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Sunday, June 28, 2009

आदि से अंत तक...आदमी !

(अभी एक दिन अचानक ऑरकुट खोला....जो वैसे कम ही देखता हूँ...तो हमेशा की तरह अपने एक युवा साथी जो फिलहाल भोपाल में हैं....को वहाँ पाया और इस बार भी हमेशा की तरह एक कविता के साथ...कविता भी हमेशा की तरह शानदार....कविता का विषय भी समयानुकूल था....चारो ओर पानी की कमी...गर्मी और प्राकृतिक असंतुलन को लेकर हाहाकार मचा है ...और ये कविता भी एक दम चोट करती हुई.....वो साथी हैं अंकुर विजयवर्गीय ...तो अंकुर की ओर से एक संदेश सबके नाम.....)

जहाँ से शुरू हुआ
जंगल वहाँ खड़ा था
आदमी
जहाँ ख़त्म हुआ जंगल
वहाँ भी मौजूद पाया गया
आदमी

कहाँ रहें अब
शेर, हिरण, बाघ,
खरगोश बाज, कबूतर का
स्थान कहाँ
भय की सरसराहट
जो तैर रही है
वैज्ञानिकों के शीशे में
उसके हर बिंदु पर
खड़ा है आदमी

आदमी ही तय करेगा
अब
आदमी का होना
आदमी
होना
इस पृथ्वी पर जीवन का ।

(अंकुर सम्प्रति ज़ी न्यूज़ के छत्तीसगढ़ चैनल में भोपाल से संवाददाता के तौर पर कार्यरत हैं....)

Thursday, June 25, 2009

एलिजिबल फॉर फ्री ट्रेवल

(ज़ी न्यूज़ के चैनल २४ घंटे छत्तीसगढ़ में कार्यरत हमारे साथी नितिन शर्मा ने अपने अनुभव और विचार हमें लिख भेजे हैं....पढ़ें और गुनें....फिर टिप्पणी दें)
आज मैं किसी काम से बाजार गया हुआ था॥लौटते वक्त टैक्सी पकड़ी उसमें मेरे सामने एक लड़का बैठा हुआ था । वह शायद कोई एक्जाम देकर लौट रहा था । क्योंकि उसकी शर्ट की जेब में कॉल लेटर रखा हुआ था उसने कॉल लेटर हाथ में निकाला और कुछ पढ़ने लगा । मेरी उत्सुकता थी कि देखूं किस एक्जाम को देकर वह लौट रहा है...उसका कॉल लेटर देखा तो पता चला कि वह रेलवे भर्ती बोर्ड भोपाल की टीसी की परीक्षा देकर लौट रहा है॥अचानक उसके कॉल लेटर के नीचे नजर गई तो देखा उसमें लिखा हुआ है कि एलिजिबल फॉर फ्री ट्रेवल....उससे चर्चा हुई तो पता चला कि उसके पिता जी सरकारी नौकरी में हैं और अच्छी खासी खेती भी है...पूछने पर उसने बताया कि रिजर्व क्लास के उम्मीदवारों को रेलवे फ्री में एक्जाम के लिए पास जारी करता है...टैक्सी में बैठे हुए अचानक एक दिन पहले की स्मृति में खो गया॥मेरे दोस्त (नाम प्रकाशित नहीं कर सकता) का फोन आया था...काफी दिन बाद फोन किया था उसने ...अधिकांश बार मैं ही उसे फोन कर लेता हूं क्योंकि उसकी माली हालत ठीक नहीं है...हालचाल पूछे उससे...कंपटीशन एक्जाम की तैयारी कर रहा है वह...पूछा कि आजकल कोई एक्जाम नहीं दे रहे हो... उसने बताया कि भोपाल बोर्ड का फार्म भरा था टीसी के पद के लिए...लेकिन एक्जाम नहीं देने जा रहा हूं...और कल ही एक्जाम है॥सेंटर इंदौर में है...पूछा कि क्यों एक्जाम नहीं दे रहे हो तो बताया कि ट्यूशन की फीस नहीं मिली है( वह अपना खर्चा ट्यूशन पढ़ाकर ही निकालता है) और किराए के लिए पैसे नहीं हैं...यह सब सोच ही रहा था कि अचानक मेरा स्टापेज आ गया और टैक्सी रुक गई...टैक्सी से उतरकर पैसे दिए टैक्सी वाले को और अपने रूम की तरफ बढ़ते हुए सोचने लगा कि काश मेरा दोस्त भी एक्जाम में शामिल हो पाता यदि छूट का दायरा आर्थिक आधार होता....फिर उसके कॉल लेटर में नहीं लिखा होता कि नॉट एलिजबल फॉर फ्री ट्रेवल॥
नितिन शर्मा
ज़ी न्यूज़, छत्तीसगढ़

Wednesday, June 24, 2009

वेब पत्रकारिता क्या इसीलिए होगी अब ....


