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Tuesday, February 23, 2010

कोरे कागज़ की अभिव्यक्ति....

कोरे कागज़
पर कुछ लिख देना....
कह देना भावों को
क्या सम्भव है हमेशा
पूरा कर पाना
शब्दों के अभावों को

कुछ कहा जाए
तो भी
हमेशा
कुछ अनकहा रह ही जाएगा
पर कई बार
जो लिखा नहीं गया
वो भी कुछ कह जाएगा

शब्दों के अर्थ
हमेशा शब्दों में नहीं
उनके मध्य भी होते हैं
कई बार चेहरे मुस्कुराते
पर ह्रदय रोते हैं
कई बार सुख दिखता नहीं
दुख
केवल महसूस किया जाता है
दरअसल भीतर के शोर का
बाहर के सन्नाटे से
गहरा नाता है....

कभी कभी सुख
अधिकता में बयान नहीं हो पाता
और दुख जब ज़्यादा हो
तो कहा नहीं जाता

प्रेम की पहली अनुभूति
शब्दों से परे है
और दुनिया के नरसंहारों से
शब्द भी डरे हैं
सुबह ताज़ा खिले
फूल की खुशबू
स्कूल जाते मासूमों की
मुस्कुराहट का जादू

चायवाले छोटू की चंद तस्वीरें
घर की दीवारों पर खिंची
आड़ी तिरछी लकीरें
मां के हाथ से
खाना दाल-भात
भाषा-प्रांत के लिए
सड़कों पर उत्पात

सड़कों पर बहते खून को
पोंछ पाने में नाकाम रहना
सब कुछ देख कर भी
चुपचाप....
कुछ न कहना
और भी तमाम बातें
असंख्य भाव
कई चीज़ें
हादसे...घटनाएं...
हर्ष....विषाद...
जब हों भाषाओं से अलहदा
अभिव्यक्ति से परे
शब्दातीत....

तब कुछ न कहना
सर्वश्रेष्ठ उक्ति है
अक्सर कागज़ कोरे छोड़ देना ही
असल अभिव्यक्ति है.....

मयंक सक्सेना
mailmayanksaxena@gmail.com

2 comments:

  1. कई चीज़ें
    हादसे...घटनाएं...
    हर्ष....विषाद...
    जब हों भाषाओं से अलहदा
    अभिव्यक्ति से परे
    शब्दातीत....

    सच है शब्दों में सबको नहीं बंधा जा सकता....सुन्दर अभिव्यक्ति...

    ReplyDelete
  2. कभी कभी सुख
    अधिकता में बयान नहीं हो पाता
    और दुख जब ज़्यादा हो
    तो कहा नहीं जाता

    बहुत खूब !!

    ReplyDelete

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