एक ताज़ा विवाद जिसकी शुरुआत मोहल्ला ब्लॉग के व्यवसायिक संस्करण
मोहल्ला लाइव डॉट कॉम पर छपी एक ख़बर से हुई….उस पर मेरे लिखने से पहले ही उसमें लपेटे गए लगभग सभी लोग अपने अपने
स्पष्टीकरण, जवाब और तेवर सामने रख चुके हैं….पर फिर भी मैं एक जोखिम लेना चाहता हूं कुछ लिखने का…मामला कुछ यूं हुआ कि वरिष्ठ पत्रकार
आलोक तोमर ने
विस्फोट डॉट कॉम से एक लेख उठाकर अपनी वेबसाइट पर छाप दिया…छाप क्या दिया, उनको वो लेख और जानकारी ज़ाहिर है कि उपयोगी लगी और उन्होंने उसको वितरित होने के मुफीद माना और प्रकाशित किया। आलोक जी ने उस रपट को बाक़ायदा लेखक के नाम के साथ प्रकाशित किया, सो उनकी मंशा पर ज़्यादातर लोगों को शक़ नहीं करना चाहिए था पर सरोकारों वाले पत्रकार कहां बाज़ आ सकते थे और वही हुआ मोहल्ला लाइव पर ख़बर छपी कि
आलोक तोमर ने पत्रकार की रपट चुराई।साधारण तौर पर देखें तो ये एक सनसनीखेज़ शीर्षक वाली ख़बर लगेगी और आप खोलकर पढ़ेंगे और कुछ लोग अविनाश दास (मोहल्ला) तो कुछ लोग आलोक तोमर को अलंकृत भाषा से
उपमानित कर देंगे पर अगर गूढ़ में जाकर देखें तो शायद आलोक जी का मक़सद चोरी का तो नहीं ही था। अगर उस रपट को चोरी ही किया जाना होता तो शायद स्वनामधन्य ये पत्रकार नहीं जानते कि
आलोक जी के कोष में इतने शब्द तो होंगे ही कि उसकी पूरी भाषा को ऐसे बदल सकते थे कि कोई चोरी का पता भी नहीं कर सकता था। पर रपट को आशीष अग्रवाल के नाम के साथ प्रकाशित किया गया और हूबहू प्रकाशित किया गया पर अब सवाल ये कि विस्फोट की अनुमति क्यों नहीं ली गई….तो उसका उत्तर आपको विस्फोट के होमपेज पर ही मिल जाएगा, जहीं एक बैनर लगा है और उस पर लिखा है,
“सर्वाधिकार (अ)सुरक्षित
विस्फोट.कॉम में प्रकाशित लेखों पर हमारी ओर से कोई कॉपीराईट नहीं है-संपादक” मतलब ये कि विस्फोट पर प्रकाशित किसी भी लेक को कोई भी
(कम से कम साभार) प्रकाशित कर सकता है और इसमें कोई भी बुराई नहीं है....मुझे तो लगता है कि संजय जी का ये एक अभिनव कदम है कि महत्वपूर्ण ख़बरों और जनउपयोगी सूचनाओं का प्रसार हर व्यक्ति तक हो....और कॉपीराइट न होने से इसमें सरलता होगी।
पर अविनाश जी भी वरिष्ठ पत्रकार हैं और तमाम संस्थानों में काम कर चुके हैं सो उन्हें ये हरकत गलत समझ आई और उन्होंने झट यह छाप दिया कि आलोक तोमर चोर हैं...पर शायद इस सबके पहले उन्होंने एक बार भी संजय जी या आलोक जी से बात करना ज़रूरी नहीं समझा। मुझे लगता है कि पत्रकारिता का एक सिद्धांत यह भी है कि
दोनों पक्षों से बात करके ही कोई ख़बर छापनी चाहिए...या फिर
आशीष अग्रवाल मोहल्ला के दर पर अपनी अर्ज़ी लेकर पहुंचे होते। अविनाश जी लम्बे समय से मोहल्ला ब्लॉग चला रहे हैं और तमाम बार ये अपने कंटेंट को लेकर प्रशंसा और विवाद दोनो ही बटोर चुका है पर दरअसल इस पूरी घटना ने वेब पत्रकारिता में बढ़ती प्रतिद्वंदिता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं....
