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Wednesday, November 24, 2010

आत्महत्या, मौत की गुजारिश और मृत्यु महोत्सव



सांवरिया के घोर हादसे से उबरकर आखिर संजय लीला भंसाली अपने पुराने फार्म में लौट ही आये...मर्सी किलिंग की पृष्ठभूमि पर बेहतरीन सिनेमा का निर्माण कर जता दिया की जीनियस लड़खड़ा तो सकते हैं पर उन्हें चित नहीं किया जा सकता। मौत की गुजारिश करते एक अपंग सितारे जादुगर की कथा अंततः सिखा जाती है कि हालात चाहे जैसे भी हों but life is good yar....

फिल्म देखते समय समझ नहीं आता कि मजबूरियां जिन्दगी पे हस रही हैं या जिन्दगी मौत को चिड़ा रही है...नायक को मोहब्बत है जिन्दगी से, लेकिन गुजारिश है मौत की...और इसी कारण ये मौत, महज मौत न होकर महोत्सव बन जाती है। मौत की ये गुजारिश आत्महत्या नहीं है क्योंकि नायक किसी से छुपकर जैसे-तैसे मरने का प्रयास नहीं करता, वो बाकायदा कोर्ट से मरने की इजाजत चाहता है। उसने अपनी इसी अपंग अवस्था में रहते हुए जज्बे के साथ जिन्दगी के १२ साल गुजारे हैं..और खूबसूरती से एक रेडियो चेनल का संचालन करते हुए कई अपाहिज, हताश लोगों के लिए प्रेरणा का काम किया है। उसका तो ये मानना है कि जिन्दगी चाहे कितनी भी क्यों न हो...वो १०० ग्राम हो या १०० पौंड, वो खूबसूरत ही होती है........

लेकिन अब उसमे और ताकत नहीं है कि इस घुटन को सह सके...और नाही उसके फिर से वापस पुरानी स्थिति में लौट सकने की उम्मीद है...इन हालातों के बीच अब जिन्दगी नहीं, मौत उसके लिए वरदान बन गयी है...और इसी वरदान को वो समाज और कानून से पाना चाहता है...कथानक का विकास कुछ इस तरह से किया गया है कि सिनेमाहाल में बैठा हर दर्शक इथन (हृतिक रोशन) के मौत की गुजारिश करने लगता है...

नायक की लड़ाई है समाज और हमारी संस्कृति द्वारा थोपी गयी उस अवधारणा से..जो हमें हर हाल में जिन्दा रहने की नसीहत देती है...फिल्म के एक दृश्य में नायक से कहा जाता है कि 'तुम्हे god के द्वारा दी गयी इस जिन्दगी से खेलने का कोई हक नहीं है'...जहाँ नायक का प्रत्युत्तर में कहना कि 'god को हमारी जिन्दगी से खेलने का हक किसने दिया'। समाज की सहानुभूतियाँ नायक के दर्द को न तो कम कर सकती हैं न ही महसूस कर सकती..उसकी जिन्दगी और उसका दर्द उसका अपना है...समाज उसे मजबूरन जीने के लिए विवश नहीं कर सकती...नायक शरीर से अपाहिज होने के चलते मौत की गुजारिश कर रहा है, वो हौसलों से अपाहिज नहीं है...दुनिया के अधिकतर आत्महत्या करने वालों के हौसले अपंग होते हैं...ये मौत की गुजारिश आत्महत्या नहीं है।