एक ताज़ा विवाद जिसकी शुरुआत मोहल्ला ब्लॉग के व्यवसायिक संस्करण मोहल्ला लाइव डॉट कॉम पर छपी एक ख़बर से हुई….उस पर मेरे लिखने से पहले ही उसमें लपेटे गए लगभग सभी लोग अपने अपने स्पष्टीकरण, जवाब और तेवर सामने रख चुके हैं….पर फिर भी मैं एक जोखिम लेना चाहता हूं कुछ लिखने का…मामला कुछ यूं हुआ कि वरिष्ठ पत्रकार आलोक तोमर ने विस्फोट डॉट कॉम से एक लेख उठाकर अपनी वेबसाइट पर छाप दिया…छाप क्या दिया, उनको वो लेख और जानकारी ज़ाहिर है कि उपयोगी लगी और उन्होंने उसको वितरित होने के मुफीद माना और प्रकाशित किया। आलोक जी ने उस रपट को बाक़ायदा लेखक के नाम के साथ प्रकाशित किया, सो उनकी मंशा पर ज़्यादातर लोगों को शक़ नहीं करना चाहिए था पर सरोकारों वाले पत्रकार कहां बाज़ आ सकते थे और वही हुआ मोहल्ला लाइव पर ख़बर छपी कि आलोक तोमर ने पत्रकार की रपट चुराई।
साधारण तौर पर देखें तो ये एक सनसनीखेज़ शीर्षक वाली ख़बर लगेगी और आप खोलकर पढ़ेंगे और कुछ लोग अविनाश दास (मोहल्ला) तो कुछ लोग आलोक तोमर को अलंकृत भाषा से उपमानित कर देंगे पर अगर गूढ़ में जाकर देखें तो शायद आलोक जी का मक़सद चोरी का तो नहीं ही था। अगर उस रपट को चोरी ही किया जाना होता तो शायद स्वनामधन्य ये पत्रकार नहीं जानते कि आलोक जी के कोष में इतने शब्द तो होंगे ही कि उसकी पूरी भाषा को ऐसे बदल सकते थे कि कोई चोरी का पता भी नहीं कर सकता था। पर रपट को आशीष अग्रवाल के नाम के साथ प्रकाशित किया गया और हूबहू प्रकाशित किया गया पर अब सवाल ये कि विस्फोट की अनुमति क्यों नहीं ली गई….तो उसका उत्तर आपको विस्फोट के होमपेज पर ही मिल जाएगा, जहीं एक बैनर लगा है और उस पर लिखा है, “सर्वाधिकार (अ)सुरक्षित
विस्फोट.कॉम में प्रकाशित लेखों पर हमारी ओर से कोई कॉपीराईट नहीं है-संपादक”
मतलब ये कि विस्फोट पर प्रकाशित किसी भी लेक को कोई भी (कम से कम साभार) प्रकाशित कर सकता है और इसमें कोई भी बुराई नहीं है....मुझे तो लगता है कि संजय जी का ये एक अभिनव कदम है कि महत्वपूर्ण ख़बरों और जनउपयोगी सूचनाओं का प्रसार हर व्यक्ति तक हो....और कॉपीराइट न होने से इसमें सरलता होगी।
पर अविनाश जी भी वरिष्ठ पत्रकार हैं और तमाम संस्थानों में काम कर चुके हैं सो उन्हें ये हरकत गलत समझ आई और उन्होंने झट यह छाप दिया कि आलोक तोमर चोर हैं...पर शायद इस सबके पहले उन्होंने एक बार भी संजय जी या आलोक जी से बात करना ज़रूरी नहीं समझा। मुझे लगता है कि पत्रकारिता का एक सिद्धांत यह भी है कि दोनों पक्षों से बात करके ही कोई ख़बर छापनी चाहिए...या फिर आशीष अग्रवाल मोहल्ला के दर पर अपनी अर्ज़ी लेकर पहुंचे होते। अविनाश जी लम्बे समय से मोहल्ला ब्लॉग चला रहे हैं और तमाम बार ये अपने कंटेंट को लेकर प्रशंसा और विवाद दोनो ही बटोर चुका है पर दरअसल इस पूरी घटना ने वेब पत्रकारिता में बढ़ती प्रतिद्वंदिता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं....
