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Wednesday, December 31, 2008

नया साल मंगलमय हो !

वर्ष नव,
हर्ष नव,
जीवन उत्कर्ष नव।
नव उमंग,
नव तरंग,
जीवन का नव प्रसंग।
नवल चाह,
नवल राह,
जीवन का नव प्रवाह।
गीत नवल,
प्रीत नवल,
जीवन की रीत नवल,

जीवन की नीतनवल,
जीवन की जीत नवल

तस्वीरों में २००८ (भारत)

साल २००८ ख़त्म होने में कुछ घंटे ही बचे हैं......तो इसे सलामी देते हुए हम लाये हैं, २००८ की कुछ ऐसी तसवीरें जिन्हें भारत हमेशा याद रखेगा.....क्यूंकि हम विशवास करते हैं कि एक तस्वीर - हज़ार अफ़साने !


देखिये कुछ ऐसी ही खट्टी मीठी स्मृतियाँ २००८ की .........अलविदा २००८ क्यूंकि गया वक़्त कभी लौट कर नही आता बस उसकी याद आती है .......


जनवरी 2008


टाटा ने दिखाई सपनो की कार नैनो ....पर अभी सपना नैनो में ही


फरवरी २००८


पकड़ा गया किडनी काण्ड का मुख्य आरोपी डा अमित ..... तेवर तो देखो ज़रा !


मार्च २००८

छठे वेतन आयोग ने दी कर्मचारियों को आशाओं की लॉलीपॉप
अप्रैल २००८

भारत ने एक साथ १० उपग्रह एक ही यान से छोड़े, विश्व रिकॉर्ड
मई २००८


आरक्षण की आग से गुर्जरों ने फूँका राजस्थान, चुनाव में भी हुआ उलटफेर
जून २००८

पेट्रोल, डीसेल में लगी आग, गैस और ज्वलनशील .... हुई मंहगी !

जुलाई २००८

नेता क्या चाहे वोट, संसद में उछाले नोट !


अगस्त २००८

नेताओं की बेशर्मी को युवाओं ने धोया....ओलंपिक में गाडे झंडे पहली बार !


सितम्बर २००८
उडीसा में चर्च के ख़िलाफ़ हिंसा, सरकार बेबस !
अक्टूबर २००८
ज़मीन का कदम चाँद पर, भारत की शान - चंद्रयान !
नवम्बर २००८

भारतीय नौसेना ने उडाये समुद्री लुटेरों के छक्के, बार बार लगातार
दिसम्बर २००८

विधानसभा चुनावों में जनता जीती, दिग्गज हारे...दिया विकास को वोट !
दोस्तों ये था केव्स परिवार की ओर से २००८ की प्रमुख घटनाओं (भारत) का एक एल्बम ....आगे अभी और बहुत है....कल भी ....परसों भी....१० दिन तक
फिलहाल
नए साल की मुबारक एडवांस में .....!
शुद्ध ह्रदय की ज्वाला से विशवास दीप निष्कंप जलाकर
कोटि कोटि पग बढे जा रहे तिल तिल जीवन गला गला कर
जब तक ध्येय ना पूरा होगा, तब तक पग की गति ना रुकेगी
आज कहे दुनिया चाहे कुछ, कल को बिना झुके ना रहेगी
देश के नाम अपनी पाती भेजें @gmail.com पर
और
हमें नए साल पर अपने लेख, रचनाएँ भेजें cavssanchar@gmail.com पर !


देश एकजुट है

हमारे देश मैं यूँ तो आतंकवादी घटना कोई नई बात नही आए दिन हो ही जाती है। गोया आतंकवादी घटना कोई नोटिस करने जैसी चीज ही नही है ये कहना हमारे देश के उन जिम्मेदार राजनेताओं का है जिन्हें हम वोट देकर भइया आए हैं और नई चेतना लाये हैं ,भइया नही ये आंधी हैं हमरे क्षेत्र के गाँधी है। टाइप टाइप के नारे लगातेहैं और अंत मेभइया के जवाबों से अवाम का सीना छलनी होता है तो भइया के ठेंगे से। भोपाल सहर मैं एक गुंडा है उसका नाम बल्ली है, आरिफ अकील के लिए भोपाल मैं आरिफ नगर की झुग्गी झोपडी मैं वसूली करना उसका काम है। कुछ दिन पहले एक काम के सिलसिले मैं हमारी बात हुई तो उसने कहा "बहुत गोलियां चलाई है भाई,४५ मुकदमे हैं पे खुदा कसम एक बार बॉर्डर पे छोड़ दो तो कम से कम ८-१० को तो मार कर मरूँगा ये हमारेदेश के उन लोगों का कथन है जिन्हें हमारी सरकार , हमारी पुलिस, जनता सभी अपराधी कहती है और भइया तो भइया ही हैं
अगर देश का अपराधी वर्ग भी राष्ट्र सेवा के लिए इतना तत्पर है तो हम पीछे कैसे रह सकते हैं । हम जहाँ भी हैं जो भी हैं राष्ट्र के काम मैं समर्पित हैं और रहेंगे

Tuesday, December 30, 2008

केव्स संचार पर नए वर्ष के स्वागत समारोह में शामिल हों !

केव्स संचार पर हम अपनी तरफ़ से तो आपके लिए नए वर्ष के स्वागत में काफ़ी कुछ प्रकाशित करेंगे ही, हम चाहते हैं कि आप पाठक भी इस स्वागत समारोह में हमारे साथ शामिल हों.....यह विशेष अंक १० जनवरी तक चलेगा....हम चाहते हैं कि आप हमें अपनी रचनाएँ, अपनों के नाम संदेश हमें भेजें.....हमारा ई मेल पता है cavssanchar@gmail.com
यही नहीं हम एक विशेष अभियान " देश के नाम, देश की पाती" भी लेकर आए हैं जिसमे आप हमें आतंकवाद के ख़िलाफ़ भारत कितना एक जुट है इसके लिए अपने शुभकामना संदेश भारतीयों के नाम भी भेज सकते हैं इसके लिए हमें अपने संदेश भेजें jantajanaardan@gmail.com ! सर्वश्रेष्ठ संदेश हम रोज़ प्रकाशित करेंगे और अंत में उन पर आधारित एक विशेष आलेख प्रकाशित करेंगे !

Monday, December 29, 2008

जम्मू कश्मीर में चुनाव नतीजे, सवाल और संभावनाएं ....

एक बहुप्रतीक्षित जिज्ञासा का समापन हुआ और कल देर शाम तक जम्मू और कश्मीर की सभी ८७ विधानसभा सीटों के चुनाव नतीजे हम सबके सामने थे। इन नतीजों से चारों तरफ़ काफ़ी नतीजे निकाले जा सकते हैं और सबसे बड़ी बात किकुछ चीज़ों पर विचार करने की भी आवश्यकता महसूस होती है। क्या सोचने की ज़रूरत है इस पर अगली पोस्ट में चर्चा की जायेगी पर क्या अलग अलग बातें निकल के आती हैं उस पर बात करते हैं। सबसे पहले बात नतीजों की,
चुनाव परिणाम जहाँ कि कहा जा रहा है कि जनता ने लोकतंत्र को जिताया है इस प्रकार रहे,
नेशनल कोंफ्रेंस: २८ सीट
पीपुल्स डेमोक्रटिक पार्टी: २१ सीट
कोंग्रेस: १७ सीट
भाजपा: ११ सीट
अन्य: १० सीट
दरअसल इन परिणामों को किसी एक वाद या धरा से जोड़ कर देखना मुश्किल है....और यह दूसरी बार है जब कश्मीर में जनता ने एक त्रिशंकु विधानसभा चुनी है। कौंग्रेस को ज़ाहिर तौर पर नुक्सान हुआ पर उस नुक्सान का फायदा किसी एक दल को मिलने की जगह बनता हुआ नज़र आया है और यह दिखा रहा है कि जनता के अलग अलग धडो में अलग अलग विचार चल रहा था।
नेशनल कौन्फ्रेंस की सीट पिछली बार भी उतनी ही थी और इस बार भी उतनी ही रही इसका सीधा अर्थ यह है कि उन्होंने कोई तीर नहीं मारा है और वे वहीं खड़े हैं...पर कौंग्रेस की सीट कम होने का फायदा उसे मिला। इससे यह ज़रूर कहा जा सकता है कि फारूक और उमर के लिए कश्मीरी अवाम का प्यार कम नहीं हुआ है पर बढ़ा भी नहीं है।
उधर पी डी पी की सीट पिछली बार की सोलह से बढ़कर इस बार २१ हो गई है, इसके दो कारण हो सकते हैं एक यह कि वे शायद अपनी बारी में कुशल प्रशासन दे सके (जो कहना अतिश्योक्ति होगा) और दूसरा यह कि वह इन चुनावों में अपने पुराने घिसे पिटे कश्मीरियत/ स्वायतता के राग और अमरनाथ बवाल को भुनाने में सफल रही। पर सीट बढ़ने पर भी सरकार बना पाने की स्थिति में वह नही दिखती है।
कौंग्रेस दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से अमरनाथ विवाद का शिकार हो गई। गुलाम नबी की सरकार ने काम ठीक ठाक किया पर अमरनाथ विवाद में जम्मू के हिन्दुओं से उन्होंने नाराजगी मोल ली और उनकी नाव गोते खाने लगी हालांकि अभी भी सत्ता की चाबी उनके ही पास है।
सबसे ज्यादा किसी को फायदा हुआ तो वह है भारतीय जनता पार्टी, सही समय पर मौके की नब्ज़ पकड़ कर उसने जिस तरह जम्मू में अमरनाथ विवाद को हवा दी और उग्र आन्दोलन चलाया; उसका पूरा फायदा उसे हुआ। एक बार फिर भाजपा को ईश्वर के नाम का सहारा मिला और इस तरह धर्म के चोर दरवाज़े से भाजपा जम्मू कश्मीर में अपनी राजनीतिक ज़मीन तलाशने में कामयाब हुई। भाजपा को ११ सीट मिली हैं जबकि पिछली बार वह १ सीट ही जीत पायी थी।
पर शायद सबसे बड़ा नुक्सान किसी का हुआ है तो वह है अन्य जिनमे अधिकतर निर्दलीय हैं, वे बेचारे २२ से घटकर १० पर आ गए हैं। इनका सबसे बड़ा नुक्सान किया है भाजपा ने और फिर पीपुल्स डेमोक्रटिक पार्टी ने, शायद यह पिछली बार वाली संख्या में होते तो कौंग्रेस की जगह इनके हाथ में सत्ता की चाबी होती।
लेकिन जब हम इन चुनावों के परिणामों का विउश्लेशन करेंगे तो कई चौकाने वाली बातें निकलेंगी। पहला तो यह कि जम्मू की और कश्मीर की अवाम की सोच बिल्कुल अलग अलग है। भाजपा की चकित करने वाली बढ़त ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि अमरनाथ मुद्दे पर वह भाजपा के रुख का समर्थन करती है। दूसरी ओर कश्मीर की अवाम ने पी डी पी को ज्यादा सीट दे कर कहीं न कहीं अमरनाथ मुद्दे पर जम्मू की जनता से विरोध जताया है और कहीं न कहीं इसके और भी खतरनाक छुपे संकेत हैं और वह है कि कट्टरपंथी पूरे भारत की तरह यहाँ भी हावी हैं।
यही नहीं निर्दलियों की घटती संख्या यह भी संकेत देती है कि लोग निर्दलीय उम्मीदवार की जगह पार्टी को वोट देना बेहतर समझ रहे है जबकि पिछली बार की स्थिति इससे अलग थी। लेकिन उससे भी बड़ी बात यह है कि लोगों ने वहाँ की सबसे पुरानी राष्ट्रीय पार्टी कौंग्रेस की बजाय क्षेत्रीय दल को वोट देना बेहतर समझा।
पर सबसे बड़ा जो सवाल मेरे जेहन में उठ रहा है कि कहीं यह जम्हूरियत के साथ साथ अलगाववाद को भी वोट तो नहीं है ? जम्मू और कश्मीर में एक ही मुद्दे पर आधारित मतदान के दो परस्पर विरोधी रुख कहीं जम्मू और कश्मीर में दो ध्रुवों के कट्टरपंथ की हवा के दिशा सूचक तो नहीं ? कहीं ऐसा तो नहीं की कश्मीर के लोग अलगाव वाद के रास्ते पर चलते हुए मूलभूत विकास भी चाहते हैं और इस लिए वोट भी करते हैं ?
हालांकि ऐसा पूरी तरह नहीं कहा जा सकता क्यूंकि पी डी पी ने जम्मू में भी २ सीट जीती हैं, फिर भी सवाल बड़े हैं क्यूंकि भले ही सरकार इन चुनावों को जम्हूरियत की जीत बता रही हो, गौर से देखने पर यह कट्टरपंथ की बढ़त भी है। क्या भाजपा की बढ़त बदलाव का संकेत है या घाटी में राजनीतिक कट्टरपंथ के नए युग कान सूत्रपात ? क्या केवल चुनाव हो जाना और सरकार बन जाना NC और पी डी पी के भारतीय समर्थक दल होने का प्रतीक हैं या इस बहाने अप्रत्यक्ष रूप से अलगाव वाद के एजेंडे को आगे बढाया जा रहा है और वह भी सरकारी खर्चे पर. सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि अलगाववादी गुटों की अनदेखी कर के मतदान तो हुआ है पर आज भी वहा के अवाम के लिए बड़ा क्या है, भारतीयता या कश्मीरियत ?

Thursday, December 25, 2008

जन्मदिन की माया

औरय्या में लोक निर्माण विभाग के इंजिनियर को कुछ लोगों ने पीट-पीट कर मार दिया। कातिल उत्तर प्रदेशके हुक्मरानों से जुड़े बताये जा रहे हैं । इंजिनियर भयमुक्त समाज की दृष्टा मायवती की सालगिरह नहीं मानना चाहता था । ये घटना इस बात को दिखाती है की अगर झूठे दावों और आत्ममुग्ध भाषणों का मेकप न लगा हो तो हिन्दुस्तान की जम्हूरियत का चेहरा कितना खौफनाक है । मैं राजनीति को गाली देने का हिमायती कभी नही रहा , न ही मैं राजनीति के प्रति किसी दुराग्रह से प्रेरित हूँ , लेकिन इस बात को लिखते हुए बहुत कष्ट होता है हमारे यहाँ राजनीतिकी देवी को बाहुबलियों और गुंडों ने अगवा कर लिया है , गुंडे कभी उसे साइकिल के कैरियर पर बैठाल कर घुमते हैं तो कभी हाथी पर । और राजनीति बस मुल्क की रहगुज़र पर बेसबब चलती रहती है
अलवा ने जब कोंग्रेस में टिकट बेचने की बात कही तो माया ने एक राहत की साँस ली होगी की कम से कम टिकट के हमाम में कई नंगे और भी हैं लेकिन जन्मदिन को लेकर बसपा जैसी व्हिप कही नही जारी होती होगी । मायावती के पिछले जलसों पर भी उप के कई अधिकारी वर्दी में उन्हें अपने हाथों से केक खिलाते देखे गए हैं , जबकि ये वही माया हैं जो उत्तर प्रदेश के कृषि आयुक्त अनीस अंसारी को इसलिए हटा देती हैं की उनकी पत्नी ने सरकारी घर पर फैशन शो किया जो की सरकार की गरिमा को ठेस पहुचने वाला काम था ।
मायावती २००७ में जब सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूला से मुख्यमंत्री बनी थी तो जनता ने पहली बार उनसे सकारात्मक उम्मीद की थी । शायद माया ने भी अपने से कुछ ज्यादा उम्मीदें पाल राखी थी तभी उन्होंने प्रधानमंत्री की कुर्सी पर भी नज़र दाल ली , लेकिन इस प्रकरण ने माया को तो न सही जनता को तो ये बता ही दिया है की लोकतंत्र में सिर्फ़ वोट देना और सही व्यक्ति को चुन लेना दो अलग अलग बातें हैं । फिलहाल बहिन जी कह रही हैं की इस घटना को उनके जन्मदिन से जोड़ कर देखना ग़लत है, और रिपोर्ट दर्ज होने , हर्जाना , दोषियों के ख़िलाफ़ कार्यवाही जैसी बातें , लेकिन माया ये भूल जाती हैं की सियासत के ताज में कांटे भी होते हैं । हर्जाना तो शायद मजाक जैसा ही होता है और कार्यवाही के बारे में तो सबको पता है.......

क्रिसमस और ईसा की बात .....

आज क्रिसमस है...और कल से ही इसे मनाने की शुरुआत हो चुकी है, क्रिसमस के दिन / रात कहा जाता है कि ईसा का जन्म बेथलेहेम में हुआ था....ईसा जिन्होंने ईसाइयत से ज्यादा मानवता की सीख दुनिया में फैलाई। पता नहीं पर हम में से ज़्यादातर लोग उन्हें ईसाई धर्म के प्रवर्तक के रूप में ज्यादा जानते हैं ( ईसाई भाई भी ) और ऐसा शायद दुनिया के ज़्यादातर प्रचारकों के साथ हुआ। फिर चाहें वो मोहम्मद रहे हों या बुद्ध ......

