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Tuesday, October 20, 2009

सोर्स नही तो कोर्से क्यूँ ?

विवेक मिश्रा
साथियो आज पत्रकारिता में सोर्स, जुगाड़ और माखन बाजी इतने प्रचलित शब्द हो गए है की लगता है बिना इन्हे जाने आप पूर्ण पत्रकार नही हो सकते कुछ आदि ईमानदारों को पत्रकारिता करने की जगह मिलती भी है तो उन्हें वो जगह दी जाती है जँहा वे एक टाइपिंग बाबू से ज़्यादा कुछ नही ,पत्रकारिता में नई पौध को कुछ आला मीडिया कर्मियों के द्बारा यह कहा जाता है सोर्स नही तो कोर्से क्यूँ किया ,अब यह परिभाषा नई पौध को जेहन में डाल कर मीडिया फील्ड में आना चाहिए ,देश के चार स्तंभों में हर स्तम्भ में अयोग्यो की सरकार है ,यह बात किसी से छुपी नही है बावजूद इसके की कुछ ईमानदार और सच्चे लोग है जो देश को बचाए है मुझे कभी -कभी कार्लायन के ये कथन याद आते है की विश्व में एक बुद्धिमान के साथ नौ मूर्ख लोग हमेशा रहते है ,फील्ड में आओगे तो पता चलेगा यह जुमला मीडिया के लिए आज टैग लाइन बन गयी है जो नई पौध के मानसिक शोषण से ज्यादा कुछ भी नही है ,मै मानता हूँ की मीडिया में पूरे विश्व में यही चल रहा है लेकिन चयन प्रक्रिया जो मुख्य आधार होता है किसी भी संस्थान को सृजित करके उचाइंयो पर ले जाने का वही गायब होती आज मीडिया के फील्ड में साफ़ दिखायी देती है ,और जब तक मीडिया अपनी चयन प्रक्रिया में सुधार कर योग्यता को तरजीह नही देगी तब तक मीडिया की छवि और कृति सुधर नही सकती तथा ख़बर एक मिशन कभी नही बन सकती ,और कुछ विश्व भर में बनी ये फिल्मे जो कही मीडिया के बहादुरी की दास्ताँ बताती है तो कही मीडिया के अन्दर का सच आप चाहे तो इन्हे पढ़ कर देखे भी.............................

FILM- ALL THE PRESIDENTS MEN, DIRECTED BY-ALLEN PAKOOLA,
यह फ़िल्म वाटर गेट के स्कैंडल को दुनिया के सामने लाने में वाशिगटन पोस्ट के पत्रकारों कार्ल बर्नस्टाइन ,बोब वुडवर्ड की यात्रा की कहानी है डस्टिन हाफ मैन और रॉबर्ट रेडफोर्ड के अभिनय ने इस पूरी फ़िल्म को गहरे आयाम दिए है ,पत्रकारिता के गहरे गंभीर काम काम को सामने लाती यह एक बेहतरीन फ़िल्म है ।

FILM-A CRY IN THE DARK ,DIRECTED BY-FRED SHIVASKI,
मीडिया द्बारा ख़ुद जज बनने को कहती यह फ़िल्म मेरिल स्ट्रीप और सैम नील के अदभुत अभिनय को दिखाती है ,यंहा एक माँ के अपने बच्चे के मारे जाने का अपराधी साबित करता मीडिया है तो दूसरी तरफ़ एक माँ की पीड़ा और उसका मजबूत इरादा है एक सत्य घटना पर आधारित यह कहानी जीवन के बहूत से पहलूँ से साक्षात्कार कराती है

FILM-SHATTERD GLAAS,DIRECTED BY-BILE रे
रोलिंग स्टोन के पत्रकार स्टेवन ग्लास की जिन्दगी के उतार चढावो को दिखाती यह कथा ,सत्य घटना है रिपोर्टर को जब यह पता चलता है की उसका काम सच कम और झूठ पर ज्यादा आधारित है तो उसे समय की एक गहरी टूटन को दिखाती यह फ़िल्म पत्रकारिता के सभी पहलूँ को खूबसूरती से दिखाती है

FILM-THE FRONT PAGE,DIRECTED BY-BILEE बिल्डर
सम्पादक और रिपोर्टर के रिश्ते और अखबार की सुर्खियों की तलाश पर तंजिया नज़र डालती यह फ़िल्म वाल्टर और जैक लेमन की जोड़ी ने खूब अच्छे से अभिनय किया है रिपोर्टर, सम्पादक के द्वारा दिए लालच में कैसे फसता है दिलचस्प तरीके से फिल्माई गयी है

