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Thursday, July 31, 2008

प्रेमचंद और रफी ......

आज ३१ जुलाई है। एक खास दिन । १८८० में आज ही के दिन कथा सम्राट प्रेमचंद का जन्म हुआ था तो ठीक १०० साल बाद १९८० में स्वर सम्राट मोहम्मद रफी साहब इस दुनिया से रुखसत हुए थे। मैं दोनों का बहुत बड़ा मुरीद हूँ इसलिए दोनों को श्रृद्धांजलि दे रहा हूँ।

प्रेमचंद - प्रेमचंद को केवल कथा सम्राट कह देने से उनका परिचय नही दिया जा सकता । प्रेमचंद को जानना है तो उन्हें पढ़ना तो पड़ेगा ही । लेकिन चूंकि आजकल चेतन भगत को पढने से आपको फुर्सत नही होगी और फ़िर आप में से ही कोई अपने चेतन का अचेतन पाठक , अपने आपको साहित्य पढने का शौकीन बताते हुए प्रेमचंद के लेखन की समीक्षा कुछ यूँ करेगा की "प्रेमचंद के साहित्य से अगर गाँव और किसान निकाल दो तो कुछ बचता ही नही है (जैसा की अभी कुछ दिन पहले मेरे एक स्वयम्भू साहित्य-शौकीन ने की ) तो मैंने जो उस दिन उससे कहा वही आपसे भी कह रहा हूँ "मानव शरीर से प्राण निकाल दो और पूछो की फ़िर बचता क्या है ?" गाँव और किसान प्रेमचंद साहित्य के ही नही भारत के भी प्राण हैं । प्रेमचंद के साहित्य में भारत साँस लेता है । आपको अगर नही मिलता , तो चेतन और चेतना दोनों जिम्मेदार हैं ।

मोहम्मद रफी -

तुझे नगमों की जान अहले नज़र यूँ ही नही कहते
तेरे गीतों को दिल का हमसफ़र यूँ ही नही कहते
महफिलों के दामन में , साहिलों के आस पास
ये सदा गूंजेगी सदियों तक दिलों के आस पास

ये कॉल हैं हमारे अपने शहर के नौशाद साहब के जो उन्होंने रफी साहब के इंतकाल पर ३१ जुलाई १९८० को कहे थे । ३५ साल और २६०००० गाने । इतने लंबे सफर को ब्लॉग में समेट पाना तो मुमकिन नही है लेकिन इतना ज़रूर कहूँगा की रफी साहब संगीत के उस सुनहरे दौर की अगुआई करते हैं जिसके बारे में पंडित जसराज ने कहा था की , तब संगीत सुनो तो सर हिलता था , आज पैर हिलते हैं ,स्तर कहाँ पहुँचा है इसका अंदाज़ आप लगा सकते हैं ।

Tuesday, July 29, 2008

हादसे.... ख़बर .....और आंसू !






एक न्यूज़ चैनल में काम करता हूँ इस नाते मौका मिलता है खबरों को ज़्यादा नज़दीक से देखने का, ज्यादा जानकारी पाने का और उनको ज्यादा समझने का......... साथ ही साथ उनसे ज्यादा उदासीन होना और अधिक संवेदनाहीन होने का ! परसों बेंगुलुरु में धमाके हुए और कल हुए अहमदाबाद में और बेशक सारे मीडिया में यह सब छाया रहा। दोनों दिन ऑफिस में ही था और अभी फिलहाल ऐसे विभाग में हूँ जहाँ बहुत अधिक काम नहीं रहता सो न्यूज़ डेस्क पर बैठा रहा। फिलहाल पहले चर्चा धमाकों की क्यूकि पत्रकार हूँ उसके बाद बात जिरह अपने मन की क्यूंकि साहित्यकार मन है। सुरक्षा एजेंसियों को लगातार मिली सूचनाओं के बावजूद निश्चित रूप से ये गृह मंत्रालय और सुरक्षा तंत्र की ज़बर्स्दस्त विफलता ही कही जाएगी कि देश के दो बड़े शहरो में लगातार दो दिन के लिए बम धमाके होते रहे और एक दो नही बेंगुलुरु में २५ जुलाई को १० विस्फोट हुए और कल अहमदाबाद में एक के बाद एक १६ बम पते जिसमे कुल मिलाकर 46 लोग मारे गए और १०० से अधिक घायल हुए।


