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Friday, June 12, 2009
कब जागेंगे
अभी कुछ दिन पूर्व भोपाल सहर मे एक मजलिसी जलसा आयोजित किया गया था, जिसमे इरान के पूर्व राष्ट्रपति अयातुल्लाह खुमैनी की साहबजादी मोहतरमा जोहरा खुमैनी ,रामपुर से मोहम्मद आजम खान साहब ,लखनऊ से मौलाना कल्बे जव्वाद साहब और भी कई एक साहबान तसरीफ लाये थे उनका मकसद क्या था भोपाल सहर आने का ये तो कोई भी अख़बार सही तरह से समझ ही नही पाया सबने अगले दिन की सुर्खी बनाई थी की भोपाल में महिला सशक्तिकरण के लिए एक बैठक बुलाई गई है, लेकिन जब हमने बात की उस समारोह के आयोजक मुन्नवर खान साहब से तो उनका कहना है की ये मजलिस इसलिए बुलाई गई है ताकि जनाबे फातिमा का उदाहरण देकर मुस्लिम महिलाओं को परदे के लिए जागरूक किया जा सके की किस तरह गरीबी में भी आपने कपड़े पर कपड़ा सिल कर पहना लेकिन अपने परदे को कायम रखा था, अगला सवाल था की क्या ये मुस्लिम महिला शिक्षा जाग्रति अभियान के लिए भी कुछ बात करेगा। तो आपने साफ़ कहा अरे अभी कहाँ मियां ये तो दूर की बात है, मजेदार बात ये है ख़ुद बैठक के सदर मोहम्मद आजम खान भी बैठक के मकसद को समझ नही सके और बैठक को इस्राइल और फिलिस्तीन के टंटे में ले भागे ,जॉर्ज बुश पे भी बाकायदा तीन दिन का राशन पानी लेकर चढ़ गए थे हजरात, पर एक अहम् सवाल जो शायद इस मजलिस के बाद बहुत याद आया क्या अब भी मुस्लिम महिलाओं के लिए सिर्फ़ बातचीत का मुद्दा परदा ही रह गया है क्या मुस्लिम महिलाएं सिर्फ़ परदा पाल रही हैं या नही इसकी चिंता करते ये लंबे चोंगे वाले साधू नुमा मौलाना टाइप के लोग नाम बदल जाते हैं जिनके मकसद एक ही रहता है अपने आपको समाज का सबसे बड़ा हितचिन्तक साबित करना और समाज की फिक्र करते हुए अपने आपको आधा कर लेना। किसने नही देखा था अभिषेक बच्चन के बंगले के बाहर उसकी शादी के वक्त प्रदर्शन करने वाली वो लड़की कल्बे जव्वाद की नातेदार थी और शायद वो उस वक्त बुर्के में भी नही थी मौलाना को वो नही दिखा ,मौलाना को सान्या मिर्जा की स्कर्ट भी खल जाती है मौलाना के अनुसार ये इस्लाम के ख़िलाफ़ है ,में भी क्यों लिख रहा हूँ शायद कल को इसी लेख के कारन में भी सलमान रुश्दी या तसलीमा नसरीन बना दिया जाऊं लेकिन साहब दिल है की मानता नही महिलाओं को सबसे ज्यादा जरूरत मेरे मुताबिक स्वस्थ्य सुविधाओं और शिक्षा की है ताकि वो एक ससक्त समाज की बुनियाद रख सकें परदे की नही बाकी जैसा मौलाना कहें सब ठीक है
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achha laga
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