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Wednesday, November 18, 2009
हैडली नहीं हैदर अली...
आंतकी वारदातों के बढ़ते ग्राफ और तरह-तरह की बातों ने ज़ेहन में कई सवालात खड़े कर दिए है...दरअसल..मन बेहद विचलित है कि कोई भला कैसे ये कह सकता है कि फलां वर्ग या समाज धर्म के लोग ऐसे होते हैं..क्यों इस मामले में इतना पूर्वाग्रह होता है...इन दिनों हैडली प्रकरण बड़ा उछला हुआ है...सच तो जो भी हो लेकिन भारतीय तीव्रतम् मीडिया को मसाला ख़ूब मिला है...मुम्बई हमले में शामिल था देश के एक-एक शहर को घूमा आदि..आदि। खैर ये तो किसी भी सूचना माध्यम के साथ होता है..मेरे मन में सहसा ही हैडली के बारे में ख़्याल आया कि ये जो डेविड कॉलमेन हैडली है, कहीं इसका असल नाम दाउद क़ल उम्मैन हैदर अली तो नहीं....इस तरह का विचार ज़ेहन में यूं ही नहीं आया था..बल्कि ऐंसे विचारों की शुरूआत कंधार काण्ड के बाद हुई थी ,जब हाईजैकर्स में से एक का नाम शंकर था जो बाद में साकिर निकला...औऱ चल पड़ा सिलसिला आतंकी वारदातों का...जुड़ने लगा नाम इनके पीछे..अक्सर ऐंसी कौम का जो पहले से ही भारत जैसे सहिष्णु देश में रहने की ज़द्दोजहद कर रही है...हर चेकपोस्ट पर अपने देशभक्त होने का सबूत दे रही है...इसी दौरान मैंने एक निजी समाचार चैनल के खास कार्यक्रम में देवबंद के मदनी साहब के विचार जाने उनका दर्द उनकी टीस हर शब्द में थी...बात-बात पर कटघरे में खड़े होने वाले मुल्ला मौलवियों के सामने अब आखिर कितने और सवाल हैं...रजत शर्मा जैसे मंझे हुए पत्रकार अपना पूर्वाग्रह रोक ना सके..उनका भी एक सवाल सीमापार और देशी लोगों के बीच भेद ना कर सका...मुझे तकलीफ इस बात की है..कि आखिर मुस्लिम कौम ही क्यों कटघरे में है अमरिका में भारतीय क्यों नहीं जबकि वहां तो खुले तौर पर भारतीय आज़ादी का दिन औऱ बाकी सब वो राष्ट्रीय त्यौहार मनाये जाते हैं..जो उन्हें सीधा एक भारत परस्त साबित करतीं हैं..क्या कारण है कि भारत में ही ऐंसा होता है...इसके पीछे हम उस पुरानी सोच पर भी चल कर देखते हैं..जिसमें हिंदी वर्णमाला पढ़ाते वक़्त कई ऐंसी चीज़ें पढ़ाई जाती हैं..जिन्हें बच्चा अपने दिमाग में हमेशा के लिए बिठा लेता है..जैसे कि....क्ष क्षत्रिए का और फोटो रहता है एक योद्धा का...जो तलवार ढाल लिए खड़ा रहता है..तब से अब तक कोई अगर ख़ुद को क्षत्रिए बताता है..या ठाकुर जाति का बताता है तो ख़ुदवख़ुद ज़ेहन में बचपन की पढ़ाई गई तस्वीर उभरने लगती है..जबकि सच उस तस्वीर के इतर होता है...ऐंसे ही हर काली पगड़ी बढ़ी दाढी वाला व्यक्ति आतंकी नज़र आता है और ये हमें पढ़ाया गया उस आतंक की क्लास में जो शुरू हुई थी..सन् 2001 में जब अमरिका तिलमिलाया था..तभी एक चेहरा आतंक का पर्याय बन गया..उसकी शक़्ल हुबहू उसी शक़्ल से मिलती है जो आज मौलाना मुल्ला मौलवियों का लुक है...सीधी बात ये है कि धर्म की आड़ लेकर जितनी क्रूरता आतंकियों ने की है और कर रहे हैं उतना ही ग़ैरज़िम्मेदाराना रवैया उनका भी है जो सच्चे इस्लाम के विचारक हैं..चाहे वो मस्ज़िद में हों या मज़ार में..सब जगह वो हैं..अब अच्छी बात है कि मदनी साहब जैसे लोग आतंक और इस्लाम में फर्क करने के लिए सामान्य सभाएं भी करने लगे हैं..देवबंद का सम्मेलन कई माइनों में देश की दूसरी सबसे बड़ी आबादी के चाल,चरित्र,और चेहरा को निर्धारित करने वाला था...जिसमें समय के साथ इस आबादी का सही चेहरा औऱ मौहरा सामने आएगा वहीं बहुसंख्यकों का भी इनके प्रति नज़रिए साफ होता जाएगा..अब हमें क्ष क्षत्रिए का प पंडित का ल लाला का पढ़ाया जाएगा तो तस्वीरें ऐंसी तो बनेंगी ही ना...लेकिन फिर भी पूर्वाग्रह जैसी चीज़ें देश,समाज,दुनिया और धर्म सबके लिए घातक हैं..मीडिया ने इस सम्मलन से वंदेमातरम् उठाया बाकियों पर तो ध्यान ही नहीं गया......इस देश का विचार मीडिया,मुस्लिम,और महंत बनाते हैं तब इनकी भूमिकाएं खास के साथ ही ज़िम्मेदाराना भी हो जाती हैं....
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