भारतीय दर्शन में भी कई जगह इस तरह की मौत के प्रावधान हैं..जैनधर्म में तो विधिवत सल्लेखना के नाम से इसका प्रकरण उद्धृत किया गया है...तत्संबंधी ग्रंथो और साहित्य से इस विषय में जानना चाहिए। फिल्म के कथानक में इन सबके बीच एक प्रेम-कथा भी तैर रही होती है...जो प्रेम भंसाली निर्मित पहले की फिल्मो वाली शैली का ही है...जिस प्रेम में कुछ हासिल करने की शर्त नहीं होती, उसमे तो बस लुटाया जाता है। जिस प्रेम का सुखद अहसास पाने के कारण नहीं देने के कारण है। ताउम्र नायक की सेवा एक नर्स बिना किसी बोझ के करने को तत्पर है..इसके लिए वो अपने पति से तलाक लेती है...ये सेवा बिना प्रेम के नहीं हो सकती। अंततः १२ साल के लम्बे साथ के बाद मरने से एक रात पहले इथन, सोफिया(ऐश्वर्या राय) को शादी के लिए प्रपोज करता है...ये प्रेम कुछ उसी तर्ज का है जो 'हम दिल दे चुके सनम' में एक पति अपनी पत्नी को उसके पुराने प्रेमी को सौपकर प्रदर्शित करना चाहता है...या 'देवदास' में चंद्रमुखी द्वारा प्रदर्शित है जो देवदास को पारो के बारे में जानते हुए भी चाहती है..या फिर इसे हम 'ब्लेक' के उस अध्यापक के प्रयास में देख सकते हैं जो सारा जीवन अपनी अंधी-बहरी और गूंगी शिष्या को जीवन जीने लायक बनाने के लिए करता है। इन सभी में प्रेम है पर हासिल करने की मोह्ताजगी नहीं..और ये आज के सम्भोग केन्द्रित इश्क से परे है...इस प्रेम में तो बस सच्चे दिल से दुआएं निकलती है, और एक silent caring होती है...जो आज की नवसंस्कृति में बढ़ रहे युवा के समझ में नहीं आ सकता, क्योंकि आज प्रेम आदर्श है और सेक्स नवयथार्थ...इस प्रेम में करुणा है, दया है, संवेदना है और इसी के चलते इथन अपने उस प्रतिस्पर्धी जादुगर के पुत्र को अपना कौशल सिखा जाता है जिसने उसे अपंग बनाया था... नफरत के लिए इसमें कोई जगह नहीं...

बहरहाल, एक बेहद गुणवत्तापरक फिल्म है...जो कदाचित कुछ मनचलों को रास न आये, क्योंकि यहाँ हुडदंग नहीं है और न यहाँ शीला की जवानी है..नाही यहाँ मुन्नी बदनाम हुई है। हृतिक और ऐश्वर्या के बेजोड़ अभिनय ने फिल्म को जीवंत बना दिया है..रवि के.चंद्रन की सिनेमेटोग्राफी कमाल की है...सेट डिज़ाइनिंग भंसाली की अन्य फिल्मों की तरह प्रतिष्ठानुरूप है... संगीत अलग से सुनने पर कोई प्रभाव नहीं छोड़ता, लेकिन फिल्म के साथ जुड़कर सुनने पर अद्भुत अहसास कराता है...कुछ दृश्य तो बेमिसाल बन पड़े है, जैसे-'हृतिक द्वारा नाक पर बैठी मक्खी हटाना, छत से टपकने वाले पानी से हृतिक की जद्दोजहद या 'उडी-उडी' गाने पर ऐश्वर्या का नृत्य आदि...

खैर..एक उम्दा पैकेज है...सार्थक सिनेमा के शौक़ीन लोगों को इसे जरूर देखना चाहिए...इस तरह की फिल्मों के कारण ही बालीवुड की प्रतिष्ठा बची हुई है...दबंग, वांटेड और कमबख्त इश्क जैसी फिल्मे पैसा तो कमा के दे सकती है...पर इज्जत नहीं बढ़ा सकती...

Sunday, November 21, 2010

बरखा और वीर... हमें आपसे सफाई नहीं चाहिए

लेख के शीर्षक से ज़रा भी हैरान न हों क्योंकि हम जो नई पीढ़ी से आते हैं, अपनी पिछली पीढ़ी के कुत्सित सचों से अब ज़रा भी हैरान नहीं होते हैं। हम जानते हैं कि वो जो कहते हैं, जो दिखते हैं और जो करते हैं उसमें एक परस्पर विरोधाभासी अंतर है और हम उनको इसके लिए माफ़ नहीं करते हैं पर उनसे सफाई भी नहीं चाहते हैं। हमें पता है कि मूर्ति पूजन का कोई मतलब नहीं है क्योंकि इन सबकी मूर्तियां समय अपने आप ध्वस्त करता जा रहा है फिर चाहें वो बड़े पत्रकार हों, महान समाजसेवी या फिर वो नेता ही क्यों न हों। और एक ऐसे युग में जब सूचना प्रकाश से तेज़ गति से चलती हो, बरखा दत्त या वीर सांघवी किसी के भी सच हमसे छुपे नहीं रह सकते हैं और हम जानते हैं कि कोई भी जो चीख-चिल्ला कर दूसरों से सवाल पूछ रहा हो, उसके अपने भेद ब्लैक होल सरीखे गहरे हो सकते हैं।

