हिमांशु ने हाल ही की एक बीती हुई पोस्ट में होली पर पंडित
छन्नूलाल मिश्र की एक विशेष प्रकार की होली को याद किया था जिसमे एक
विशेष प्रकार की होली का वर्णन है ....ऐसी होली जो अद्भुत है जिसमे
गोपियों और कृष्ण की होली नहीं है बल्कि दिगंबर शिव अपने गणों के साथ श्मशान में होली खेल रहे हैं। इस होली की पंक्तिया यानी की
लिरिक्स तो हिमांशु ने पढ़वा दी थी पर इसका
ट्रैक सुनवाने में असमर्थता ज़ाहिर की थी। कल मैंने जब शाम को देखा तो पाया की दो शीर्ष ब्लौगर
युनुस भाई और
शैलेश जी इसे ब्लॉग पर डाल चुके हैं, अमां अपना तो
खून जल गया....यार
अपने ब्लॉग की तो फुस हो गई की भइया तमाम लोग वही गीत सुनवा रहे हैं और हम कह रहे हैं कि असमर्थ हैं।
भइया तो अपन तो रेल गाड़ी में दिल्ली तक आते आते
हाई डिप्रेशन में कि लो भइया
हुई गई फजीहत और अब लोग कहेंगे कि साले
बड़े टेक गुरु बनते हो निकल गई सारी हेकडी तो तुरत फुरत में ढूंढ डाला गीत और कहा कि
एक दिन बादै सही सुन्वाइहें ज़रूर ससुर ई गाना तो लो मियाँ बीडा संभालो लो और देखो
स्वादहोली की मुबारकबाद.....और हाँ अब कोई कहेओ ना कि ससुर नॉन टेक्नीकल हैं......अमा ब्लॉग की इज्ज़त का सवाल है !
(शैलेश जी और युनुस जी का आभार .....कल इस गीत को सुन लेने की इच्छा उन्होंने पूरी की ....प्रकृति उनकी हर इच्छा पूरी करे)
अरे वाह!! अप तो एकदम्मे टेक्निकल हो गये..बधाई!!
ReplyDelete(समीर जी की बात को आगे बढाते हुए)
ReplyDeleteअर्थात समय के साथ हो गए
बढिया गीत सुनाया ट्क्नीकलजी , आपने:) आभार
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