पिछले लम्बे समय से न केवल ब्लॉग बल्कि तमाम पोर्टल आरोप प्रत्यारोप के जिस तरह के खेल खेलते रहे हैं क्या पत्रकारिता को एक नई दिशा देने के स्वप्न जगाने वाली वेब पत्रकारिता उस स्वप्न के पूरा होने से पहले ही तो तेरी-मेरी के दलदल में नहीं फंस जाएगी? आखिर किस तरह की पत्रकारिता कर रहे हैं आप लोग? कभी ये खेल अविनाश और यशवंत के बीच होता है तो कभी किसी और के बीच....चलिए तमाम ब्लॉगर तो आम जनता से आते हैं पर आप लोग तो पत्रकार हैं....इस तरह आपस में एक दूसरे की ही इज़्जत उछालते रहे तो हो गया पत्रकारिता का कल्याण। वैसे ही पत्रकारिता कितनी बची ही है और फिर आप सब तो पत्रकारिता को दिशा देने की बातें करते हैं...
ये सारा विवाद शुरु हुआ मोहल्ला से और अविनाश जी से तमाम सवाल पूछना चाहूंगा पर अभी सिर्फ़ दो चार....अविनाश जी ने एनडीटीवी जैसा ग्रुप आखिर क्यों छोड़ा इस पर तमाम सवाल उठ चुके हैं पर उन पर जो बलात्कार के प्रयास का आरोप लगा उसका दूसरा पक्ष मैं भोपाल जाकर खुद उस लड़की के मुंह से सुन चुका हूं...पहला पक्ष अविनाश जी ने मोहल्ला पर दिया था....अविनाश जी कहते हैं कि मोहल्ला का पोर्टल पत्रकारिता के लिए है तो क्या बिना व्यर्थ सनसनी फैलाए पत्रकारिता नहीं की जा सकती....क्या आशीष जी ने आपसे को शिकवा या फरियाद की थी...क्या आलोक जी ने कोई बड़ा घपला अंजाम दे दिया था....या विस्फोट से अचानक आपको कोई हमदर्दी हो गई....मेरा मानना है कि जिस तरह से इस बात को विवाद की शक्ल दी गई...ख़बर बनाकर छापा गया, वो तरीका कहीं से भी उचित नहीं था...अविनाश जी से निवेदन है कि आपस में एक दूसरे की छीछालेदर करने से घायल केवल पत्रकारिता ही होगी और कुछ नहीं...मोहल्ला को बासबब से बहस बेसबब, बेहिसाब न बनने दें...
आलोक जी और संजय जी से भी मेरे अपने निवेदन हैं, दोनो ही मुझसे कहीं वरिष्ठ हैं और मेरे ये सब लिखते समय विस्फोट भी आलोक जी की भड़ास प्रकाशित कर चुका है और आलोक जी का गुस्सा और संजय जी का उसे ठंडा करने का तरीका दोनो ही मज़ेदार हैं। मेरा विनम्र निवेदन है कि संजय जी अगर विस्फोट से लेख सनाम लेने में भी आपत्ति है तो कृपया अपना सर्वाधिकार असुरक्षित का बैनर उतार कर, लपेट कर कहीं कोने में रख दें.....क्योंकि ये नहीं तो आगे भी विवादों को जन्म देगा....आलोक जी से मेरा सविनय निवेदन है कि पहले तो कृपया अपने गुस्से को थोड़ा सा कम करें क्योंकि आप गुस्से में आकर तमाम लोगों की ऐसी तैसी कर डालते हैं... आप जैसी बड़ी शख्सियत को इस तरह गुस्सा दिखाना शोभा नहीं देता....दूसरी बात ये कि आप भी अब कसम खा लें कि कोई लेख आपको कितना भी अच्छा क्यों न लगे...आपकी नीयत कितनी भी साफ़ क्यों न हो....उसको साभार भी न उठाएं क्योंकि यहां तमाम शिकारी इसी तीक में बैठे हैं कि कैसे कोई सिरा हत्थे आए और वो विवाद बन जाए....बाकी तमाम वरिष्ठ और साथी पत्रकारों से बस यही कहना है कि आपस में किसी तरह की गंदी प्रतिस्पर्धा कर के पत्रकारिता की पहले ही गिरती साख को और बट्टा न लगाएं.....
अंत में अपने एक युवा साथी हिमांशु के ताज़ा छपे काव्य संग्रह अमां यार से एक नज़्म 'साभार',
हवाएं बहुत तेज़ चल रही हैं ,
आओ दोस्त !
एक दूसरे को थाम लें...
क्यूंकि मरासिम -ज़िन्दगी की शाख पर
पत्तों जैसे, खरे होते हैं ।
जो टूट कर गिरे,
फिर कम ही हरे होते हैं