पिछले लम्बे समय से न केवल ब्लॉग बल्कि तमाम पोर्टल आरोप प्रत्यारोप के जिस तरह के खेल खेलते रहे हैं क्या पत्रकारिता को एक नई दिशा देने के स्वप्न जगाने वाली वेब पत्रकारिता उस स्वप्न के पूरा होने से पहले ही तो तेरी-मेरी के दलदल में नहीं फंस जाएगी? आखिर किस तरह की पत्रकारिता कर रहे हैं आप लोग? कभी ये खेल अविनाश और यशवंत के बीच होता है तो कभी किसी और के बीच....चलिए तमाम ब्लॉगर तो आम जनता से आते हैं पर आप लोग तो पत्रकार हैं....इस तरह आपस में एक दूसरे की ही इज़्जत उछालते रहे तो हो गया पत्रकारिता का कल्याण। वैसे ही पत्रकारिता कितनी बची ही है और फिर आप सब तो पत्रकारिता को दिशा देने की बातें करते हैं...
ये सारा विवाद शुरु हुआ मोहल्ला से और अविनाश जी से तमाम सवाल पूछना चाहूंगा पर अभी सिर्फ़ दो चार....अविनाश जी ने एनडीटीवी जैसा ग्रुप आखिर क्यों छोड़ा इस पर तमाम सवाल उठ चुके हैं पर उन पर जो बलात्कार के प्रयास का आरोप लगा उसका दूसरा पक्ष मैं भोपाल जाकर खुद उस लड़की के मुंह से सुन चुका हूं...पहला पक्ष अविनाश जी ने मोहल्ला पर दिया था....अविनाश जी कहते हैं कि मोहल्ला का पोर्टल पत्रकारिता के लिए है तो क्या बिना व्यर्थ सनसनी फैलाए पत्रकारिता नहीं की जा सकती....क्या आशीष जी ने आपसे को शिकवा या फरियाद की थी...क्या आलोक जी ने कोई बड़ा घपला अंजाम दे दिया था....या विस्फोट से अचानक आपको कोई हमदर्दी हो गई....मेरा मानना है कि जिस तरह से इस बात को विवाद की शक्ल दी गई...ख़बर बनाकर छापा गया, वो तरीका कहीं से भी उचित नहीं था...अविनाश जी से निवेदन है कि आपस में एक दूसरे की छीछालेदर करने से घायल केवल पत्रकारिता ही होगी और कुछ नहीं...मोहल्ला को बासबब से बहस बेसबब, बेहिसाब न बनने दें...
आलोक जी और संजय जी से भी मेरे अपने निवेदन हैं, दोनो ही मुझसे कहीं वरिष्ठ हैं और मेरे ये सब लिखते समय विस्फोट भी आलोक जी की भड़ास प्रकाशित कर चुका है और आलोक जी का गुस्सा और संजय जी का उसे ठंडा करने का तरीका दोनो ही मज़ेदार हैं। मेरा विनम्र निवेदन है कि संजय जी अगर विस्फोट से लेख सनाम लेने में भी आपत्ति है तो कृपया अपना सर्वाधिकार असुरक्षित का बैनर उतार कर, लपेट कर कहीं कोने में रख दें.....क्योंकि ये नहीं तो आगे भी विवादों को जन्म देगा....आलोक जी से मेरा सविनय निवेदन है कि पहले तो कृपया अपने गुस्से को थोड़ा सा कम करें क्योंकि आप गुस्से में आकर तमाम लोगों की ऐसी तैसी कर डालते हैं... आप जैसी बड़ी शख्सियत को इस तरह गुस्सा दिखाना शोभा नहीं देता....दूसरी बात ये कि आप भी अब कसम खा लें कि कोई लेख आपको कितना भी अच्छा क्यों न लगे...आपकी नीयत कितनी भी साफ़ क्यों न हो....उसको साभार भी न उठाएं क्योंकि यहां तमाम शिकारी इसी तीक में बैठे हैं कि कैसे कोई सिरा हत्थे आए और वो विवाद बन जाए....बाकी तमाम वरिष्ठ और साथी पत्रकारों से बस यही कहना है कि आपस में किसी तरह की गंदी प्रतिस्पर्धा कर के पत्रकारिता की पहले ही गिरती साख को और बट्टा न लगाएं.....
अंत में अपने एक युवा साथी हिमांशु के ताज़ा छपे काव्य संग्रह अमां यार से एक नज़्म 'साभार',
हवाएं बहुत तेज़ चल रही हैं ,
आओ दोस्त !
एक दूसरे को थाम लें...
क्यूंकि मरासिम -ज़िन्दगी की शाख पर
पत्तों जैसे, खरे होते हैं ।
जो टूट कर गिरे,
फिर कम ही हरे होते हैं
(उम्मीद है हिमांशु इस साभार से नाराज़ नहीं होंगे)