जिम्मेदार अधिकारी तो इस मामले पर अपना पल्ला झाड़ते नज़र आए ही नेताओं ने इस पर इतने गैरजिम्मेदाराना बयान दिए कि क्या कहें। खैर उनके बयान तो आप पढ़ ही लेंगे पर सोचने की बात है कि संसद में लोकतंत्र की नौटंकी बना देने वाले इस समय चुप हैं या एक दूसरे पर आरोप मढ़ने में जुटे हैं मतलब कुल जमा फिर नौटंकी और राजनीतिक दांव पेंच ! ये दुखद है पर आश्चर्यजनक नहीं ..... क्यूंकि किसी नेता का कोई परिजन इस घटना का शिकार नही हुआ और आजकल आदमी राजनीति में आता तभी है जब सारी संवेदना मार देता है। किसी शायर की चंद लाइन याद आ रही हैं ,
कभी मन्दिर, कभी मस्जिद कभी मैखाने जाते हैं
सियासी लोग तो बस आग को भड़काने जाते हैं


सियासी लोग तो खैर सियासी हैं पर अब बात मन की .............. तो फिलहाल एक समाचार चैनल में काम कर रहा हूँ और पिछले दो दिनों में काफ़ी कुछ देखना पडा। ख़बर आई कि धमाके हो गए हैं ....... पहले २ फिर ४, फिर ६ और अब १६ ........................मन डरा , उत्तेजित हुआ भागादौडी मच गई और लगी ख़बर पे ख़बर...........लाइव पर लाइव .......... शॉट्स...फीड्स........बाइट्स और खेल ख़बर का जितने धमाके बढ़ते गए उतनी ही टी आर पी ! आश्चर्य या कहूँ दुखद आश्चर्य ये हुआ कि अधिकतर लोग बहुत या बिल्कुल दुखी नही थे। कुछ तो शायद काफ़ी उत्साहित थे ....... ख़बर को लेकर ! असाइंमेंट डेस्क आतंकवादियों को गालियाँ बक रहा था ...... इसलिए कि आज भी जल्दी घर नहीं जाने दिया .............. रिपोर्टर इसलिए कि वीकएंड ख़राब कर दिया और डेस्क इसलिए कि अब सन्डे को भी आना पड़ेगा ........ सीनिअर लोग चहक रहे थे कि अबकी टी आर पी आने दो ......... कुल मिला के लोग दुखी और नाराज़ थे पर इसलिए कि उनको काम ज्यादा करना पड़ेगा। शायद गिने चुने लोग होंगे जो इस ख़बर को ज़िम्मेदारी समझ कर चला रहे होंगे !


खैर मेरा घर जाने का वक़्त हो चला था ........ डेस्क के बड़े लोग सनसनीखेज एंकर लिंक और धाँसू पैकज लिखने में जुट चुके थे .......... उन सबका मूड ऑफ़ हो रहा था पर मेरा मन भारी हो रहा था ................... मालूम था कि जब घर पहुंचूंगा तो टीवी पर सारेगामा या वौइस् ऑफ़ इंडिया चलता मिलेगा। शायद रियलिटी शो के आंसू रियलिटी से ज़्यादा रियल हैं और तभी घर वालों की आंखों को नम कर पाते हैं .......................धमाको में तो रोज़ ही लोग मरते हैं !


मयंक सक्सेना

Monday, July 28, 2008

आतंक के रखवाले ........

सबसे पहले बंगलोर और अहमदाबाद में आतंक की बलि चढ़े लोगों को केव्स संचार की तरफ़ से श्रद्धांजलि ! अब ज़रा आपको बताऊँ की मैंने पोस्ट को ये नाम क्यूँ दिया ? २००६ में उत्तर प्रदेश सरकार नें सफ़दर नागौरी के ख़िलाफ़ राष्ट्र द्रोह का मुक़दमा वापस ले लिया था । वही नागौरी जो सिमी सरगना है और कुछ ही दिनों पहले इंदौर से पकड़ा गया है .... संसद पर हमले के दोषी अफज़ल गुरु को आज तक फांसी नही दी गयी है , कांग्रेस , पीडीपी ,और हुर्रियत के कुछ नेता खुले आम उसकी माफ़ी की बात कर चुके हैं । पोटा कानून के पक्ष या विपक्ष में मैं अपनी राय नही रख रहा , पर अगर उस क़ानून में कुछ खाम्मियाँ थीं तो उन्हें दूर करना था , न की पोटा को ही ख़त्म कर देना, अब अपनी बात , हम में से कितने लोग सार्वजनिक स्थलों पर संदिग्ध वस्तुओं या आदमियों की सुचना पुलिस को देते हैं , और आम आदमी पुलिस से डरता क्यूँ है ? अब आप बताएं की जिस देश में आतंक के इतने रखवाले मौजूद हों वहां आतंक क्यूँ नही पनपेगा ?