दरअसल समस्या यह रही कि हम लोगों को उनके द्वारा कही गई बातों और उनके द्वारा किए गए कामों से ज़्यादा उनके अनुयायियों की कट्टरता से जोड़ कर देखते हैं। हम अपने भी धर्म प्रचारकों के धर्म प्रचार को तो याद रखते हैं पर उनकी मूल शिक्षाओं को भूल चलते हैं, यही इस्लाम के साथ हुआ और कमोबेश यही हुआ ईसाइयत के साथ। बाद के धर्मावलम्बियों ने ईसा या मोहम्मद की शिक्षाओं की जगह केवल और केवल धर्म के प्रचार को लक्ष्य बना लिया और वह भी किसी भी तरीके से।

कुछ ऐसे लोग जिन्होंने अपनी ताकत से अपनी धार्मिकता के प्रसार का तरीका अपनाया उन्होंने हिंसा का सहारा लिया, प्रलोभन का सहारा लिया, अन्य समाजों में व्याप्त अशिक्षा का सहारा लिया और दुर्भाग्य वश उनकी वजह से एक आम मुसलमान या आम ईसाई को भी कट्टर या हिंसक होने के ठप्पे नवाज दिया गया।

गलती उनकी भी थी जिन्होंने धर्म की भावना के बजाय धर्म का प्रसार करना चाहा और उनकी भी जिन्होंने हर उस धर्म के अवलंबी को ग़लत मान लिया ...... गलती उनकी भी रही जिन्होंने अपने धर्म की पंथ की मूल बातों की जगह केवल कर्मकांडों के पालन को ही धर्मावलंबन बना लिया। फिर चाहे वो अन्धविश्वासी हिन्दू रहे हों, हर मुहर्रम पर पुरानी धारणाओं को लेकर लड़ पड़ने वाले मुसलमान या चर्च के प्रति अंधभक्ति में मासूम स्त्रियों को डायन कह जला देने वाले ईसाई !

आज जयंती है ईसा की .....इसे मनाएं उस ईसा की याद में जिसने येरुशलम के तानाशाहों के खिलाफ अहिंसक लड़ाई की ....वो जिसने बताया कि बाँट कर खाने पर एक रोटी भी पूरे कुनबे का पेट भरती है। ईसा वो महापुरुष थे जिन्होंने कहा कि दूसरे पर ऊँगली उठाने से पहले ख़ुद के गुनाह गिनो !

मनाये उस ईसा का जन्मदिन जिसने सलीब पर लटकते वक़्त अपने कातिलों के लिए कहा था,

" हे प्रभु इन्हे माफ़ कर देना, क्यूंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं !"

क्यूँ न सीखें हम सब एक दूसरे को माफ़ करना हर परिस्थिति में ?

कहते हैं कि क्रिसमस पर सच्चे दिल से सांता क्लाज़ से जो मांगो वो मिलता है....तो क्यूँ न मांग लें एक खूबसूरत दुनिया ...... जहाँ हम सबकी अच्छी बातों को अपना लें .....बुराइयों को बताएं उन पर चर्चा करें और अपने मन से उखाड़ फेंकें.......ईर्ष्या, द्वेष और शत्रुता .......क्यों न सीखें दोस्ती करना दुश्मन से भी..अपनी नफरत का ज़हर अपने बच्चों तक ना जाने दें!....और आखिरकार बना पाएं इस दुनिया को रहने के लिए एक बेहतर जगह !

बशीर बद्र का कहा याद रखें,

ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे

कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे

हँसो आज इतना कि इस शोर में

सदा सिसकियों की सुनाई न दे

ग़ुलामी को बरकत समझने लगें

असीरों को ऐसी रिहाई न दे

ख़ुदा ऐसे इरफ़ान का नाम है

रहे सामने और दिखाई न दे

अंत में क्रिसमस का विश्वप्रसिद्ध गीत प्रस्तुत है एक अलग अंदाज़ में !

Sunday, December 21, 2008

गरीबी

एक कवि था जिसने हमें यह बताया की किस प्रकार प्रेम की कोमल अनुभूतियों और जीवन के कड़वे सच को एक साथ बिठा कर दोनों से बातें की जा सकती है.....एक कवि था जिसने तब द्रोह्गान किया जब दुनिया उसकी दुश्मन थी, एक कवि हुआ जिसने लिखा वो जो लिखा ना गया उसके पहले न उसके बाद......

१९७१ में पाब्लो नेरुदा को साहित्य का नोबेल मिला तब वे किस्मत से फ्रांस में चिली की राजदूत थे नहीं तो शायद फरारी में होते और अपना पदक लेने भी ना जा पाते। १२ जुलाई १९०४ को चिली के छोटे शहर पराल में पैदा हुए नेरुदा ने तानाशाहों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई और देश छोड़ने को मजबूर हुए, इटली में शरण लेने गए तो वहाँ भी छुप छुप कर रहे.....अलग अलग तरह की कवितायें लिखी....एक ओर प्रेम की आकांक्षाओं से भरी तो दूसरी ओर बगावत और यथार्थ के तेवरों से भरी......ऐसी ही एक कविता पेश है.........

इस कविता का अनुवाद प्रसिद्द कवि सुरेश सलिल ने किया है और उनके अनुदित नायक के गीत संग्रह में यह कविता उपलब्ध है।

गरीबी

आह, तुम नहीं चाहतीं--
डरी हुई हो तुम
ग़रीबी से

घिसे जूतों में तुम नहीं चाहतीं बाज़ार जाना
नहीं चाहतीं उसी पुरानी पोशाक में वापस लौटना
मेरे प्यार, हमें पसन्द नहीं है,
जिस हाल में धनकुबेर हमें देखना चाहते हैं,
तंगहाली ।

हम इसे उखाड़ फेंकेंगे दुष्ट दाँत की तरह
जो अब तक इंसान के दिल को कुतरता आया है
लेकिन मैं तुम्हें
इससे भयभीत नहीं देखना चाहता ।

अगर मेरी ग़लती से
यह तुम्हारे घर में दाख़िल होती है
अगर ग़रीबी
तुम्हारे सुनहरे जूते परे खींच ले जाती है,
उसे परे न खींचने दो अपनी हँसी
जो मेरी ज़िन्दगी की रोटी है ।

अगर तुम भाड़ा नहीं चुका सकतीं
काम की तलाश में निकल पड़ो
गरबीले डग भरती,

और याद रखो, मेरे प्यार, कि
मैं तुम्हारी निगरानी पर हूँ
और इकट्ठे हम
सबसे बड़ी दौलत हैं
धरती पर जो शायद ही कभी
इकट्ठा की जा पाई हो ।

पाब्लो नेरुदा

Saturday, December 20, 2008

रास्ट्रीय जांच एजेंसी

बड़े कयासों अरु तमाम बेकसूर लाशों के ढेर ने सरकार को आखिरकार मजबूर कर ही दिया, और अब आतंकवाद के खिलाफ भारत का नया कानून तैयार है। नाम- राष्ट्रीय जांच एजेंसी, १६ दिसम्बर २००८ है। कानून कुछ यूँ है कि संदिग्घ आतंकी को पुलिस हिरासत में एक महिना, न्यायिक करवाई में आधिकतम छह महीने, पुलिस के सामने दिए बयान को सही और आतंकी कामो के पैसे के जुटाव के लिए सजा-ऐ-मौत है। साथ ही गैर कानूनी गतिविधि अधिनियम १९६७ को भी संशोधित किया गया । अब गौर फरमाइए कि ये कानून सिर्फ उपाय भर है। ये कहता है कि अगर धमाका हुआ या चलो होने वाला हो,तो क्या कदम उठायेगे। बचाव का कहीं नामोनिशान नही है। अगर अमेरिकी कानून को देखे तो उसमे कही से कोई लूप होल्स नज़र नही आते। परिणाम भी हमारे सामने है, ९/११ के बाद कोई ब्लास नहीं हुआ। हमारे कानून में सीमा पार से आने वाले हर व्यक्ति कि गहराई से पूछताछ और उँगलियों के निशान लेने जैसा कोई प्रावधान नही है। तो भाई इस कानून को बचाव कानून कहने में कोई गुरेज नाहीं होना चाहिए। खैर, सरकार के कान पर जू तो रेंगा। ये कोई छोटी-मोटी बात नही है। अब बात आती है इसके पालन की। क्यूंकि पोता का हश्र सभी ने देखा है, किस तरह राजनितिक तुष्टिकरण के लिए इसका प्रयोग हुआ। आतंकवाद का फन तो तभी कुचला जा सकता है,जब नेता भी अपनी गन्दी राजनीति छोड़ एकजुट होंगे। नही तो बिना धमाको के भारत , का ख्वाब पुरा होने वाला नही है। आए दिन होने वाले विस्फोट का एक कारन और है की भारत की खुफिया एजेंसियां ,सैन्य विभाग और तमाम पुलिस बल एक चैन में नज़र नही आते। अलग-अलग ध्रुवों के रूप में नज़र आते हैं। इनमे कही से कोई लिंक ही नही नज़र आता। अगर ये भी आपस में जुड़ जाएँ तो मजाल नाहीं आतंकियों की, की भारत में पर (पंख ) भी मार सके।
neha gupta भोपाल

आतंकवाद बनाम देश की सुरक्षा

भारत १९९० से ही आतंकवा की आग में जल रहा है .तब से लेकर अबतक कई सरकारेंआई और गई .लेकिन समस्या जस की तस् बनी हुई है बल्कि अब यह खतरनाक रूपधारण कर चुकी है .१९७० का मीसा,१९८० का राष्ट्रीय रक्षा कानून,१९८७ काटाडा हो या फिर २००२ का पोटा कानून सब के सब अबतक निकम्मे साबित हुए हैं.सुरक्षा एजेंसियों का कहना ही क्या १९२० का इंटेलिजेंस ब्यूरो,१९६३ कासीबीआई हो या फिर रा ,देश की सुरक्षा में सेंध लगती रही और येटुकुर-टुकुर देखते रहे. इन्होने अपने आवारापन की हद कर दी. राष्ट्रीयसुरक्षा गार्ड (एन एस जी ) की स्थापना १९८४ में आतंकवाद से लड़ने के लिएकी गई थी,लेकिन यह सिर्फ़ दमकलकर्मी बनकर रह गई है जो आग लगने पर आगबुझाने का काम करती है. १९७० से लेकर २००८ तक भरत पर कुल ४२०० सौ हमलेहुए जिनमें १३००० से ज्यादा लोग मारे गए यानि ३६५ दिन लगभग ३६५ जानेंआतंकी पागलपन का शिकार हुईं. लेकिन इससे भी कहीं ज्यादा जानें घरेलुआतंकवादियों यानी की पुलिस प्रशासन ने ले ली ,जिस पर सरकार का भी ध्याननहीं गया. दोनों के जान लेने के तरीके अलग हैं एक तूफानी आग से एक झटकेमें मौत के घाट उतारता है तो दूसरा तहखानों में आम गरीब जनता को तड़पकरमारता है. अब तो रक्षक ही जब भक्षक बन जायें तो फिर क्या कहना. इसी बीचदेश में नक्सलवाद,सांप्रदायिक दंगे,क्षेत्रीयता काजहर,हत्या.बलात्कार,अपहरण राजनीती का अपराधीकरण भी खूब पहला-फूला है.परताज़ा हमले ने देश की जनता की बौखलाहट बढ़ गई है. अबतक देश ने जितने भीदहशतगर्दी के तांडव देखे हैं उसमें पकिस्तान और बांग्लादेश का ही हाथ रहाहै ये सभी जानते हैं. और हमारे नेता हैं की अपनी सहनशीलता का डंका दुनियाभर में बजवा रहे है कितने महान है हम ये सबको बता रहे हैं . शिवराजपाटिल,आर.आर.पाटिल और विलास राओ देशमुख की विदाई हो गई वहीं आनन्-फाननमें सरकार ने राष्ट्रीय जांच एजेन्सी (एन.आई.ऐ.) बनानी पड़ी जिसके लिए गैरकानूनी गतिविधियाँ उन्मूलन अधिनियम,१९६७ में संशोधन करना पड़ा. यहाँ सवालयह उठता है की क्या वैश्विक मंच पर आतंकवाद का रोनारोने,गृहमंत्री,वित्तमंत्री,मुख्यमंत्री बदल देने और नै जांच एजेन्सीगठित कर देने से क्या आतंकवाद ख़त्म हो जाएगा तो जवाब हमारे पास है नहीं.
सबसे पहले ४०९६ किलोमीटर लंबा भारत-बंलादेश सीमा,३२६८ किलोमीटर लंबाभारत-पाकिस्तान सीमा,भारत-नेपाल सीमा की पुरी तरह बदेबंदी,तथीय इलाके कीसुरक्षा को बाध्य जाए, विदेशी नागरिक पहचान कानून को सख्त बनायाजाए,आंतरिक सुरक्षा को और फुर्तीला और जांच एजेंसियों को और मुस्तैदबनाया जाए जन जागरूकता फैलाई जाए तभी दहशतगर्द रुपी भस्मासुर से निपटा जासकेगा वरना बीएसऍफ़,आईटीबीपी,सीआईएसऍफ़,सीआरपीऍफ़, होमगार्डस,वायुसेना,जलसेना,थलसेना के रहने का कोई मतलब नही रह जाएगा. कबतक हमअमेरिका,ब्रिटेन,फ्रांस के सरपरस्त बने रहेंगे. आख़िर कबतक हम अपना दुखडादुनिया के सामने रोते रहेंगे. इससे चीन, पाकिस्तान,बांग्लादेश प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से हमारे ऊपर लगातार हावी हो रहे हैं और हम चुपचाप सहनकर रहे हैं. अब वक्त आ गया है की हम मुहतोड़ जवाब दें वरना देश कीएकता,अखंडता और विकास की गति को पटरी से उतरने से कोई नही बचा पायेगा. ओमप्रकाश , भोपाल

Wednesday, December 17, 2008

हँसे या रोये

हाल-फिलहाल दो रिपोर्ट आयीं. ये दोनों रिपोर्ट देश के आर्थिक विकास में फर्क डालती हैं. पहली के ऊपर सीना ठोका जा सकता है तो दूसरी खून के आसूं रुलाने वाली है. अब पहली रिपोर्ट यूँ है कि देश कि शीर्ष १० कम्पनियाँ इस मंदी में भी बंसी बजा रही हैं. इन्हे ५२६२१ करोर का फायदा हुआ है. ऐसा लगता है कि इन कंपनियों ने मंदी के पहन को कुचल दिया है. अब बेचारी मंदी कराह रही है. वहीं राष्ट्रीय आपराध आकडे ब्यूरो की रिपोर्ट कहती है पिछले साल १६६३२ किसानो ने ख़ुद को मौत के मुंह में धकेल दिया. ४६ किसान हर दिन आत्महत्या का घूंट पी रहे हैं. सबसे ज़्यादा मौतें १९९७ में १८२९३६ हुयीं. इस दुखद दौड़ में महाराष्ट्र (४२३८) सबसे आगे है. जिसकी राजधानी पैसों की नगरी कही जाती है. जहाँ देश के नायब अमीरचंद अपना बसेरा बसाये हैं. गोवा, मणिपुर जैसे ५ राज्यों ने इस मामले में अपनी बेदाग छवि बना राखी है. एक तरफ हमारी कम्पनियाँ वैश्विक स्तर पर झंडे गाड़ रही हैं, वही हमारी कृषि आनाथ हो गई है. क्या इस ५२६२१ करोर में उन किसानो का कोई हक नही, जिनकी पीठ पर ही फायदा बरसाने वाली वट वृक्ष टिकी हैं।

नेहा गुप्ता, भोपाल.

Friday, December 12, 2008

हाँ वह मेरा बेटा है .....