मयंक सक्सेना
mailmayanksaxena@gmail.com


Friday, June 19, 2009

शैलेंद्र सिंह नहीं रहे.....

आईबीएन7 के सीनियर एडिटर शैलेंद्र सिंह नहीं रहे ....एक सड़क हादसे में उनका निधन हो गया। दुर्घटना १८ जून सुबह तीन बजे के करीब हुई। शैलेंद्र ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेस-वे से घर की तरफ लौट रहे थे। पंचर होने के चलते सड़क पर खड़े ट्रक में उनकी तेज रफ्तार स्विफ्ट कार घुस गई जिससे कार के परखच्चे उड़ गए। ड्राइविंग सीट पर बैठे शैलेंद्र के सिर में बुरी तरह फ्रैक्चर हो गया। पुलिस ने मौके पर पहुंचकर कार को तोड़ा और उसमें फंसे शैलेंद्र को नजदीक के शारदा अस्पताल पहुंचाया। अत्यधिक रक्तस्राव और जबरदस्त फ्रैक्चर के चलते डाक्टर उन्हें बचा नहीं सके। सुबह सवा पांच बजे शैलेंद्र ने अंतिम सांस ली। वैशाली में रह रहे शैलेंद्र ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेस-वे की तरफ क्यों गए थे?इस सवाल के जवाब में बताया जा रहा है कि शैलेंद्र आफिस से निकलने के बाद कई बार अकेले ही लांग ड्राइव पर चले जाते थे। संभवतः इसी उद्देश्य से वे ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेस-वे गए और फिर वापस लौट रहे थे। हालांकि उनके घरवालों का कहना है कि वे रास्ता भटक गए थे। शैलेंद्र ने दो साल पहले शराब से तौबा कर लिया था, इसलिए ड्रिंक की वजह से हादसे की बात भी नहीं कही जा सकती। भिंड के रहने वाले शैलेंद्र सिंह के परिवार में पत्नी और दो बच्चे हैं। छह साल के बेटे का नाम आयाम है और दस साल की बिटिया आस्था हैं। शैलेंद्र बीएससी और एमए करने के बाद मीडिया के फील्ड से जुड़े। प्रिंट मीडिया में कुछ समय गुजारने के बाद शैलेंद्र ने न्यूज चैनल आज तक ज्वाइन किया। इसके बाद स्टार न्यूज में चले गए। स्टार न्यूज के अपने कार्यकाल में शैलेंद्र मुंबई भी रहे। इसके बाद वे आईबीएन7 में आ गए थे। आईबीएन7 उनके जिंदगी और करियर का अंतिम मीडिया संस्थान साबित हुआ। शैलेंद्र का कुल 15 वर्षों का करियर था। पत्रकार के साथ-साथ एक संवेदनशील और मददगार इंसान के रूप शैलेंद्र अपने दोस्तों में जाने जाते थे। उनकी संवेदनशीलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मीडिया की नौकरी के साथ-साथ वे गजल और कविता लेखन का काम भी करते रहे। उनकी दो किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। 'जानता हूं जिंदगी' नामक किताब कविता संग्रह है तो 'कुछ छूट गया है' गजल संग्रह है। शैलेंद्र की मृत्यु की खबर जिसे भी मिली, वह स्तब्ध रह गया। सबकी एक ही प्रतिक्रिया थी- इतने अच्छे इंसान के साथ यह क्या हो गया!
कल सुबह शैलेंद्र जी का अंतिम संस्कार दिल्ली में निगमबोध घाट पर किया गया....सैकड़ों पत्रकारों की मौजूदगी में आईबीएन7 के सीनियर एडिटर शैलेंद्र सिंह को अंतिम विदाई दे दी गई। दिल्ली के निगम बोध घाट पर आज सुबह 11 बजे के करीब विधि-विधान से शैलेंद्र के शव को अग्नि के हवाले किया गया। इस मौके पर शैलेंद्र के परिवार से जुड़े सभी लोग मौजूद थे।कोई फफक कर रो रहा था तो कोई चुपचाप रूमाल से आंखों के कोने पोंछ रहा था। कोई आसमान की तरफ निहार रहा थो तो कोई शैलेंद्र की जलती चिता के साथ खुद को एकाकार करने की कोशिश कर रहा था। (साभार : भड़ास फॉर मीडिया डॉट कॉम)
शैलेन्द्र जी को केव्स परिवार की ओर से भावपूर्ण श्रद्धांजलि......