अब बात कर लेते हैं मुद्दे पर, तमाम टिप्पणियां आती हैं, कई लोग बरखा दत्त और वीर सांघवी को अपना आदर्श बताते हुए निराश दिखते हैं, कुछ को पत्रकारिता के हाल को देख कर दुख होता है, कुछ पूरे सिस्टम को ही भ्रष्ट बताते हैं तो कुछ कहते हैं कि बरखाओं और वीरों का पक्ष भी सुनना चाहिए। पर सवाल है कि क्यों आखिर हम निराश हों, क्यों सिस्टम को कोसें, क्यों हम किसी से सफाई मांगें....क्या हम इतनी समझ नहीं रख सकते हैं कि इस देश मैं, समाज में और समय में क्या क्या हो सकता है? दरअसल इससे भी मज़ेदार बात ये है कि हम ये क्यों न समझें कि बरखाओं और वीरों के पास इन सब के जवाब में कोई तर्क नहीं है लेकिन वो न तो शर्मिंदा हैं और उन्हें इस देश की न्याय व्यवस्था में पूरा भरोसा है कि वो कुछ भी करें कोई उनका कुछ बिगाड़ नहीं पाएगा।

कुछ लोग इस विचार को नकरात्मक ठहरा देंगे पर दरअसल नकरात्मक क्या है...हम या ये व्यवस्था? मैं बेहद साफगोई से कहता हूं कि अगर नई पीढ़ी के कुछ लोग बरखा दत्त को अपना आदर्श मानते हैं और वीर सांघवी सरीखा पत्रकार बनना चाहते हैं तो कृपया ये सब भूल जाइए। इन दोनो और बल्कि इनके अलावा भी तमाम चमकते चेहरों में केवल ग्लैमर के अलावा कुछ भी नहीं है जो आपको आकर्षित करे....ये सारे चमकते चेहरों की चमक उधार की...घूस की...या दलाली की है। लिप्सा, दोहरे चेहरे और भ्रष्टाचार के अलावा इन्हें किसी भी मामले में आदर्श नहीं माना जा सकता है।

अब बरखा दत्त की बात, अगर मैं सही हूं तो कुछ ही समय पहले एक अंग्रेज़ी ब्लॉगर चैतन्य कुंते को मानहानि का नोटिस भेज कर बरखा ने सार्वजनिक माफी मांगने पर मजबूर किया था। उस ब्लॉगर की गलती केवल इतनी थी कि उसने बरखा की पत्रकारिता की शैली पर सवाल उठाया था...खैर बात पुरानी है बरखा आज उससे बुरी स्थिति में हैं और देखना मज़ेदार होगा कि क्या इस बार वो कानूनी कार्रवाई करना चाहेंगी। ज़ाहिर है इस बार विधिक सहायता लेना उनके सर पर उल्टा भी पड़ सकता है। खैर वो कहती हैं कि उनकी जो बातचीत नीरा राडिया नाम की सदाचरण की पुतली से सामने आई है वो किसी और परिप्रेक्ष्य में की गई थी। हो सकता है बरखा दत्त अदालत में ये साबित भी कर दें कि वो बातचीत Out of Context थी पर ज़रा एक बार बातचीत के कुछ हिस्से देखिए....

RADIA: Yeah. Listen, the thing is that they need to talk to him directly. That is what the problem is.

BARKHA: Haan so, apparently PM’s really pissed off that they went public.

RADIA: But that’s Baalu’s doing, naa… he was not instructed by Karunanidhi to do that.

BARKHA: Oh, he wasn’t?

RADIA: This is not. He was told to come away and tell Congress that.

BARKHA: And he went public

RADIA: Well, the media… media, the media was standing outside.

BARKHA: Oh God. So now what? What should I tell them? Tell me what should I tell them?

