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Wednesday, December 8, 2010

अंजाम तक पहुंचाने वाली सीढ़ी।


भैया आज बड़ी कहानी लिखने का मन हुआ, अजी कोई साहित्यकारों की तरह नहीं बल्कि शानदार कुछ कुछ सच्चा, कुछ ऐसा जो करीब हो किसी सच के। कहानी के फ्लैश बैक में ले जाने से पहले में मिथुन की फिल्मों जैसी सीन क्रिएट करना जरूरी मानता हूं। दरअसल कहानी में कुछ खास तो नहीं है, लेकिन प्रेरणा लेने लायक जरूर है। आपको अगर सोने से भरपूर खजाना मिल जाए, और उसके लिए आपको सिर्फ कहना हो कि खुल जा सिम सिम तो क्या आपको लगेगा नहीं कि यह तो जिंदगी है। वॉह करेंगे, या कहेंगे एन एक्सेलेंट या फिर कहेंगे जरूर मजा आ गया और आप तो यह भी कह सकते हैं, कि फैंटेस्टिक। लेकिन इसके ठीक उलट भी कुछ कहा जा सकता है। क्या कहते हैं यार आपका दिमाग भी खराब हो सकता है। अब यह पूछने की जरूरत कहां है कि कैसे होगा दिमाग खराब। दिमाग खराब भी कई तरीकों से होता है, पूछिए मत कैसे?
कार्यालय में एक जूनियर रिपोर्टर ने कहा भैया फलां खबर लगा लेना, क्योंकि वो उनकी है। यह बात तो ठीक थी खबर लगा लेना लेकिन उनकी विश्लेषण जरा सोचने वाला था। क्या? देखो भैया आगे पढऩे से पहले यह जान लो हम आखिरी तक कोई नाम नहीं बताएंगे, कौन है उनकी न खबर की हेडिंग ही बताने वाले हैं। चले यहां तक पढ़ा है तो आगे की कुछ लाइनें और पढ़ ही लो। क्या हुआ उनकी खबर तो लगा दी लेकिन दिल में बड़ी इच्छा हुई कि क्यों न उनसे हमारी भी किसी इसी तरह की खबर के सिलसिले में मुलाकात या यूं कहिए मुकालात हो जाए।
कहानी शुरू होती है, पुराने हमारे संस्थान से यहां पर भी उनकी उनकी की बहुत चलता था। हर बार कोई न कोई उनकी कह कर कुछ न कुछ उंगली किया करता था। वे हैं तो साधारण से राज्य की सिविल सेवा के मुलाजिम। लेकिन आधे से ज्यादा छत्तीसगढ़ को उनके बारे में यही गलतफहमी है कि वे आईएएस हैं। दरअसल उन्होंने ऐसा आभामंडल अपने पास रखा है, जो साफतौर से उनके सामने पूरे राज्य की सरकार और ब्यूरोक्रेट्स को झुका सा दिखाई देता है। साहब की धर्म मैं श्योर नहीं हूं, कि धर्म लेकिन कहा धर्मपत्नी आती थीं, थीं तो हमारी ही तरह की मुलाजिम वो भी। लेकिन उनके अपने जलवे थे। आती थीं, सीधे स्टूडियो में मेकअप आर्टिस्ट जाकर मेकअप करती थी, चार गाड़ीवान आगे पीछे, पूरा स्टाफ, ऑउटपुट हेड तो अपने कद से भी ऊपर उठकर उनके लिए बड़प्प दिखाते थे। वहां तो खैर कुछ था ही नहीं पता कि वे क्या हैं, और उन्हें इनता स्पेशल ट्रीटमेंट क्यों मिलता है। भैया धान ने जब पूरे राज्य के अधिकारियों और क्षेत्र के कर्मठ जुझारुओं को धन से भरपूर कर दिया तो मामला मीडिया ने उठाने की जेहमत उठाई। तो क्या था फिर वही हुआ जो होता था, क्या मैडम नहीं आती, मुख्यमंत्री ने रोश में आ गए। तब मामला समझ आया कि मैडम दरअसल ऐसे ही आम आदमी की वाइफ हैं, जो आम की खोल में खाम ठोक कर राज्यभर की असली सियासत चलाता है। ऐसा कौन सा पावर प्लांट है, कौन सा ऐसा काम है राज्य में जिसकी रिश्वत सीढ़ी इनसे शुरू न होती है। अब जब नए ऑफिस में आए तो फिर वही हाल देखा। हां लेकिन इस बार उनके साथ किसी पॉवर प्लांट की ठसक नहीं थी, बल्कि एक, दो कॉलम की खबरों में भी अपनी ब्रॉड इमेज थी। रिपोर्टर बोला भैया उनका फोन आया था बोले कि मुझसे मिलोगे तो जान जाओगो कौन हूं। वो डरा तो नहीं था, लेकिन कुछ कुछ सहमा था, क्योंकि वो पत्रकार बनने आया था और उसे पता ही नहीं था कि यह भी एक पत्र का ही हिस्सा है।
रिश्वत की पहली यह सीढ़ी हैं उनकी साहब।
कहानी में पात्रों के नाम, स्थान, समय, घटनाएं सजीव नहीं हैं। कृपया अपने आसपास नजर दौड़ाएं वास्तव में पाएंगे कुछ ऐसे ही लोग। आपको सफोकेशन नहीं होता दम नहीं घुटता। बड़ी तमन्ना है एक बार किसी खबर के सिलसिले में उनसे मुठभेड़ हो। हो सकता है, उन्हें मैं ज्यादा नहीं जानता सुना ही है इसलिए ऐसा सोचते हैं। वास्तव में वह बहुत सज्जन हों। बहरहाल इतना पक्का है वे हैं छत्तीसगढ़ में कोई भी एक करोड़ की रिश्वत से ऊपर का काम करवाने वाली पहली, दूसरी, तीसरी और अंजाम तक पहुंचाने वाली सीढ़ी।
तेरी तो...... रिश्वत की सीढ़ी
आओ भैया कुछ कहो sakhajee@gmail.com
९००९९८६१७९

3 comments:

  1. यह व्यंग्य नहीं सच्चाई को वयां करती रचना , बधाई

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