मुंबई हमलों के सिलसिले में भारत में गिरफ़्तार किए गए एकमात्र चरमपंथी मोहम्मद अजमल अमीर क़साब के पिता ने पाकिस्तान के प्रतिष्ठित समाचारपत्र 'डॉन' से बातचीत में स्वीकार किया की मुंबई के आतंकवादी हमलों में पकड़ा गया अजमल कसाब उन्ही का बेटा है।

काफ़ी आहत दिख रहे अमीर कसाब ने कहा की, "पहले कुछ दिन तो मैं मानने को तैयार नहीं था, मैं ख़ुद से कहता रहा कि ये मेरा बेटा नहीं हो सकता, अब मैंने मान लिया है।" इससे पहले ही भारत के दावों की पुष्टि करते हुए सुरक्षा परिषद् और फिर पाकिस्तान सरकार ने लश्कर ऐ तैयबा के सियासी मोर्चे जमात उद दावा पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। हालांकि कुछ दिन पहले बी बी सी के पाकिस्तान संवाददाता ने फरीदकोट जा कर इस बात की शंका जताई थी किअजमल इसी गाँव का रहने वाला है पर आज इस बात की भी पुष्टि होने से पाकिस्तान पर दबाव बढ़ गया है। अजमल के पिता ने असहज होते होते हुए भारी मन से डॉन के संवाददाता को बताया "सच यही है कि मैंने अख़बार में जो तस्वीर देखी है वह मेरे बेटे अजमल की ही है." इससे पाक मीडिया के उन दावों की भी पोल खुल गई है जिसमे उन्होंने लगातार भारत को ही हमलों का साजिश कर्ता बताया था।

Thursday, December 11, 2008

सत्ता का उलट फेर

चुनाव प्रचार के दौरान नेताओं ने जनता के घर खूब चक्कर काटे. विनती भी की,भीता वोट ज़रूर दीजियेगा. आख़िर जाती का भी तो सवाल है. बड़े कयासों के बाद बेचैनी ख़त्म हो गई. परिणाम आ गया. जनता ने इज़हार कर दिया. कौन उसके भावनाओ को समझते हुए वादों को निभाएगा. रमन, शीला, शिवराज पर सत्ता फिर मेहरबान हुई तो राजस्थान के लिए बसुन्धरा राजे सोच रही हैं कि, जाने क्या बात हुई, लोगों का भरपूर प्यार नसीब न हुआ. साथ ही जाती को आधार बनने वाले और दागियों के मुंह पर जनता ने करार थप्पड़ मारा है. एक बात जो गौर फरमाने वाली है, वो ये है कि कांग्रेस ने जनता से अपना रिश्ता मजबूत किया है, तभी टी मिजोरम और राजस्थान में उभर आई. दिल्ली कि तो बात ही छोडिये. हलाकि बीजेपी ने छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में कमल को खिला दिया है. अगर इसे तख्त-ऐ-ताउस का सेमीफाइनल कहा जाए तो होने वाला महासंग्राम बड़ा ही दिलचस्प होगा. कौन बनेगा देश का सरताज? ये अभी जनता के तिलस्मी मंजूशे रूपी मन में बंद है. इन चुनाव परिणामो से तो एक बात साफ नज़र आती है कि जनता राज्य और केंद्रीय सत्ता को अलग-अलग चश्में से देखती है. तभी तो आतंकवाद और मंहगाई जैसे मुद्दे बैकफुट पर नज़र आए. होने वाले रास्ट्रीय राजनीति के दंगल में बड़े-बड़े सुरमा अपनी किस्मत आज्मयेगे. साथ ही ये भी सोच रहे है कि कौन सी रागिनी बिखेरी जाए, जो जनता को भाए और सत्ता का स्वाद चख लिया जाए.
नेहा गुप्ता,भोपाल.

Wednesday, December 10, 2008

वैश्वीकरण की माया

वैश्वीकरण से मतलब है जन,धन,राजनितीक -सांस्कृतिक,आर्थिक क्रियाओं का दुनिया के देशों में बेरोकटोक प्रवाह. और इसका लक्ष्य है दुनिया के देशों का एक सामान विकास. उदारीकरण,निजीकरण,विनिवेशीकरण,कारपोरेटीकरण इसी का एक हिस्सा है.लेकिन आज हमें भूमंडलीकरण का बिगडा हुआ रूप देखने को मिल रहा है. वैश्वीकरण में पूंजी का महत्त्व होता है.कहने को हम समाजवादी देश है लेकिन १९९० के दशक में हमने भी इसी मॉडल को अपनाया और आज अपना और भी तेजी से इस भूमंडलीकरण के मायाजाल में फंसता नजर आ रहा है. अपने भारत में वैश्वीकरण का मतलब है सेक्स,सेंसेक्स और मल्टीप्लेक्स. छोटे होते कपड़े,मेट्रो ट्रेन की दौड़.मल्टीस्टोरी बिल्डिंग ,मॉल,सेज,माँ को mom ,पिता को डैड कहना,तेज़ रफ़्तार से दौड़ती ज़िन्दगी ये सब कुछ तो वैश्वीकरण की माया है वहीं अमीरी-गरीबी की खाई,बदहाल होती खेती, आत्महत्या करते किसान,भूके मरते लोग, और भीख मांगते बच्चे,मंदी की मार, हत्या,बलात्कार ये भी भूमंडलीकरण का ही माया है. दरअसल इसमें गलती इस मॉडल को अपनाने वाले इसके पैरोंकारों का है जिन्होंने राष्ट्र की स्थिति से ठीक से तालमेल नहीं कर पाये. अचानक सबके लिए बाज़ार को खोलना राष्ट्र जनता पचा नहीं पी क्योंकि ८५ प्रतिशत आबादी गरीबों,अनपढों,देस मध्यमवर्गीय परिवारों का है जो अपनी संस्कृति, सामजिक-आर्थिक परिस्थितियों और पश्चिमी सभ्यता के चक्रव्यूह और उधेड़बून में फंसे हुए हैं.शायद यही वजह है की भूमंडलीकरण के १८ साल बाद भी विकास की स्थिति कुछ खास नही सुधरी है. हाँ इतना जरुर हुआ है की गरीब देस गरीबी भी ग्लोबल हो गई है. देखना दिलचस्प होगा की मंदी के इस बयार के बावजूद वैश्वीकरण से गलबहियां करते हुए हम विकसित होते हैं या फिर हमें अपना घरेलु ढांचा ही मजबूत करना होगा. एक बात तो तय है भूमंडलीकरण से देस का विकास हो न हो लेकिन लोगों के तन-मन का पश्चिमीकरण इससे जरुर हो गया है . ओम प्रकाश (एम्.ऐ .बी. जे ) एम्.सी.यु ,भोपाल

Tuesday, December 9, 2008

गीतों भरी शाम ..... कुर्सी की मातमपुर्सी के नाम !

कल पाँच राज्यों के चुनावी नतीजे आए और कईयों की पतलूनें ढीली हो गई......लगा की क्यों न इन लोगों को कुछ गीत समर्पित किए जाएँ तो चलिए इनके अरमानो को कुछ नगमों से श्रद्धांजलि दे दी जाए !

उम्मीद है कि आज का फौजी भाइयों का गीतों भरा फरमाइशी कार्यक्रम आपको पसंद आएगा। आज के गीतों की फरमाइश की है दिल्ली से शीला दीक्षित ने, भोपाल से शिवराज ने, जयपुर से अशोक गहलोत ने, रायपुर से रमन ने और आइजोल से ललथनहाव्ला ने .......


विजय कुमार मल्होत्रा(दिल्ली )

तडपाए तरसाए रे ....
सारी उम्र रुलाये रे ....
प्यार मेरा .......
दिल्ली की कुर्सी ....!!

दिग्विजय सिंह ( मध्य प्रदेश )

ये दुनिया ....ये महफ़िल मेरे काम की नहीं .....!
किसको सुनाऊ हाल दिले बेकरार का, बुझता हुआ चराग हूँ अपनी मज़ार का
ऐ काश भूल जाऊं मगर भूलता नहीं किस धूम से उठा था जनाजा प्रचार का .....

वसुंधरा राजे (राजस्थान)

दिल के अरमां आंसुओं में बह गए....
हम तो बस कैटवाल्क करते रह गए .......
शायद उनकी आखिरी हो मांग ये
बागियों की मांग सहते रह गए
दिल के अरमां आंसुओं में....

अजित जोगी (छत्तीसगढ़)
ये दौलत ये तख्तों ये ताजों की दुनिया
ये सत्ता के दुश्मन चुनावों की दुनिया.....
ये ३ रुपये के चावल के वादों की दुनिया
चावल के चुनावी पुलावों की दुनिया
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है.....
ये दुनिया अगर.....

जोरामथांगा (मिजोरम)
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया
परिणाम निकले तो फिर औकात पे रोना आया
हम तो जीते थे और थे भूल गए जनता को
आज जनता से पड़ी लात पे रोना आया
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे ......

साथियों तो ये था आज का फरमाइशी प्रोग्राम ....अगले किसी ऐसे ही मौके पर फिर मिलेंगे तब तक के लिए शब्बा खैर !

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Monday, December 8, 2008

दिग्गज हारे चुनाव, जीती जनता !

विधान सभा चुनावों में जनता ने ऐसा कमाल किया है किबड़े बड़े दिग्गज धूल चाट गए हैं, नतीजे भी कयासों से बिल्कुल उलट तो नहीं आए पर फालतू मुद्दों की हार ज़रूर दिखाते हैं। राजधानी दिल्ली में एक बार फिर कांग्रेस की सरकार बनना सुनिश्चित हो गया है तो मध्य प्रदेश में भी निजाम बदलने के आसार नहीं हैं.....यहाँ भाजपा पूर्ण बहुमत की ओर है। राजस्थान में भाजपा को तगड़ा झटका लगा है और कांग्रेस सरकार बनाने के लिए आवश्यक मतों को प्राप्त करती दिखती है। डॉक्टर रमन सिंह की स्वच्छ छवि फिर काम कर गई है और चाउरवाले बाबा एक बार फिर मुख्यमंत्री की गद्दी पर बैठेंगे।
इन चुनावों में कई बड़े बड़े दिग्गज धूल चाट गए हैं। सबसे बड़ा उलटफेर हुआ है उमा भारती की हार से, आश्चर्यजनक रूप से उमा भारती अपने गृह विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के अखंड प्रताप सिंह से हार गई हैं, उधर छत्तीसगढ़ में विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष महेंद्र करमा भी अपनी सीट गँवा बैठे हैं।

पाक की सच्चाई..............

पाक पर हुए हमले दरअसल उसी का सेल्फ अटेक प्रोगराम है वैसे भी उसे अपने फौजी या दूसरे लोगों की चिंता तो है नहीं जो वो इतना घिनौना काम नहीं करेगा हो सकता है ये बात भारत के कुछ सोकाल्ड सेकुलरों के गले ना उतरे मगर इसमें कोई संदेह भी नहीं कि पाक का पेशावर में हुआ हमला कोई आतंकी हमला नहीं बल्की सेल्फ प्रोमोटेड अटेक है जो उसने विश्व विरादरी को झांसा देने के लिए किया है। भारत देश अजूबा यूँ ही नहीं है यहां के लोग खास कर वो सेकुलर्स सबसे ज़्यादा मेरी इस बात से नाराज़ होंगे जो सेकुलर का नारा लगाते-लगाते कब शरहदे पार कर पाक फरस्ती करने लगते हैं पता भी नहीं चलता क्योंकि वे अपने आप को इतना बड़ा सेकुलर मानते हैं कि देश दुनिया में एक ही सच है वो है सेकुलर जो वे अनुसरण करते हैं। खैर मेरा मक़सद इस पचड़े में पड़ कर मुख्य बात से आपको भटकाना नहीं है मूल बात है पाक के इस घिनौने कृत्य की तरफ आपका ध्यान आकर्षित कराना। दरअसल आने वाले समय में ऐंसी आवाज़ें उठेंगी कि मुम्बई में पाक का हाथ बता कर भारत सरकार ने सुधरते रिश्तों को दांव पर लगा दिया है ये वही लोग कहेंगे जो इस देश के भीतर सेकुलर कहलाते हैं मतलव साफ है कौन पूछा नहीं जाना चाहिये।.....पाक की इस हरक़त पे किसी को अगर एतराज़ हो तो वह सीधे अपनी आपत्ती लगा सकता है आखिर ये देश धर्मनिरपेक्ष जो है। हाँ भई मैं आप ही से कह रहा हूँ...जी हाँ लगा सकते हो आपत्ती पाक की बुराई करने का मतलव यहाँ के मुस्लिमों की बुराई जो है।..........ऐंसा कोई कार सेवक ,बजरंगी,संघी,शिवसैनिक, या अभिनव भारत का आदमी नहीं मानता बल्की ये सोकाल्ड सेकुलरिस्ट ही ऐंसा सोचते और मुस्लिम भाइयों को भी ऐंसा सोचने मानने को उलूल-जुलूल तर्क देते रहते हैं, जो यहाँ के अल्प शिक्षित अल्पसंख्यकों के मन में घर कर जाते हैं। भारत की हर समस्या का समाधान यहाँ के कमतादादियों के पास है।

Saturday, December 6, 2008

६ दिसम्बर पर कैफी आज्ज़मी की एक नज़्म -

राम बनवास से जब लौटके घर में आये
याद जंगल बहुत आया जो नगर में आये
रक़्सेदीवानगी आँगन में जो देखा होगा
छह दिसंबर को श्रीराम ने सोचा होगा
इतने दीवाने कहाँ से मेरे घर में आये

जगमगाते थे जहाँ राम के क़दमों के निशां
प्यार की कहकशां लेती थी अँगडाई जहाँ
मोड़ नफ़रत के उसी राहगुज़र से आये

धर्म क्या उनका है क्या ज़ात है यह जानता कौन
घर न जलता तो उन्हें रात मे पहचानता कौन
घर जलाने को मेरा लोग जो घर में आये

शाकाहारी है मेरे दोस्त तुम्हारा ख़ंजर
तुमने बाबर की तरफ़ फेंके थे सारे पत्थर
है मेरे सर की ख़ता ज़ख़्म जो सर में आये

पाँव सरयू में अभी राम ने धोये भी न थे
कि नज़र आये वहाँ ख़ून के गहरे धब्बे
पाँव धोये बिना सरयू के किनारे से उठे
राजधानी की फ़िज़ा आयी नहीं रास मुझे
छह दिसंबर को मिला दूसरा बनवास मुझे !

राजनीती,राजनेता और विकास

कहते हैं राजनीती में कुछ भी ग़लत नही होता और आज के भारतीय राजनीती मेंतो बिल्कुल नैतिकता बची ही नहीं है। चारों तरफ़ अनैतिकता,अधर्म,भ्रस्ताचार का बोलबाला है। राजनेताओं के अन्दर देशप्रेम की भावना कूट-कूटके भरी होती थी अब ये गुजरे जमाने की बात हो चुकी है। १९९० तक तो भारतीयराजनीतिज्ञों की स्थिति थोडी ठीक भी थी लेकिन उसके बाद के १८ वर्षों मेंराजनीती का पुरा परिदृश्य काफी तेज़ी से बदला. हमने आर्थिक उदारीकरण काचोल पहना,आरक्षण की व्यवस्था की गई,बाबरी मस्जिद ढही,जवाब में आतंकवाद काअँधेरा साम्राज्य कायम हुआ, क्षेत्रवाद की राजनीती बढ़ी,दंगे-फसादबढे,अमीरी-गरीबी की खाई बढ़ी,भुखमरी कुपोषण बढ़ा,हत्या और अपराध बढे,बाहरीऔर आंतरिक सुरक्षा तार-तार हुआ,६२ सालों में पहली महिला राष्ट्रपति भीबनी और इंडिया और भारत भी बना. और इन सबने मौका दिया हमारे राजनेताओं कोखूब लूटने-खसोटने का,जातिवाद'धर्मवाद,क्षेत्रवाद की राजनीती कर वोटबटोरने का. राजनीती का अपराधीकरण हो चुका है.दुनिया में सबसे ज्यादाअपराधियों की शरणस्थली बन चुकी है हमारी विधायिका. पूरे देश मेंधार्मिक,राजनितिक उन्माद पुरे उफान पर है और उसमें मारी जा रही बेकसूरजनता. हमारे नेताओं में तनिक भी बेशर्मी बची ही नही है तभी सब के सब अपनाआत्मसंतुलन खो बैठे हैं और नजाने क्या-क्या उटपटांग बोलते फिर रहे हैजिससे जनभावनाएं आहत हो रही हैं.राजेंद्र प्रसाद,सर्वपल्लीराधाकृष्णन,जयप्रकाश नारायण,लालबहादुर शास्त्री,सरदार पटेलऔर अब्दुल कलामजैसे विचारकों वाले इस देश में आज एक भी योग्य नेता नहीं है जो राजनितिकस्वार्थ से ऊपर उठकर देशहित,जनहित में काम करे. ऐसे घटियाराजनितिक,सामाजिक संस्कृति के बढ़ने से देश को आर्थिक,सामाजिक-राजनितिकरूप से काफी ज्यादा नुक्सान हो रहा है. नियमों-कानूनों की धज्जियाँ उडाईजा रही है. दल बदल कानून फेल हो गया है. ऐसे में आज जरुरत है स्वास्थ्यराजनितिक विकास की, मानवीयता के विकास की और जब इसका विकास होगा तभीगावों-और शहरों का विकास होगा और जब इन सबका विकास होगा तो पूरे भारत काविकास होगा. इसलिए सबसे पहले लोगों को शिक्षित किया जाए,उनको रोजगारमुहैया कराई जाए और सभी के बीच राष्ट्रप्रेम की भावना विकसित की जाए तभीहम अब्दुल कलाम साहब के सपनो का भारत वर्ष २०२० तक बना पाएंगे वरना इसदेश को इंडिया और भारत के बीच विभाजित होने से कोई नही बचा पायेगा. ओम प्रकाश

आतंकवाद पर एक नज़्म

मैं सोंचता हूँ.....
विस्फोट के बाद ।
मुल्क को लगी ,
चोट के बाद ।
बेरहम दहशतगर्द !
कितना कुछ कर डालते हैं ,
और अपने गुनाह का बोझ ,
खुदा के सर डालते हैं ।
खुदा अपने आप को ,
कितना बेबस पाता होगा !
ऐसे खुदापरस्तों पर ,
किस कदर शर्माता होगा !

