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Thursday, October 22, 2009
साजिशों का दौर....
- कीर्ति भास्कर
(लेखक ने अभी अभी पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी की है.....आप इनसे thinktank.guru@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं )
Tuesday, October 20, 2009
सोर्स नही तो कोर्से क्यूँ ?
साथियो आज पत्रकारिता में सोर्स, जुगाड़ और माखन बाजी इतने प्रचलित शब्द हो गए है की लगता है बिना इन्हे जाने आप पूर्ण पत्रकार नही हो सकते कुछ आदि ईमानदारों को पत्रकारिता करने की जगह मिलती भी है तो उन्हें वो जगह दी जाती है जँहा वे एक टाइपिंग बाबू से ज़्यादा कुछ नही ,पत्रकारिता में नई पौध को कुछ आला मीडिया कर्मियों के द्बारा यह कहा जाता है सोर्स नही तो कोर्से क्यूँ किया ,अब यह परिभाषा नई पौध को जेहन में डाल कर मीडिया फील्ड में आना चाहिए ,देश के चार स्तंभों में हर स्तम्भ में अयोग्यो की सरकार है ,यह बात किसी से छुपी नही है बावजूद इसके की कुछ ईमानदार और सच्चे लोग है जो देश को बचाए है मुझे कभी -कभी कार्लायन के ये कथन याद आते है की विश्व में एक बुद्धिमान के साथ नौ मूर्ख लोग हमेशा रहते है ,फील्ड में आओगे तो पता चलेगा यह जुमला मीडिया के लिए आज टैग लाइन बन गयी है जो नई पौध के मानसिक शोषण से ज्यादा कुछ भी नही है ,मै मानता हूँ की मीडिया में पूरे विश्व में यही चल रहा है लेकिन चयन प्रक्रिया जो मुख्य आधार होता है किसी भी संस्थान को सृजित करके उचाइंयो पर ले जाने का वही गायब होती आज मीडिया के फील्ड में साफ़ दिखायी देती है ,और जब तक मीडिया अपनी चयन प्रक्रिया में सुधार कर योग्यता को तरजीह नही देगी तब तक मीडिया की छवि और कृति सुधर नही सकती तथा ख़बर एक मिशन कभी नही बन सकती ,और कुछ विश्व भर में बनी ये फिल्मे जो कही मीडिया के बहादुरी की दास्ताँ बताती है तो कही मीडिया के अन्दर का सच आप चाहे तो इन्हे पढ़ कर देखे भी.............................
FILM- ALL THE PRESIDENTS MEN, DIRECTED BY-ALLEN PAKOOLA,
यह फ़िल्म वाटर गेट के स्कैंडल को दुनिया के सामने लाने में वाशिगटन पोस्ट के पत्रकारों कार्ल बर्नस्टाइन ,बोब वुडवर्ड की यात्रा की कहानी है डस्टिन हाफ मैन और रॉबर्ट रेडफोर्ड के अभिनय ने इस पूरी फ़िल्म को गहरे आयाम दिए है ,पत्रकारिता के गहरे गंभीर काम काम को सामने लाती यह एक बेहतरीन फ़िल्म है ।
FILM-A CRY IN THE DARK ,DIRECTED BY-FRED SHIVASKI,
मीडिया द्बारा ख़ुद जज बनने को कहती यह फ़िल्म मेरिल स्ट्रीप और सैम नील के अदभुत अभिनय को दिखाती है ,यंहा एक माँ के अपने बच्चे के मारे जाने का अपराधी साबित करता मीडिया है तो दूसरी तरफ़ एक माँ की पीड़ा और उसका मजबूत इरादा है एक सत्य घटना पर आधारित यह कहानी जीवन के बहूत से पहलूँ से साक्षात्कार कराती है
FILM-SHATTERD GLAAS,DIRECTED BY-BILE रे
रोलिंग स्टोन के पत्रकार स्टेवन ग्लास की जिन्दगी के उतार चढावो को दिखाती यह कथा ,सत्य घटना है रिपोर्टर को जब यह पता चलता है की उसका काम सच कम और झूठ पर ज्यादा आधारित है तो उसे समय की एक गहरी टूटन को दिखाती यह फ़िल्म पत्रकारिता के सभी पहलूँ को खूबसूरती से दिखाती है
FILM-THE FRONT PAGE,DIRECTED BY-BILEE बिल्डर
सम्पादक और रिपोर्टर के रिश्ते और अखबार की सुर्खियों की तलाश पर तंजिया नज़र डालती यह फ़िल्म वाल्टर और जैक लेमन की जोड़ी ने खूब अच्छे से अभिनय किया है रिपोर्टर, सम्पादक के द्वारा दिए लालच में कैसे फसता है दिलचस्प तरीके से फिल्माई गयी है