गौर फरमाएं !

ख़बरों का जाने कौन सा मेयार हो गया
कितने अजीब ढंग का अखबार हो गया
उसूलों की अहमियत से इंकार नही है
ज़्यादा अहम लेकिन यहाँ बाज़ार हो गया ...............'हिम लखनवी'

मेयार = मापदंड

Sunday, July 27, 2008

पाँच साल पन्द्रह हमले !



परसों और कल हुए धमाको के बारे में ज्यादा कुछ क्या बताऊ पर इतना कहना चाहूँगा कि शायद अमेरिका केवल हौवा खडा करता है वस्तुतः आतंकवाद के सबसे बड़े शिकार दुनिया में हम हैं। इसका सबूत ये है कि पिछले पाँच साल में भारत में पन्द्रह बड़े आतंकवादी हमले हो चुके हैं .............................. एक नज़र


13 मार्च 2003: मुंबई में एक ट्रेन में हुए धमाके में 11 लोगों की मौत हो गई।



25 अगस्त 2003: मुंबई में एक के एक दो कार बम धमाकों में 60 लोगों की मौत हो गई।



15 अगस्त 2003: असम में हुए धमाके में 18 लोग मारे गए जिनमें ज़्यादातर स्कूली बच्चे थे।



29 अगस्त 2003: नई दिल्ली के तीन व्यस्त इलाक़ों में हुए धमाकों में 66 लोगों ने अपनी जान गँवाई।



7 मार्च 2006: वाराणसी में हुए तीन धमाकों में कम से कम 15 लोग मारे गए जबकि 60 से ज़्यादा घायल हुए।



11 जुलाई 2006: मुंबई में कई ट्रेन धमाकों में 180 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई।



8 सितंबर 2006: महाराष्ट्र के मालेगाँव में कुई सिलसिलेवार धमाकों में 32 लोग मारे गए।



19 फरवरी 2007: भारत से पाकिस्तान जा रही ट्रेन में हुआ धमाका। इस धमाके में 66 लोगों की मौत हो गई जिनमें से ज़्यादातर पाकिस्तान के नागरिक थे.



18 मई 2007: हैदराबाद की मशहूर मक्का मस्जिद में शुक्रवार की नमाज़ के दौरान धमाका हुआ। जिनमें 11 लोगों की मौत हो गई.



25 अगस्त 2007: हैदराबाद के एक पार्क में तीन धमाके हुए जिनमें कम से कम 40 लोग मारे गए।



11 अक्तूबर 2007: अजमेर में ख़्वाज़ा ग़रीब नवाज़ की दरगाह पर हुआ धमाका। धमाके में दो लोगों की मौत हो गई.



23 नवंबर, 2007 : वाराणसी, फ़ैज़ाबाद और लखनऊ के अदालत परिसर में सिलसिलेवार धमाके हुए जिसमें 13 लोगों की मौत हो गई और 50 से ज़्यादा घायल हो गए।



13 मई 2008: जयपुर में सात बम धमाके हुए। जिनमें कम से कम 63 लोगों की मौत हो गई.



25 जुलाई 2008: बंगलौर में हुए सात धमाके। जिनमें दो व्यक्ति की मौत हो गई और कम से कम 15 घायल हुए.



26 जुलाई 2008: अहमदबाद में लगातार 1६ धमाके हुए।


Tuesday, July 22, 2008

सियासत के सौदे .....


