देश को स्वतंत्रता मिले आज हमें 66 साल हो चुके हैं। पर इस स्वतंत्रता की सही कीमत तो वहीं लोग जानते हैं। जिन्होंने परतंत्र भारत में रहकर स्वतंत्रता की सुनहरी किरण महसूस की थी। और इसे पाने के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों को देश हित के लिए न्यौछावर कर दिया।
आज देश के सामने कई चुनौतियां है पर इन चुनौतियों के बीच ही हमने आजदी के साढ़े छह दशक बीत जाने के बाद भी अपने लोकतंत्रीय देश को बनाए रखा है। और आज हम इसी कारण एक युवा राष्ट्र के रूप में दुनिया भर में पहचाने जाते हैं, पर हमारी सभ्यता ने इस बीच कई दौर देखे, जिनमें हमें पहले भी कई लोगों ने गुलाम बनाया पर वो अपने इन मंसूबों में कभी कामयाब नहीं हो पाए और हमेशा से ही देश के वीर जवानों और साहसी महापुरषों के सामने अपने घुटने झुकाने पढ़े। इतिहास गवाह है कि हमने यह आजादी यूं ही नहीं मिली बल्कि इसके लिए हमारे देशभक्तों ने देश पर खुद को समर्पित कर इसे हमारे लिए मुक्त किया है और हमारा दायित्व है कि हम इसे हर क्षेत्र में और भी बेहतर बनाएं।
और इस तरह 15 अगस्त 1947 को हम स्वतंत्र हुए और जल्द ही एशिया की महाशक्ति बनकर उभरे, वहीं देश ने एक तरफ तो लोकतंत्र का पहला पड़ाव 1952 में तब पूरा किया जब हमारे देश में पहली बार आम चुनाव हुए। इस दौर में भारत अर्थव्यवस्था की और तेजी से बढ़ा, नवउदारवाद के रास्ते निजी क्षेत्र में चहुंओर गति देने की नीति अपनाई गई, देश के पहले प्रधानमंत्री स्व. पं.जवाहरलाल नेहरू और स्व.राम मनोहर लोहिया ने उद्योग जगत की चकाचौंध में खो जाना ही ठीक समझा। इसके बाद तो भारत उभरती अर्थवयवस्था में तब्दील होता चला गया। और आज भी इसी गति से निरंतर अपनी साख विदेशी बाजारों में बनाए रखने में सक्षम हुआ है।
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