FILM-NEW DELHI TIMES ,DIRECTED BY -ROMESH शर्मा
पत्रकारिता और राजनीति के गहरे रिश्तो की पड़ताल करती कहानी ,वर्तमान की तस्वीर साफ़ करती है कहानी का मूल ताकत की तलाश में इस्तेमाल होना बखूबी दिखाया गया है भारतीय कलाकार -शशिकपूर शर्मीला ,मनोहर सिंह ,कुलभूषण खरबंदा ने अपना शानदार अभिनय दिया ह
FILM-THE KILLING FIELDS ,DIRECTED BY-RONALD JOF
कम्बोडिया में आतताई शासन के दौरान तीन पत्रकारों जिनमे एक कम्बोडियन एक अमेरिकन और एक ब्रिटिश है अनुभवों पर आधारित है आतंक और हत्याओं के बीच जीवन को सामने लाती है यह कृति
FILM-CITIZEN KEN ,DIRECTED BY -AARSAN VELSविश्व सिनेमा में आर्सन वेल्स के द्बारा लिखित और अभिनीत भी है,व्यक्तित्व को परत पर परत जिस तरह से खोलती है वह एक चमत्कार की तरह दिखाई देता है ,यह फ़िल्म साईट एंड साउन्द पत्रिका के द्बारा विश्व की श्रेष्ठ फ़िल्म ठहराई गयी है
FILM -THE INSIDER ,DIRECTED BY-MICHEL MAN
अमेरिका के प्रसिद्ध प्रोग्राम 60 मिनटस की एक कहानी जिसमे तम्बाकू उद्योग का परदाफाश हुआ था को आधार बनाकर यह फ़िल्म बनायी गयी है
FILM-REDS,DIRECTED BY-VAAREN BITE
पत्रकार जोन रीड की रुसी क्रान्ति पर लिखी पुस्तक (TEN DAYS THAT SHOOK THE WORD )पर आधारित है वामपंथी सोच और रूस के क्रांति की कथा बड़े सजीव तरीके से सामने लाता है
FILM -THE ABSENS OF MAILIS ,
पाल न्यूमन के द्बारा अभिनीत यह फ़िल्म एक माफिया पुत्र को हत्या के इल्जाम में फ़साने की कहानी है अखबार की रिपोर्टर द्बारा अपनी कहानी को सच बनाने की कोशिशों में नैतिकता को धुंधलाती सीमओं का आख्यान है यह फ़िल्म..जारी रहेगा ..wwwjungkalamkiblogspotcom
Monday, October 19, 2009
युवराज.....
अगर युवराज शब्द के लिए भारत में कोई उचित व्यक्ति का चेहरा मेरे दिमाग में आता है तो वह नाम या तो सलमान खान का है जो युवराज फिल्म में काम कर इस शब्द के लिए सही व्यक्ति बन गए या तो फिर एक नाम जेहन और आता है जिन्हें कुछ तो मंद ध्वनी में और कुछ तो सामान्यत ही उन्हें पुकारते है..... सरदार पटेल की वजह से तो राजे ,राजवाडे तो ख़त्म हो गए मगर मानसिकता वही है.....और अब युवा के नाम पर पता नहीं कितनो को बेवकूफ बनायेंगे
बेचारे क्या करे आखिर न पुकारे तो राजनीति का क्या होगा ? जी हाँ मै भावी प्रधानमंत्री युवराज राहुल गाँधी जी की बात कर रहा हूँ ..... जी हाँ राहुल गाँधी जी को भारतीय मीडिया दलित और गरीबों के मसीहा के रूप में प्रस्तुत करने पर तुली हुयी है......आखिर क्यों न करे भारत के होने वाले प्रधानमन्त्री का सवाल है भाई........ जिसे भारत के प्रधानमन्त्री के रूप में देखा जा रहा है उससे सम्बन्ध बनाने में हर्ज ही क्या है.....भले ही उसके लिए कुछ भी करना पड़े......बड़ी से बड़ी खबर रोक दी जाये मगर युवराज की खबर सबसे पहले हमारे चैनल पर ही चलनी चाहिए ......
अरे लोग तो यह भी कहने लगे है की दूसरा राजीव गाँधी है..... अरे राहुल भैया गरीबन के हिया जाए ..... एक पत्रकार साहब से बात-चीत के दोरान उनके मुंह से निकल आया कि.... " देखो यार राहुल कितने बड़े परिवार का होकर और एक दलित के यहाँ पर ..............................................." तो मेरे मुह निकल ही आया "क्यों नहीं वो तो अपनी पृष्ठभूमि को तैयार करने में लगे है .वैसे ३९ वर्ष का होकर अबतक उन्होंने किया ही क्या है . पहले बड़े बड़े पांच सितारा होटल में खाते थे अब कही पर भी खा लेते है और खाना ही तो खाते है अर्थात ग्रहण ही तो करते है" तो साहब ने कहा "फिर भी .........................."
