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Friday, January 8, 2010

दिल्ली की सड़कों पर जंग



दिल्ली में ठंड से लोग बेहाल हैं ... परसों रात मैं दिल्ली की सड़कों पर घूम रहा था ... वहां वो चेहरे नज़र आए जो बंद कमरे में ब्लोवर और रज़ाइयों के बीच आम तौर पर हमारे ज़हन में नहीं आते.. सरिता विहार फ्लाईओवर के नीचे खुले में सैकड़ो ज़िंदगियां ठंड में... अपनी जिंदगी गुज़ार रही है माफ कीजिए काट रही हैं.....ये लोग अपने गांव से चले आए हैं रोज़ी रोटी की तलाश में ... लेकिन इनके पास कंबल और गर्म कपड़े नहीं हैं... एक फूल सिंह नाम के शख्स ने मुझे बताया कि अफसोस इलेक्शन पहले ही हो गए...इस वक्त होते तो नेताजी कंबल ज़रूर बांट कर जाते पिछले इलेक्शन में जो कंबल बटे थे वो वक्त के साथ तार-तार हो गए....थोड़ा आगे बढ़ा तो सामने झुग्गिया थी...एक झुग्गी में रामबालक का परिवार रहता है...कहां कहां से वो बेचारा ठंड रोके….. हर सुराख से ठंडी हवा नश्तर बनकर चुभ रही है...रामबालक की पत्नी ने मुझे बताया कि पिछले साल की सर्दी उसके दो साल के मासूम बच्चे को लील गई....अब अपनी नवजात बेटी को अपने सीने से लगाकर वो उसको बचाना चाहती है...निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर रिक्शेवाले लकड़िया बीनकर आग जलाकर बैठे हैं इंसान और जानवरों का भेद यहां मिट गया हैं आवारा कुत्ते भी इनके पास बैठकर सर्दी भगा रहे हैं.......एक रिक्शे वाले ने बताया कि उनका एक साथी राजू ऐसे ही आग जलाकर उसके पास सो गया रात में आग बुझ गई और फिर उसने सवेरा नहीं देखा ठंड राजू को खा गई....इन लोगों की पूरी रात कटती है अलाव के सहारे क्योंकि अगर ये आग बुझ गई तो कहीं ज़िंदगी का चिराग़ ही ना बुझ जाए....सरकार से मदद के बारे में पूछने पर इन लोगों की आंखों में युद्ध से लौटने की यातना नजर आई और उनकी आंखे शायद यही कह रही थीं.....सरकारी उम्मीदों तुम्हारा शुक्रिया तुम्ही ने जीना सिखाया...गरीबी तुमने ठंड से लड़ना सिखाया..... आवारा कुत्तों जब दुनिया दूसरे छोर पर थी तब इस छोर पर तुम मेरे साथ थे...मेरी ही तरह ठंड में कंपकपाते हुए सुबह होने का इंतेज़ार करते हुए.....ये जंग है दिल्ली की सड़कों पर गरीब इंसानों और ठंड के बीच..............

रुम्मान उल्ला खान
(रुम्मान पिछले पांच साल से अपराध पत्रकार के तौर पर सक्रिय हैं और सम्प्रति सीएनईबी समाचार चैनल में कार्यरत हैं।)


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