पिछले साल लगभग यही वक्त था...जब एक कविता मैंने पोस्ट की थी...पंछी उड़ चले....जो भोपाल में बिताए उन्हीं यादगार लम्हों के नाम थी....जो शायद वक्त और मजबूरियों के चलते वहीं रुक गए और हमारे ज़ेहन में एक जगह मुकर्रर कर गए....आज हिमांशु ने अपने बलॉग पर फिर उन्हीं ज़ख्मों को कुरेद दिया है...उस उखड़े हुए खुरंट के साथ पढ़िए क्या लिखते हैं हिमांशु.....
आज माखन लाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय में आखिरी सेमेस्टर का आखिरी एक्साम दिया है, इसी के साथ लग रहा है की ज़िन्दगी का एक और दौर यादों का हिस्सा बन रहा है , फेयरवेल तो हमें नौ तारीख को ही मिल गया था लेकिन आखिरी एक्साम ने तो जैसे विदाई पर मुहर लगा दी है । फेयरवेल में मेरे आंसू छलक गए थे । आज भी शायद कुछ ऐसा ही हो । कुछ दोस्तों की गाड़ी आज की ही है । जब रुके तो दो साल रुके और जाना है तो इतनी जल्दी । ऐसा नही है की सब अब कभी नही मिलेंगे , दुनिया गोल है और ज्यादातर कहीं न कहीं मिलते रहेंगे , और कहा भी जाता है की जिनसे आपको संपर्क रखना होता है उनसे कभी नही टूटता लेकिन अब शायद एक समूह के रूप में जिस तरह सब पहले उपलब्ध रहते थे, वैसे अब न हों पाएं। शायद ज़िन्दगी में कभी नही होंगे इकठ्ठा । यादों में ही होंगे....फ़राज़ याद आ गए... अब के जो हम ....
अगले कुछ दिनों में लखनऊ निकलने वाला हूँ । इस बार पहली बार शायद लखनऊ जाते खुशी नही हो रही या शायद उस दुःख के सामने छोटीहो गई है जो भोपाल छोड़ने का है , मैंने इस शहर से अन्याय भी कम नही किया लेकिन आज कह रहा हूँ ॥अपना सा है ये शहर ... अभी गया नही हूँ यहाँ से॥ फिर भी वापस आने का ख्याल डराता है ....कैसे हिम्मत ला पाऊंगा बिना दोस्तों का भोपाल देखने की॥ जिन सडकों पर धूम मचती थी उन्हें सूनी नही देख सकता ...शायद आ ही नही पाऊंगा ...अकेले तो बिल्कुल नही ... दोस्तों के साथ सेटिंग करके तभी आऊंगा .....एक समां अंत की तरफ़ जा रहा है । जाते - जाते कुछ घटनाओं ने मन भी खट्टा किया है लेकिन शायद ये भी भोपाल को भुलाने के लिए कारगर साधन न बन पाएं ..बहुत याद आएगा भोपाल ।
साभार....अमां यार
रूदाद-ए-सफ़र की बात ?
ReplyDeleteकाफी गहराई से महसूस किया है शहर को । बेहतरीन प्रस्तुति । आभार ।
ReplyDeletebahut khoob...
ReplyDeletemeri apni hi baat lagi.