RADIA: I’ll tell you what it is---the problem and I have had a long chat with both his wife and with the daughter right

क्या इस बातचीत से निकलने वाले मतलब एक किशोरवय भी नहीं समझ सकता है...और फिर क्या नीरा राडिया नाम की जिन महिला से बरखा ये और तमाम और गोपनीय जानकारिया साझा कर रही थी वो उनके चैनल की एडीटर इन चीफ या सीईओ थी....या कोई और बड़ी पत्रकार...या केवल गपशप के लिए इस तरह की बातें हो रही थी...आप सबको याद दिलाना चाहूंगा कि ये वो वक्त था जब पूरे देश की मीडिया की निगाहें देश के राजनीतिक नाटक पर लगी थी जो डीएमके और कांग्रेस के बीच चल रहा था....ऐसे में बरखा दत्त अंदरूनी सूचनाएं नीरा राडिया से अगर बांट रही थी तो इसके निहितार्थ क्या बिल्कुल पाक साफ हो सकते हैं...फिर क्यों ये ख़बरे एक संवाददाता के तौर पर उन्होंने अपने चैनल को नहीं दी...क्यों और फिर बरखा दत्त नीरा राडिया से एक आज्ञाकारी कर्मचारी की तरह पूछती हैं कि “Oh God. So now what? What should I tell them? Tell me what should I tell them?” बरखा जी क्या हम सब आपको वाकई ऐसे बेवकूफ लगते हैं?

ये केवल एक संवाद है, ज़रा नीरा राडिया और महाराजाधिराज ए. राजा के बीच के वार्तालाप पर ग़ौर करिए,

RADIA: Hi! I got a message from Barkha Dutt just now.

RAJA: Huh?

RADIA: Barkha Dutt

RAJA: What does she say?

RADIA: She says… that she has been following up the story with Prime Minister’s Office tonight. In fact, she was the one who told me that Sonia Gandhi went there. She says that he [the PM, presumably] has no problem with you, but he has a problem with Baalu.

ये वही नीरा राडिया हैं जो बरखा दत्त से भी बात कर रही थी और फिर वो सारा ज्ञान जो बरखा दत्त इनको प्रदान कर रही थी, उसे ये ए. राजा से साझा कर रही थीं। ऐसे में बरखा दत्त या तो ये ही नकार दें कि ये आवाज़ उनकी है (जो फॉरेंसिक जांच में साफ हो जाएगा) या फिर कोई तर्क न दें....और वो दे भी नहीं रही हैं...बल्कि हर मौके पर चीखने वाली, वीरांगना आज इतनी असहाय हो गई हैं कि खुद कुछ बोलने की जगह अपने संस्थान को आगे कर दिया....ये वही संस्थान हैं जो मंदी के नाम पर छंटनी करने में ज़रा देर नहीं लगाते, और आज किसी बड़े की पोल खुली है तो कर्मचारी हित के नाम पर मानहानि की धमकी दे रहे हैं। ज़ाहिर है इनको पता है कि इस लोकतंत्र में केवल बड़ों को लूट की छूट है, छोटों को सांस लेने की भी आवाज़ करने की आज़ादी नहीं है। वी द पीपल कहने वाली बरखा और उनके जैसे तमाम केवल एक धंधे में लगे हैं....वो जनता को सपने बेचते हैं और स्टूडियो से बाहर आ कर जनता के सपनों को बेच देते हैं। और बरखा क्योंकि कहानी इतनी साफ है कि और सफाई की गुंजाइश नहीं है इसलिए या तो ये टेप ही फ़र्ज़ी साबित हो जाए....नहीं तो हमें आपकी सफाई नहीं चाहिए।

अब बात वीर सांघवी की, वीर सांघवी का टेप सुनते हुए मैं कई बार बहुत जो़र से हंसा और कई बार बिल्कुल तरस आया कि इतना हट्टा कट्टा दिखने वाला शख्स और इतना दबंग माने जाने वाला पत्रकार क्या वाकई इतना दयनीय है। उस टेप में वाकई नीरा राडिया वीर सांघवी को डिक्टेट कर रही हैं कि उन्हें अपने एक तथाकथित लाबीइंग करने वाले लेख में क्या लिखना है और क्या नहीं। देखिए टेप में एक जगह किस तरह दोनो बात करते हैं,

RADIA: But basically, the point is what has happened as far as the High Court is concerned is a very painful thing for the country because what is done is against national interest.

VIR: Okay.

RADIA: I think that’s the underlying message.

