इतिहास की किताबों को
जो मन में आये बक लेने दोअलां फलां चीज़ों के लिए
अमुक चमुक को श्रेय देने दो
पर...
मेरा भी यकीन करो
एक बात बतलाता हूँ
एक बात बतलाता हूँ
दिल्ली का लाल किला
मैंने ही बनाया है
ये और बात है कि
न
ये और बात है कि
न
मैं इसकी गद्दी पर कभी बैठा
ना इस पर झंडा फहराया है
मेरे नाम पर कोई मार्ग नहीं
पर
ना इस पर झंडा फहराया है
मेरे नाम पर कोई मार्ग नहीं
पर
सारी सड़कें मैंने ही बनाई हैं
दो जून की रोटी की खातिर
उम्र भर हड्डियाँ गलाई हैं
मैं गैस रिसने से मरता हूँ
दो जून की रोटी की खातिर
उम्र भर हड्डियाँ गलाई हैं
मैं गैस रिसने से मरता हूँ
मैं पानी भरने से मरता हूँ
कभी खदान में मरता हूँ
कभी खलिहान में मरता हूँ
मैं दो हाथ हूँ , फौलाद हूँ
पहाड़ समतल ज़मीं पाताल करता हूँ
समझ में ये नहीं आता
के जीता हूँ या फिर रोज़ मरता हूँ
मैंने ही
कभी खदान में मरता हूँ
कभी खलिहान में मरता हूँ
मैं दो हाथ हूँ , फौलाद हूँ
पहाड़ समतल ज़मीं पाताल करता हूँ
समझ में ये नहीं आता
के जीता हूँ या फिर रोज़ मरता हूँ
मैंने ही
छोटे बड़े हर शहर को बसाया है
तमाम बिखरी चीज़ों को
तमाम बिखरी चीज़ों को
करीने से सजाया है
कोई बतलाये मुझको
मेरी मेहनत की कीमत....
कोई बतलाये मुझको
मेरी मेहनत की कीमत....
कौन लगाता है
मेरी पैदा की चीज़ों को
मेरे ही सामने बेच आता है
मुझे ना रोको कोई अब
नई दुनिया बसाने दो
मुनाफे का महल तोड़ो
ज़रूरत को , ज़रूरत से मिलाने दो !!!!!
मेरी पैदा की चीज़ों को
मेरे ही सामने बेच आता है
मुझे ना रोको कोई अब
नई दुनिया बसाने दो
मुनाफे का महल तोड़ो
ज़रूरत को , ज़रूरत से मिलाने दो !!!!!
पूर्णेंदु शुक्ल
(लेखक पत्रकार हैं और सम्प्रति टीम सी-वोटर में चुनाव विश्लेषक हैं।)
1 मई...या मई दिवस...या मजदूर दिवस....हमारी नई पीढ़ी में शायद ज़्यादातर लोगों को आज के दिन की महत्ता तो दूर...शायद इसके बारे में पता भी नहीं होगा....पर मई की इस गर्मी में भी वो सुबह ही अपने कंधे पर बोरी टांग निकल चुका है...और अभी धूप में कहीं अपने कर्म में रत होगा....हमारेविभाग के... विश्वविद्यालय के ही एक वरिष्ठ पूर्व छात्र पूर्णेंदु शुक्ल ने आज ये कविता CAVS संचार के सभी पाठकों के लिए लिख भेजी है....कविता छोटी है पर शायद सबकुछ कहने में सक्षम है....ज़ाहिर है हर कहानी एक कविता है...और हर कविता में कई कहानियां......पूर्णेंदु जी ने लम्बे वक्त बाद कोई कविता लिखी है...सो बधाई और आज के दिन की बात कहने के लिए साधुवाद भी....
bahut khoob sir...
ReplyDeleteकोई बतलाये मुझको
ReplyDeleteमेरी मेहनत की कीमत....
कौन लगाता है
मेरी पैदा की चीज़ों को
मेरे ही सामने बेच आता है
मुझे ना रोको कोई अब
नई दुनिया बसाने दो
मुनाफे का महल तोड़ो
ज़रूरत को , ज़रूरत से मिलाने दो !!!!!
...Major diwas par batreen prastuti ke liye dhanvaad.....
शुक्रिया इतने लम्बे वक्त बाद लिखने के लिए....
ReplyDeleteअब इंतज़ार रहेगा नियमित रचनाओं का....
श्वानों को मिलता दूध वस्त्र
भूखे बालक अकुलाते हैं...
मां की छाती से चिपक ठिठुर
जाड़े की रात बिताते हैं...
bahut khub Sir !
ReplyDeleteatyant krantikaari
ReplyDelete