एक न्यूज़ चैनल में काम करता हूँ इस नाते मौका मिलता है खबरों को ज़्यादा नज़दीक से देखने का, ज्यादा जानकारी पाने का और उनको ज्यादा समझने का......... साथ ही साथ उनसे ज्यादा उदासीन होना और अधिक संवेदनाहीन होने का ! परसों बेंगुलुरु में धमाके हुए और कल हुए अहमदाबाद में और बेशक सारे मीडिया में यह सब छाया रहा। दोनों दिन ऑफिस में ही था और अभी फिलहाल ऐसे विभाग में हूँ जहाँ बहुत अधिक काम नहीं रहता सो न्यूज़ डेस्क पर बैठा रहा। फिलहाल पहले चर्चा धमाकों की क्यूकि पत्रकार हूँ उसके बाद बात जिरह अपने मन की क्यूंकि साहित्यकार मन है। सुरक्षा एजेंसियों को लगातार मिली सूचनाओं के बावजूद निश्चित रूप से ये गृह मंत्रालय और सुरक्षा तंत्र की ज़बर्स्दस्त विफलता ही कही जाएगी कि देश के दो बड़े शहरो में लगातार दो दिन के लिए बम धमाके होते रहे और एक दो नही बेंगुलुरु में २५ जुलाई को १० विस्फोट हुए और कल अहमदाबाद में एक के बाद एक १६ बम पते जिसमे कुल मिलाकर 46 लोग मारे गए और १०० से अधिक घायल हुए।
जिम्मेदार अधिकारी तो इस मामले पर अपना पल्ला झाड़ते नज़र आए ही नेताओं ने इस पर इतने गैरजिम्मेदाराना बयान दिए कि क्या कहें। खैर उनके बयान तो आप पढ़ ही लेंगे पर सोचने की बात है कि संसद में लोकतंत्र की नौटंकी बना देने वाले इस समय चुप हैं या एक दूसरे पर आरोप मढ़ने में जुटे हैं मतलब कुल जमा फिर नौटंकी और राजनीतिक दांव पेंच ! ये दुखद है पर आश्चर्यजनक नहीं ..... क्यूंकि किसी नेता का कोई परिजन इस घटना का शिकार नही हुआ और आजकल आदमी राजनीति में आता तभी है जब सारी संवेदना मार देता है। किसी शायर की चंद लाइन याद आ रही हैं ,
कभी मन्दिर, कभी मस्जिद कभी मैखाने जाते हैं
सियासी लोग तो बस आग को भड़काने जाते हैं
सियासी लोग तो खैर सियासी हैं पर अब बात मन की .............. तो फिलहाल एक समाचार चैनल में काम कर रहा हूँ और पिछले दो दिनों में काफ़ी कुछ देखना पडा। ख़बर आई कि धमाके हो गए हैं ....... पहले २ फिर ४, फिर ६ और अब १६ ........................मन डरा , उत्तेजित हुआ भागादौडी मच गई और लगी ख़बर पे ख़बर...........लाइव पर लाइव .......... शॉट्स...फीड्स........बाइट्स और खेल ख़बर का जितने धमाके बढ़ते गए उतनी ही टी आर पी ! आश्चर्य या कहूँ दुखद आश्चर्य ये हुआ कि अधिकतर लोग बहुत या बिल्कुल दुखी नही थे। कुछ तो शायद काफ़ी उत्साहित थे ....... ख़बर को लेकर ! असाइंमेंट डेस्क आतंकवादियों को गालियाँ बक रहा था ...... इसलिए कि आज भी जल्दी घर नहीं जाने दिया .............. रिपोर्टर इसलिए कि वीकएंड ख़राब कर दिया और डेस्क इसलिए कि अब सन्डे को भी आना पड़ेगा ........ सीनिअर लोग चहक रहे थे कि अबकी टी आर पी आने दो ......... कुल मिला के लोग दुखी और नाराज़ थे पर इसलिए कि उनको काम ज्यादा करना पड़ेगा। शायद गिने चुने लोग होंगे जो इस ख़बर को ज़िम्मेदारी समझ कर चला रहे होंगे !
खैर मेरा घर जाने का वक़्त हो चला था ........ डेस्क के बड़े लोग सनसनीखेज एंकर लिंक और धाँसू पैकज लिखने में जुट चुके थे .......... उन सबका मूड ऑफ़ हो रहा था पर मेरा मन भारी हो रहा था ................... मालूम था कि जब घर पहुंचूंगा तो टीवी पर सारेगामा या वौइस् ऑफ़ इंडिया चलता मिलेगा। शायद रियलिटी शो के आंसू रियलिटी से ज़्यादा रियल हैं और तभी घर वालों की आंखों को नम कर पाते हैं .......................धमाको में तो रोज़ ही लोग मरते हैं !
मयंक सक्सेना
बहुत सार गर्भित पोस्ट...हम कितने उदासीन हो गए हैं अपने आस पास के परिवेश के...
ReplyDeleteनीरज
एक उम्दा पोस्ट.हम सब की संवेदनाऐं मरती जा रही हैं.
ReplyDeletekya karoge yaad rakho, ganda hai par dhandha hai ye....
ReplyDeleteAjeet ghar kee safai ghar vaale hi karte hain baahar vale nahi..... ho sakta hai dhadha hai ye par ganda rahne de to phir bhaiya ..... jaanvar bhi baithne se pahle poochh se zameen jhaad lete hain !
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeletemayank ji hamre tumhare jaise na jaane kitne journalists, apne wasoolon aur apne peshe ki majbooriyon ke saath, dohri jindagi jee rahe hain.. ve chahkar bhi kuch nahi kar pate...isliyee mujhe lagta hai ki apne peshe se jude, vyaktigat karyon me manviya sanvedansheelta ko bachaye rakheeye... samajhit me yahi bahut jyada hoga is baazarwad ke yug me....
ReplyDelete