Thursday, June 18, 2009

रुदादे सफर की बात ...

पिछले साल लगभग यही वक्त था...जब एक कविता मैंने पोस्ट की थी...पंछी उड़ चले....जो भोपाल में बिताए उन्हीं यादगार लम्हों के नाम थी....जो शायद वक्त और मजबूरियों के चलते वहीं रुक गए और हमारे ज़ेहन में एक जगह मुकर्रर कर गए....आज हिमांशु ने अपने बलॉग पर फिर उन्हीं ज़ख्मों को कुरेद दिया है...उस उखड़े हुए खुरंट के साथ पढ़िए क्या लिखते हैं हिमांशु.....

आज माखन लाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय में आखिरी सेमेस्टर का आखिरी एक्साम दिया है, इसी के साथ लग रहा है की ज़िन्दगी का एक और दौर यादों का हिस्सा बन रहा है , फेयरवेल तो हमें नौ तारीख को ही मिल गया था लेकिन आखिरी एक्साम ने तो जैसे विदाई पर मुहर लगा दी है । फेयरवेल में मेरे आंसू छलक गए थे । आज भी शायद कुछ ऐसा ही हो । कुछ दोस्तों की गाड़ी आज की ही है । जब रुके तो दो साल रुके और जाना है तो इतनी जल्दी । ऐसा नही है की सब अब कभी नही मिलेंगे , दुनिया गोल है और ज्यादातर कहीं न कहीं मिलते रहेंगे , और कहा भी जाता है की जिनसे आपको संपर्क रखना होता है उनसे कभी नही टूटता लेकिन अब शायद एक समूह के रूप में जिस तरह सब पहले उपलब्ध रहते थे, वैसे अब न हों पाएं। शायद ज़िन्दगी में कभी नही होंगे इकठ्ठा । यादों में ही होंगे....फ़राज़ याद आ गए... अब के जो हम ....
अगले कुछ दिनों में लखनऊ निकलने वाला हूँ । इस बार पहली बार शायद लखनऊ जाते खुशी नही हो रही या शायद उस दुःख के सामने छोटीहो गई है जो भोपाल छोड़ने का है , मैंने इस शहर से अन्याय भी कम नही किया लेकिन आज कह रहा हूँ ॥अपना सा है ये शहर ... अभी गया नही हूँ यहाँ से॥ फिर भी वापस आने का ख्याल डराता है ....कैसे हिम्मत ला पाऊंगा बिना दोस्तों का भोपाल देखने की॥ जिन सडकों पर धूम मचती थी उन्हें सूनी नही देख सकता ...शायद आ ही नही पाऊंगा ...अकेले तो बिल्कुल नही ... दोस्तों के साथ सेटिंग करके तभी आऊंगा .....एक समां अंत की तरफ़ जा रहा है । जाते - जाते कुछ घटनाओं ने मन भी खट्टा किया है लेकिन शायद ये भी भोपाल को भुलाने के लिए कारगर साधन न बन पाएं ..बहुत याद आएगा भोपाल ।
साभार....अमां यार

