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Monday, April 4, 2011

लोक गाता नवसंवत्सर लोक गीत .....शुभकामना ....

आज चैत्र प्रतिपदा का दिन है, जिसे भारतीय नवसंवत्सर या परम्परागत नव वर्ष की शुरुआत भी माना जाता है। शक संवत जो भारत सरकार का राष्ट्रीय पंचांग भी है आज ही के दिन से शुरू होता है, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में ‘उगादि‘ और महाराष्ट्र में यह पर्व ‘ग़ुड़ी पड़वा‘ के रूप में मनाया जाता है। हिन्दू मान्यता कहती है कि इसी दिन ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना शुरू की थी, दरअसल चैत्र मास से प्रकृति में नए बदलाव आने लगते हैं, नए पत्ते और पल्लवन प्रारंभ हो जाता हैइसी कारण इसे नव संवत्सर कहा याता है। वैसेउगादि शब्द की व्युत्पत्ति भी युगादि से है जो युग और आदि से मिल कर बना है।
  • महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए ‘पंचांग ‘ की रचना की

  • कहते हैं कि मर्यादा पुरूषोत्‍तम श्रीराम का राज्‍याभिषेक इसी दिन हुआ।

  • हिन्दू धर्म में विकास और विध्वंस की देवी मॉं दुर्गा की उपासना की नवरात्र व्रत का प्रारम्‍भ इसी दिन से होता है।

  • उज्‍जयिनी सम्राट- विक्रामादित्‍य द्वारा विक्रमी संवत् प्रारम्‍भ किया गया।

  • महर्षि दयानंद द्वारा आर्य समाज की स्‍थापना इसी दिन की गई।



ये पंछी नहीं
लोकगायक आए हैं
कुछ प्राकृत
कुछ अप्रभंश गीत लाए हैं

चिड़ियों की जिह्वा पर
बिरहड़ा
तोतों के कण्ठ में
भंगड़ा
कौव्वों के टप्पे
ये आदिवासी तानों में
कानन पर छाए हैं

यह चकवी की धुन
किन्नरी के सुर-सी
रामचिरैया रे
बोलों में चौपाई उभरी
ये आल्हा और ऊदल के उत्सर्ग
मैना ने भारी-मन गाए हैं

सुन कोयला का ढोलरू
नवसंवत्सर लाया
पपीहे ने बारहों-मास
सावनघन गाया
ये मोनाल के सोहाग राग
शतवर्धावन लाए हैं

ये चकोर-चकोरी की
लोक-ऋचाएं
ये मयूर-मयूरी की
मेघ-अर्चनाएं
ये सारसों के अरिल्ल
सृष्टि की बांसुरी बन भाए हैं

ये इतने–सारे राग रंग
गीत कण्ठ ये ढेर-ढेर
मन्त्र-गीत
प्रीत-छन्द
ये सब इन लोकगायक कवियों के जाए हैं


ओमप्रकाश सारस्वत

1 comment:

  1. बहुत अच्छा लिखा है आपने आपको भी भारतीय नववर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएं

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