Thursday, December 4, 2008

एक न्यूज़ चैनल की ब्रेकिंग न्यूज़ का स्वरुप देखिये

दो दिन पहले की बात है , एक चैनल केरल के मुख्यमंत्री अच्युतानंदन के शहीद उन्नीकृष्णन पर दिए गए बयान पर भाकपा के वरिष्ठ नेता अतुल अनजान का फोनों कर रहा था , घर के बाहर से लौटाए जाने के बाद अच्युतानंदन ने जो बयान दिया उस पर अतुल अनजान ने अपनी बात कुछ इस तरह से रख्खी ( ध्यान दीजियेगा शब्दों पर ) जब किसी के जवान बेटे के साथ इस तरीके ( मृत्यु) की घटना होती है , तो स्वाभाविक रूप से माँ-बाप अपना आपा खो बैठते हैं और अपने क्षोभ पर काबू नही रख पाते ..........लेकिन इसको लेकर मुख्यमंत्री का बयान अफ़सोस जनक है ........... अनजान अपनी बात पूरी कर पाते इससे पहले ही एंकर उनसे उलझ पड़ी की अनजान साहब यानी आपका कहना है की संदीप के पिता ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया है ..... उसके बाद तो लगातार एंकर इसी बात को दोहराती रही और बेचारे अनजान बार बार यही कहते नज़र आए की आप मुझे भी तो बोलने दीजिये ........और अंत में उन्होंने खीझ कर फ़ोन काट दिया लेकिन तब तक चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज़ के तौर पर फ्लैश हो चुका था - "मानसिक संतुलन खो बैठे हैं संदीप के पिता , भाकपा नेता अतुल अनजान का बयान" एंकर साहिबा आपा खोने और मानसिक संतुलन खोने के भावार्थ में अन्तर ही नही समझ पायीं , लेकिन उन्होंने एक न्यूज़ तो ब्रेक कर ही दी ..........

Wednesday, December 3, 2008

अब डरने लगा हूँ

पहले डरता नही था पर अब डरने लगा हूँ ,
रोज़ तिल तिल कर मरने लगा हूँ ,
रोज़ बस से आफिस जाता हूँ ,
इसलिए आस पास की चीज़ों पर ध्यान लगता हूँ
सीट के नीचे किसी बम की शंका से मन ग्रसित रहता है
कभी कोई लावारिस बैग भ्रमित करता है ।
ख़ुद से ज़्यादा परिवार की फ़िक्र करता हूँ
इसलिए हर बात मे उनका ज़िक्र करता हूँ
रोज़ अपने चैनल के लिए ख़बर करता हूँ
और किसी रोज़ ख़बर बनने से डरता हूँ
मैं एक आम हिन्दुस्तानी की तरहां रहता हूँ
इसलिए रोज़ तिल तिल कर मरता हूँ
हालात यही रहे तो किसी रोज़ मैं भी
किसी सर फिरे की गोली या बम का शिकार बन जाऊँगा
कुछ और न सही पर बूढे अम्मी अब्बू के
आंसुओं का सामान बन जाऊँगा।
इस तरह एक नही कई जिनदगियाँ तबाह हो जाएँगी
बहोत न सही पर थोडी ही
दहशतगर्दों की आरजुओं की गवाह हो जाएँगी ।
इसीलिए मैं अब डरने लगा हूँ
हर रोज़ तिल तिल कर मरने लगा हूँ ,तिल तिल कर मरने लगा हूँ ।

Tuesday, December 2, 2008

वक़्त की पुकार......

दहशतगर्दो के मंसूबे पानी में मिल जाने हैं
हम उनकी औकात से वाकिफ , वो न हमको जाने हैं
हम वो हैं, जो देश की खातिर जीते हैं, और मरते हैं
वक़्त सही है , दुश्मन के अब होश ठिकाने लाने है
हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई सबको हिंद से प्यार बहुत
जो भी दुश्मन इसको देखे वो सब मार गिराने है
मिलकर अपने देश को यारों , सूरज जैसा चमका दो
दहशत की दुनिया से बच कर गुलशन यूँ तामीर करो
ज़ुल्मत को दुनिया से मिटाओ , जालिम को ज़ंजीर करो.

(मुल्क में नाजुक हालात के मद्देनज़र भाईचारगी ही सबसे अहम है-
..........आपका अलाउद्दीन -अय्यूब )

शूटर और शूटर ......

अभी कुछ देर पहले एक ई मेल मिली है......इसे तुंरत प्रकाशित कर रहा हूँ !

एक ओलम्पिक शूटर के स्वर्ण जीतने पर सरकार उसे ईनाम के तौर पर 3 करोड़ रुपये देती है। ( सनद रहे कि वह शूटर पहले ही करोड़पति है ! )



एक और शूटर आतंकवादियों से लड़ते हुए मर जाता है .... ( देश और हमारी रक्षा के लिए ) और सरकार उसे केवल 5 लाख रुपये देती है !










Monday, December 1, 2008

यह सब तकलीफदेह है....

यह निहायत ही तकलीफ की बात है की जब जब हमने अपने ब्लॉग पर आतंकवाद के ख़िलाफ़ कोई सार्थक बहस शुरू की तब तब वह हमेशा मुद्दे से भटक गई। यहाँ तक की आतंकवाद पर हर दायरे से ऊपर उठ कर बात करने की अपील करने वाले भी धार्मिक हो चले......
इस समय वाकई असहाय महसूस कर रहा हूँ ( शायद कुछ लोग यही चाहते हैं ! ) पर इतना स्पष्ट करना चाहूँगा किकुछ भी हो जाए CAVS संचार को धार्मिक राजनीति का अड्डा नहीं बनने दूँगा...हम पत्रकार हैं ...बेहतर होगा कि वैसा ही बर्ताव करें.....अब बस करिए
यह ब्लॉग किसी हिन्दू या मुस्लिम के दिल की भड़ास निकालने के लिए नहीं है .....मैंने पहले ही विनती की थी .... ना तो हम मुस्लिम लीग और जमायत के हिमायती हैं और ना ही किसी बजरंग दल या हिन्दू महासभा के !
हमें क्षमा करें हम निष्पक्ष पत्रकार है....किसी मज़हबी संस्था के मुखपत्र नहीं !
इसलिए आप सभी जो किसी धर्म विशेष की पैरवी करने अथवा किसी मज़हब के ख़िलाफ़ ज़हर उगलने की मंशा रखते हैं ..... आप कृपया इस ब्लॉग का प्रयोग ना करें .... आप इस काम के लिए व्यक्तिगत या सामूहिक अन्य ब्लॉग बनाने हेतु स्वतंत्र हैं ! कृपया हमें कुछ वाकई सार्थक करने दें .....
हम क्षमा प्रार्थी हैं किसी आपके मज़हबी उद्देश्यों में हम साधक नहीं बन सकते ! किसी ने कहा किसी धमकी न दें तो बन्धु यह प्रार्थना है...वैसे भी उग्रपंथियों ( किसी भी धर्म के ) के आगे एक आम आदमी केवल प्रार्थना ही कर सकता है !
इसीलिए हमने यह निर्णय लिया है कि हम इस प्रकार की किसी भी पोस्ट से अपनी छवि एक कट्टरपंथी ब्लॉग की नहीं बनने देंगे .....बेहतर होगा कि हम मुद्दों की बात करें......
वैसे भी मुल्क की ज़रूरत आज हिंदू या मुसलमान नहीं ....... हिन्दुस्तानी होना है !
क्षमाप्रार्थी
केव्स परिवार !
( हमारे पास लगातार प्रतिक्रियाएं और मेल आई जिसके फलस्वरूप यह प्रार्थना की जा रही है। CAVS की धर्मनिरपेक्ष छवि हम सभी के लिए ज़रूरी है। )

भारतीय खेती की दशा और दिशा

भारतीय खेती की दशा और दिशाखेती किसी देश के आर्थिक सामाजिक विकास में मील का पत्थर मन जाता है. औरइसके लिए जरुरी होती है एक अदद कृषि नीति की .आदिमकाल से लेकर आज़ादी सेपहले तक हम खाद्द्यानो के उत्पादन में अव्वल थे .विदेशों में हमारा अनाजभेजा जाता था और विश्व व्यापर में आज के मुकाबले हमारी भागेदारी भी बहुतज्यादा थी. लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पड़े भीषण सीखे आकाल ने देशको अन्न संकट की ओर धकेल दिया. कितने भूखे मरे जो अब भी मर रहे है . इसकेपीछे एक जिम्मेदार कृषि नीति का घोर आभाव है. हम आज भी अनाज की कमी सेजूझ रहे हैं . अब तक की कृषि नीतियां नियोजित लक्ष्यों को पाने में नाकामरही हैं जबकि इनका उद्देश्य रहा है उत्पादन को बढ़ाना,वैज्ञानिक कृषि कोबढ़ावा देना,किसानो की दशा सुधारना और इसके जरिये देश inclusive विकासकरना.लेकिन हो इसके thik उल्टा रहा है.किसान आत्महत्या कर रहा है, क़र्ज़के बोझ तले दबता जा रहा है. बाढ़, मानसून की अनिश्चितता ,और भीषण अकाल,सिंचाई सुविधाओं का आभाव असमय ही किसानों को यमदेव के पास पधारने के लिएमजबूर कर रहा है . देश में अबतक चार कृषि नीतियां :आज़ादी के बाद से १९९२तक, राष्ट्रीय कृषि नीति १९९२,२०००,२००७ लागू हो चुकी हैं.इससे पहले कृषिवैज्ञानिक नॉर्मन बोरलाग के नेत्रित्व में १९६६-६७ में हरित क्रांति होचुकी है जो उत्तरप्रदेश,पंजाब ,हरियाणा तक ही सीमित था ने देश के कृषिक्षेत्र में एक नया जोश भरा ,उत्पादन में वृद्धि हुई . दूसरे हरितक्रांति को लेकर हमारे नेता जो लोगों में गरमा-गरम बहसबाजी का दौर जारीहै. इससे पहले भी देश में लाल नीली,पीली और श्वेत क्रांति हो चुकी हैजिससे देश के किसानों की दशा में कुछ खास फर्क नहीं पड़ा है. हमारेभारतीय खेती की मुख्य विशेषता है लागत ज्यादा ,मुनाफा कम . शायद यही वजहहै की जीडीपी में खेती की कूल भागेदारी घटकर १८ प्रतिशत रह गई है और अगरयही रवैया रहा तो ११ वीं पंचवर्षीय योजना के ४ फीसदी कृषि विकास थर कोपाना ईद का चाँद देखने जैसा हो जाएगा .अगर कृषि नीति २००७ के लक्ष्योंभूमि-सुधार ,जल-प्रबंधन,किसानों को सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा,इनके आय मेंबढोतरी,कृषि में सार्वजनिक निवेश को बढ़ावा और सहज क़र्ज़ मुहैया करानेके साथ-साथ एम्.एस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में २००४ में गठित राष्ट्रीयकिसान आयोग के सिफारिशों पर अगर ध्यान दिया जाए तभी देश की बदहालीखुशहाली में बदल पायेगी वरना ऐसे आयोगों के गठन का फिर कोई मतलब नही रहजाएगा. इसलिए वक्त की नजाकत को समझते हुए आज कृषि के विकास को प्राथमिकतादेना,किसानो को आर्थिक-सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराने,सहज ऋणदिलाना,तकनीकी प्रशिक्षण देना लाजिमी हो गया है वरना हमारा वार्षिकउत्पादन जो पिछले कई सालों से २१७ मिलियन टन के जो चक्रव्यूह में जो फंसाहै उसी में अटका रह जयेगा और हम हमेशा की तरह विदेशों से अनाज निर्यात कामुंह ताकते रह जायेंगे . Om Prakash (MABJ) Makhanlal Chaturvedinational University of Journalism, Bhopal.

गौर फरमाएं

मर रहे पिट रहे रो रहे हैं,
रोज विस्फोट अब हो रहे हैं।
टांग में टांग देखों फसांए,
गधे ये चैन से सो रहे हैं।

- सुभाष भदौरिया

Sunday, November 30, 2008

अतिथि लेख: हर शाख पर उल्लू बैठा है


हमने जो हाल ही में आतंकवाद पर चर्चा शुरू कर के CAVS के बाहर के लोगों को भी हमने इस चर्चा में आमंत्रित किया था उसी प्रयास के फलस्वरूप हमें पंडित दिनेश शर्मा का यह लेख प्राप्त हुआ है, इसे हम बिना किसी अंश को बदले या संपादित करे प्रकाशित कर रहे हैं। यह लेख देश के हर नागरिक के मन में बसी पीड़ा को व्यक्त करता है। पंडित जी अपना परिचय कुछ यूँ देते हैं, "मेरे मन में उमड घुमड कर आने वाले विचार ही मेरी पहचान है । धर्म,जाति या स्थान विशेष के कारण पहचाना जाना कुछ अलग सा लगता है । कौन हूं मै, इस प्रश्न का जवाब यह भी हो सकता है कि मै स्नातक 34 वर्षीय लुधियाना का स्थानीय निवासी हूं, ज्ञानार्जन की खोज में निरन्तर भटकते हुए ज्योतिष/हस्तरेखा शास्त्र रुपी विधा का आश्रय प्राप्त हुआ, साथ ही थोड़ा समय निकालकर हिन्दी चिठ्ठे को निखारने की कोशिश करता हूं"

फिलहाल पढ़ें की पंडित जी क्या कहते हैं,


हर शाख पर उल्लू बैठा है

अपन तो आज बहौत खुश हैं। आप भी खुश हो जाइए। हम सुरक्षित हैं, आप सुरक्षित हैं। अगले 3-4 महीनों के लिए हम सब को जीवनदान मिल गया है। क्योंकि आम तौर एक धमाके के बाद 3-4 महीने तो शांति रहती ही है। क्या हुआ जो 3-4 महीने बाद फिर हम करोड़ों लोगों में से 50, 100 या 200 के परिवारों पर कहर टूटेगा। बाकी तो बचे रहेंगे। दरअसल सरकार का गणित यही है। हमारे पास मरने के लिए बहुत लोग हैं। चिंता क्या है। नपुंसक सरकार की प्रजा होने का यह सही दंड है।

पूरी दुनिया में आतंकवादियों को इससे सुरक्षित ज़मीन कहां मिलेगी। सच मानिए, ये हमले अभी बंद नहीं होंगे और कभी बंद नहीं होंगे।

कयूं कि यहां आतंकवाद से निपटने की रणनीति भी अपने चुनावी समीकरण के हिसाब से तय की जाती है।

आप कल्पना कर सकते हैं110 करोड़ लोगों का भाग्यनियंता, देश का सबसे शक्तिशाली (कम से कम पद के मुताबिक,दम के मुताबिक नहीं) व्यक्ति कायरों की तरह ये कहता है कि आतंकवाद पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए एक स्थायी कोष बना देना चाहिए।

हर आतंकवादी हमले के बाद टेलीविजन चैनलों पर दिखने वाला गृहमंत्री का निरीह, बेचारा चेहरा फिर प्रकट हुआ। शिवराज पाटिल ने कहा कि उन्हे इस आतंकवादी हमले की जानकारीपहले से थी। धन्य हो महाराज! आपकी तो चरणवंदना होनी चाहिए।

लेकिन इन सब बातों का मतलब ये भी नहीं कि आतंकवाद की सभी घटनाओं के लिए केवल मनमोहन सिंह की सरकार ही दोषी है। मेरा तो मानना है कि सच्चा दोषी समाज है, हम खुद हैं। क्योंकि हम खुद ही इन हमलों और मौतों के प्रति इतनी असंवेदनशील हो गए हैं कि हमें ये ज़्यादा समय तक विचलित नहीं करतीं। सरकारें सच पूछिए तो जनता का ही अक्स होती हैं जो सत्ता के आइने में जनता का असली चेहरा दिखाती हैं। भारत की जनता ही इतनी स्वकेन्द्रित हो गई है कि सरकार कोई भी आए, ऐसी ही होगी। हम भारतीय इतिहास का वो सबसे शर्मनाक हादसा नहीं भूल सकते ,जब स्वयं को राष्ट्रवाद का प्रतिनिधि बताने वाली बी।जे।पी। सरकार का विदेश मंत्री तीन आतंकवादियों को लेकर कंधार गया था। इस निर्लज्ज तर्क के साथ कि सरकार का दायित्व अपहरण कर लिए गए एक हवाईजहाज में बैठे लोगों को बचाना था। तो क्या उसी सरकार के विदेश मंत्री, प्रधानमंत्री और स्वयं को लौहपुरुष कहलवाने के शौकीन माननीय (?)लाल कृष्ण आडवाणी उन हर हत्याओं की ज़िम्मेदारी लेंगे, जो उन तीन छोड़े गए आतंकवादियों के संगठनों द्वारा की जा रही है।

वाह री राष्ट्रवादी पार्टी, धिक्कार है।
अब क्या कहें, सरकार चाहे अटल बिहारी वाजपेयी की हो या मनमोहन सिंह की, आतंकवाद हमारी नियति है। ये तो केवल भूमिका बन रही है, हम पर और बड़ी विपत्तियां आने वाली हैं।क्यूं कि 2020 तक महाशक्ति बनने का सपना देख रहे इस देश की हुकूमत चंद कायर और सत्तालोलुप नपुंसक कर रहे हैं।

प. डी.के.शर्मा 'वत्स'


( पंडित जी लुधियाना के प्रसिद्द ज्योतिष विद्वान् हैं और ज्योतिष की सार्थकता नाम का ब्लॉग लिखते हैं। )

Saturday, November 29, 2008

शहीदों को नमन ( गुरुदेव टैगोर का अनूदित पद्यांश )


मृत्यु सागर के उस पार
अनंत यात्रा के हे पथिक!
हम तुम्हारा स्मरण करते हैं ....

