एक चुनावी ग़ज़ल लिख मारी है ( अमा चुनावी मौसम है तो वही सूझेगा ना ) बर्दाश्त इनायत होगी !
चुनावी ग़ज़ल
हुए थे लापता कुछ साल पहले, अब हैं लौट आए
वो नेता हैं, कि हाँ फितरत यही है।
हम उनकी राह तक-तक कर बुढाए
हम जनता हैं, कि बस किस्मत यही है।
वो बोले थे, ना हम सा कोई प्यारा
वो भूले, उनकी तो आदत यही है।
बंटी हैं बोतलें, कम्बल बंटे हैं
वो बोले आपकी कीमत यही है।
वो मुस्काते हैं, हम हैं लुटते जाते
कि बस हर बार की आफत यही है।
जो पूछा, अब तलक थे गुम कहाँ तो
वो बोले, बस हुज़ूर फुर्सत यही है।
आप तो हमें भूल गए ,और हमने याद रखा
ReplyDeleteवो बोले समय पर याद करें,हिफाज़त यही है