VIR: Okay. That message we will do. That allocation of resources which are scarce national resources of a poor country cannot be done in this arbitrary fashion to benefit a few rich people.

RADIA: That’s right.

VIR: Yeah. That message we will get across, but what other points do we need to make?

ये बातचीत साफ दिखाती है कि वीर सांघवी तो जैसे नीरा राडिया के बिल्कुल इशारों पर एक लेख या साक्षात्कार कर रहे हों, और यकीन न हो तो आगे देखिए कि किस तरह वीर सांघवी ये तक कह देते हैं कि मुकेश अंबानी को पूरा साक्षात्कार रिहर्सल कर के देना होगा,

VIR: Mukesh can talk straight, can say things. You can rehearse. You can work out a script in advance. You can go exactly according to the script. Anil can’t do any of those things, no?

RADIA: Right. But we can do that, no?

VIR: Yeah.

RADIA:Yeah?

VIR: But Mukesh has to be on board. He has to sort of realise. It has to be fully scripted.

RADIA: No, that’s what I mean. I think that’s what he’s asking me.

VIR: Yes, it has to be fully scripted.

RADIA: He is saying is that, ‘Look Niira’, that ‘I don’t want anything extempore.’

VIR: No, it has to be fully scripted. I have to come in and do a run through with him before.

RADIA: Yeah, yeah.

VIR: We have to rehearse it before the cameras come in.

और ये सब सामने आने के बाद वीर सांघवी अपने ब्लॉग पर क्या लिखते हैं, क्या सफाई देते हैं इससे कतई कोई फ़र्क नहीं पड़ता है। अगर वो पाक साफ़ हैं और सारे आरोप झूठे हैं तो आएं कानूनी अखाड़े में और लड़ें मुकदमा पर ज़ाहिर है वहां भी इन सबको सज़ा मिलना मुश्किल ही है। इनकी सज़ा केवल यही है कि ये हमारे सामने आकर सफाई देने का साहस ही न कर पाएं....ये जनता का सामना करने की हिम्मत ही न कर पाएं....ये जानें और समझें कि जनता और इनके प्रशंसक सब इनका सच जानते हैं....और इसीलिए उनको किसी तरह की सफाई देने का कोई मतलब नहीं है।

बरखा और वीर कोई अपवाद नहीं हैं न अपनी तरह के अकेले हैं, ये अलग बात है कि वो इस प्रकरण के बाद अलग थलग पड़ जाएं। एक और बड़ा और कड़वा सच ये है कि तमाम समाचार पत्रों और चैनलों के पास ये सारा सच और इसके सबूत पहले से मौजूद थे पर किसी ने भी इतना नैतिक साहस नहीं दिखाया कि इस ख़बर को उठाता। कुछ महीने पहले जब पहली बार ये मामला उठातो तो इन लोगों का नाम सामने आते ही एनडीटीवी समेत ज़्यादातर चैनलों ने ये ख़बर ही गिरा दी....किसी की इतनी तक हिम्मत नहीं हुई कि कोई बिना नाम लिए ही ये कह देता कि दो बड़े पत्रकारों की भी भूमिका संदिग्ध है।

जो लोग बरखा और वीर की चुप्पी पर सवाल उटा रहे हैं उनसे केवल एक निवेदन है कि उनसे किसी सच की उम्मीद न करें, उनसे सफाई न मांगे....क्या आपको अपने बुद्धि और विवेक पर भरोसा नहीं है....क्या आपने टेप नहीं सुने हैं या आप बदलते समय के कड़वे सचों से वाकिफ़ नहीं हैं। कैसे कोई आम आदमी की, किसान की और गरीब की आवाज़ उठाने की बात करने वाला इंसान करोड़ों कमा सकता है....कैसे कोई देश के आम आदमी को अपनी बपौती मान सकता है....और कब तक हम ठगे जाते रहेंगे...नेताओं....पत्रकारों और ढोंगी समाजसेवियों के ढोंग से....दरअसल ये समय हमें रोज़ शर्मसार ज़रूर करता है, कई ऐसे सचों से रूबरू कराता है जो सुनना हम में से कोई नहीं चाहता है...पर सच कहें तो इस समय की सबसे बड़ी खासियत यही है कि कोई भी शख्स कितना भी बड़ा क्यों न हो, वो महान और पवित्र होने का दावा नहीं कर सकता, उसके सच सामने ज़रूर आएंगे....और इसी लिए बरखा और वीर हमें आपसे कोई सफाई नहीं चाहिए.....

