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Monday, November 16, 2009

जन्मदिन मुबारक जनसत्ता

सत्रह नवम्बर १९८३ को प्रभाष जी ने हिन्दी पत्रकारिता को तेवर दिए थे। जनसत्ता की शुरुआत करके। प्रभाष जी पिछले दिनों ही हमसे दूर हुए। अपने बिल्कुल शुरूआती वर्षों में जनसत्ता ने लोकप्रियता के सभी कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए थे। हम आज भी वो कहानी सुनते हैं जब प्रिंटर की बीमारी के चलते जनसत्ता के पाठकों से ये अपील की गई थी की उसे मिल बाँट के पढ़ा जाए। इसे चौथा थाना कहा जाता था। १९८३ में भारत की एक टीम विश्वकप उठा लायी थी। जनसत्ता की एक टीम की चर्चा आजतक होती है। भले ही ये बिखर गई हो। ये सबकुछ आज भी सुना, पढ़ा और लिखा जाता है। जनसत्ता आज भी दूसरों से आगे है लेकिन ख़ुद से कहीं पीछे हो गया है। इस मोड़ पर प्रभाष जी का एकदम से जाना और दुखद है। आज जनसत्ता के जन्मदिन के रोज़ हम इस बात की उम्मीद कर सकते हैं की ये दुबारा से अपने स्वर्णकाल तक पहुचेगा।

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