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Sunday, May 2, 2010

अगर ये हत्या है...तो दोहरा हत्याकांड है....नीरू हमें माफ़ करना...


फर्ज़ी सुसाइड नोट?
आत्महत्या का नाटक....?
हत्या की पूरी तैयारी....???
अपनी ही बेटी की हत्या....?
उसका कुसूर क्या था....?
प्रेम करना....
या प्रेम को विवाह में बदलने की इच्छा....
और अगर ये हत्या है....
तो फिर ये दोहरा हत्याकांड है....

निरुपमा की तस्वीर को कम से कम दो-तीन बार ध्यान से ज़रूर देखिएगा....आपको नीरू की इस तस्वीर में कहीं न कहीं अपनी बेटी...बहन...ज़रूर नज़र आएगी....और अगर नहीं आती है तो फिर अपने आप को आइने में दो-चार बार ज़रूर देखिएगा....कि क्या आपमें इंसान होने के कितने लक्षण बचे हैं.....पर सवाल आपके इंसान होने या न होने का भी नहीं है, सवाल तो केवल और केवल ये है कि आखिर कैसे और कब हम इंसान होने की मूलभूत अहर्ताएं भी हासिल कर पाएंगे....
नीरू के लिए उसके दोस्त कहते हैं कि वो एक बेहद हंसमुख लड़की थी...उसके सहपाठी कहते हैं कि वो एक अव्वल छात्रा थी.....उसके सहकर्मी कहते हैं कि वो होनहार पत्रकार भी थी...फिर आखिर कैसे उसके गरवाले ये शिकायत कर सकते थे कि वो एक अच्छी बेटी नहीं थी....उसका कुसूर सिर्फ इतना था कि उसने अपनी पसंद के एक लड़के से प्रेम करने की हिम्मत कर दी थी....और उस प्रेम को वो केवल जवानी के दिनों की यादों में संजो कर नहीं रखना चाहती थी, वो ुसे विवाह के मुकाम पर पहुंचाना चाहती थी....नीरू नौकरी कर रही थी...आत्मनिर्भर थी...वो चाहती तो घर वालों से छुप कर भी शादी रचा सकती थी और फिर क्या कर लेते उसके वो घरवाले जिन्होंने अपनी ही....कहते भी हलक सूखता है....
नीरू की गलती थी कि वो सही रास्ते से अपनी मंज़िल पाना चाहती थी...अगर नीरू बिना घरवालों की मर्ज़ी के ये शादी कर लेती तो ज़्यादा से ज़्यादा एक दो साल बाद यही लोग उसे वापस अपना लेते...पर हमारे तथाकथित सभ्य समाज को सीधे और सरल तरीके पसंद ही कहां हैं....हमारी गौरवशाली संस्कृति का दम भरने वाले ठेकेदार अब कहां हैं...और क्या नाम देंगे इसे...
अफसोस ये भी है कि नीरू एक पत्रकार थी....उसे कई और ज़िंदगियों को रोशन करना था पर वो खुद ही बुझ गई...उसे उन्होंने ही बुझा डाला जिन्होंने उसे रोशनी दी थी....
मैं जानता हूं कि अभी भी कई लोग सवाल करेंगे कि क्या गारंटी है कि नीरू ने आत्महत्या नहीं की उसका क़त्ल हुआ है....तो एक बार उसकी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट (पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का लिंक...ज़रूर देखें) पूरा ज़रूर पढ़ें....चलिए आपको बता ही देते हैं सरल भाषा में ये क्या कहती है....
  • उसकी श्वसन नली में कंजेशन था....
  • उसके दोनो फेफड़ों में भी कंजेशन था...
  • ह्रदय के दोनो कोष्ठों में रक्त था...
  • उसके लिवर में कंजेशन था....
  • उसकी किडनी में कंजेशन था...
  • स्प्लीन में कंजेशन था...
मतलब कुल जमा ये कि उसकी मौत दम घुटने से हुई...और ये सामान्य बुद्धि है कि कोई भी अपना गला खुद घोंट कर आत्महत्या नहीं कर सकता है....
लेकिन सबसे दर्दनाक सच सामने लाती है पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट की आखिरी लाइन.....

"उसके गर्भाशय में 10-12 हफ्ते का शिशु भ्रूण था"

बहुत से लोग अब इस पर भी उंगलियां उठाएंगे...नाक भौं सिकोड़ेंगे...क्योंकि समाज की सभ्यता का यही तकाज़ा है....किसी को नहीं बख्शेंगे ये लोग....पर मैं केवल ये जानता हूं कि अगर ये हत्या है तो ये दोहरा हत्याकांड है....
क्या कहूं....जिस धर्म...जाति और ईश्वर की ये समाज दुहाई देता है क्या वाकई उसका कोई अस्तित्व भी है....

क्या ये वही लोग हैं जो साल में दो बार 8 दिनों तक नारी शक्ति की पूजा पाठ कर्मकांड कर के नवें दिन कन्याओं के पैर छूते हैं....
नीरू के शरीर में पल रहा भ्रूण जिस किसी का भी अंश था..मैं उसे नहीं जानता....पर क्या पुरुषों के लिए भी ऐसी ही सज़ा होगी....क्या उस बच्चे में उस पुरुष का अंश नहीं है....या सारी गलती नीरू की ही थी...
ज़ाहिर है अब मैं भावुक हो रहा हूं...और हमारे सभ्य समाज में भावुक केवल सामाजिक प्रतिष्ठा और दकियानूसी नियमों को लेकर हुआ जाता है...मानवीय नीतियों और मूल्यों को लेकर नहीं....ये भी एक नियम ही है.....
माफ करना नीरू हम तुम्हें बचा नहीं पाए...पर क्या अफसोस करें तुम्हारे जैसी हज़ारों नीरू हम खो चुके हैं...शायद खोते भी रहेंगे....
मेरा पुनर्जन्म में कतई यकीन नहीं है...पर मैं जानता हूं एक और नीरू कहीं और जन्म ले चुकी है...उसकी होनी में क्या लिखा है....हक...या मौत......
(पूरे प्रकरण का सबसे दुखदायी पहलू ये है कि मीडिया जिसका नीरू हिस्सा थी...टीवी या प्रिंट....लगभग मुंह सिले हुए है...क्यों वे ही बेहतर जानेंगे...)

अगर आपको लगता है कि नीरू को न्याय मिलना चाहिए तो आप भी चार शब्द तो लिख ही सकते हैं....

नीरू से जुड़ी और पोस्ट्स के लिंक...
मयंक सक्सेना
mailmayanksaxena@gmail.com
9310797184

2 comments:

  1. बड़ा अच्छा किया है आपने एक युवा पत्रकार की हत्या का विषय उठाकर. मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए....

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  2. एक सवाल परंपरा के ठेकेदारों से...
    औरत और इज्जत कब अलग होंगे ?
    क्या इज्जत को ढ़ोने का सारा THIKA औरतों के सर ही क्यों?
    जरा ये बोझ मर्दों के सर भी तो हो...

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