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Wednesday, March 11, 2009

खेले मसाने में होली दिगंबर...

बनारस के घाट पर एक बार छन्नूलाल मिश्र की आवाज़ में शमशान में शिव की होली का वर्णन सुना था। रिकॉर्डिंग तो अपलोड नहीं कर सकता लेकिन उस रचना के बोल अभी तक स्मृति में बने हुए हैं .....तो मिश्र जी आवाज़ की न सही शब्दों की ठंडाई तो आपको पिला ही सकता हूँ ....

होली है !

खेलैं मसाने में होरी दिगंबर खेले मसाने में होरी ।

भूत पिसाच बटोरी, दिगंबर खेले मसाने में होरी ।।

लखि सुंदर फागुनी छटा के, मन से रंग-गुलाल हटा के

चिता-भस्‍म भर झोरी, दिगंबर खेले मसाने में होरी ।।

गोपन-गोपी श्‍याम न राधा, ना कोई रोक ना कौनऊ बाधा

ना साजन ना गोरी, दिगंबर खेले मसाने में होरी ।।

नाचत गावत डमरूधारी, छोड़ै सर्प-गरल पिचकारी

पीतैं प्रेत-धकोरी दिगंबर खेले मसाने में होरी ।।

भूतनाथ की मंगल-होरी, देखि सिहाएं बिरिज कै गोरी

धन-धन नाथ अघोरी दिगंबर खेलैं मसाने में होरी ।।

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