भारतीय मीडिया की ये स्थिति है की युवराज हाथ मिलाते है तो खबर ,सोते है तो खबर, जाते है तो खबर अगर कुछ दिनों में वे अगर ............................भी करेंगे तो भी खबर बन सकती क्योकि ये भारतीय मीडिया है और सबसे बड़ी बात ये है की भविष्य के प्रधानमन्त्री का सवाल है अगर सम्बन्ध अच्छे रहे तो राज्यसभा या सूचना प्रसारण में कोई अच्छी जगह बन सकती है बुढापा आसानी से कट जायेगा .
जैसे इस मीडिया में कई किस्से प्रचलित है जैसे एक किस्सा राजीव शुक्ल जी का है कि एक बार राजीव जी फोटो के लिए कानपुर में राजीव गाँधी जी कि रैली में बड़ी जद्दोजहद कर रहे थे और इसी में वो गिर पड़े राजीव जी ने उनको देख लिया फिर क्या था उनका गिरना और सफलता एक सामान थी फिर उन्होंने दुबारा पीछे मुड़ कर नहीं देखा
आज हर पत्रकार राहुल के सामने ऐसे प्रश्न पूछता है कि जैसे उनको प्यार व् पुचकार रहा हो जैसे
- १- आप कब शादी कर रहे है ?
२- कोई पसंद कर रखी है क्या ?
३- क्या परिवार कि रजामंदी रहेगी ?
राहुल जी हंस कर टाल देंगे तो भी खबर बन जायेगी .भैया एक बार समझ में नहीं आता कि देश में इसके अलावा कोई मुद्दा ही नहीं बचा है क्या ......मुझको ये समझ नहीं आता आखिर ये तैयारियां प्रधानमन्त्री बनने की है या फिर समाजसेवी बनने की..... खैर मिशन राहुल आने वाले लोक सभा में पूरा हो जायेगा और साथ -साथ भारतीय मीडिया की हसरत भी पूरी हो जायेगी.....कई बड़े पत्रकारों को भी न्योते का इन्तजार रहेगा..... कि मैंने भी आपके प्रोजेक्शन में बहुत मेहनत की है...... सबसे पहले खबर हम ही चलाते थे.....शादी के बाद प्रसाद का इंतजार .......... और स्वर्ग से पत्रकारिता के बड़े पत्रकार सर पीट -पीट कर यही कह रहे होंगे की अगर हमने भी अपनी कलम का इस्तेमाल यही करने में लगाया होता तो इंदिरा जी व कई आंदोलनों में जेल न जाना पड़ता और एक विलासितापूर्ण जीवन बीत गया होता ..............
खैर शादी.....राज्याभिषेक.....और न्योते के इंतज़ार में एक आम आदमी जो गलती से पत्रकार बन गया.......
कीर्ति भास्कर
(लेखक ने अभी अभी पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी की है.....आप इनसे thinktank.guru@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं )
ये ज़मीन मेरे बाप की है....
Saturday, October 17, 2009
अंधेरों से रौशनी का सफर.....
ये शाम चरागों के नाम
जो कहीं-ना-कहीं बसा है, हर किसी के हृदय में,
क्यों ना उन दीयों को साथ यूँ सजाएँ हम ,
ना अँधेरा रहे कहीं दूर-दूर तक
कुछ इस तरह से दीवाली मनाएँ हम ।
दरअसल दीपावली को मनाने के पीछे कितने भी संख्य या असंख्य कारण गिना दिए जाएँ.....उत्सवधर्मिता की मूल भारतीय प्रकृति और तम की राह रोक अपने आस पास उजाले के अवतरण की कोशिशों की आदत....फिर चाहे वो उजाला भौतिक हो....सडकों पर....घरों पर या फिर वो लोगों की ज़िन्दगी में हो...या अपने मन के भीतर उजाले की खोज हो.....
भारतीय यानी कि हम स्वभाव से ही उत्सवधर्मी हैं....और इसी लिए जन्म से मृत्यु तक कोई अवसर ऐसा नहीं होता जब हम उत्सव मनाने का मोह छोड़ पाते हों.....शरद आते ही त्योहारों की लम्बी श्रृंखला इसी का उदाहरण है.....कहानी में भले ही राम घर लौट हों और अयोध्या सजी हो...पर यही वो वक़्त है जब इस वक़्त की प्रमुख फसल कट के आती है.....और फिर हम मंगल के प्रतीक गणेश और समृद्धि की आराध्या लक्ष्मी को उस उपजे हुए अन्न की भेंट चढाते हैं.....और साथ ही मनाते हैं फसल की खुशियाँ....जलाते हैं दीप और बीते अतीत की गौरव और आने वाले कल की तस्वीरें एक साथ दीयों की लौ में झिलमिलाने लगती हैं......और कतारों में चमकती है दीपावली.....