तुमने जो मानवता की कमी
हमारे लिए छोड़ी है
उसकी जयध्वनि के बीच
हम तुम्हे नमन करते हैं!

(शहीद वे सभी हैं जो आतंकवादी हमलों में मारे गए!)

-गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर

आंसू स्याही हैं और कलम आँखें

आज जब कांपते हाथों और भारी मन से इन जियालों को श्रद्धांजलि देने जा रहा हूँ तो मौन से बेहतर शब्द और इससे बेहतर पंक्तियाँ नही सूझी, कवि प्रदीप के ये पंक्तियाँ पुरानी है पर इनसे ज्यादा सटीक शायद ना तो लिखा गया ना ही शायद लिखा जाएगा कभी.....

पर एक सवाल राजनीति करने वालो से .....कि इन्ही हेमंत करकरे को आपने झूठा और बेईमान कहा था न कुछ दिन पहले .....?

चुप ना रहिये .....जवाब तो आपको देना ही होगा !!

हेमंत करकरे


जब घायल हुआ हिमालय ख़तरे में पड़ी आजादी,


जब तक थी साँस लड़े वो फिर अपनी लाश बिछा दी


संगीन पे धर कर माथा सो गए अमर बलिदानी जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुरबानी


विजय सालसकर


अशोक काम्टे


थी खून से लथ-पथ काया फिर भी बंदूक उठा के


दस-दस को एक ने मारा फिर गिर गए होश गँवा के


जब अंत-समय आया तो कह गए के अब मरते हैं खुश रहना देश के प्यारों अब हम तो सफ़र करते हैं



संदीप उन्नीकृष्णन

गजेन्द्र सिंह

राजीव खांडेकर

नाना साहेब भोंसले

जयवंत पाटिल

योगेश पाटिल

अम्बादास रामचंद्र पवार

एम् आई सी चौधरी

शशांक शिंदे

प्रकाश मोरे

ऐ आर चितले

बबुसाहेब दुरगुडे


*************()**************

क्षोभ और शोक ......


खेद के साथ सूचित किया जा रहा है की मुंबई और मुल्क पर हुए आतंकवादी हमले के प्रति क्षोभ और शोक व्यक्त करने के लिए प्रतीकात्मक रूप से हमारा चुनावी विशेष " चुनावी दंगल " स्थगित किया जा रहा है.....अभी कुछ दिनों तक हम केवल आतंकवाद, मुंबई हमलों और इसके समाधान पर बात करेंगे .......

हम आप सब से साम्प्रदायिक सद्भाव बनाए रखने की अपील करते हुए अब चाहेंगे की सब अपनी चुप्पी तोडें और सडकों पर उतरने के लिए तैयार हो जाएँ......

जिस जंग का अंदेशा था उसका अब एलान हो चुका है ! आप हमें अपने लेख और प्रतिक्रियाएं मेल कर सकते हैं

हमारा पता है,

Friday, November 28, 2008

जाना एक फ़कीर का

अंबरीश कुमार (http://virodh.blogspot.com)

भारतीय राजनीति में पिछड़े तबके को राजनैतिक ताकत दिलाने और समाज में उनकी नई पहचान बनाने वाले विश्वनाथ प्रताप सिंह नहीं रहे। अंतिम समय तक वे सामाजिक बदलाव के संघर्ष से जुड़े रहे। गुरूवार दोपहर करीब ढाई बजे उनका निधन हुआ जबकि बुधवार की रात जन मोर्चा के नेताओं से उनकी राजनैतिक चर्चा भी हुई। जन मोर्चा वीपी के नेतृत्व में जल्द ही उत्तरांचल में सम्मेलन करने ज रहा था तो १५ दिसम्बर को संसद घेरने का कार्यक्रम तय था। वीपी सिंह अंतिम समय तक सेज के नाम पर किसानों की जमीन औने-पौने दाम में लिए जने के खिलाफ आंदोलनरत थे। ७७ वर्ष की उम्र में १६ साल वे डायलिसिस पर रहकर लगातार आंदोलन और संघर्ष से जुड़े रहे। अगस्त,१९९0 में प्रधानमंत्री के रूप में जब उन्होंने मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू की तो पूरे उत्तर भारत में राजनैतिक भूचाल आ गया था। मंडल के बाद ही हिन्दी भाषी प्रदेशों की जो राजनीति बदली, उसने पिछड़े तबके के नेताओं को नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया। बिहार, उत्तर प्रदेश से लेकर राजस्थान तक अगड़ी जतियों की जगह पिछड़ी जतियों ने लेना शुरू किया। बिहार और उत्तर प्रदेश की राजनीति तो ऐसी बदली कि डेढ़ दशक बाद भी कोई सवर्ण मुख्यमंत्री नहीं बन पाया। उत्तर भारत की राजनीति बदलने वाले वीपी सिंह अगड़ी जतियों और उच्च-मध्यम वर्ग के खलनायक भी बन गए। यह भी रोचक है कि लालू यादव से लेकर मुलायम सिंह यादव तक को सत्ता के शीर्ष पर पहुंचाने का राजनैतिक एजंडा तय करने वाले वीपी सिंह एक बार जो केन्द्र की सत्ता से हटे तो फिर दोबारा सत्ता में नहीं आए। मंडल के बाद ही मंदिर का मुद्दा उठा जिसने भगवा ब्रिगेड को केन्द्र की सत्ता तक पहुंचा दिया। लोगों को शायद याद नहीं है कि लाल कृष्ण आडवाणी का रथ बिहार में जब लालू यादव ने रोक कर गिरफ्तार किया था तो देश के प्रधानमंत्री वीपी सिंह थे। इसी के चलते लालू यादव आज भी अल्पसंख्यकों के बीच अच्छा खासा जनाधार रखते हैं। २५ जून, १९३१ को जन्म लेने वाले वीपी सिंह इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी मंत्रिमंडल तक में शामिल रहे। कांग्रेस से उनका टकराव बोफोर्स को लेकर हुआ था जिसने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया। आज भी बोफोर्स का दाग कांग्रेस के माथे पर से हट नहीं पाया है। कुछ दिन पहले ही वीपी सिंह की कविता की एक लाइन प्रकाशित हुई थी-रोज आइने से पूछता हूं, आज जाना तो नहीं है। पता नहीं आज उन्होंने यह सवाल किया था या नहीं पर वे आज चले गए। राजनीति के बाद उनका ज्यादातर समय कविता और पेंटिंग में गुजरता था। अगड़ी जतियों के वे भले ही खलनायक हों लेकिन पिछड़ी जतियों, दलितों, वंचितों और अल्पसंख्यकों के वे हमेशा नायक ही रहे। मुलायम सिंह के शासन में उन्होंने दादरी के किसानों का सवाल उठाया तो वह प्रदेश व्यापी आंदोलन में तब्दील हो गया। इससे पहले बोफोर्स का सवाल उठाकर जब वे उत्तर प्रदेश के गांव-गांव में घूमें तो नारा लगता था-राज नहीं फकीर है, देश की तकदीर है। वीपी सिंह लगातार आंदोलनरत रहे और समाज पर उनकी छाप अमिट रहेगी। चाहे मंडल का आंदोलन हो या फिर मंदिर आंदोलन के नाम पर सांप्रदायिक ताकतों का विरोध करना या फिर किसानों के सवाल पर देश के अलग-अलग हिस्सों में अलख जगाना, इन सब में वीपी सिंह का महत्वपूर्ण योगदान रहा। लोकनायक जय प्रकाश नारायण के बाद वीपी सिंह दूसरे नेता रहे जिन्होंने कांग्रेस के वर्चस्व को तोड़ा। यही वजह है कि बाद में उनके समर्थकों ने उन्हें जन नायक का खिताब दिया। पर उनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का था। जिसके बाद उन्हें मंडल मसीहा कहा जने लगा। यह बात अलग है कि मंडल के नाम पर राजनीति करने वाले नेताओं ने उन्हें हाशिए पर ही रखा। यही वजह है कि उत्तर भारत की राजनीति को बदलने वाले वीपी सिंह कई वर्षो से किसी भी सदन के सदस्य नहीं रहे। आज भी उनके परिवार का कोई सदस्य विधानसभा या संसद में नहीं है। उनके पुत्र अजेय सिंह पिछले कुछ समय से किसानों के सवाल को लेकर सामने आ चुके हैं पर किसी राजनैतिक दल से उनका कोई संबंध नहीं रहा है। वीपी सिंह से करीब १५ दिन पहले फोन पर बात हुई तो उन्होंने किसानों के सवाल को लेकर आंदोलन की योजना की बारे में बताया था। यह भी कहा था कि वे जल्द ही विदर्भ के किसानों के सवाल को लेकर न सिर्फ वहां जएंगे बल्कि वहां धरना भी देंगे। इससे पहले दादरी के मुद्दे को लेकर उन्होंने उत्तर प्रदेश में व्यापक आंदोलन छेड़ा। डेरा डालो-घेरा डालो आंदोलन के जरिए उन्होंने देवरिया से दादरी तक किसानों को लामबंद किया था। इसके अलावा बुंदेलखंड में जब किसानों की खुदकुशी का सिलसिला शुरू हुआ तो वीपी सिंह कई क्षेत्रों में गए। बाद में जन मोर्चा और किसान मंच ने वामदलों के साथ बुंदेलखंड में आंदोलन भी छेड़ा। एक दौर में उनके आंदोलन के साथ राष्ट्रीय लोकदल, भाकपा, माकपा, भाकपा माले, इंडियन जस्टिस पार्टी और कई छोटे-छोटे दल जुड़ गए थे। मुलायम सिंह के खिलाफ राजनैतिक माहौल बनाने में वीपी सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका रही। यह बात अलग है कि छोटे-छोटे दलों के नेताओं की बड़ी महत्वाकांक्षाओं को वे संभाल नहीं पाए। और इसका फायदा विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को मिला। कुछ महीने से उनकी तबियत काफी खराब चल रही थी पर पिछले २0-२५ दिन से वे स्वस्थ थे। सारी तैयारी उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, पंजब और महाराष्ट्र में किसान आंदोलन को लेकर चल रही थी। महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के ११ जिलों में वीपी सिंह का किसान मंच पिछले एक साल से सक्रिय है। अब दिसम्बर से महाराष्ट्र के किसानों को लेकर नए सिरे से आंदोलन की तैयारी थी। हालांकि आंदोलन का नेतृत्व अजेय सिंह ने संभाल लिया था पर वीपी सिंह की उपस्थिति से ही राजनैतिक माहौल बनता। वीपी सिंह के अचानक गुजर जने से देश के किसानों के आंदोलन को गहरा ङाटका लगा है। वीपी सिंह १९६९ से ७१ तक विधायक रहे। १९७१ में वे पांचवी लोकसभा के लिए चुने गए। १९८0 में वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और १९८२ तक इस पद पर रहे। १९८३ से १९८८ तक वे राज्यसभा के सदस्य रहे। १९८४ से १९८७ तक राजीव गांधी मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री रहे। बाद में वे १९८७ में रक्षा मंत्री बने।जनसत्ता से

क्या आतंकी हमले हमारी नियति बन गए हैं ?

२६ नवम्बर की रात मुंबई में आतंक का जो नंगा नाच शुरू हुआ , वो अभी तक जारी है । इस बार का हमला तो आतंकियों ने युद्ध की तरह किया है । १३० से ज्यादा लोगों ने इस हमले में अपनी जान से हाथ धोए है जिनमे १६ पुलिस वाले हैं । मलेगओं ब्लास्ट की जांच कर रहे ats chief हेमंत करकरे भी इस हमले में शहीद हुए हैं । सवाल ये उठता है की कराची से एमवी अल्फा जहाज गुजरात आता है और आतंकी ३ दिन तक चलने वाला विस्फोटक लेकर गेट वे ऑफ़ इंडिया तक चले आते हैं और उन्हें रोका नही जाता।

कल लखनऊ महोत्सव के मंच से एक अप्पील की गई थी जिसे मैं एक बार फिर आप लोग से दोहरा देता हूँ ...

"हिन्दोस्तान में आतंकी बार बार ऐसी घटनाओं को अंजाम देने में इसलिए कामयाब हो जाते हैं क्यूंकि जो इंसानियत के दुश्मन हैं वो तो मुत्तहिद (एकजुट) हैं और जो इंसानियत के रखवाले हैं वो बिखरे हुए हैं .........वक्त आ गया है की हम एक होकर इसका मुकाबला करें ...."

दुष्यंत की पंक्तियों के साथ अपनी बात आप पर छोड़ता हूँ....

पक गयीं हैं आदतें , बातों से सर होगी नही
कोई हंगामा करो , ऐसे गुज़र होंगी नही

Thursday, November 27, 2008

आओ बैठे बात करें कुछ हल निकालें

और लो ये रहा एक और अनदेखी का नतीजा कब तक रहेंगे हम चुप कब तक कहेंगे मुस्लिम हिंदू आतंक अब तो हद हो जानी चाहिए इस पर जानते हैं हम बहस के अलावा कुछ नहीं कर सकते लेकिन इस ब्लॉग मंच के माध्यम को इस बहस के लिए स्वस्थ और बेहतर मनाया जा सकता है क्योंकि यहाँ केव्स के सबसे ज्यादा सक्रिय लोग हैं। मगर मेरे दोस्तों बहस स्वस्थ ही करना अपने विचार मैं राष्ट्र और सिर्फ राष्ट्र रहना चाहिए संक्रीर्ण जात,पात,वर्ग,भेद से परे चर्चा हो ऐंसी आशा के साथ मैं।

Tuesday, November 25, 2008

कुंवर नारायण को ज्ञानपीठ

वर्ष २००५ और २००६ के भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कारों की घोषणा कर दी गई है। 2005 के लिए हिंदी के प्रख्यात कवि कुंवर नारायण को यह पुरस्कार दिया जाएगा। वर्ष 2006 के पुरस्कार के लिए कोंकणी के रवीन्द्र केलकर और संस्कृत के विद्वान सत्यव्रत शास्त्री को संयुक्त रूप से चुना गया है। शनिवार को यह जानकारी एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करके मीडिया को दी गई। इससे पहले अभी जल्दी ही कश्मीरी कवि रहमान राही को भी ज्ञानपीठ देने की घोषणा की गई।
कोंकणी और संस्कृत के लिए पहली बार ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया है। पुरस्कार पाने वाले तीनों ही रचनाकार साहित्य अकादमी सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं। हिन्दी में दिए गए ज्ञानपीठ के लिए यही कहा जा सकता है कि कुंवर नारायण को पुरस्कृत कर के ज्ञानपीठ ने अपना ही यश बढाया है।
संस्कृत और कोंकणी भाषा में ज्ञानपीठ पहली बार दिया गया है। कोंकणी भाषा मंडल की स्थापना में रवीन्द्र केलकर की महत्वपूर्ण भूमिका रही है और वे वर्तमान में कोंकणी के सबसे प्रसिद्द और कद्दावर साहित्यकार संस्कृत के विद्वान प्रो. सत्यव्रत शास्त्री ने एक-एक हजार श्लोक वाले तीन महत्वपूर्ण रचनाएं लिखी हैं।
फिलहाल प्रस्तुत हैं कुंवर नारायण की एक कविता जो उनके वैचारिक मंथन को स्पष्ट करती हैं,


बात सीधी थी पर

बात सीधी थी पर एक बार
भाषा के चक्कर में
ज़रा टेढ़ी फँस गई ।
उसे पाने की कोशिश में
भाषा को उलटा पलटा
तोड़ा मरोड़ा
घुमाया फिराया
कि बात या तो बने
या फिर भाषा से बाहर आये-
लेकिन इससे भाषा के साथ साथ
बात और भी पेचीदा होती चली गई ।
सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना
मैं पेंच को खोलने के बजाय
उसे बेतरह कसता चला जा रहा था
क्यों कि इस करतब पर मुझे
साफ़ सुनायी दे रही थी
तमाशाबीनों की शाबाशी और वाह वाह ।
आख़िरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था –
ज़ोर ज़बरदस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी ।

हार कर मैंने उसे कील की तरह
उसी जगह ठोंक दिया ।
ऊपर से ठीकठाक

पर अन्दर से
न तो उसमें कसाव था
न ताक़त ।

बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह
मुझसे खेल रही थी,
मुझे पसीना पोंछती देख कर पूछा –
“क्या तुमने भाषा को
सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा ?”

