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Monday, June 7, 2010

अफजल की फांसी..इंतजार कब तक

आखिर सच्चाई जुबां पर आ ही गई किसी ने बिल्कुल सही कहा है हकीकत को ज्यादा दिनों तक आप दबा तक नही रह सकते है और किसी ना किसी बहाने वो आपकी जुबां पर आ ही जाती है. दिल्ली की मुख्यमंत्री पद पर 11 साल से लगातार शोभायमान श्रीमती शिला दीक्षित ने एक निजी चैनल पर इंटरव्यू के दौरान इस बात को स्वीकार किया है अफजल की फांसी की फाइल को यथा संभव लटकाया जाए और शायद इसलिए एक फाइल चार साल तक 200 मीटर का फासला तय नही कर सकी और जिस अधिकारियों ने फांसी की फाइल को दबाये रखा उन्हे बकायदा पदोन्नति दी गई.इस रहस्यमय बात को दुनिया के सामने पेश करवाने के लिए इस निजी चैनल को भी बहुत बहुत धन्यवाद .... ये वही गृहमंत्री शिवराज पाटिल है जिसके कार्यकाल के दौरान मुंबई की लोकल ट्रेन पर 11 जुलाई 2006 ,मुंबई मे ही 26 नवंबर 2008 को आंतकी हमले और ना ही जाने सैकड़ो हमले हुए और शायद इसलिए शिवराज सिंह से बेहतरी की उम्मीद भी नही की सकती हैं. अब सवाल ये उठता है कि देश द्रोहियों को फांसी पर लटकाने मे इतनी देरी क्यो हो रही है कायदे से इसकी मौंत की तारीख उच्चतम न्यायालय ने 20 अक्टूबर 2006 ही तय कर दी थी लेकिन इस देश मे मानवतावाद के चंद ठेकेदार ने झूठी इंसाफ की एक ऐसी आंधी चलायी जिसकी वजह से अफजल को अब तक फांसी पर लटकाया नही जा सका.नंदिता हक्सर,अरुंधित राय जैसी मानवतावाद के चंद चाटुकार की वजह से अफजल आज भी मुफ्त की रोटियां जेल मे बैठे तोड़ रहा है .जरा सोचिए अगर अफजल अपने नापाक मंसूबे मे कामयाब हो गया होता तो देश के सामने दो ही परिस्थितियां होती या तो आधी संसद खत्म हो जाती है या फिर ये देशद्रोही प्रधानमंत्री,गृहमंत्री और संसद के अन्य सांसदों को अपने कब्जे मे करके पाकिस्तान मे अपने रह रहे आकाओं के निर्देश मे अपनी मांगे मनवाने मे कामयाब हो जाता है. वो तो देश के जांबांजो की शहादत है जिसकी वजह से संसद भी सुरक्षित है और देश भी. एक और सवाल अफजल के मामले पर सरकार एक यह भी दलील देती है अफजल को फांसी पर लटकाने के पहले कानून व्यवस्था को भी ध्यान रखा जाए. क्या इस आतंकवादी का जनाधार इतना बड़ा है कि इसको फांसी पर लटका देने से देश की विधि व्यवस्था बिगड़ जाए... और अगर अफजल को फांसी पर लटकाने से देश की विधि वयवस्था पर कोई असर पड़ता है तो सरकार यह सरकार की जिम्मेदार बनती है अफजल के समर्थन मे उठने वाली हरेक आवाज को दबा दिया जाए.. मुझे जम्मू कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्ला के स्टेटमेन्ट पर तकलीफ और आश्चर्य होता है जब ये कहते है कि पहले उन 28 दया याचिकाओं पर फैसला करो फिर अफजल गुरू की याचिका पर फैसला करना. क्या इसका मतलब ये निकाला जाए कि ना तो इन 28 याचिकाओं पर फैसला होगा और ना ही अफजल गुरू को फांसी होगी. इससे साफ हो जाता है कि अफजल पर किसका आशीर्वाद है..... ध्यान रहे उमर स्वयं भी कश्मीर के सीएम है और उनके पिता केंद्र सरकार मे कैबिनेट मंत्री है भी ... एक आतंकवादी सिर्फ आतंकवादी है और यह देश के हित मे होगा को उसे जल्द फांसी पर लटकाया जाए. क्योकि देश कांधार जैसे आतंकवादी घटना की पुनरावृति नही चाहता है. हो सकता है कि फिर किसी भारतीय विमान का अपहरण कर आतंकवादी अफजल को मुक्त करने की मांग करे और उस समय देश अरूंधित राय और नंदिता हक्सर जैसे अलगाववादियों का साथ देने वाले लोगो से नही बल्कि मनमोहन सरकार से या और फिर किसी केंद्र सरकार से जवाब मांगेगी...ये वही अरूंधति राय है जिसने नक्सली क बारे मे कहा है
They are gandhian with guns..
बस्तर की शांति, वहां की मधुरता और चंचलता को भंग कर देने वाले देश के आंतरिक गद्दारों नक्सलियों की हरकत का समर्थन करने वाली अरूंधति राय जैसे चाटुकार से भारतीय कुछ उम्मीद नही कर सकता है
देश का हर नागरिक इंसाफ चाहता है और इंसाफ यह है कि अफजल और कसाब को जल्द ही मौंत की नींद सुला दी जाएं...

1 comment:

  1. bilkul sahi...manavta ko kalankit karne ka yahi hashra hona chahiye

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