Friday, June 12, 2009

कब जागेंगे

अभी कुछ दिन पूर्व भोपाल सहर मे एक मजलिसी जलसा आयोजित किया गया था, जिसमे इरान के पूर्व राष्ट्रपति अयातुल्लाह खुमैनी की साहबजादी मोहतरमा जोहरा खुमैनी ,रामपुर से मोहम्मद आजम खान साहब ,लखनऊ से मौलाना कल्बे जव्वाद साहब और भी कई एक साहबान तसरीफ लाये थे उनका मकसद क्या था भोपाल सहर आने का ये तो कोई भी अख़बार सही तरह से समझ ही नही पाया सबने अगले दिन की सुर्खी बनाई थी की भोपाल में महिला सशक्तिकरण के लिए एक बैठक बुलाई गई है, लेकिन जब हमने बात की उस समारोह के आयोजक मुन्नवर खान साहब से तो उनका कहना है की ये मजलिस इसलिए बुलाई गई है ताकि जनाबे फातिमा का उदाहरण देकर मुस्लिम महिलाओं को परदे के लिए जागरूक किया जा सके की किस तरह गरीबी में भी आपने कपड़े पर कपड़ा सिल कर पहना लेकिन अपने परदे को कायम रखा था, अगला सवाल था की क्या ये मुस्लिम महिला शिक्षा जाग्रति अभियान के लिए भी कुछ बात करेगा। तो आपने साफ़ कहा अरे अभी कहाँ मियां ये तो दूर की बात है, मजेदार बात ये है ख़ुद बैठक के सदर मोहम्मद आजम खान भी बैठक के मकसद को समझ नही सके और बैठक को इस्राइल और फिलिस्तीन के टंटे में ले भागे ,जॉर्ज बुश पे भी बाकायदा तीन दिन का राशन पानी लेकर चढ़ गए थे हजरात, पर एक अहम् सवाल जो शायद इस मजलिस के बाद बहुत याद आया क्या अब भी मुस्लिम महिलाओं के लिए सिर्फ़ बातचीत का मुद्दा परदा ही रह गया है क्या मुस्लिम महिलाएं सिर्फ़ परदा पाल रही हैं या नही इसकी चिंता करते ये लंबे चोंगे वाले साधू नुमा मौलाना टाइप के लोग नाम बदल जाते हैं जिनके मकसद एक ही रहता है अपने आपको समाज का सबसे बड़ा हितचिन्तक साबित करना और समाज की फिक्र करते हुए अपने आपको आधा कर लेना। किसने नही देखा था अभिषेक बच्चन के बंगले के बाहर उसकी शादी के वक्त प्रदर्शन करने वाली वो लड़की कल्बे जव्वाद की नातेदार थी और शायद वो उस वक्त बुर्के में भी नही थी मौलाना को वो नही दिखा ,मौलाना को सान्या मिर्जा की स्कर्ट भी खल जाती है मौलाना के अनुसार ये इस्लाम के ख़िलाफ़ है ,में भी क्यों लिख रहा हूँ शायद कल को इसी लेख के कारन में भी सलमान रुश्दी या तसलीमा नसरीन बना दिया जाऊं लेकिन साहब दिल है की मानता नही महिलाओं को सबसे ज्यादा जरूरत मेरे मुताबिक स्वस्थ्य सुविधाओं और शिक्षा की है ताकि वो एक ससक्त समाज की बुनियाद रख सकें परदे की नही बाकी जैसा मौलाना कहें सब ठीक है

Sunday, June 7, 2009

सम्पूर्ण क्रांति के वीरों को पेंशन.....