Saturday, November 22, 2008

बेचारे नेताजी....

मौसम चुनावी है.. माहौल गरम है.. मुद्दे कई हैं.. कुछ नए कुछ पुराने हैं.. कभी जनता की सुध न लेने वाले नेताजी अब जनता के ही चश्मे से मुद्दों को देखने, समझने और हथियाने में जुटे हैं.. हमेशा जिन वोटरों को देखकर मुंह मोड़ लेते थे.. अब उनकी तरफ ही बेचारगी भरी नजर से देखते रहते हैं नेताजी ..
बेचारे नेताजी उन लोगों के सुख- दुख में भागीदार बनने की कोशिश कर रहे हैं.. जिनके लिए कल तक समय भी नहीं था.. सचमुच अपने जीवन के सबसे कठिन दौर से गुजर रहे हैं नेताजी.. अब इसे आप उनके लिए कठिन दौर नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे.. जो कल तक सितारा होटलों और सुविधायुक्त गेस्ट हाउस में ही बैठा करते थे.. आज जहां तहां दरी बिछाकर बैठने के लिए मजबूर हैं..कल तक जिन सरकारी योजनाओं और सुविधाओं पर अपने स्वार्थ की खातिर नेतागिरी का अड़ंगा लगाते थे.. अब उन मसलों पर जनता की अदालत में अपनी मजबूरियां गिनाते हैं.. बेचारे नेताजी पापी वोट की खातिर अपनी ही कारगुजारी को अब विपक्ष का अड़ंगा बताते हैं..
कहां नेताजी पांच साल तक सुकून से सोते थे.. अब नींद में भी जनता के सामने रोते हैं.. दिमाग का हाल कम Ram के कम्प्यूटर की तरह हो गया है.. गाहे बगाहे ज्यादा वर्क लोड के कारण हैंग हो जा रहा है.. कल तक हर काम के बदले मोटा कमीशन मांगा करते थे.. आज हर काम के बदले खुलकर कमीशन देने के लिए तैयार बैठे हैं नेताजी.. बेचारे नेताजी कहां पांच साल तक लोगों के बीच तन कर खड़े रहते थे.. आज उन्हीं के बीच फैल जाने की सोचते रहते हैं..
कल तक कानून का भी दायरा नहीं मानते थे नेताजी.. आज तरह- तरह के दायरों में खुद बंध गए हैं नेताजी.. बेचारे नेताजी कभी आचार संहिता के दायरे में खुद को फंसा पाते हैं तो कभी मैप पर अपनी विधान सभा के दायरे को देखकर सिर खुजलाते हैं.. क्या करें हाल बेहाल है बेचारे नेताजी..
कभी अपनी निधि से जैसे तैसे पैसा जुटाते थे नेताजी.. आज संचित निधि से दिल खोल कर पैसा लुटाते हैं बेचारे नेताजी.. कल तक दबंगई से ठेका हथियाते थे नेताजी.. आज हाथ जोड़-जोड़ कर भीड़ जुटाने के लिए भी ठेका देते हैं बेचारे नेताजी..
नेताजी के तकलीफों की फेहरिश्त बड़ी लम्बी है.. और तो और रोजाना मर्ज की संख्या भी बढ़ी जा रही है.. फिर भी अपने दिल को दिलासा देकर जिए जा रहे हैं नेताजी.. व्यस्त समय में भी अपने मन को समझाते रहते हैं नेताजी.. कि चिंता मत करो प्यारे जल्द ही वो नई सुबह आएगी जब हम इलेक्शन जीत जाएंगे.. इलेक्शन जीतते ही सारी कठिनाईयों से छुटकारा पा जाएंगे.. तब ये आचार संहिता बताने वाले हमारी संहिता गाएंगे.. फिर इलेक्शन का पैसा ब्याज सहित निकालेंगे.. अपना तो छोड़ो दूसरों के ठेके भी दबंगई से हथिया लेंगे.. आज जो वादे किए हैं वो अगले इलेक्शन के लिए लॉकर में दबा देंगे.. जनता तो बड़ी भोली है.. चुनाव आने पर एक बार फिर बहानों सहित वादा सुना देंगे..
जो भी कहें आप बड़े न्यारे हैं नेताजी.. लाख ऐब है फिर भी जनता की आंखों के तारे हैं.. अब मुझे समझ में नहीं आ रहा कि आप पर तरस खाऊं या आम जनता पर.. जो पांच साल तक आपको गरियाती है फिर भी चुनाव में वोट डालकर आप ही को जिताती है.. वाकई आप की नस्ल बड़ी उन्नत है.. तभी तो आप नेता हैं और हम आम जनता..
माफ करिएगा नेताजी जो हमने आपकी काबिलियत पर सवाल उठाया.. वैसे भी हमसे आप पर क्या फर्क पड़ता है जब कचहरी और कानून भी आपके हौसले को नहीं डिगा पाया..
सचमुच आप कलियुग के भगवान हैं बेचारे नेताजी!!!!

Posted by- Ajeet.....

Friday, November 21, 2008

चुनाव रिपोर्ट

आज की रपट

महेश मेवाड़ा
छत्तीसगढ़ में दूसरे व अंतिम चरण में करीब 70 प्रतिशत मतदान हुआ...... राज्य के 51 विधानसभा क्षेत्रों के 12073 मतदान केंद्रों पर सुबह 8 बजे से मतदान होना शुरू हो गया था...... हर मतदान केंद्रों पर लंबी लंबी कतारे सुबह से ही देखने को मिल रही थी और यह सिलसिला शाम तक जारी रहा......कुछ मतदान केंद्रों पर तो मतदाताओं के उत्साह को देखते हुए मतदान का समय भी बढाया गया..... और इस तरह छिटपुट घटनाओं के बाद पूरे प्रदेश में शांतिपूर्ण मतदान संपन्न हो गया.... पहले चरण में भी 70 प्रतिशत मतदान हुआ था इस तरह पूरे प्रदेश का मतदान प्रतिशत करीब 70 प्रतिशत का आंकड़ा पार कर गया...
महेश मेवाडा
जी 24घंटे 36गढ़,( लेखक ज़ी छत्तीसगढ़ चैनल में इलेक्शन डेस्क पर कार्यरत हैं )

चुनावी ग़ज़ल

एक चुनावी ग़ज़ल लिख मारी है ( अमा चुनावी मौसम है तो वही सूझेगा ना ) बर्दाश्त इनायत होगी !

चुनावी ग़ज़ल

हुए थे लापता कुछ साल पहले, अब हैं लौट आए
वो नेता हैं, कि हाँ फितरत यही है।

हम उनकी राह तक-तक कर बुढाए
हम जनता हैं, कि बस किस्मत यही है।

वो बोले थे, ना हम सा कोई प्यारा
वो भूले, उनकी तो आदत यही है।

बंटी हैं बोतलें, कम्बल बंटे हैं
वो बोले आपकी कीमत यही है।

वो मुस्काते हैं, हम हैं लुटते जाते
कि बस हर बार की आफत यही है।

जो पूछा, अब तलक थे गुम कहाँ तो
वो बोले, बस हुज़ूर फुर्सत यही है।

चाउर वाले बाबा वर्सेस लबरा राजा...

मित्रो देश भर मे चुनावी माहौल छाया हुआ है...
देश की शीर्ष पार्टियां तन-मन-धन से इस महासंग्राम मे लगी हुई है...एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोपो का दौर चल रहा है...
वहीं छत्तीसगढ़ जैसे भोलेभाले प्रदेश की राजनितिक फिज़ा भी दूषित हो गयी है...यहां की अनपढ़,गरीब और वनांचल मे रहने वाली जनता इस प्रदूषण को भलीभाती समझ रही है और 68 फीसदी मतदान करते हुए इस प्रदूषण को काफी हद तक खत्म करने के लिए अपना योगदान दे भी दिया है...
बहरहाल अब 8 दिसंबर को ही स्थिती स्पष्ट हो पाएगी...
प्रदेश की भोलीभाली गरीब जनता ने अभी तक दो ही सरकारो और दो ही मुख्यमंत्रियो का कार्यकाल देखा हुआ है...
हालाकि दोनो ही पार्टियो ने अभी तक मुख्यमंत्रियो की दौड़ मे काई दूसरा विकल्प पेश नही किया है...
अब जनता के समक्ष दो ही उम्मीदवार थे एक भाजपा के डाक्टर रमन सिंह(जिसे प्रदेश की जनता चाउर वाले बाबा के नाम से जानती है और अति गरीब जनता इन्हे अन्नदाता मतलब भगवान मानती है)...
और दूसरे कांग्रेस के अजीत जोगी(जिन्हे लोग तेजतर्रार प्रशासनिक अनुभव रखने वाले व्यक्ती के रूप मे पहचानती है)...
छत्तीसगढ़िया मे लबरा राजा का अर्थ है बकबक,बड़बोला,और झूठा वादा करने वाला व्यक्ति...
दुर्भाग्यवश अजीत जोगी को यहां की अवाम इसी नाम से जानती है...कारण केवल ये कि कांग्रेस कार्यकाल मे इनके प्रशासनिक अनुभव के चलते कोई विकास कार्य नही हुए...
जबकी एक सरल-साधारण से डाक्टर ने प्रदेश के हर घर मे जगह बनाई और जगह जगह विकास की गंगा बहाई...
यदि दोनो सरकारो की तुलना की जाए तो भाजपा ने 5 साल मे जिस गति से विकास कार्य किया है उतना कार्य करने मे कांग्रेस को 10 वर्ष लगते...(3 रू किलो चावल,24 घंटे बिजली,3.5फीसदी कृषि लोन,कितने ही रोजगार,सलवा जूडुम----
बात घोषणपत्र की हो तो कांग्रेस ने भाजपा के अन्त्योदय की नकल करते हुए 2 रू किलो चावल 1 रू नमक देने की घोषणा की थी...
वहीं भाजपा ने इसका जवाब देने के लिए 1 रू किलो चावल और नमक मुफ्त देने की घोषणा की है...
पोलिंग बूथो पर मतदाताओ को केवल 2 नम्बर का बटन और चाउर वाले बाबा ही याद थे...
यहां मै किसी पार्टी विशेष का प्रचार नही कर रहा हूं...यह आम जनता की बात सुन कर ही लिख पा रहा हूं...
यहां मुख्य रूप से फाईट दो ही लोगो मे है(रमन और जोगी मे...
पर फिर भी राज्य मे किसकी सरकार बनेगी कहना मुश्किल है...
जहां तक मुझे लगता है 90 विधानसभा सीटो मे से भाजपा 50-51,कांग्रेस 35-36,निर्दलीय एवं अन्य पार्टियां 6-7 सीटो पर विजयश्री पा सकती है...


नवीन सिंह...

Thursday, November 20, 2008

साहित्य और पत्रकारिता के सेतुपुरुष थे पराड़कर जी -

‘ विरोध (http://virodh.blogspot.com/)


पं बाबूराव विष्णु पराड़कर हिंदी साहित्य और पत्रकारिता के सेतुपुरुष थे. पत्रकारिता की मौजूदा परिस्थिति में आज उनकी ओर से स्थापित मूल्य और ज्यादा प्रासंगिक हैं. उन्होंने हिंदी साहित्य को दो सौ से ज्यादा शब्द दिए थे. उन्होंने आजादी के आंदोलन में पत्रकारिता का इस्तेमाल तलवार की तरह किया था. पत्रकारिता में चुनौतियां उस जमाने में भी कम नहीं थी. इस समय जरूरत है पराड़कर की तरह उनसे निपटने की दिशा में एक ठोस पहल की.’ देश की हिंदी पट्टी से यहां जुटे तमाम आलोचकों, साहितियकारों, पत्रकारों और विद्वानों ने पराड़कर जी को कुछ इन्हीं शब्दों में याद किया. मौका था भोपाल स्थित माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता और संचार विश्वविद्यालय की ओर से पराड़कर की 125वीं जयंती के मौके पर यहां आयोजित एक संगोष्ठी का. संगोष्ठी का विषय था-‘पराड़कर युग और आज की पत्रकारिता.’
कबीरचौरा स्थित नागरी नाटक मंडली के सभागार में इस संगोष्ठी के लिए पांच सौ से ज्यादा लोगों की भीड़ देखना अपने आप में एक सुखद अनुभव था. अमूमन ऐसे आयोजनों में भीड़ या तो जुटती नहीं है या फिर मुख्य वक्ताओं को सुनने के बाद ही निकल जाती है. लेकिन पहले सत्र में समय लंबा खिंचने के बावजूद लोग न सिर्फ जमे रहे, बल्कि ध्यान से सबको सुना भी. संगोष्टी के दौरान पराड़कर जी की पुत्रवधू अर्चना पराड़कर को सम्मानित किया गया. इस मौके पर भोपाल के ही....की ओर से उदंड मार्तंड से लेकर पराड़कर जी के संपादन में निकलने वाली ‘आज’, ‘संसार’, ‘कमला’ और ‘रणभेरी’ की दुर्लभ प्रतियों की प्रदर्शनी आयोजित की गई थी. इसे देखना पत्रकारिता के एक कालखंड से गुजरने की तरह था.
माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता और संचार विश्वविद्यालय के कुलपति अच्युतानंद मिश्र ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि ‘पराड़कर जी हिंदी साहित्य और पत्रकारिता के सेतु पुरुष थे. उन्होंने हिंदी साहित्य को दो सौ से ज्यादा शब्द दिए.’ मिश्र का कहना था कि आजादी के बाद साहित्य और पत्रकारिता के बीच दूरी बढ़ी. नतीजा यह रहा कि हिंदी को उसका उचित स्थान और पहचान दिलाने की जो लड़ाई इन दोनों को मिल कर लड़नी थी वह कमजोर हो गई. उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय की ओर से देश के ऐसे तमाम मूर्धन्य संपादकों की जन्म या कर्मभूमि ने ऐसे आयोजन किए जाएँगे, जिनका आजादी की लड़ाई में अहम योगदान रहा है.
संगोष्ठी के प्रधान वक्ता वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी ने कहा कि ‘पराड़कर युग और आज की पत्रकारिता के बीच कोई सेतु बनाने का प्रयास बुरी तरह विफल होगा. पत्रकारिता का जो अर्थ उस समय था, वह आज के इस दुर्भाग्यपूर्ण माहौल में कहीं फलता-फूलता नजर नहीं आता. लेकिन पराड़कर के जरिए आज की पत्रकारिता को समझने की एक कुंजी तो मिल ही सकती है.’ उनका सवाल था कि मराठी होते हुए भी पराड़कर को हिंदी इलाके ने अपना मान कर प्रतिष्ठित किया था, लेकिन क्या आज के माहौल में यह संभव है? उन्होंने कहा कि ‘पराड़कर ने आजादी के लिए पत्रकारिता को तलवार की तरह इस्तेमाल किया था. लेकिन अब उसी आजाद देश में मुंबई और असम में हिंदीभाषियों को बाहरी कह कर मारा और भगाया जा रहा है. तमाम अखबार और चैनल राज ठाकरे को खलनायक बताते हुए उसका महिमामंडन करने में जुटे हैं.’
जाने-माने आलोचक नामवर सिंह ने पहले तो इस बात पर आक्रोश जताया कि काशी के लोग अपनी भुलक्कड़ी की आदत के चलते पराड़कर को भी भूल गए हैं. उन्होंने कहा कि ‘आज की पत्रकारिता कठिन दौर से गुजर रही है. इसकी विश्वसनीयता तेजी से कम हुई है. लेकिन पराड़कर युग से तुलना कर इसे कोसने की बजाय इसकी दशा में सुधार के लिए साहित्य और पत्रकारिता से जुड़े लोगों को गंभीरता से विचार करना होगा.’
संगोष्ठी में असहमति के स्वर भी उभरे. कई पत्रकारों ने सवाल उठाया कि अब बाजार के दबाव में प्रबंधन इस बात का फैसला करता है कि कौन सी खबर छपेगी और कौन सी नहीं. ऐसे में पत्रकार कर ही क्या सकता है? अच्युतानंद मिश्र ने इन सवालों का जवाब देते हुए कहा कि ‘स्वरूप भले बदला हो, चुनौतियां हर युग में रही हैं. ऐसे में पराड़कर की तरह ही इन चुनौतियों से निपटने के लिए एक ठोस पहल की जरूरत है.’
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे डा. कृष्ण बिहारी मिश्र ने कहा कि पहले पत्रकारिता उदेश्य प्रधान थी लेकिन अब अर्थ प्रधान हो गई है. उन्होंने भी मौजूदा हालात में सुधार के लिए साहितय और पत्रकारिता के बीच सहयोग की जरूरत पर जोर दिया. संगोष्ठी का संचालन किया वाराणसी स्थित मदन मोहन मालवीय हिंदी पत्रकारिता संस्थान के निदेशक प्रोफेसर राममोहन पाठक ने. धन्यवाद ज्ञापन सप्रे संग्रहालय के निदेशक विजयदत्त श्रीधर ने किया. संगोष्ठी के दौरान ही पराड़कर के सहयोगी रहे पारस नाथ सिंह को भी सम्मानित किया गया. तमाम वक्ता इस बात से सहमत थे कि एक दिन की किसी संगोष्ठी में इतने गंभीर विषय पर विस्तार से चर्चा संभव नहीं है. लेकिन उन्होंने उम्मीद भी जताई कि इस पहल के दूरगामी नतीजे होंगे.

