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Wednesday, June 11, 2008

संसद के बाहर एक दिन ..........


हिन्दी पत्रकारिता के सशक्त हस्ताक्षर हैं एन डी टीवी के रवीश कुमार। रवीश जी का ब्लॉग है कस्बा और उस पर छपी थी ये कविता जो आप के लिए लाना मुझे लगा ज़रूरी है, इससे पहले भी उन्ही की अनुमति से ताज़ा हवा पर उनका एक लेख प्रकाशित किया था ; ॥ काफ़ी सराहा गया था ....................आख़िर हम वो काम करने वाले हैं और वे वो काम कर रहे हैं ! मतलब पत्रकारिता .............. उम्मीद है की पसंद आएगी और हां रवीश जी का धन्यवाद ..... सो कस्बा और रवीश जी से साभार पेश है .....


कर्नाटक में बदलती सत्ता से बेख़बर
कैमरामैन के फेंकी हुए
चाय की प्याली में घुस कर
चुटरपुटर चाट रही थी गिलहरी
रिपोर्टर की बोरियत भरी बक बक को छोड़
बची हुई चाय की चुस्की में तर हो रही थी

कौआ बैठा रहा वहीं डाल पर बेख़ौफ़
स्टुडियों के सवालों का जवाब जान कर
कौए ने बंद कर दिया अपना कांव कांव
सदियों से सनातन रहा यह कागा अपना
जानता है यहां सांसद पत्रकार आते रहते हैं

आता तो माली भी है मेरठ से हर दिन
कम से कम पेड़ पौधों को हरा भरा कर जाता है
बाज भी निहत्था हो कर अपने पंजों से
फव्वारे की बची बूंदों में नहा रहा था
शिकार करने की आदत तब से छूट गई
जब से वह ख़ुद शिकार होने लगा

शहरों में कौआ, बाज और गिलहरी
इन तीनों को पता है
संसद में बारी बारी से आते सब को देखा जाना है
रिपोर्टरों की चीखती आवाज़ से बेसमझ ये तीनों
संसद के बाहर की दुनिया को आबाद कर रहे हैं
जहां जीवन है, उसका नियम है और धीरज है
सवालों जवाबों में उलझे पत्रकारों की तरह
बेचैन नौकरी में बोलने की चिंता ही बहुत है जिनमें

यही जान कर तीनों ने एक फ़ैसला कर रखा था
सत्ता तो कब से बदल रही है इस मुल्क में
इसी ल्युटियन की बड़ी बड़ी इमारतों के भीतर
कोई तेज़ रिपोर्टर इतना भी भला न जान पाया
हर साल हर चुनाव के बाद लगता है वही कैमरा
सवाल वही, जवाब वही, बहस और करने वाले वही

जब सब वही का वही है, नया कुछ भी नहीं है
तो क्यों न बाकी बची हुई चाय पी जाए
रिपोर्टरों को देख उड़ने से मना कर दिया जाए
और कैमरा ऑन हो तब भी वही पर नहाया जाए

रवीश कुमार
एन डी टीवी इंडिया

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