FILM-NEW DELHI TIMES ,DIRECTED BY -ROMESH शर्मा
पत्रकारिता और राजनीति के गहरे रिश्तो की पड़ताल करती कहानी ,वर्तमान की तस्वीर साफ़ करती है कहानी का मूल ताकत की तलाश में इस्तेमाल होना बखूबी दिखाया गया है भारतीय कलाकार -शशिकपूर शर्मीला ,मनोहर सिंह ,कुलभूषण खरबंदा ने अपना शानदार अभिनय दिया ह

FILM-THE KILLING FIELDS ,DIRECTED BY-RONALD JOF
कम्बोडिया में आतताई शासन के दौरान तीन पत्रकारों जिनमे एक कम्बोडियन एक अमेरिकन और एक ब्रिटिश है अनुभवों पर आधारित है आतंक और हत्याओं के बीच जीवन को सामने लाती है यह कृति

FILM-CITIZEN KEN ,DIRECTED BY -AARSAN VELSविश्व सिनेमा में आर्सन वेल्स के द्बारा लिखित और अभिनीत भी है,व्यक्तित्व को परत पर परत जिस तरह से खोलती है वह एक चमत्कार की तरह दिखाई देता है ,यह फ़िल्म साईट एंड साउन्द पत्रिका के द्बारा विश्व की श्रेष्ठ फ़िल्म ठहराई गयी है

FILM -THE INSIDER ,DIRECTED BY-MICHEL MAN
अमेरिका के प्रसिद्ध प्रोग्राम 60 मिनटस की एक कहानी जिसमे तम्बाकू उद्योग का परदाफाश हुआ था को आधार बनाकर यह फ़िल्म बनायी गयी है

FILM-REDS,DIRECTED BY-VAAREN BITE
पत्रकार जोन रीड की रुसी क्रान्ति पर लिखी पुस्तक (TEN DAYS THAT SHOOK THE WORD )पर आधारित है वामपंथी सोच और रूस के क्रांति की कथा बड़े सजीव तरीके से सामने लाता है

FILM -THE ABSENS OF MAILIS ,
पाल न्यूमन के द्बारा अभिनीत यह फ़िल्म एक माफिया पुत्र को हत्या के इल्जाम में फ़साने की कहानी है अखबार की रिपोर्टर द्बारा अपनी कहानी को सच बनाने की कोशिशों में नैतिकता को धुंधलाती सीमओं का आख्यान है यह फ़िल्म..जारी रहेगा ..wwwjungkalamkiblogspotcom

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर आलेख !

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  2. बधाई हो, आपने हिम्मत दिखाई और आज के मीडिया के तथाकथित लोक-लुभावन चेहरे को बेनकाब करने की दिशा में एक प्रभावपूर्ण और शशक्त कदम बढाया.

    यहाँ पर एक बात मैं जोड़ना चाहूँगा,आजकल मीडिया का लड़की-प्रेम भी जोरो पर है.और ये लड़की प्रेम योग्यता पर आधारित ना होकर महज़ लड़की होने पर आधारित है.ऐसा पहली बार हो रहा है जब लड़को को लिंग भेद का शिकार होना पड़ रहा है.लड़कियों को ये लगता है की फलां जॉब उन्हें उनकी योग्यता पर मिला है पर शायद उन्हें ये बात मालूम नहीं है,या जानते हुए अनजान बनी रहना चाहती है की उन्हें फलां जॉब सिर्फ उनके लड़की होने के गुण पर मिलाहै है नाकि योग्यता par.चाहे आप इन्टर्न करने जाये या जॉब के लिए आवेदन करें,हर जगह लड़की-प्रेमी लोग बैठे है,जो लड़को की योग्यता को दरकिनार करते हुए लड़कियों को कम योग्यता पर रख लेते है ताकि उन्हें देख कर...
    मुझे उम्मीद है की जल्द ही वो दिन आएगा जब लड़किया इस बात को समझेंगी वर्त्तमान में जो हो रहा है उनका प्रखर विरोध करना शुरू करेंगी.
    विरोध ना करना उनके लिए घातक साबित हो सकता है,शायद नौकरी करते हुए वे इस बात को समझ रही होंगी.
    मैं आपके इस बात से इतेफाक नहीं रखता की विश्व मीडिया में भी योग्यता की अनदेखी हो रही है,ऐसा नहीं है,आप एक तरफ बीबीसी और सीएनएन को देखे और दूसरी तरफ भारतीय मीडिया को देखेंगे तो आपको अंतर पता चल जायेगा.
    दरअसल आज भारतीय मीडिया में कुछ अयोग्य लोग भर्ती हो गए है जो पूरे मीडिया को ख़राब और बदनाम कर रहे है.मैं मानता हूँ की भारतीय मीडिया पर आज लगाम की सख्त जरुरत है,अगर ये लगाम वक़्त रहते नहींलगी तो मीडिया से आम लोगो का विश्वास जल्द ही उठ जाएगा.

    एक बार फिर आपको आपके सटीक लेख के लिए बधाई.

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