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Wednesday, October 17, 2012
कब निखरेगा ये बछड़ा
किसान अपने बछड़े को बैल बनाने से पहले दो युक्तियां करता है। पहली तो मैं बता नहीं सकता दूसरी निखारने की। इसके लिए वह नाथ डालकर बछड़े को बलात बैलगाड़ी में लगाकर खेतों में घुमाता है। पूरा गांव उस गाड़ी के पीछे मजे करता घूमता है। खासकर बच्चे। और जब बछड़ा नहीं निखरता तो दूसरी युक्ति के रूप में उसके गले पर बेवजह एक लकड़ी डाल दी जाती है, ताकि उसकी आदत है। तब भी नहीं निखरता तो बछड़े को खेत में गहरे हल गड़ाकर निखारा जाता है। और फिर भी नहीं निखरा तो किसान उसे गर्रा कहकर बेचने की कवायद में जुट जाता है। और कई बार वह कसाइयों के हात्थे भी चढ़ जाता है। मोरल ऑफ द स्टोरी श्रमवीर, कर्मवीर बनो वरना कसाई के चाक पर गर्दन रखो। संसार कहता है कर्म करो या मरो।
ऐसा ही राहुल बाबा के साथ सोनिया कर रही हैं। उन्हें 25 साल के बाद तो निखारने के लिए मना पाईं। फिर लोकसभा के आम चुनाव 2009 में नाथ डाली गई। पहला काम जो किसान करता है वह तो शादी के इतने लेट होने से अपने आप हो गया। (एक विधि से किसान बछड़े का मर्दानापन कम करता है)। फिर उन्हें रिएक्टिवेट करके बैलगाड़ी में नुहाया (लगाया) गया। यानी महासचिव बनाया गया। फिर भी नहीं निखरे तो यूपी में प्रपंच करवाया गया। फिर भी नहीं निखर रहे तो अब सोनिया उन्हें केबिनेट में लाने की तैयारी में हैं। पीएम सीधे न सही तो बेटा केबिनेट में अंकल लोगों से कुछ सीखकर बिजनेस में हाथ बटा।
मगर राहलु बाबू हैं कि चिगते (हिलते) ही नहीं है। अब किसान करे तो क्या। कसाई को बेचेगा तो भगवान मार डालेंगे, नहीं तो जिंदगीभर खिलाएगा तो बोझ पड़ेगा।
और फिर बछड़ा बड़ा होकर दो लाइन में किसी एक में जाता है, पहली तो किसान के साथ बैल बन कर सालों सेवाओं के बाद ससम्मान सेवनिवृत्ति की तरफ जाती है। कुछ-कुछ आदमी के नौकरी करने जैसा। और दूसरी लाइन सांड बनने की होती है, यह रिस्की है किंतु मजेदार है। इसमें भी एक लाभ है अगर सांड के रूप में आपकी पोस्टिंग गांव में हुई तब तो लोग पूज भी सकते हैं और पेट भी पाल लेंगे, लेकिन अगर शहर में हुई तो समस्या होगा, यहां तो सब्जियों के ठेलों पर लट्ठ ही मिलते हैं। और गाहेबगाहे मौका मिलते ही सकाई भी लपक सकते हैं। अब राहुल बाबा को सोनिया सियासी सेवानिवृत्ति तो देंगी नहीं। केबिनेट में और लाकर देखती हैं, अगर वे सुबह जल्दी उठकर मंत्रालय (मनी फैक्ट्री) जाने लगे तो ठीक वरना फिर किसान को खेती के लिए अपनी दूसरी बछिया पर निर्भर रहना पड़ेगा, वह खेतों में जा नहीं सकेगी तो फिर कौन बचा.....वा.......ड्रा !
वरुण के सखाजी
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