चुनाव प्रचार के दौरान नेताओं ने जनता के घर खूब चक्कर काटे. विनती भी की,भीता वोट ज़रूर दीजियेगा. आख़िर जाती का भी तो सवाल है. बड़े कयासों के बाद बेचैनी ख़त्म हो गई. परिणाम आ गया. जनता ने इज़हार कर दिया. कौन उसके भावनाओ को समझते हुए वादों को निभाएगा. रमन, शीला, शिवराज पर सत्ता फिर मेहरबान हुई तो राजस्थान के लिए बसुन्धरा राजे सोच रही हैं कि, जाने क्या बात हुई, लोगों का भरपूर प्यार नसीब न हुआ. साथ ही जाती को आधार बनने वाले और दागियों के मुंह पर जनता ने करार थप्पड़ मारा है. एक बात जो गौर फरमाने वाली है, वो ये है कि कांग्रेस ने जनता से अपना रिश्ता मजबूत किया है, तभी टी मिजोरम और राजस्थान में उभर आई. दिल्ली कि तो बात ही छोडिये. हलाकि बीजेपी ने छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में कमल को खिला दिया है. अगर इसे तख्त-ऐ-ताउस का सेमीफाइनल कहा जाए तो होने वाला महासंग्राम बड़ा ही दिलचस्प होगा. कौन बनेगा देश का सरताज? ये अभी जनता के तिलस्मी मंजूशे रूपी मन में बंद है. इन चुनाव परिणामो से तो एक बात साफ नज़र आती है कि जनता राज्य और केंद्रीय सत्ता को अलग-अलग चश्में से देखती है. तभी तो आतंकवाद और मंहगाई जैसे मुद्दे बैकफुट पर नज़र आए. होने वाले रास्ट्रीय राजनीति के दंगल में बड़े-बड़े सुरमा अपनी किस्मत आज्मयेगे. साथ ही ये भी सोच रहे है कि कौन सी रागिनी बिखेरी जाए, जो जनता को भाए और सत्ता का स्वाद चख लिया जाए.
नेहा गुप्ता,भोपाल.
जनता राज्य और केंद्रीय सत्ता को अलग-अलग चश्में से देखती है. aap sahi pharmaa rahen hai..
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