सम्पूर्ण क्रांति के नायको को पेंशन दी जायेगी.... यह ख़बर जे.पी.आन्दोलन के कर्मवीरों के लिए खुश खबरी वाली है परन्तु आशंका जताई जा रही है की ग़लत सलत लोगों को जोड़ दिया जाएगा.... एवं सही में समर्पण करने वाले लोगो को खास लाभ नही मिल पायेगा वह जायज ही है।
दरअसल होता यह है की जो वाकई सेनानी हैं वे किसी पुरस्कार या सम्मान के मोहताज नही होते। लेकिन जो लोग इस फेरे में ही रहते हैं की कहीं से कोई व्यवस्था लगे की कुछ आमदनी हो वे सब काफी खुश हो गये होंगे।खासकर सेनानी बनने के मामले में, तब तो आज कुछ लोग ऐसे भी हैं जो जन्मे थे १९४७ में परन्तु स्वतंत्रता सेनानी की पेंशन ले रहे हैं इसलिए ध्यान देने की बात ये होगी की सेनानियों की सूची ऐसी बने जिसमे जदयू -भाजपा के कार्यकर्त्ताओं को तवज्जो न दी जाए।
यूँ तो जो लोग जेपी के साथ नेतृत्व सम्भाल रहे थे वे अपनी जननी सेवा का पुरस्कार पा ही रहे हैं , वह चाहे कहीं के मुख्यमंत्री बनकर हो या मंत्रिमंडल से लेकर सामाजिक उत्तरदायित्व का मामला हो। परन्तु जो लोग सेना में शामिल थे,जिनकी चर्चा तक भी नही होती है वे लोग कष्ट झेलेंगे यदि ईमानदारी नही बरती गई तो। इसलिए न सिर्फ़ सत्ताधारी पार्टी के लोग बल्कि सभी दलों को इस मुद्दे पर सामंजस्य बैठाते हुए सही व्यक्तियों का चुनाव इस कार्य के लिए करना चाहिए।

अधिनाथ झा
(लेखक फिलहाल माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय से विज्ञापन और जनसंपर्क में स्नातकोत्तर उपाधि के लिए अध्ययनरत हैं....और नियमित ब्लॉगर हैं...)

Friday, June 5, 2009

टी २० विश्व कप का आगाज़

आईसीसी वर्ल्ड टी20 का आगाज़ कुछ घंटो के बाद होने ही वाला है...और इसका पहला मुकाबला है मेज़बान इंग्लैंड और नीदरलैंड्स की टीमों के बीच....टी20 वर्ल्ड कप के उद्घाटन के बाद शुरु होगा इसका पहला मैच....और इस मैच के नतीजों को लेकर शायद कोई भी बहुत कयास नहीं लगा रहा होगा क्योंकि इसके नतीजे का अंदाजा शायद सभी को पहले से है....
नीदरलैंड्स जो शायद इंग्लैंड के मुकाबलें में बहुत ही कमज़ोर और कहा जाए तो अनुभवहीन टीम है...और आंकड़ों के लिहाज से देखें तो अपने 6 अंतर्राष्ट्रीय मैचों को लगातार जीतती आ रही इंग्लैंड की टीम आत्मविश्वास से भरी हुई है....दो ही दिन पहले हुए अभ्यास मैच में वेस्टइंडीज़ के खिलाफ इंग्लैंड ने जिस तरह का प्रदर्शन करके एकतरफा मैत जीता...वो दिखाता है कि इंग्लैंड इस बार टी20 विश्वकप में अपना पुराना प्रदर्शन दोहराने के मूड में तो कतई नहीं है...यही नहीं टीम को आलराउंडर ल्यूक राइट के रुप में रवि बोपारा के साथ एक शानदार ओपनर मिल गया है....राइट ने वार्म अप मैच में शानदार बल्लेबाज़ी करते हुए केवल 48 गेंदों पर शानदार 75 रन बनाए और अपने साथ इंग्लैंड टीम के लिए भी भरपूर आत्मविश्वास बटोरा....
दूसरी ओर है नीदरलैंड्स की टीम...जिसके पास अगर अपने खाते में अगर ढेरों उपलब्धियां नहीं हैं तो खोने को भी कुछ नहीं है....वैसे भी अपने पिछले वार्म अप मैच में उन्होंने अच्छा खेल दिखाया और स्कॉटलैंड को हराया...ज़ाहिर है कि इस बात से उनके कप्तान जेरॉन स्मिथ का हौसला बढ़ा ज़रुर होगा....वैसे भी उनकी टीम को ज़रूरत बस इसी तरह की कुछ जीतों की ही है कागज़ पर ही नहीं हालिया प्रदर्शन से भी कप्तान कॉलिंगवुड की इंग्लैंड टीम आज के मैच में भारी तो लग ही रही है...
पर ज़ाहिर है कि अनिश्चितता के खेल क्रिकेट में इसका 20-20 फॉर्मेट और भी ज़्यादा अनिश्चित है....और ऐसे में क्रिकेट प्रेमी इंतज़ार ज़रूर करेंगे कि न केवल मुकाबला कड़ा हो और मनोरंजन ज़्यादा

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