शब्द..
भाव.....
मात्रा......
छंद..........
कविता.........
जहां से नहीं थी
आशा
वहीं से देखो
फूट रहे हैं
क्रोध...
शोभ...
द्रोह......
विद्रोह....
ध्वंस हुई हैं
सदियों से पूजित
मूर्तियां
देखो युग के
प्रतिमान
टूट रहे हैं

(मई में पहली बार बरखा दत्त और वीर सांघवी के किस्से चर्चा में आने के बाद, और हाथ में इनके नाम वाले दस्तावेज़ आने के बाद ये कविता लिखी गई थी।)


Wednesday, November 3, 2010

सुनहरे २१

भारतीय संस्कृत में २१ को काफी शुभ  माना गया है, भगवान के किसी कार्य में २१  का  चढ़ावा  उसके महत्व को बढ़ा देता है.क्रिकेट के भगवान का भी ये क्रिकेट में २१वा  साल है . २१ की संख्या की तरह सचिन के २१ साल भारतीय क्रिकेट के लिए काफी शुभ  रहे. सचिन  बधाई के पात्र सिर्फ इसलिए नहीं है की उन्होंने इन २१ सालो में कई विश्व रिकॉर्ड बनाये .उन्होंने भारतीय  टीम को विश्व क्रिकेट में सम्मानजनक स्थान पहुचाया बल्कि इसलिए भी की पल भर  में स्टार  को गीटार बनाकर मनचाहे तरीके  से बजाने वाली क्रिकेट चयन समित  के साथ भी आदर्श २१ साल बिताये वर्ना भारतीय क्रिकेट के अनेक हीरे तो यू ही चयनसमित  का कोप भाजन  बनकर आज दूसरे रोजगार  में नजर आते है. जब भी सचिन के खेल पर किसी को शक हुआ तो सचिन ने अपने प्रदर्शन से सबके मुह बंद कर दिए.प्रदर्शन से लगाम तो गांगुली ने भी लगाई थी पर फिर भी वो अपना करियर नहीं बढ़ा सके .इसके आलावा इन्ही २१ सालो में कई ऐसे खिलाडी आये जिनकी तुलना महान खिलाडियों से की जाती रही लेकिन वो लम्बे समय तक न तो अच्छा खेल सके और न हमारी व्यवस्था ने उन्हें खेलने दिया. सचिन की योग्यता लोहा पूरे विश्व ने माना है लेकिन कई मौको पर हमारे ही पुराने खिलाडियों  ने सचिन के लोहे पर जंग  लगने जैसा आरोप  लगाते रहे लेकिन यही तो सचिन की महानता है की जब भी संकट में भगवान की जरुरत हुई उन्होंने अपने लाजबाब खेल से अपने विरोधियो को ही अपना कायल बना दिया. हम आम दर्शक तो यही चाहेंगे की सचिन २१ साल और खेले पर २०११ के विश्व कप के बाद सन्यास की खबरों ने अभी से एक बड़ी रिक्तता  का बोध करा दिया है उम्मीद करते है आगामी सालो में अगले २१ सालो  तक चमकने वाला हीरा मिल जाये.

Feelings

Today I am sad because I have not that shade



A shade which was with me when I was embryo


A shade that protect me from all evil & evildoer


When I have no sense.


A shade that care me when I started crawling .


And remember my hunger whenever I forget .






.


Today I am sad because I have not that feel .


When I heard a single loud clap in ground .


Although I got last position in the race.


A Feel that feel myself


When everyone go against me in the world.


A feel for that I am most great.






Today I am sad because I have not that power


That force and encourage me


When I first time fell down


A power that stop me to go wrong way.


And make me capable to find out


What is good and bad for me.






Today I am sad because I am fool


Who think her way to taught


Her rude nature .


While she making myself strong


To face all thunder of world.






Today I am sad and I think I will always sad.


Because she has started to think


That I am mature now.


And I have no need to her .


Because I have started to give suggestion her.










( SHAILENDRA RISHI )



गूगल बाबा का वरदान - हिन्दी टंकण औजार

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