दुनिया बदल रही है...बीती दो सदियों में जिस तरह से इंसान लहू बहा कर एक दूसरे की जिंदगियों में अँधेरा करने पर आमादा था ....अब हालात बदले हैं....लोग जीना चाहते हैं...और जिन हाथों में संगीनें थी....आज धीरे धीरे उन सब हाथों में सब्र....सुकून.....और सवाब पाने की बेचैनी है....लोग अब दुनिया में अमन चाहते हैं और अपने अपने स्तर पर कोशिशों में लगे भी हैं.....
उजाला कुछ वक़्त के लिए रुका ज़रूर था...पर उसने हार नहीं मानी थी....वो आ रहा है...आता रहेगा ......और जीतेगा हमेशा.....यही उम्मीद शायद उजाले की जीत है...और दीपावली की रीत है.....आमीन.....और आख़िर में हमेशा की तरह नीरज की वही पंक्तियाँ दीवाली पर बरबस याद आ जाती हैं.....
सृजन है अधूरा अगर विश्व भर में
कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी
मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी
कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी
चलेगा सदा नाश का खेल यूँ ही
भले ही दीवाली यहाँ रोज़ आए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर
कहीं रह ना जाए
हमरी दिवारी....
Sunday, October 11, 2009
ए निगेटिव रक्त चाहिए....आपातकालीन स्थिति....
Wednesday, October 7, 2009
कृष्ण के नाम अर्जुन का संदेश.....
(लगभग हम सबके सामने जीवन में वो क्षण आते होंगे जब वे आपको छोड़ देते हैं...या लड़ाई से पीछे हट जाते हैं जिनसे आप ने लड़ना सीखा होता है....तब वाकई लड़ाई में बने रहना मुश्किल होता है....पर हमेशा ये ज़रूरी नहीं कि कृष्ण के साथ होने पर ही अर्जुन लड़े...आज के वक्त में तो बिल्कुल नहीं....ये कृष्ण से अर्जुन का संवाद है....जो आज के उन सभी अर्जुनों के लिए है, जिनके कृष्ण कौरवों संग खड़े हो गए हैं....)
मेरे रथ पर
अब
वो सारथी नहीं है
जिसने
मुझे विराट स्वरूप
दिखाया था....
एक पार्थ को जिसने
गीता सार समझाया था...
मेरे साथ
अब
वो महारथी नहीं है
जिसने मुझको
अपनों से लड़ने की
ताक़त दी थी
जिसने मुझे
तुम सब पर
गांडीव उठाने की
हिम्मत दी थी
अब
वो तात नहीं है....
जिसकी सेना
कौरवों के हाथ थी
पर जिसकी प्रेरणा
पांडवों के साथ थी
जिसके शब्द को
हमने हमेशा
अर्थ समझा
अब वो शब्दार्थ नहीं है....
जिसके सुदर्शन
के दर्शन
रोज़ होते थे
जिसके तेज से
सूर्य सोते थे
अब
वो तेजस्वी नहीं है....
अब कृष्ण
अपनी सेना के
साथ हैं
और सेना
कौरवों के हाथ है....
तो क्या अर्जुन
गांडीव की प्रत्यंचा
उतार देगा
क्या अपने अंदर
ठूंस के भरे गए
गीता सार को
मार देगा
अगर अब साथ
मनमोहन ओजस्वी नहीं....
तो क्या पार्थ
अब
पीछे हट जाएगा
हाथ बांधे
अरि कौरवों के
असि से कट जाएगा
या उनके सामने सर झुका
हारे हुए सा
लज्जित खड़ा होगा
क्षमा की याचना में
अब
वो अर्जुन भी नहीं....
जानता है
वो
कहां करना है उसको
बाण का संधान
तुमने ही दिया था
ज्ञान
समझता है वो
भली भांति
कि क्या है मित्र शत्रु
तुमसे ही मिली
पहचान
और तुमसे ही है सीखा
कि उसे लड़ना है
अब बस
और तब तक
न होवे
जीत का विश्वास
जो है कौरवों का नाश
और अब जब
कूटनीतिक कृष्ण
जाकर कौरवों के संग
खड़ा है
देख अब भी सामने
कुरुक्षेत्र में
अर्जुन खड़ा है
ज़िद पर अड़ा है
हे तात!
ये लड़ना और अड़ना
तुमसे ही था सीखा......
मयंक सक्सेना
mailmayanksaxena@gmail.com