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Wednesday, June 23, 2010

कुलपति जी की सेंसरशिप....


(गत दिनों एक घनिष्ठ मित्र की दुर्घटना के कारण लम्बा वक्त उनकी सेवा में अस्पताल में बीता जिस कारण महा माननीय कुलपति जी की विश्वविद्यालय में चल रही तानाशाही के खिलाफ़ चल रहा अभियान थोड़ा मंथर हुआ। इसके लिए आप सबसे ही क्षमाप्रार्थी हूं)
हाल ही में कुछ वर्तमान छात्रों से कुछ नवीन बातें प्रकाश में आई जिन्हें सबके सामने लाना चाहूंगा। पता चला है कि अति आदरणीय कुलपति जी ने अपनी विवादास्पद छवि और अपने तुगलकी फैसलों के लगातार होते विरोध के चलते एक अघोषित सेंसरशिप ही लागू करवा दी गई है।
दरअसल हुआ यह कि हाल ही में विश्वविद्यालय में नियुक्तियों से लेकर तमाम कामकाजों में अनियमितता बरतने और पद के दुरुपयोग के आरोप महान कुलपति जी पर लगे। प्रवेश परीक्षा को लेकर किए गए तुगलकी फैसले का विरोध तो हम कर ही रहे हैं (जिसके बाद भी कुठियाला जी के कानों पर जूं भी नहीं रेंगी) पर कुछ नियुक्तियों पर भी विवाद खड़ा हो गया। एक नियुक्ति तो है परम आदरणीय कुलपति जी के परम चेले सौरभ मालवीय की। मालवीय जी भी विश्वविद्यालय के कर्मचारी हैं और बाकायदा तन्ख्वाह पर है, उनकी योग्यता भी जान लें वो कुलपति जी के अधीन पीएचडी कर रहे हैं। उनकी ये योग्यता इतनी बड़ी है कि बिना किसी भी साक्षात्कार या प्रतियोगी परीक्षा का सामना किए आज वो विश्वविद्यालय में हैं। मालवीय जी की हैसियत भी कुलपति जी से कम नहीं है, एक बार परिसर में होकर आएं....अगर मालवीय जी दिखाई पड़ गए तो आप खुद ही जान जाएंगे और अगर नहीं तो छात्र बता देंगे कि विश्वविद्यालय में मालवीय जी इंदिरा के संजय सरीखे हैं.....।
खैर फिलहाल तो बात उस घटना की जिसने मुझे ये पूरी पोस्ट लिखने के लिए मजबूर किया है, दरअसल हाल ही में विश्वविद्यालय की प्लेसमेंट सेल में छात्रों के विरोध के बहाने एक नया पद सृजित किया गया। हालांकि इसकी कोई आवश्यक्ता आज तक किसी भी पुराने छात्र को नहीं महसूस हुई पर ये हुआ और उस पद पर नियुक्ति के लिए जब एक भाजपा नेता की पत्नी का नाम तय हो जाने की बात सामने आई तो बवाल ही मच गया। यही नहीं विपक्ष के हंगामे और प्रदर्शन के बाद भी कुठियाला जी जस के तस हैं। पर बात यहीं खत्म नहीं होती, लोकतंत्र के चौथे खम्भे के पहरेदार तैयार करने वाले विश्वविद्यालय के कुलपति अखबारों से ही इतना डर गए कि उस दिन विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में सभी अखबारों से उक्त ख़बर सुबह सुबह ही काट ली गई। इसे क्लिपिंग का नाम दिया जाएगा पर ज्ञात हो कि आज के अखबार से कभी भी क्लिप नहीं काटी जाती हैं....तो भई अब देख लीजिए कि क्या हश्र होगा ऐसे संस्थान में पत्रकारिता का जहां अखबार ही सेंसर हो जाएं......
हां सौरभ मालवीय की बात की थी तो बताते चलें कि अगली पोस्ट में बताएंगे कि कौन हैं सौरभ मालवीय....और क्या कर रहे हैं परिसर में....मेरी कुठियाला जी से कोई निजी शत्रुता नहीं है पर हां किसी भी तरह के भ्रष्टाचार और लोकतंत्र के हनन को मैं निजी शत्रुता की तरह लेता हूं और एक पत्रकार और लेखक के नाते चिल्लाकर बोलूंगा.....अभी और पोल खुलनी बाकी है तो पढ़ते ज़रूर रहें और हां बताता चलूं कि भगत सिंह के शहादत दिवस पर कार्यक्रम करने के लिए छात्रों को जगह नहीं दी गई.....तो कार्यक्रम बाहर लॉन में ही कर लिया गया....कविताएं और पोस्टर फाड़ दिए गए.....अगली बार लॉन से भी बाहर किया गया तो सड़क पर ही जम्हूरियत का जश्न तो मनेगा...मन कर रहेगा.....और हां एक फटे हुए पोस्टर पर शायद पाश की वो कविता लिखी हुई थी......

सबसे ख़तरनाक होता है
मुर्दा शांति से भर जाना
तड़प का होना
सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना

ये पत्रकारिता विश्वविद्यालय है मिस्टर कुठियाला.....और हम में से कोई भी मुर्दा नहीं है और यकीनन मुर्दा शांति नहीं....ज़िंदा कौम का शोर आपके रास्ते में खड़ा है....एक बार कान से उंगलियां हटाकर देखिए....कानों के पर्दे गवाही दे देंगे.....
सेंसरशिप के खिलाफ़....तानाशाही के खिलाफ़....भ्रष्टाचरण के खिलाफ़.....
मयंक सक्सेना
क्या आप साथ हैं?

8 comments:

  1. main apke sath hn mayank....pehle hm bhrashtachar k khilaf bolte nahi phir jab wo apni saakh jama leta hai to system ko koste hai.....jab padhai ki jagah par hi politics ho rahi hai to patrikarita ka bhavishya to aur bhayawah hoga.....i hope ki hamare aur sehpathi bhi is behas mein yogdaan de....aur uche padon par baithne wale ye samjhe ki MCRPV kisi ki jagir nahi...ki jo jaisa man aye waise kaam chalaye...

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  2. us university mein sangh ka dabdaba hamesha raha hai, naye vc ke aane ke baad ye kuch jyada badh gaya hai...is baar ke naye lifaafe bhi neele na hokar bhagwa rang ke hain...waise desh ki aur bhi kai universities mein vichaardhara haavi rahi hai..dekhna hoga ki is maahaul mein baaki vichaardharaaein kaise panapti hain....niyuktiyon mein dhaandhli ke aaropon ki jaanch honi chaahiye

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  3. दाद मत दीजिए अंकुर....साथ खड़े होइए....

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  4. mayank ji main aapke sath hoon. yeh viswavidyalaya hai koi rajneeti ka akhara nahi jo jab chaha, jaise chaha, jahan chaha kisi ko bhi la kar baitha diya. aap is mandir se sarir se door ho lekin man se nahi lekin jinhe is mandir ko ek nayi unchai par le jana hai wo ise apni niji jagir samajh kar bartav kar rahein hain. mujhe is baat ka dukh hai ki aaj ke samay mein sabhi shikshak mananiya VC ke khas banne ke chakkar mein unke sahi-galat har faisle ko sir-ankhon par le rahein hain aur jo thoda bhi virodh kar raha hai use nit nayi jimmedariyon ke bojh tale lada ja raha hai.

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  5. This comment has been removed by the author.

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  6. अंकुर लड़ाई मुश्किल है....लम्बी भी हो सकती है....सबका साथ चाहिए....

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  7. ham sab aapke sath hain sir...aapke sabhi supar juniyar student..

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