प्रज्ञा का धनी कहा जा सकता है। हम लोग भी कुछ ऐसा ही कर रहे हैं। गांधी की प्रतिमा के नीचे खड़े होकर हम सबने इस फिल्म पर आज से औपचारिक रूप से काम करने का संकल्प लिया है। इसमें स्क्रिप्ट स्तर का काम रोहित और विनीत जी 5 फरवरी तक फाइनल कर देंगे। 15 फरवरी तक रोहित वरुण और नीरज कॉलेजों से इसके लिए पात्रों को खोजकर लाएंगे। 25 फरवरी तक वरुण इसकी पूरी शूटिंग रूप रेखा तैयार करके 26 फरवरी से शूटिंग स्टार्ट करेंगे। यह जिम्मा वरुण के पास ही रहेगा, कि कौन कैमरा चलाएगा, कौन एडिटिंग करेगा। साजसज्जा, फिल्म सेट्स, लोकेशन आदि की प्लानिंग। वहीं इस पुनीत और रचना के शुभ कार्य में हमारे सीनियर प्रसून जी का भी विशेष सहयोग मिल रहा है। विश्वविद्यालय में रावण के रूप में फैमस रहे हमारे साथी रंजीत की फिल्मी और नाटकीय प्रतिभा के इस्तेमाल की उनसे एसएमएस और मेल से बात हुई है। मित्रो यह कार्य ब्रम्हांड को अपने पैरों के नीचे रखने का बराबर है। यह फिल्म लोगों के बीच 1 अप्रैल तक होगी। इसकी संभावित रिलीज भी यही तारीख या रामनवमीं रहेगी। स्क्रिप्टिंग, शूटिंग, एक्टिंग, कोरियोग्राफी, फिल्मांकन, लोकेशन, इवेंट मैनेंिजग, एडिटिंग, पब्लिसिटी से लेकर सबकुछ काम हमारी यह टीम देखेगी। इस फिल्म के निर्माण से लेकर बहुत कुछ प्लानिंग है। दोस्तों संभव भी हो कि हम अपने मकसद में सफल न हो सकें। संभव भी है, कि हम इस प्रॉजेक्ट पर चंद कदमों पर ही ढेर हो जाएं। लेकिन आखिरी और आखिरी शब्द यही है, फिल्म तो बनकर रहेगी, और यह फिल्म जरूर बनेगी। गांधी जी से हमारा वायदा है दोस्त कि यह फिल्म जरूर बनेगी।
अंत में: फिल्म तो बनेगी भैया चाहे फिर कैसे भी बने। रचना यज्ञ में आहुति देने आप सभी पधारें। जय हे::::::::वरुण के सखीजी, ९००९९८६१७९
इनका आभार: श्री प्रसून जी, श्री विनीत जी, श्री रोहित जी, श्री नीरज जी, श्री श्याम जी, श्री भगत जी, श्री वो सब जो इस प्रॉजेक्ट से अबतक जुड़े हैं, और जो जुडऩे वाले हैं, या जो जुड़ेंगे ही जुड़ेंगे। और वो भी जो इसे हल्के से लेकर अंडर एस्टिमेट कर रहे हैं। इसके साथ ही वर्दी कमेंट्स भी हमें आपके चाहिए, जो आपको देने ही देने हैं।

Saturday, January 22, 2011

वह झूठ बोल रही है


आदमी एक साथ न जाने कितनी जिंदगियां जी रहा होता है। पिछले दिनों मेरे साथ एक जिंदगी में कुछ ऐसा ही हुआ, जब दुनिया के तमाम संसाधनों को ही अपनी सफलता समझने वाली इस जिंदगी को एक छोटे से प्यादेनुमा व्यक्ति ने चुनौती दे डाली। दरअसल मामला है उस दौर का जब मैं बहुत संघर्ष के दौर से गुजर रहा था, वक्त ऐसा था कि करियर कुछ शेप लेता इससे पहले ही हादसे हो जाते। इससे निराश हो कर वह जिंदगी का इनचार्ज सीधा बड़ी जिंदगी के पास गया। बड़ी जिंदगी अक्सर यही कहती है बेटा कार्य पूरे मनोयोग से नहीं किया गया एक बार फिर कोशिश करो। छोटी जिंदगी के इनचार्ज महोदय वापस अपने काम में जुट जाते। उन्हें बड़ी जिंदगी की कही बात कुछ ऐसी लगती जैसे जो कुछ हो रहा है, वह परम सत्य और न्याय के तराजू और छन्नियों से होकर निकल रहा है। जिंदगी कुछ कह ही नहीं पाती। एक दिन उसे ऐहसास हुआ कि बेटा इस तरह से काम चलेगा नहीं, जरा सोचो तुम्हारो पास कुछ ऐसा तो है नहीं कि बड़ी जिंदगी हमेशा सही ही बोलेगी। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि वह झूठ बोल रही है। इस उहापोह में जिंदगियां कई बार आपस में ही उलझ जाती। लडक़र, घबराकर बड़ी ंिजदगी एक अपात बैठक इन जिंदगियों के साथ करती। लेकिन वह भी नाकामयाब।
आज कुछ मेरे साथ ऐसा ही हो रहा है, कि कई जिंदगियां आपस में उलझ सी गई हैं, और इतना लड़ रही हैं, न पूछो।।।।।।।।
क्या हुआ वो जो नहीं हुए हमारे इश्कपरस्त
मगर मियां मेहताब तो चार दिन ही चमकता है,
कह रहे हैं वो बार-बार इस कदर,
अगर जीना है तो जी इसी तरह,
सखाजी

गूगल बाबा का वरदान - हिन्दी टंकण औजार

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