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Wednesday, March 18, 2009

जाने-अनजाने

बड़ी खूबसूरत है ज़िन्दगी
रंगों और अहसासों से
सराबोर है ये ज़िन्दगी
आँखों से न जाने कितने
सपने दिखाती है
कभी खुशियों की
सौगात थमाती
तो कभी
ग़मों का सैलाब उभारती
नज़रो से ख़्वाब दिखाती
तो कभी शीशे की तरह
चटका भी देती है
कभी अपनेपन का पनाह देती
तो कभी बेगानों की
तरह अकेला छोड़ जाती है
पूरी कायनात में इसी का राज़ है
न जाने कौन-कौन से खेल खेलती है
इसके थपेडो की किस्म भी बड़ी अजीब है
कोई माँ के लिए तडपता है
तो कोई दिल प्रेमी/प्रेमिका
को पुकारता है
तो कभी ख़्वाब ग़मगीं
कर जाते हैं
कभी बहन के ब्याह की चिंता होती है
तो कभी माँ के आसूं याद आ जाते है
तो कभी पिता के छाँव को
याद करके जी भर आता है
ऐसी ही है ज़िन्दगी
जैसे सागर की लहर और किनारा
जैसे चाँद और उसकी चाँदनी
जैसे फूल और खुशबू
वैसे ही इन्सान और ज़िन्दगी

नेहा गुप्ता

3 comments:

  1. कभी दास्तान बन, लुभाती है ज़िन्दगी
    कभी सपने बन , भाती है ज़िन्दगी

    फूलोँ की खुशबू , गमोँ का सैलाब ,
    खुशियोँ की सौगात,थमाती है ज़िन्दगी

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  2. बढ़िया भाव.....अच्चे उपमान, यह नहीं पता था कि कविता भी लिखती हो...शक ज़रूर था आज सच साबित हुआ....ये सब भी लिखती रहो.....शाबास

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  3. जाने .अनजाने.. में आपने इंसान और जिंदगी का रिश्ता दिखा दिया है...बहुत ही अच्छी रचना लगी...लिखते रहिये...धन्यवाद...

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