वेश्या
मैं पवित्रता की कसौटी पर पवित्रतम हूँ
क्योंकि मैं तुम्हारे समाज को
अपवित्र होने से बचाती हूँ।
क्योंकि मैं तुम्हारे समाज को
अपवित्र होने से बचाती हूँ।
सारे बनैले-खूंखार भावों को भरती हूँ
कोमलतम भावनाओं को पुख्ता करती हूँ।
मानव के भीतर की उस गाँठ को खोलती हूँ
जो इस सामाजिक तंत्र को उलझा देता
जो घर को, घर नहीं
द्रौपदी के चीरहरण का सभालय बना देता।
कोमलतम भावनाओं को पुख्ता करती हूँ।
मानव के भीतर की उस गाँठ को खोलती हूँ
जो इस सामाजिक तंत्र को उलझा देता
जो घर को, घर नहीं
द्रौपदी के चीरहरण का सभालय बना देता।
मैं अपने अस्तित्व को तुम्हारे कल्याण के लिए खोती हूँ
स्वयं टूटकर भी, समाज को टूटने से बचाती हूँ
और तुम मेरे लिए नित्य नयी
दीवार खड़ी करते हो।
'बियर बार' और ' क्लब' जैसे शब्दों के प्रश्न
संसद मैं बरी करते हो।
स्वयं टूटकर भी, समाज को टूटने से बचाती हूँ
और तुम मेरे लिए नित्य नयी
दीवार खड़ी करते हो।
'बियर बार' और ' क्लब' जैसे शब्दों के प्रश्न
संसद मैं बरी करते हो।
अगर सचमुच तुम्हे मेरे काम पर शर्म आती है
तो रोको उस दीवार पार करते व्यक्ति को
जो तुम्हारा ही अभिन्न साथी है।
तो रोको उस दीवार पार करते व्यक्ति को
जो तुम्हारा ही अभिन्न साथी है।
मैं तो यहाँ स्वाभिमान के साथ
तलवार की नोंक पर रहकर भी,
तन बेचकर, मन की पवित्रता को बचा लेती हूँ
तलवार की नोंक पर रहकर भी,
तन बेचकर, मन की पवित्रता को बचा लेती हूँ
पर क्या कहोगे अपने उस मित्र को
जो माँ-बहन, पत्नी, पड़ोसियों से नज़रें बचाकर
सारे तंत्र की मर्यादा को ताक पर रखकर
रोज़ यहाँ मन बेचने चला आता है।
जो माँ-बहन, पत्नी, पड़ोसियों से नज़रें बचाकर
सारे तंत्र की मर्यादा को ताक पर रखकर
रोज़ यहाँ मन बेचने चला आता है।
ऋतु पल्लवी
satya aur sashakt abhivyakti ke liye bahut bahut badhai
ReplyDeleteपल्लवी जी आपकी जितनी तारीफ़ की जाए वो कम है ....सच को बयां कर दिया
ReplyDeleteमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
aapki kriti man ko chhuti hai
ReplyDeleteसच को बंयान करती एक बेहतरीन रचना जो दिल को छू गई।
ReplyDeleteहोली की शुभकामनायें । इन्ही की वजह से समाज के बाकि लोग सुरक्षित है
ReplyDeletekavita achchhi hai, lekin sachchi nahi, agar pavitrata ka yahi falsafa hai to duniya ki sabhi mahilaon ko veshya ho jana chahiye, easy money kamane ke liye high prised call girl aur gigolo ke liye kya kahengi aap.
ReplyDeletePallvi ji,Aapki kavita marmsparshi hai,Aapko holi ki badhaiya.
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