Wednesday, November 19, 2008

जय बोल.......


चुनावी दंगल की जब परिकल्पना आई तो दिमाग में यह भी था कि इसी बहाने अपने राजनीतिज्ञों पर कुछ बेहतरीन व्यंग्य भी लिखने और पढने का मौका मिलेगा। कल एक व्यंग्य लिखना शुरू किया( जो कुछ दिनों में आपके सामने होगा) तो अचानक काका हाथरसी याद आ गए। दरअसल राजनीति और भ्रष्टाचार पर सबसे मारक व्यंग्य करने वाले लोगों में काका का नाम शुमार है। काका हाथरसी की कवितायें व्यवस्था की छोटी से छोटी खामी को भी अपनी पैनी नज़र से पकड़ती है और ऐसी धार से कागज़ पर उकेरती है कि आम आदमी पढ़े और उसके अन्दर व्यवस्था से विद्रोह पैदा हो.....काका हाथरसी वस्तुतः इसी प्रकार के कवि थे और इतने बड़े कवि थे कि आज भी कई लोग उनकी नक़ल कर के जीवन यापन कर रहे हैं। इसीलिए लगा कि चुनावी दंगल में अगर काका की पंक्तियों का छौंक लग जाए तो दंगल का रोमांच और बढ़ जायेगा, सो प्रस्तुत है, ऐसी पंक्तियाँ जो आज के नेताओं और आज की परिस्थितियों पर बिल्कुल अनुकूल हैं,


जय बोल बेईमान की



मन, मैला, तन ऊजरा, भाषण लच्छेदार,


ऊपर सत्याचार है, भीतर भ्रष्टाचार।


झूटों के घर पंडित बाँचें, कथा सत्य भगवान की,


जय बोलो बेईमान की !



प्रजातंत्र के पेड़ पर, कौआ करें किलोल,


टेप-रिकार्डर में भरे, चमगादड़ के बोल।


नित्य नई योजना बन रहीं, जन-जन के कल्याण की,


जय बोल बेईमान की !



महँगाई ने कर दिए, राशन-कारड फेल


पंख लगाकर उड़ गए, चीनी-मिट्टी तेल।


‘क्यू’ में धक्का मार किवाड़ें बंद हुई दूकान की,


जय बोल बेईमान की



चैक केश कर बैंक से, लाया ठेकेदार,


आज बनाया पुल नया, कल पड़ गई दरार।


बाँकी झाँकी कर लो काकी, फाइव ईयर प्लान की,


जय बोलो बईमान की !



बेकारी औ’ भुखमरी, महँगाई घनघोर,


घिसे-पिटे ये शब्द हैं, बंद कीजिए शोर।


अभी जरूरत है जनता के त्याग और बलिदान की,


जय बोलो बईमान की !



मिल-मालिक से मिल गए नेता नमकहलाल,


मंत्र पढ़ दिया कान में, खत्म हुई हड़ताल।


पत्र-पुष्प से पाकिट भर दी, श्रमिकों के शैतान की,


जय बोलो बईमान की !



न्याय और अन्याय का, नोट करो डिफरेंस,


जिसकी लाठी बलवती, हाँक ले गया भैंस।


निर्बल धक्के खाएँ, तूती बोल रही बलवान की,


जय बोलो बईमान की !



नेता जी की कार से, कुचल गया मजदूर,


बीच सड़कर पर मर गया, हुई गरीबी दूर।


गाड़ी को ले गए भगाकर, जय हो कृपानिधान की,


जय बोलो बईमान की !



अंत में एक हथगोला और संभालें जो एक दूसरी कविता से है ......


नेता अखरोट से बोले किसमिस लाल
हुज़ूर हल कीजिये मेरा एक सवाल
मेरा एक सवाल, समझ में बात न भरती
मुर्ग़ी अंडे के ऊपर क्यों बैठा करती
नेता ने कहा, प्रबंध शीघ्र ही करवा देंगे
मुर्ग़ी के कमरे में एक कुर्सी डलवा देंगे



तो अंत में बस यही कि


चुनाव अनंत, चुनाव कथा अनंता


कहही, सुनहि बहुविधि सब संता

Tuesday, November 18, 2008

चुनाव रिपोर्ट

चुनाव रिपोर्ट नाम के इस स्तम्भ में हम अपने उन साथियों की विशेष टिप्पणियाँ और रपट प्रकाशित करेंगे जो उन क्षेत्रो में काम कर रहे हैं......

आज की रपट

महेश मेवाड़ा

छत्तीसगढ़ में दो चरणों में चुनाव में होना है...... और में आपको बता दूं की पहले चरण में 39 सीटों के लिए मतदान 14 नंवबर को संपन्न हो गया है...... जिसमें अधिकतर नक्सली बेल्ट सीटें थी........ यहां मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच रहा है...... वहीं दूसरे चरण की बची 51 सीटों के लिए 20 नंवबर को मतदान होना है........ और इन सीटों पर भी मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस की बीच ही है...... परन्तु तीसरी ताकत का दंभ भर रही बसपा को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता...... वह भी पिछली बार 2 सीटों पर फतह हासिल करने में कामयाब रही थी....... दूसरे चरण के मतदान के लिए अब दो दिन ही शेष है...... और मंगलवार की शाम से ही राजनीतिक पार्टियों का प्रचार थम जाएगा............


महेश मेवाडा mahesh.journalist@gmail.com
जी 24घंटे 36गढ़,
( लेखक ज़ी छत्तीसगढ़ चैनल में इलेक्शन डेस्क पर कार्यरत हैं )


Monday, November 17, 2008

गनतंत्र पर जनतंत्र रहा हावी

(चुनावी दंगल में छत्तीसगढ़ चुनावों पर पेश है श्रृंखला की पहली कड़ी, जिसे भेजा है छत्तीसगढ़ से हमारे पत्रकार साथी नितिन शर्मा ने)

"तरह तरह के सर्वे हुए हैं किसी में भाजपा को आगे बताया गया है तो किसी में कांग्रेस को परंतु मुझे लगता है अधिकांश सर्वे बहुत कम सच्चाई लिए होते हैं।"


छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों के लिए प्रथम चरण का मतदान बस्तर इलाके में हिंसक वारदातों के बीच संपन्न हुआ। मतदान शांति पूर्वक संपन्न हो इसके लिए चुनाव आयोग ने बस्तर इलाके में जहां नक्सलियों का आतंक है लगभग 30 हजार सुरक्षाबलों की तैनाती की थी। लेकिन फिर भी नक्सली छुटपुट हिंसाओं को अंजाम देने में सफल रहे लेकिन लोकतंत्र के इस महायज्ञ में मतदाताओं ने बढ़चढ़कर आहूति दी। गनतंत्र पर जनतंत्र हावी रहा।
यहां एक बात यह दुख की रही कि मतदान कर्मियों को पोलिंग बूथ से वापस ला रहे हैलिकॉप्टर पर नक्सलियों ने अत्याधुनिक हथियारों से फायरिंग कर दी जिसमें फ्लाईट इंजीनियर अपना कर्तव्य पालन करते हुए शहीद हो गए वे कानपुर निवासी थे। केव्स के सभी ब्लागवीरों की तरफ से उनको श्रद्धांजली।
39 विधानसभा सीटों पर मतदान के बाद अब सबकी नजर अगले चरण पर टिकीं हुई हैं जो कि 20 तारीख को होगा जिसमें कुल 51 सीटों पर चुनाव होना है। तरह तरह के सर्वे हुए हैं किसी में भाजपा को आगे बताया गया है तो किसी में कांग्रेस को परंतु मुझे लगता है अधिकांश सर्वे बहुत कम सच्चाई लिए होते हैं। देखा जाए तो छत्तीसगढ का भोलाभाला मतदाता वोट से पहले तक कोई रूझान झलकने नहीं देता।
जनता से तमाम लुभावने वादे किए जा रहे हैं जहां कांग्रेस ने 2 रू किलो चावल देने का वादा किया वहीं भाजपा ने 1 रू किलो चावल देने का वादा कर दिया जो अभी 3 रू किलो चावल दे रही है। वादे तो चुनावों में काफी होते हैं पर निभाए बहुत कम जाते हैं वादों के बजाए यदि संकल्प लिया जाए तो शायद बात बने।
वैसे देखा जाए तो प्रथम चरण के बाद ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस की आपसी गुटबाजी और लचर प्रचार के चलते ( सोनिया का दौरा तीन बार रद्द हुआ) रमन सिंह की साफ स्वच्छ छवि भाजपा को फायदा पहुंचा सकती है इसके साथ रमन सरकार ने विकास के कार्य भी काफी किए हैं हालांकि छत्तीसगढ के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए अभी काफी कुछ किया जाना है।
परंतु अभी असली लड़ाई अभी बाकी है दूसरे दौर के मतदान में। क्योंकि इस दौर मे 51 सीटों के लिए चुनाव होना है, इसमें जो भी बाजी मार लेगा बाजीगर वही बन जाएगा..कांग्रेस को सरकार में आने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ेगी और गुटबाजी से निपटना पड़ेगा(क्योंकि यहां पर कांग्रेस के तीन प्रदेशाध्यक्ष है).. वहीं भाजपा के लिए उसके बागी मुसीबत बने हुए हैं साथ ही मायावती भी भाजपा के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए कमर कसे हुए हैं।

नितिन शर्मा
sharma_nitin2006@rediffmail.com
( लेखक जी 24 घंटा छत्तीसगढ़ में पत्रकार हैं और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के दृश्य श्रव्य अध्ययन केन्द्र के पूर्व छात्र हैं )

Friday, November 14, 2008

जब चुनावी माहौल बन ही गया है तो....

पूरे देश में चुनावी गुलाल उड़ा हुआ है ..... होना भी चाहिए क्यूंकि ६ राज्यों में चुनाव हैं और फिर अगले साल अप्रैल तक आम चुनाव भी हो ही जायेंगे। ऐसे में हमारे ज़्यादातर साथियों की ख्वाहिश यही थी की केव्स संचार पर कुछ दिन तक हम भी चुनावी होली खेल लें। तो भाई लोगों ( बहनें भी अपने को शामिल मानें ) तय रहा कि केव्स वाले भी चुनावी होली में सराबोर होंगे और खुशखबरी है अपने राजनीतिक पत्रकार भाइयों के लिए ( वैसे बहनें राजनीति से दूर ही रहती हैं पर ख़ुद को शामिल मानें ) कि अब आप केव्स संचार के मैदान में कूद पड़ें क्यूंकि सोमवार दिनांक १७-११-२००७ से केव्स पर चुनावी दंगल शुरू होने जा रहा है। बड़ी बात यह है कि इसमें हमें अपने कई साथियों का सहयोग मिलेगा जो मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली, राजस्थान और तो और कश्मीर चुनाव पर फील्ड में भी पत्रकारिता कर रहे हैं.....तो ख़ास तौर पर हमारे इन गठीले पहलवानों के दंगल का मज़ा लेने के लिए तैयार हो जायें !
फिलहाल आप सभी को चाचा नेहरू के जन्मदिवस और बाल दिवस की शुभकामनाएं ..... काश दुनिया में सब बच्चे बन जाते ..... फिर झगडा तो होता पर दुश्मनी नही होती !
आमीन

Wednesday, November 12, 2008

चुनाव प्रचार थमा

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान के लिए प्रचार का शोर आज शाम मद्धम होते होते शांत हो गया। दक्षिण छत्तीसगढ़ के संवेदनशील बस्तर इलाक़े सहित कुल 10 ज़िलों की 39 सीटों पर 14 नवंबर को मतदान होना है। पहले चरण की इन सीटों के लिए 383 उम्मीदवार चुनाव लडेंगे।
मुख्यमंत्री रमन सिंह, नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा, विधानसभा अध्यक्ष प्रेमप्रकाश पांडे, विपक्ष के उपनेता भूपेश बघेल और मोतीलाल वोरा के बेटे अरुण वोरा के चुनावी भाग्य का फैसला इसी चरण में होगा।

बस्तर जो किनाक्साली हिंसा से प्रभावित इलाका है वहाँ शहरों में तो चुनाव की चहल पहल है पर अंदरूनी इलाकों का माहौल भय से भरा है क्यूंकि माओवादियों ने चुनाव के बहिष्कार की अपील की है। इस कारण बस्तर मैं चुनाव आयोग ने विशेष इन्तेजाम किए हैं। चुनाव आयोग ने बस्तर में मतदान का समय परिवर्तन करते हुए इसे सुबह आठ बजे से दोपहर बाद तीन बजे तक ही सीमित कर दिया है जिससे कि सूर्यास्त से पहले ही मतपेटियों को सुरक्षित वहाँ से निकाला जा सके।

Monday, November 10, 2008

विश्व विजेता हर बार भारत में पराजित हुए हैं...

अभी दफ्तर में एसैन्मेंट डेस्क पर ख़बर आई की भारत ने ऑस्ट्रेलिया को चित कर दिया और सीरीज़ पर २-० से कब्ज़ा कर लिया ..... तुंरत दिमाग में चन्द्रगुप्त मौर्या और सिकंदर महान की लड़ाई की कहानी घूम गई ! याद आया की अरे ये तो इतिहास रहा है की विश्व विजेता दुनिया में इतराते हैं और भारत में आ कर धाराशायी हो जाते है। फिलहाल कुंबले और धोनी के इस संयुक्त उपक्रम ने ऑस्ट्रेलिया का दुबारा मान मर्दन किया है, इससे पहले भारतीय टीम ने ऑस्ट्रेलिया में ही उसकी टीम को धूल चटाई थी।
फिलहाल पहले हाल मैच का तो मैथ्यू हेडन और साइमन कैटिच ने बेहद आक्रामक अंदाज़ में पाँचवें दिन की शुरुआत की पर ईशांत शर्मा ने शानदार तेज़ गेंदबाज़ी का नमूना पेश करते हुए कैटिच और माइकल क्लार्क को पैवेलियन भेज दिया। उधर अमित मिश्रा ने कप्तान पोंटिंग की गिल्लियां बिखेर दी जब उनको महज आठ के व्यक्तिगत स्कोर पर रन आउट कर दिया। पर इसके बाद हेडन और माइक हसी ने धुंआधार बल्लेबाजी चालू कर दी और भारतीय टीम संकट में दिखी पर धोनी की चतुराई के क्या कहने कि उन्होंने अमित मिश्रा को गेंदबाज़ी की कमान सौंपी और उन्होंने हसी को 19 के निजी स्कोर पर स्लिप में कैच करा दिया उधर भज्जी ने हैडेन को ७७ पर पगबाधा मारा और उसके बाद जो हुआ वो इतिहास है......ऑस्ट्रेलिया २०९ पर ही ढेर हो गई और भारत ने आखिरी टेस्ट १७३ रनों से जीत लिया।

हरभजन सिंह ने मारक गेंदें फेंकते हुए ४ विकेट लिए, अमित मिश्रा भी ज्यादा पीछे नही रहे उन्होंने ३ विकेट लिए तो इशांत शर्मा को २ विकेट मिले। ट्रोफी कुंबले ने उठाई।

फिलहाल विदाई के लिए गांगुली और कुंबले के लिए इससे बेहतर मौका नही था कि २९ साल बाद टीम ने २-० से टेस्ट श्रृंखला जीती है......तो भारतीय टीम के शूरवीरों को बधाई !


Saturday, November 8, 2008

दूसरी आज़ादी का सपना, मार्टिन लूथर और ओबामा ......

