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Saturday, March 14, 2009

कभी मन्दिर, कभी मस्जिद, कभी मैखाने

"पिछले चुनाव में हमारी बिक्री ६० फीसदी बढ़ गई थी, हर चुनाव में ऐसा ही होता फ़िर चाहे वे ग्राम पंचायत के हो या लोकसभा के" ये आंकड़े गिनाता है उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले का एक ग्रामीण शराब निर्माता। दरअसल ये साफ़ करता है देश में लोकतंत्र के प्रतीक माने जाने वाले चुनावों की हकीकत को जो आज तक वोट पाने के नए नए हथकंडे अपनाती है फिर चाहे मतदाता को नशे की आदत ही क्यूँ ना डालनी पड़े। शहर के नवाधुनिक इस तथ्य से भले ही अनावगत हों पर गांव का वोटर यह जानता है कि प्रत्याशी देश में दूध की नदियाँ भले ही बहाने में विफल रहे हों पर चुनाव आते ही शराब की नदियाँ ज़रूर बहा देंगे और फिर आम वोटर नालियों में पड़ा मिलेगा(जो उसकी तकदीर में लिखा है)।
ये कहानी है उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ, जिला सीतापुर और आस पास के अंचल की, जिसे सामने लाये हैं एजेंसी ऐ आई एन एस के पत्रकार रजत राय। आज ऐ आई एन एस की फीड खंगालते समय ये ख़बर हाथ लगी तो इसे आपके साथ बाँट रहा हूँ क्यूंकि जानता हूँ कि ना तो अखबार और ना ही टीवी चैनलों के पास इस फालतू सी ख़बर को प्रकाशित/प्रर्दशित करने का वक़्त होगा। मुद्दा असल में ये है कि चुनाव की घोषणा के साथ ही लखनऊ, सीतापुर और उससे जुड़े ग्रामीण अंचलों में कच्ची और देशी शराब के निर्माताओं की अचानक चांदी हो गई है। अब मुझे नहीं लगता कि आप यह नहीं समझ सकते कि चुनाव और शराब की बिक्री में क्या सम्बन्ध है। अब इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि यह चुनाव आयोग के दिशा निर्देशों का उलंघन है या नहीं, राजनैतिक दलों के लिए तो यह सब ज़रूरी है।
भाई अब चुनाव है तो वोटर जनता को रिझाने के लिए उसकी सेवा तो करनी पड़ेगी, तो उसे खुश करने का सबसे सस्ता और त्वरित उपाय है सस्ती देशी शराब, जैसा कि कांग्रेस से जुड़े एक पूर्व ग्राम प्रधान कहते हैं,"जैसे ही चुनाव घोषित होते हैं हम रात को गांव की ग्रामीण बैठकों में शराब बंटवानी शुरु कर देते हैं। पोलिंग के दो तीन दिन पहले से हम गाँव में घर घर जाते हैं और देशी शराब बटवाना शुरू करते हैं और इससे कम से कम १५ से २० फीसदी वोट ज्यादा मिलते हैं।"
इससे भी ज्यादा मज़ेदार बात देखें कि एक सभासद क्या कहता है," शहरी इलाकों में हम छोटे छोटे समूहों में लोगों की महफिलें जमाते हैं और वहाँ कई बार विदेशी शराब परोसते हैं"। ख़बर आगे कहती है कि सीतापुर जिले के दुन्दपुर गाँव में करीब ५० अवैध शराब की भट्टियां हैं और लखनऊ के आस पास के करीब ५० गाँव की अर्थव्यवस्था इसी व्यवसाय पर टिकी हुई है। लखनऊ की सीमाओं से लगे मलीहाबाद, गोसाईगंज, चिनहट और बख्शी का तालाब इलाकों में भी इस तरह के अवैध कुटीर उद्योग जड़ें जमाये हैं। सबसे ज्यादा रोचक है इस अवैध शराब को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने का तरीका, जिसमें इसे फुटबॉल और वौलीबौल के ब्लैडरों में भर कर पहुंचाया जाता है।
आश्चर्य की बात है कि भयमुक्त समाज की सरंचना में लगी पुलिस इससे अनजान है या फिर राजनीतिक संरक्षण के चलते मूक दर्शक बनी हुई है। दरअसल इससे भी बड़ी कमी हमारी अशिक्षा और जागरूकता का अभाव है जिस कारण हम अभी भी शराब जैसे प्रलोभन में फंस कर अपना वोट बदल डालते हैं। खैर जो कुछ भी इतना तय है कि पुलिस सरकार के कहे से चलती है और शायद भयमुक्त सरकार चाहती है कि जनता खूब नशा करे जिससे वो हर तरह के भय भूल जाए......लोकतंत्र की हत्या का भय भी !
रात को खूब मय पी, सुबह को तौबा की
रिंद के रिंद रहे, हाथ से जन्नत ना गई
और नेताओं को अगर चुनाव आयोग का भय हो जाए तो फिर चुनाव जीतना भी उनके लिए मुश्किल हो जायेगा पर इतना है नशा सर चढ़ के बोलता है फिर चाहे वो शराब का हो या फिर सत्ता का.......
कभी मन्दिर, कभी मस्जिद, कभी मैखाने जाते हैं
सियासी लोग तो बस आग को भड़काने जाते हैं

2 comments:

  1. कभी मन्दिर, कभी मस्जिद, कभी मैखाने जाते हैं
    सियासी लोग तो बस आग को भड़काने जाते हैं

    बस इतना ही सच है, बाक़ी सब झूठ. और कड़्वा सच यह है कि इस विसंगति के लिए सियासी लोग कम, हम-आप ज़्यादा ज़िम्मेदार है.

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  2. BILKUL SAHI MUDDA UTHAYA HAI.....AACHAR SANHITA KA ULLANGHAN SHAHRON MEIN TO NAZAR AA JATA HAI LEKIN GAAONMEIN KISI PARYAVEKSHAK KI NAZAR NAHI JAATI........SURA VITRAN KI WAJAH SE MAINE KHUD AYOGYA VYAKTIKO JEETTE DEKHA HAI .......ASHIKHSHA ISKA EK MUKHYA KARAN HAI ......

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