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Tuesday, September 28, 2010

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है...भाग-1


भोपाल से आ रही आवाज़ें यहां दिल्ली से लेकर देहरादून, कोलकाता से कानपुर और रांची से रायपुर तक हम सभी पूर्व छात्रों के कानों में पिघलते लोहे सी भर रही हैं। इस बात से हममें से कम लोग ही असहमत होंगे कि हम सब पूर्व छात्रों के लिए भोपाल दूसरी मातृभूमि और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय दूसरे घर सरीखा है। एक परिवार में हमने जीवन का आरम्भ किया।

एक इंसान बनने के गुण पाए। भोपाल के इस विश्वविद्यालय के परिवार में हम न केवल एक पत्रकार बल्कि एक इंसान के तौर पर और बेहतर हुए। ज़ाहिर है हम सबके बीच तमाम झगड़े और मतभेद रहते थे, जैसे कि हर परिवार में होते हैं। केव्स के तमाम छात्रों के लिए पी.पी. सर एक खलनायक सरीखे थे तो एमजे के लिए डॉ. श्रीकांत सिंह लेकिन परिवार तो एक ही होता है और हमेशा रहा। लेकिन अब कुछ बाहरी तत्व परिवार में आ गए हैं, जो पूरे परिवार की एकता, इसकी सामाजिक प्रतिष्ठा और इसकी ताकत में सेंध लगाने की कोशिश में हैं। कुठियाला जी हम सब आपके इरादे जानते हैं।

सम्भवतः एशिया का पहला विश्वविद्यालय, जो पत्रकारिता के प्रशिक्षण के लिए शुरू किया गया था। देश के सबसे प्रतिष्ठित, जुझारू और महान पत्रकार-साहित्यकार और स्वाधीनता सेनानी पंडित माखनलाल चतुर्वेदी की स्मृति में इसको समर्पित किया गया। लेकिन भोपाल में जो कुछ हो रहा है वो शायद इससे पहले नहीं हुआ है। विश्वविद्यालय में कुलपति महोदय की तानाशाही चरम पर है और कुछ ही महीने में भोपाल भी वर्धा बनने की राह पर है। बल्कि कुठियाला जी विभूति नारायण राय से भी आगे निकलने के मूड में दिखते हैं।

कुठियाला जी के समर्थकों से एक अनुरोध करना चाहूंगा कि कम से कम वो लोग उनकी हिमायत न करें जो माखनलाल में न तो कभी पढ़े हैं और न ही उन्होंने वहां पढ़ाया है। एक और अनुरोध है इन सब से कि कम से कम शिक्षा के संस्थानों को किसी राजनैतिक विचारधारा की लॉबीइंग का अड्डा न बनने दें। हम पत्रकार बनने आए हैं, हमें खुद समझने दें कि हमें कैसा विश्वविद्यालय चाहिए और कैसे शिक्षक।

देश के सबसे बड़े पत्रकारिता विवि के नए कुलपति पर उनकी चयन प्रक्रिया से ही अंगुलियां उठती रही हैं। लेकिन फिर भी राज्य सरकार ने माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति का ताज प्रो. बीके कुठियाला के सिर पहना दिया। माना जाता है है कि इस मामले में राज्य सरकार पर संघ का दबाव था, क्योंकि कुठियाला की संघ से नज़दीकियां जगज़ाहिर हैं। उनके आते ही विवि के कामकाज से माहौल तक तमाम घालमेल शुरु हो गए और बात निकली तो दूर तलक आ गई। खैर अभी तो बात केवल कुठियाला के कुकर्मों की....

कुठियाला के कुरुक्षेत्र में रीडर से लेकर भोपाल कुलपति के सफर के अलग-अलग पड़ावों का फॉलोअप कई गंभीर तथ्य सामने लाता है। प्रो. कुठियाला के अकादमिक करियर और छवि पर दर्जनों बार गम्भीर आरोप लग चुके हैं। यही नहीं, प्रो. कुठियाला के खिलाफ कुरुक्षेत्र न्यायालय में आईपीसी की धारा 417, 420, 423, 465, 468 और 471 का मामला भी विचाराधीन है। आरटीआई में प्राप्त दस्तावेज में इस बात का खुलासा भी हुआ कि उन्होंने कुरुक्षेत्र विवि में रीडर बनने के लिए खुद को एक साल अधिक अनुभवी बताया और डायरेक्टर पद के आवेदन में अपने हस्ताक्षर ही नहीं किए।

हैरानी है कि इस धोखाधड़ी के ही दम पर आज वे पत्रकारिता एवं संचार विवि के कुलपति बन गए जबकि उनके पास पत्रकारिता के नाम पर पुणे एफटीआईआई से सिर्फ एक महीने का एक प्रमाणपत्र है। पर कुलपति महोदय इसे अपने खिलाफ़ साज़िश बताते हैं। ज़रा सोचिए जिस आदमी के पास पत्रकारिता की डिग्री नहीं और न ही वो कोई बड़ा पत्रकार है, सबसे बड़े पत्रकारिता विश्वविद्यालय का कुलपति बना बैठा है।

(जारी है....)
मयंक सक्सेना

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