अब सवाल हम अपने ऊपर ले लेते हैं। हमारे इस समाज में अगर लड़की हमारे प्रति वफादार है तो वो पवित्र है। अगर वो बगावत कर दे तो वो वेश्या है और हमारी चरित्र हीनता के लिए शब्द बनाने अभी बाकि हैं। जो लोग हमारे अत्याचारों के प्रति मौन हैं। उनके लिए हमारे पास कोई बधाई देने वाले अल्फाज़ नहीं hain लेकिन जो इस हालातों से बगावत कर बैठें वो नक्सली। आतंरिक सुरक्षा को सबसे बड़ा खतरा। असल में माओवाद से प्रभावित रेड कोरिडोर का भी सच यही है की जितने तादाद में पुलिस के जवान वहां हैं उनकी एक प्रतिशत संख्या में भी नक्सली वहां पर नहीं है । अब अगर छत्तीसगढ़ झारखण्ड और उड़ीसा की कुल पुलिस तादाद अगर २ से ढाई लाख हो तो कुल नक्सली दो ढाई हजार ससे ज्यादा नहीं है। इन इलाके के लोगों जिनकी तादाद तीन से चार करोड़ की है के लिए सरकार के पास कोई योजना या फिर परियोजना नही है सरकार से इनके पास न ही नरेगा पहुंचा है और न ही इंदिरा विकास योजना । जो चीजें वहां आजादी होने का अहसास करवाती हैं वो हैं पुलिस और उसका डंडा और बन्दूक। इनसे कौन लड़ सकता है। जहाँ जीवन जंगल है और जंगल जीवन हो । वहां अगर कोई इन प्राकृतिक संसाधनों पर नजर डाले तो शायद ये सवाल आतंरिक सुरक्षा का है। इसी लिए हमारी सरकार नंदीग्राम में दो महीने तक मुख्यामंत्री का न घुस पाना तो स्वीकार कर लेती है लेकिन ये बर्दाश्ता नहीं कर पाती की लालगढ़ में कोई उसके पार्टी कार्यालय को बंद करवा दे।
झारखण्ड में डाल्टेनगंज तक जाने के दो रास्ते हैं एक चtra होकर और दूसरा पांकी होकर । पांकी होकर जाने पर हर सरकारी ईमारत बारूद से दफ़न मिलती है । आगे पलामू में जहाँ koyalkaro नदी बहती है वहां पर सरकार की योजना के नाम से लोगों के होश फाख्ता हो जाते हैं क्योंकि उनकी हर अंग जंगल से जुदा नहीं है और किसी भी सरकारी योजना का अर्थ उनके अंग पर हमले के अलावा कुछ भी नहीं है। sarkaar नदी पर पुल बनाकर चाहती है की पलामू को पर्यटन केंद्र के तौर पर विकसित कर दिया जाये। यहाँ पर दुनिया का सबसे बेहतरीन अभ्रक और बाकसाईट की खदानें हैं जिन्हें सरकार यहीं के यहीं साफ़ करके दुनिया भर के बाजारों पर धाक जमाना चाहती है इस काम के लिए सरकार ८० किलोमीटर के इस इलाके में ८ कारखाने डालना चाहती है। जो आज तक इस इलाके में सरकार के एक भी स्कूल या अस्पताल या न बनवा पाने के बाद भी बनेंगे। तब सरकार इस इलाके के गरीबों के बारे में भी कुछ सोच सकेगी जिनसे वो जंगल में बांस काटने का टैक्स ३०० रुपये तक ले लेती है।
अगर अब भी बात हम आतंरिक खतरे की करें तो सरकार कश्मीर के बाद सबसे ज्यादा खर्च माओवादियों से निपटने के लिए कर रही है जो एक दिन का माओवाद से प्रभावित तीन राज्यों के ४५ जिलों के खर्च से ज्यादा है और अनुमानित पिचले दसंबर तक ५००० करोड़ से भी ज्यादा का था । अगर यही धन सरकार इन गरीबों पर खर्च करती तो इन माओवादियों को तो यही लोग मारकर जंगल से भगा देते और सरकार जितना धन इस ओपरेशन पर खर्च कर रही है वो अनुमानित 20000से २५००० करोड़ तक तो होगा ही। wahin ये grameen लोगों से इस khadaan को बहुत ही aaram से सरकार को soonp देते लेकिन सरकार की ativadi neetiyan शायद use jhukne की ijajat नहीं देती हैं। और शायद यही इन गरीबों के satta से takrane की वजह भी है
ashu pragya mishra
makhan lal patrakarita vishvavidyalaya, bhopal
सही व्याख्या की गई है। बधाई!
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट लिखी है।बधाई।
ReplyDeletemai abhinav aur mera bhai ankit dono tumhe padhte hain.....kya bakvas likha krte ho...
ReplyDeleteatankvad ,naksalvad kaha se khatam hoga..jab mayawativad aur mulayamvad bari -bari se aate rahenge...aur soniya g remote lekar vote batorti rahengi.rahul g yuva akarsan se janta ko chalte rhenge.obc---alp sankhyakvad ko muk samrthan dete rhene....khair aap likhte rahiye achha lagta hai ki ...aap kuchhh jankari bantne me lage ho...
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