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Wednesday, November 19, 2008

जय बोल.......


चुनावी दंगल की जब परिकल्पना आई तो दिमाग में यह भी था कि इसी बहाने अपने राजनीतिज्ञों पर कुछ बेहतरीन व्यंग्य भी लिखने और पढने का मौका मिलेगा। कल एक व्यंग्य लिखना शुरू किया( जो कुछ दिनों में आपके सामने होगा) तो अचानक काका हाथरसी याद आ गए। दरअसल राजनीति और भ्रष्टाचार पर सबसे मारक व्यंग्य करने वाले लोगों में काका का नाम शुमार है। काका हाथरसी की कवितायें व्यवस्था की छोटी से छोटी खामी को भी अपनी पैनी नज़र से पकड़ती है और ऐसी धार से कागज़ पर उकेरती है कि आम आदमी पढ़े और उसके अन्दर व्यवस्था से विद्रोह पैदा हो.....काका हाथरसी वस्तुतः इसी प्रकार के कवि थे और इतने बड़े कवि थे कि आज भी कई लोग उनकी नक़ल कर के जीवन यापन कर रहे हैं। इसीलिए लगा कि चुनावी दंगल में अगर काका की पंक्तियों का छौंक लग जाए तो दंगल का रोमांच और बढ़ जायेगा, सो प्रस्तुत है, ऐसी पंक्तियाँ जो आज के नेताओं और आज की परिस्थितियों पर बिल्कुल अनुकूल हैं,


जय बोल बेईमान की



मन, मैला, तन ऊजरा, भाषण लच्छेदार,


ऊपर सत्याचार है, भीतर भ्रष्टाचार।


झूटों के घर पंडित बाँचें, कथा सत्य भगवान की,


जय बोलो बेईमान की !



प्रजातंत्र के पेड़ पर, कौआ करें किलोल,


टेप-रिकार्डर में भरे, चमगादड़ के बोल।


नित्य नई योजना बन रहीं, जन-जन के कल्याण की,


जय बोल बेईमान की !



महँगाई ने कर दिए, राशन-कारड फेल


पंख लगाकर उड़ गए, चीनी-मिट्टी तेल।


‘क्यू’ में धक्का मार किवाड़ें बंद हुई दूकान की,


जय बोल बेईमान की



चैक केश कर बैंक से, लाया ठेकेदार,


आज बनाया पुल नया, कल पड़ गई दरार।


बाँकी झाँकी कर लो काकी, फाइव ईयर प्लान की,


जय बोलो बईमान की !



बेकारी औ’ भुखमरी, महँगाई घनघोर,


घिसे-पिटे ये शब्द हैं, बंद कीजिए शोर।


अभी जरूरत है जनता के त्याग और बलिदान की,


जय बोलो बईमान की !



मिल-मालिक से मिल गए नेता नमकहलाल,


मंत्र पढ़ दिया कान में, खत्म हुई हड़ताल।


पत्र-पुष्प से पाकिट भर दी, श्रमिकों के शैतान की,


जय बोलो बईमान की !



न्याय और अन्याय का, नोट करो डिफरेंस,


जिसकी लाठी बलवती, हाँक ले गया भैंस।


निर्बल धक्के खाएँ, तूती बोल रही बलवान की,


जय बोलो बईमान की !



नेता जी की कार से, कुचल गया मजदूर,


बीच सड़कर पर मर गया, हुई गरीबी दूर।


गाड़ी को ले गए भगाकर, जय हो कृपानिधान की,


जय बोलो बईमान की !



अंत में एक हथगोला और संभालें जो एक दूसरी कविता से है ......


नेता अखरोट से बोले किसमिस लाल
हुज़ूर हल कीजिये मेरा एक सवाल
मेरा एक सवाल, समझ में बात न भरती
मुर्ग़ी अंडे के ऊपर क्यों बैठा करती
नेता ने कहा, प्रबंध शीघ्र ही करवा देंगे
मुर्ग़ी के कमरे में एक कुर्सी डलवा देंगे



तो अंत में बस यही कि


चुनाव अनंत, चुनाव कथा अनंता


कहही, सुनहि बहुविधि सब संता

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