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Friday, May 21, 2010

हो सके तो...एक दिवंगत साथी की जीवंत कविताएं....


आज एक ऐसे साथी की दो कविताएं पढ़वाना चाहते हैं जो कल हम सबको अलविदा कह गया....कविताएं छोटी हैं पर बेहद संवेदनशील हैं, पहले कविता पढ़ें फिर कवि का परिचय भी.....  


हो सके तो...

मेरी रंगीन कब्र पर 

दीप मत जलाना 

हो सके तो 

जीते जी 

मेरे अंधेरे घर में 

उजाला कर दो...


मेरे चारों तरफ है 

आईने 

कहां छिपने जाऊं 

हो सके तो 

अपने सीने में 

छिपा लो मेरे आंसू ....


सपने

किसी भी उम्र में 

देखे जा सकते हैं

सपने

अंतिम सांस भी

कम नहीं होती

जिस जीवन में

सपने नहीं हैं...

वह सहेज कर

रखा गया  
पार्थिव शरीर है 

और कुछ नहीं....


प्रदीप श्रीवास्तव

(राष्ट्रीय सहारा, गोरखपुर में कार्यरत डिप्टी न्यूज एडिटर प्रदीप श्रीवास्तव की आज सड़क दुर्घटना में मौत हो गई है. प्रदीप कार चला रहे थे और एक ट्रक की कार से टक्कर हो गई. प्रदीप के साथ कार में बैठे उनके बहनोई की भी मौत हो गई. बताया जा रहा है कि टक्कर इतनी भीषण थी कि शव कार को काटने के बाद बाहर निकाला जा सका. प्रदीप की उम्र 47 वर्ष थी और वे करीब 18 वर्ष से राष्ट्रीय सहारा के साथ थे. वे राष्ट्रीय सहारा, गोरखपुर के जनरल डेस्क इंचार्ज थे।)  

3 comments:

  1. kavitaayein abhut umda hain...par jaankar gala bhar aaya...ishwar unki aatma ko shanti de...

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  2. बहुत ही शानदार रचनाएँ हैं, जानकर बहुत दुःख हुआ की इतने संवेदनशील इन्सान ने इतनी जल्दी विदा ले ली, मेरी और से उन्हें श्रधांजलि!

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  3. बेहतरीन रचनायें...


    बड़ी दुखद खबर. श्रृद्धांजलि!!

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