दूसरी आज़ादी का सपना, मार्टिन लूथर और ओबामा ...... उस दिन सुबह जब सो कर उठा तो भाई ने पहली ख़बर दी की ओबामा आगे चल रहे हैं, सुबह की शुरुआत अच्छी हुई और दिन तब अच्छा हुआ जब पता चला की अंततः कई महीनो की कसरत ख़त्म हुई और ओबामा जीत गए...... दरअसल खुशी का कारण ना तो चुनाव का ख़त्म होना था, ना ही अर्थव्यवस्था के प्रति चिंता और ना ही प्रवासी भारतीयों की फ़िक्र ही थी ......
खुशी के कारण कोई पचास साल पुराने थे, जब शायद मैं पैदा भी नही हुआ था। एक नाम याद आया.......... मार्टिन लूथर किंग का नाम , मैं नहीं जानता की मेरी पीढी के कितने लोग लूथर का नाम जानते होंगे पर मैं यकीनन जानता हूँ और बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ .......
याद आया शक्तिशाली संयुक्त राज्य अमेरिका ( जिसने जापान पर अणुबम गिरा कर महाशक्ति होने का प्रमाण दिया ) का वह चेहरा जिसमे गोरे और काले का भेद था ..... दुनिया के सबसे तरक्की याफ्ता मुल्क में बसों में गोरो और कालों के लिए अलग अलग सीटें थी......मार्टिन लूथर ने ३८१ दिनों का सत्याग्रह किया और बिना हिंसा के यह शर्मनाक नियम ख़त्म हुआ ! धार्मिक नेताओं की मदद से इस आन्दोलन को पूरे अमेरका में फैलाया और समान नागरिक क़ानून पाने में सफलता प्राप्त की। १९६३ में टाइम पत्रिका ने उन्हें वर्ष का पुरूष चुना और उनके कार्यों को वास्तविक सम्मान देते हुए १९६४ में उनको विश्व शान्ति के लिए नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया।
अब बात किंग की विचार धारा की ...... उनके ओबामा से सम्बन्ध की ..........दरअसल ओबामा और मार्टिन लूथर किंग को एक सपना आपस में जोड़ता है, एक सपना जो देखा गया एक बेहतर दुनिया के लिए, एक बराबरी की ज़िन्दगी के लिए, एक सुनहरे भविष्य के लिए, दुनिया को बदलने के लिए, श्रृंखलाओं को तोड़ने के लिए और एक दूसरी आज़ादी के लिए !
दूसरी आज़ादी जिसकी बात की मार्टिन लूथर ने और जिसके प्रथम वाहक बने ओबामा। मार्टिन लूथर कहते थे उस आज़ादी की बात जो खाल के आधार पर इंसान की पहचान नही करती है .....वे अश्वेतों के लिए कहते थे, 'हम वह नहीं हैं, जो हमें होना चाहिए और हम वह नहीं हैं, जो होने वाले हैं, लेकिन खुदा का शुक्र है कि हम वह भी नहीं हैं, जो हम थे।' ज़ाहिर है आज वे वो नही है जो कल थे ...... वे बदले हैं !
किंग का स्वप्न था की कभी कोई अश्वेत अमेरका का राष्ट्रपति बने और आज़ादी के २१९ साल बाद वो सपना सच हुआ है ........निश्चित तौर पर यह एक नई क्रांति है, और यह दुनिया भर में फैलेगी, वहां ही नहीं यहाँ भी ओबामा जीतेंगे, अपनी राह ख़ुद बना लेंगे .....( मायावती भी प्रधानमन्त्री बन सकती हैं सनद रहे !)
मार्टिन लूथर की १९६८ में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी और उसके ठीक ४० साल बाद किंग फिर जी उठे हैं ...... उनके विचार जी उठे हैं ...... और शायद दुनिया में दूसरी आज़ादी की उम्मीदें भी जी उठी हैं......
आज़ादी जिंदाबाद

Saturday, November 1, 2008

वेब पत्रकार संघर्ष समिति का स्वागत

दिल्ली में बनाई गई वेब पत्रकार संघर्ष समिति का देश भर के पत्रकार संगठनों ने स्वागत किया है। अखबारों में जनसत्ता, द इंडियन एक्सप्रेस, दैनिक जगरण, दैनिक भास्कर, अमर उजला, नवभारत, नई दुनिया, फाइनेन्शियल एक्सप्रेस, हिन्दुस्तान, दी पायनियर, मेल टूडे, प्रभात खबर, डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट व बिजनेस स्टेन्डर्ड जसे तमाम अखबारों के पत्रकारों ने वेब पत्रकार संघर्ष समिति के गठन का स्वागत किया। हिन्दुस्तान के दिल्ली और लखनऊ के आधा दजर्न से ज्यादा पत्रकारों ने इस मुहिम का स्वागत करते हुए अपना नाम न देने की मजबूरी भी बता दी।
आईएफडब्ल्यूजे, इंडियन एक्सप्रेस इम्प्लाईज वर्कर्स यूनियन, जनर्लिस्ट फार डेमोक्रेसी, चंडीगढ़ प्रेस क्लब और रायपुर प्रेस क्लब ने इस पहल का समर्थन किया है और सुशील कुमार सिंह के खिलाफ फर्जी आपराधिक मामले में फंसाने की कड़ी आलोचना की है। इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किग जनर्लिस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष के विक्रम राव ने कहा-अभी तक प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रानिक मीडिया के मुद्दों को लेकर चर्चा होती रही है। पर पहली बार वेब पत्रकारों ने पहल करते हुए जो संगठन बनाया है, वह आने वाले समय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। हम इस संगठन के गठन का स्वागत करते हैं। जनसत्ता के वरिष्ठ पत्रकार और इंडियन एक्सप्रेस इम्प्लाईज वर्कस यूनियन के उपाध्यक्ष अरविन्द उप्रेती ने कहा-हम सुशील कुमार सिंह के साथ हैं। वे हमारे एक्सप्रेस के संघर्ष के दिनों के पुराने साथी हैं। एक्सप्रेस यूनियन की तरफ से मैं उनके खिलाफ होने वाली पुलिसिया कार्रवाई की निंदा करता हूं।
इस बीच हिन्दुस्तान में काम कर चुके वरिष्ठ पत्रकार और डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट के संपादक प्रभात रंजन दीन ने कहा-सुशील कुमार सिंह के साथ जो हुआ, वह शर्मनाक है। इस मुद्दे पर साथियों की जो भी राय बनेगी, हम वह सब करने को तैयार हैं।जनर्लिस्ट फार डेमोक्रेसी के संयोजक पंकज श्रीवास्तव ने कहा-वेब पत्रकारों की एकजुटता नई पहल है। आने वाला समय वेब पत्रकारिता का है। ऐसे में पत्रकारों के सामने नई चुनौतियां भी आएंगी जिनका मुकाबला इस प्रकार के संगठनों से किया ज सकेगा। इस बीच रायपुर प्रेस क्लब के अध्यक्ष अनिल पुसदकर ने सुशील सिंह के मामले में पुलिस उत्पीड़न की कार्रवाई की तीखी निंदा करते हुए उनके खिलाफ सारे मामले वापस लेने की मांग की है। इस बारे में रायपुर प्रेस क्लब में बैठक भी बुलाई ज रही है। पुसदकर ने दिल्ली में वेब पत्रकारों का संगठन बनाए जने का स्वागत करते हुए इसकी छत्तीसगढ़ इकाई शुरू करने का एलान किया।
जनादेश वेबसाइट की संपादक सविता वर्मा ने सुशील कुमार सिंह के प्रकरण को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए वेब पत्रकारों की पहल का स्वागत किया है। इससे आने वाले समय में वेब पत्रकारों को फर्जी मामले में फंसाने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाया ज सकेगा। पश्चिम बंगाल की पत्रकार रीता तिवारी ने दिल्ली में वेब पत्रकारों की संघर्ष समिति बनाए जने का स्वागत करते हुए कहा कि इसकी इकाईयां अन्य राज्यों में भी बनाई जनी चाहिए ताकि राज्यों के वेब पत्रकारों का उत्पीड़न न हो सके।प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया के सदस्य और वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार ने कहा-वेब पत्रकारों के सामने जो भी चुनौतियां भी आएंगी उनका मुकाबला किया जाएगा।लखनऊ श्रमजीवी पत्रकार संघ के अध्यक्ष सिद्धार्थ कलहंस ने कहा-वेब पत्रकारिता का नया दौर शुरू हुआ है। ऐसे में पत्रकारों की यह पहल महत्वपूर्ण है। चंडीगढ़ प्रेस क्लब के उपाध्यक्ष चरनजीत आहूज ने वेब पत्रकारों की पहल का स्वागत करते हुए इसे हर संभव समर्थन देने का एलान किया है।
दूसरी तरफ पीपुल्स यूनियन फॉर ह्यूमन राइट्स के शाहनवाज आलम ने सुशील सिंह के खिलाफ फर्जी मामला दर्ज करने की कड़ी निंदा करते हुए इस मामले को मानवाधिकार आयोग ले जने की बात कही है। पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज के राष्ट्रीय महासचिव चितरंजन सिंह ने कंधमाल से फोन पर कहा-हम दिल्ली लौटते ही इस मुद्दे पर पहल करेंगे।इससे पहले एचटी मीडिया में शीर्ष पदों पर बैठे कुछ मठाधीशों के इशारे पर वेब पत्रकार सुशील कुमार सिंह को फर्जी मुकदमें में फंसाने और पुलिस द्वारा परेशान किए जाने के खिलाफ वेब मीडिया से जुड़े लोगों ने दिल्ली में एक आपात बैठक की। इस बैठक में हिंदी के कई वेब संपादक-संचालक, वेब पत्रकार, ब्लाग माडरेटर और सोशल-पोलिटिकिल एक्टीविस्ट मौजूद थे। अध्यक्षता मशहूर पत्रकार और डेटलाइन इंडिया के संपादक आलोक तोमर ने की। संचालन विस्फोट डाट काम के संपादक संजय तिवारी ने किया। बैठक के अंत में सर्वसम्मति से तीन सूत्रीय प्रस्ताव पारित किया गया। पहले प्रस्ताव में एचटी मीडिया के कुछ लोगों और पुलिस की मिलीभगत से वरिष्ठ पत्रकार सुशील को इरादतन परेशान करने के खिलाफ आंदोलन के लिए वेब पत्रकार संघर्ष समिति का गठन किया गया।इस समिति का संयोजक मशहूर पत्रकार आलोक तोमर को बनाया गया। समिति के सदस्यों में बिच्छू डाट काम के संपादक अवधेश बजाज, प्रभासाक्षी डाट काम के समूह संपादक बालेंदु दाधीच, गुजरात ग्लोबल डाट काम के संपादक योगेश शर्मा, तीसरा स्वाधीनता आंदोलन के राष्ट्रीय संगठक गोपाल राय, विस्फोट डाट काम के संपादक संजय तिवारी, लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार, मीडिया खबर डाट काम के संपादक पुष्कर पुष्प, भड़ास4मीडिया डाट काम के संपादक यशवंत सिंह शामिल हैं।
यह समिति एचटी मीडिया और पुलिस के सांठगांठ से सुशील कुमार सिंह को परेशान किए जाने के खिलाफ संघर्ष करेगी। समिति ने संघर्ष के लिए हर तरह का विकल्प खुला रखा है।दूसरे प्रस्ताव में कहा गया है कि वेब पत्रकार सुशील कुमार सिंह को परेशान करने के खिलाफ संघर्ष समिति का प्रतिनिधिमंडल अपनी बात ज्ञापन के जरिए एचटी मीडिया समूह चेयरपर्सन शोभना भरतिया तक पहुंचाएगा। शोभना भरतिया के यहां से अगर न्याय नहीं मिलता है तो दूसरे चरण में प्रतिनिधिमंडल गृहमंत्री शिवराज पाटिल और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती से मिलकर पूरे प्रकरण से अवगत कराते हुए वरिष्ठ पत्रकार को फंसाने की साजिश का भंडाफोड़ करेगा। तीसरे प्रस्ताव में कहा गया है कि सभी पत्रकार संगठनों से इस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए संपर्क किया जाएगा और एचटी मीडिया में शीर्ष पदों पर बैठे कुछ मठाधीशों के खिलाफ सीधी कार्यवाही की जाएगी।बैठक में प्रभासाक्षी डाट काम के समूह संपादक बालेन्दु दाधीच का मानना था कि मीडिया संस्थानों में डेडलाइन के दबाव में संपादकीय गलतियां होना एक आम बात है। उन्हें प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाए जाने की जरूरत नहीं है। बीबीसी, सीएनएन और ब्लूमबर्ग जैसे संस्थानों में भी हाल ही में बड़ी गलतियां हुई हैं। यदि किसी ब्लॉग या वेबसाइट पर उन्हें उजागर किया जाता है तो उसे स्पोर्ट्समैन स्पिरिट के साथ लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि संबंधित वेब मीडिया संस्थान के पास अपनी खबर को प्रकाशित करने का पुख्ता आधार है और समाचार के प्रकाशन के पीछे कोई दुराग्रह नहीं है तो इसमें पुलिस के हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है। उन्होंने संबंधित प्रकाशन संस्थान से इस मामले को तूल न देने और अभिव्यक्ति के अधिकार का सम्मान करने की अपील की।
भड़ास4मीडिया डाट काम के संपादक यशवंत सिंह ने कहा कि अब समय आ गया है जब वेब माध्यमों से जुड़े लोग अपना एक संगठन बनाएं। तभी इस तरह के अलोकतांत्रिक हमलों का मुकाबला किया जा सकता है। यह किसी सुशील कुमार का मामला नहीं बल्कि यह मीडिया की आजादी पर मीडिया मठाधीशों द्वारा हमला करने का मामला है। ये हमले भविष्य में और बढ़ेंगे। एकजुटता और संघर्ष की इसका कारगर इलाज है।विस्फोट डाट काम के संपादक संजय तिवारी ने कहा- ''पहली बार वेब मीडिया प्रिंट और इलेक्ट्रानिक दोनों मीडिया माध्यमों पर आलोचक की भूमिका में काम कर रहा है। इसके दूरगामी और सार्थक परिणाम निकलेंगे। इस आलोचना को स्वीकार करने की बजाय वेब माध्यमों पर इस तरह से हमला बोलना मीडिया समूहों की कुत्सित मानसिकता को उजागर करता है। उनका यह दावा भी झूठ हो जाता है कि वे अपनी आलोचना सुनने के लिए तैयार हैं।
लखनऊ से फोन पर वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार ने कहा कि उत्तर प्रदेश में कई पत्रकार पुलिस के निशाने पर आ चुके हैं। लखीमपुर में पत्रकार समीउद्दीन नीलू के खिलाफ तत्कालीन एसपी ने न सिर्फ फर्जी मामला दर्ज कराया बल्कि वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत उसे गिरफ्तार भी करवा दिया। इस मुद्दे को लेकर मानवाधिकार आयोग ने उत्तर प्रदेश पुलिस को आड़े हाथों लिया था। इसके अलावा मुजफ्फरनगर में वरिष्ठ पत्रकार मेहरूद्दीन खान भी साजिश के चलते जेल भेज दिए गए थे। यह मामला जब संसद में उठा तो शासन-प्रशासन की नींद खुली। वेबसाइट के गपशप जैसे कालम को लेकर अब सुशील कुमार सिंह के खिलाफ शिकायत दर्ज कराना दुर्भाग्यपूर्ण है। यह बात अलग है कि पूरे मामले में किसी का भी कहीं जिक्र नहीं किया गया है।
बिच्छू डाट के संपादक अवधेश बजाज ने भोपाल से और गुजरात ग्लोबल डाट काम के संपादक योगेश शर्मा ने अहमदाबाद से फोन पर मीटिंग में लिए गए फैसलों पर सहमति जताई। इन दोनों वरिष्ठ पत्रकारों ने सुशील कुमार सिंह को फंसाने की साजिश की निंदा की और इस साजिश को रचने वालों को बेनकाब करने की मांग की।बैठक के अंत में मशहूर पत्रकार और डेटलाइन इंडिया के संपादक आलोक तोमर ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि सुशील कुमार सिंह को परेशान करके वेब माध्यमों से जुड़े पत्रकारों को आतंकित करने की साजिश सफल नहीं होने दी जाएगी। इस लड़ाई को अंत तक लड़ा जाएगा। जो लोग साजिशें कर रहे हैं, उनके चेहरे पर पड़े नकाब को हटाने का काम और तेज किया जाएगा क्योंकि उन्हें ये लगता है कि वे पुलिस और सत्ता के सहारे सच कहने वाले पत्रकारों को धमका लेंगे तो उनकी बड़ी भूल है। हर दौर में सच कहने वाले परेशान किए जाते रहे हैं और आज दुर्भाग्य से सच कहने वालों का गला मीडिया से जुड़े लोग ही दबोच रहे हैं। ये वो लोग हैं जो मीडिया में रहते हुए बजाय पत्रकारीय नैतिकता को मानने के, पत्रकारिता के नाम पर कई तरह के धंधे कर रहे हैं। ऐसे धंधेबाजों को अपनी हकीकत का खुलासा होने का डर सता रहा है। पर उन्हें यह नहीं पता कि वे कलम को रोकने की जितनी भी कोशिशें करेंगे, कलम में स्याही उतनी ही ज्यादा बढ़ती जाएगी। सुशील कुमार प्रकरण के बहाने वेब माध्यमों के पत्रकारों में एकजुटता के लिए आई चेतना को सकारात्मक बताते हुए आलोक तोमर ने इस मुहिम को आगे बढ़ाने पर जोर दिया।बैठक में हिंदी ब्लागों के कई संचालक और मीडिया में कार्यरत पत्रकार साथी मौजूद थे।
केव्स संचार इस पूरी मुहिम में इस समिति और सुशील जी के साथ है और एच टी मीडिया लिमिटेड की खुले शब्दों में इस कृत्य के लिए भर्त्सना करता है.....हर मामला शान्ति और सौहार्द से हल हो सकता है .....

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