महिला दिवस की इस विशेष प्रस्तुति में हम आपको आज दिन भर महिला विमर्श पर आधारित ही सामग्री पढ़वायेंगे, इसी कड़ी में एक कविता जो मुझे अच्छी लगी। मुजफ्फरपुर, बिहार में जन्मी कवियित्री अनामिका की काव्य रचना स्त्रियाँ। राष्ट्रभाषा परिषद् पुरस्कार, भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार, गिरिजाकुमार माथुर पुरस्कार, ऋतुराज सम्मान और साहित्यकार सम्मान से सम्मानित अनामिका हिन्दी साहित्य का एक चर्चित नाम हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में एम् ऐ और फिर पी एच डी कर के अनामिका वर्तमान में दिल्ली में ही सत्यवती कॉलेज में अध्यापन कर रही हैं।
स्त्रियाँ
पढ़ा गया हमको
जैसे पढ़ा जाता है काग़ज
बच्चों की फटी कॉपियों का
‘चनाजोरगरम’ के लिफ़ाफ़े के बनने से पहले!
देखा गया हमको
जैसे कि कुफ्त हो उनींदे
देखी जाती है कलाई घड़ी
अलस्सुबह अलार्म बजने के बाद !
सुना गया हमको
यों ही उड़ते मन से
जैसे सुने जाते हैं फ़िल्मी गाने
सस्ते कैसेटों पर
ठसाठस्स ठुंसी हुई बस में !
भोगा गया हमको
बहुत दूर के रिश्तेदारों के दुख की तरह
एक दिन हमने कहा–हम भी इंसान हैं
हमें क़ायदे से पढ़ो एक-एक अक्षर
जैसे पढ़ा होगाबी ए के बाद
नौकरी का पहला विज्ञापन।
देखो तो ऐसे
जैसे कि ठिठुरते हुए देखी जाती है
बहुत दूर जलती हुई आग।
सुनो, हमें अनहद की तरह
और समझो जैसे समझी जाती है
नई-नई सीखी हुई भाषा।
इतना सुनना था कि अधर में लटकती हुई
एक अदृश्य टहनी से
टिड्डियाँ उड़ीं और रंगीन अफ़वाहें
चींखती हुई चीं-चीं
‘दुश्चरित्र महिलाएं, दुश्चरित्र महिलाएं–
किन्हीं सरपरस्तों के दम पर फूली फैलीं
अगरधत्त जंगल लताएं!
खाती-पीती, सुख से ऊबी
और बेकार बेचैन, अवारा महिलाओं का ही
शग़ल हैं ये कहानियाँ और कविताएँ।
फिर, ये उन्होंने थोड़े ही लिखीं हैं।’
(कनखियाँ इशारे, फिर कनखी)
बाक़ी कहानी बस कनखी है।
हे परमपिताओं,परमपुरुषों–
बख्शो, बख्शो, अब हमें बख्शो!
अनामिका
`सोशल ट्रीटमेंट´का संकल्प लेना होगा'http://sarparast.blogspot.com/2009/03/blog-post_08.html
ReplyDeleteमहिला दिवस पर कुछ सार्थक इधर भी पड़ सकते हैं । महिला सशक्त हों.राष्ट्र सशक्त होगा
`सोशल ट्रीटमेंट´का संकल्प लेना होगा
ReplyDeleteमहिला दिवस पर कुछ सार्थक इधर भी पड़ सकते हैं । महिला सशक्त हों.राष्ट्र सशक्त होगा