एक बार फिर संसद शर्मसार हुई। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र फिर से दुनिया के सामने नंगा हो कर खडा हो गया। हालांकि यह पहली बार नही की भारत की संसद में कोई शर्मिंदा कर देने वाली कोई घटना घटी हो पर जिस तरह ये सब हुआ, शायद देश हमारे नेताओं को कभी माफ़ नहीं कर पाएगा।
हुआ यह की सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव के दौरान लगातार विपक्ष की ओर से सरकार पर सांसदों की खरीद फरोख्त के आरोप लगे, जिसके जवाब में प्रधानमन्त्री ने कहा की सबूत पेश करें और जवाब में भाजपा के तीन सांसद लोक सभा के अन्दर आए और पूरे देश के सामने ( लाइव ) निकाल कर रख दिए नोटों के बण्डल और चिल्ला कर कहा की ये उन्हें घूस के तौर पर दिए गए।
हो सकता है की ये रूपए उनको दिए गए हो, या फिर ना भी दिए गए हों पर दुर्भाग्य ये रहा कि ये सब देश की गरिमा की प्रतीक भारतीय संसद के अन्दर हुआ। हम सब जानते हैं कि ये सब जोड़ तोड़ होती है पर शायद कभी सोचा नही था कि ये सब टीवी पर लाइव देखने पर मिलेगा।
इधर भाजपा के सांसद अमर सिंह और अहमद पटेल पर घूस देने का आरोप लगा रहे हैं तो अमर सिंह, मुलायम सिंह और कांग्रेस सफाई देने में जुट गई है .................................... टीवी चैनलों को साल का सबसे बड़ा मसाला मिल गया है और आम आदमी परेशान है कि इन लोगों को उसने देश की रक्षा और उत्थान के लिए चुन कर भेजा है ?
अभी हाल ही में एक टीवी न्यूज़ चैनल ज्वाइन किया है और आज की बड़ी ख़बर पर लोगों का चेहरा खिला है कि आज टी आर पी का दिन है पर मेरा जी कुछ भारी हो रहा है। देख कर सोच रहा हूँ कि दुनिया शायद बहुत प्रोफेशनल हो गई है। कल के दुश्मन आज के दोस्त ....... और कल के भाई आज ..................... क्या मतलब इतना मतलबी बना देता है ?
कहीं हम सब ऐसे हो गए हैं क्या ?
क्या सच हमेशा इतना ही कड़वा होता है ?
बशीर बद्र साहब के कुछ शेर याद आ गए हैं तो रख ही देता हूँ .....
जी बहुत चाहता है सच बोलें क्या करें हौसला नहीं होता ।

दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों ।

वो बड़े सलीके से झूठ बोलते रहे
मैं ऐतबार ना करता तो और क्या करता

कभी सोचा नहीं था कि हमारे प्रतिनिधि देश के विकास के प्रतिरोधक बन जाएँगे ........... क्या दुर्भाग्य वाकई इतना दुर्भाग्यशाली होता है ?
...................................................
मयंक सक्सेना
mailmayanksaxena@gmail.com

Monday, July 21, 2008

माओवादियो को तगड़ा झटका


नेपाल में हुए राष्ट्रपति पद के चुनावों में माओवादियों को ज़बरदस्त झटका लगा है। हुआ ये है संविधान सभा में हुए दूसरे चरण के मतदान में नेपाली कांग्रेस के उम्मीदवार राम बरन यादव राष्ट्रपति चुनाव जीत गए हैं। राम बरन यादव ने रामराजा प्रसाद सिंह को हराया जो पूर्व माओवादी विद्रोहियों के उम्मीदवार थे.
राम बरन को कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल और मधहेशी पीपल्स राइट्स फ़ोरम का समर्थन हासिल था.
रिपोर्टों के अनुसार रामराजा सिंह को 282 मत मिले जबकि राम बरन को 308 मत हासिल हुए.
शनिवार को राष्ट्रपति चुनाव के पहले चरण में किसी को भी आवश्यक मत नहीं मिल पाए थे. राष्ट्रपति बनने के लिए 298 मतों की आवश्यकता थी.
शनिवार के मतदान में नेपाली कांग्रेस के उम्मीदवार राम बरन यादव को सर्वाधिक 283 वोट मिले थे जबकि माओवादी पार्टी के रामराजा प्रसाद सिंह 270 मतों के साथ दूसरे स्थान पर रहे थे.
दूसरे दौर के चुनाव में सिर्फ़ राम बरन यादव और रामराजा प्रसाद सिंह ही आमने-सामने थे.

लेकिन उप राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनाव में मधेशी जन अधिकार फ़ोरम के परमानंद झा विजयी रहे हैं.
उपराष्ट्रपति पद की दौड़ में माओवादी पार्टी के शांता श्रेष्ठ, नेपाली कांग्रेस के मान बहादुर विश्वकर्मा और यूएमल के अष्ट लक्ष्मी शाक्य भी शामिल थे.
मधेशी जनअधिकार फ़ोरम के परमानंद झा को 312 मत हासिल हुए थे.
नेपाल में राष्ट्रपति की भूमिका सांकेतिक रहेगी लेकिन नए सरकार के गठन में इसे अहम माना जा रहा है क्योंकि नए प्रधानमंत्री को शपथ राष्ट्रपति ही दिलाएँगे.
संवाददाताओं का कहना है कि राम बरन यादव का राष्ट्रपति चुने जाने से सरकार बनाने की माओवादियों की कोशिश को झटका लगेगा।


स्रोत : बी बी सी हिन्दी डॉट कॉम

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